RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
इस बार मेरे लंड चुसवाने की जो इच्छा अधूरी रह गई है उसे मैं बड़े ही शानदार तरीके से पूरी करूँगा और वो पल यादगार साबित होगा… वंदना रानी को अपने लंड का ऐसा रस पिलाऊँगा कि वो तृप्त ही हो जाएगी।
फिलहाल तो उसकी रस से लबालब भरी और उत्तेजना में फड़फड़ाती हुई चूत की आग को शांत करना जरूरी था।
अब मैदान छोड़ नहीं सकते.. और कौन कमबख्त इतनी हसीन लड़की को यों काम वासना से तड़पते हुए छोड़ कर जा सकता था।
सारी बातों का ध्यान रखते हुए मैंने वंदना को अब धीरे-धीरे से सीट पे लिटाना शुरू किया और उसे यहाँ-वहाँ चूमते हुए लिटा दिया। वंदना उन्माद से भर कर अपनी चूचियों को हौले-हौले सहलाने लगी और सिसकारियाँ निकलने लगी..
मैंने अब झट से उसके पैरों में फंसी हुई उसकी सलवार और उसकी पैंटी को निकाल फेंका और उसके पैरों को फैलाकर किसी तरह उनके बीच घुसने की कोशिश करने लगा।
आप सब जिन्होंने कभी किसी छोटी कार में इस खेल का मज़ा लिया है उन्हें पता होगा इस कशमकश के बारे में…
खैर जैसे-तैसे मैं उस जगह पर पहुँचने में कामयाब रहा और अब मैं लगभग वंदना के ऊपर आ गया। मैंने अपने हाथों से उसके हाथों को हटाया जो उसकी चूचियों को सहला रहे था… उसके दोनों हाथों को अपने हाथों से थाम लिया मैंने और क्यूँ ये शायद मुझे बताने की जरूरत नहीं… इतने समझदार तो आप हैं।
उसके होठों को एक बार चूम कर मैंने धीरे से फुसफुसाकर बिल्कुल उन्माद भरे स्वर में उससे कुछ कहा- अब इन्हें मेरे हवाले कर दो ‘वंदु’…
पता नहीं मेरे मुँह से ये शब्द कैसे निकल पड़े…
‘आःहह्ह… ये आपके लिए ही हैं समीर… अब उनपर मेरा कोई अधिकार नहीं!’ लड़खड़ाती आवाज़ में वंदना ने मेरी बात का जवाब दिया और अपनी गर्दन पीछे की तरफ धकेलते हुए अपने सीने को उभार दिया।
उसके इस अंदाज़ पे मैं फ़िदा हो गया और झट से अपने होठों में उसकी एक चूची को भर लिया और उसके निप्पल को चूसने लगा.. वंदना अपने मुँह से मादक सिसकारियाँ लेती हुई अपनी चूचियों को मेरे मुँह में ठेलने लगी।
मैंने भी उसकी इच्छा का पूरा सम्मान किया और जितना हो सके उसकी चूचियों को अपने मुँह में भर लिया और मज़े से चूसने लगा।
अब मैंने अपने एक हाथ को आज़ाद कराया और नीचे ले जा कर अपने लंड को पकड़ कर वंदना की चूत पर हल्के से रखा।
‘उह्ह हह्हह्ह… स्स्स्समीर, मुझे डर लग रहा है…’ वंदना ने अचानक से अपनी चूत पर मेरे गरम लंड के सुपारे को महसूस करती ही अपने हाथ से मेरे बालों को पकड़ लिया और कांपते हुए शब्दों में अपनी घबराहट का इज़हार किया।
यह स्वाभाविक था और मैंने भी वही किया जो इस समय एक कुशल खिलाड़ी को करना चाहिए। झुक कर उसके होठों को अपने होठों में भरा और अपने लंड को उसकी रसीले चूत पे रगड़ने लगा मैं। इस तरह से सुपारे को उसकी चूत के दरवाज़े पे ऊपर से नीचे तक रगड़ते हुए मैंने उसके बदन में और भी सिहरन भर दी…
उसके होठों को प्रेम से चूस रहा था मैं कि उसने अपने होठों को छुड़ाया और एक लम्बी सांस ली- अआह्हह… स्स्स्समीर… कक्क कुछ कीजिये… मम्म मैं..मर जाऊँगी वरना… प्लीईईईईज…
अपने संयम का बाँध संभाल नहीं पा रही थी वंदना!
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