Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के संग
04-12-2019, 12:31 PM,
#35
RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
अब बारी आई उसकी चूचियों के रसपान की… मैंने धीरे-धीरे अपने होठों से उसकी दोनों चूचियों को हर जगह चूमना शुरू किया… अँधेरे की वजह से मैं उन चूचियों को ठीक से देख नहीं पा रहा था और इस बात से मुझे बुरा लग रहा था।
तभी एक बिजली कड़की… और मेरी आँखों ने उन पर्वतों के साक्षात् दर्शन कर लिए… बस एक दो सेकंड सेकेण्ड के लिए ही सही लेकिन बिजली की चमक ने उन खूबसूरत उभारों को इतना उजागर कर दिया कि उत्तेजना में कड़ी उन चूचियों की नसें तक साफ़ दिख गईं और साथ ही उन चूचियों के ठीक मध्य भाग में वो गुलाबी सा घेरा और उस घेरे के ऊपर किशमिश के दाने के आकार की घुंडी… 
उफ्फ्फ… मैं बावला हो गया और उस अचानक हुए उजाले में उन घुण्डियों की तरफ निशाना साध कर अपने होठों को टिका दिया.. निशाना बिल्कुल सटीक बैठा था।
अँधेरा अब भी था और बारिश की बूंदें अब भी शोर मचा रही थीं… लेकिन मेरे होठों ने जैसे ही वंदना की चूची की घुंडी को अपने अन्दर समेटा, एक जोरदार सिसकारी के साथ वंदना ने मेरे बालों को बड़े जोर से खींचा… अपने पैरों को बिल्कुल एक साथ जोड़कर यूँ ऐंठने लगी जैसे उसे किसी बिजली के तार ने छू लिया हो।
लम्बी-लम्बी साँसें… और धड़कते हुए दिल की आवाजों के साथ उसने अपने बदन को कदा कर लिया और अपनी कमर के 3-4 झटके दिए… मुझ जैसे अनुभवी खिलाड़ी के लिए यह समझना मुश्किल नहीं था कि मेरे होठों की छुवन ने वंदना को चरमोत्कर्ष पर पहुँचा दिया था और उसकी मुनिया ने अपने रस को धीरे से विसर्जित कर दिया था।
वंदना का पूरा बदन काँप रहा था… मैंने उसकी चूची की घुंडी को अपने पूरे मुँह में होठों के बीच रख लिया और अन्दर से अपनी जीभ की नोक को उस घुंडी पे चलाने लगा।
हमारी पाठिकाएँ इस एहसास को बखूबी जानती होंगी और यह भी जानती होंगी कि ये क्षण पूरे बदन को कितनी गुदगुदी से भर देते हैं… लेकिन इस गुदगुदी में हंसी नहीं निकलती बल्कि पूरे बदन में एक सिहरन सी दौड़ जाती है।
ऐसा ही कुछ वंदना के साथ भी हुआ और उसका बदन झनझना उठा… मैंने अपने जीभ की करामात जारी रखी और अब अपने दूसरे हाथ को वहाँ पहुँचा दिया जहाँ उसे उस वक़्त होना चाहिए था।
उसकी दूसरी चूची को अपने दूसरे हाथ की हथेली में भरते हुए मैंने उन्हें हौले-हौले मसलना शुरू किया।
वंदना भी अभी-अभी स्खलित हुई थी… इसलिए उसने अपने बदन को अब बिल्कुल ढीला कर दिया और अपने आप को मेरे हवाले कर दिया… अब मैंने उसकी पहली चूची को अपने होठों से अलग किया और फिर दूसरी चूची की तरफ बढ़ा।
उसकी दूसरी चूची को मुँह में भरने से वंदना को एक बार फिर से उत्तेजना हुई, मेरे दूसरे हाथ ने अब उसकी वो चूची थाम ली जिसे मैंने चूस चूस कर गीला कर दिया था।
एक तो पहले ही उसकी चूचियाँ चिकनी थीं, ऊपर से मेरे मुँह से निकले रस से सराबोर होकर और भी चिकनी हो गई थीं… मेरी हथेली में भरते ही उसकी चूचियों की चिकनाहट ने वो आनन्द दिया कि मैंने एक बार अपनी हथेली को जोर से भींच कर चूचियों को लगभग कुचल सा दिया।
‘आआह्हह… ..सीईईई ईईस्सस्स…’ बस इतना ही निकल सका उसकी जबान से..
मैंने मज़े से उसकी चूचियों का रसपान जारी रखा और साथ ही साथ मर्दन भी करता रहा।

हम दोनों दीन-दुनिया से बेखबर उस बारिश के शोर में एक दूसरे से लिपटे एक दूसरे के अन्दर समां जाने को बेकरार थे… मेरे हाथों ने अब अपना स्थान बदलना शुरू किया… चूचियों को होठों के हवाले करके अब मेरे हाथ उसके पेट पर चलते-चलते उसकी नाभि को एक बार फिर से छेड़ने लगे… उँगलियों ने जैसे ही नाभि को छुआ तो मेरा ध्यान उसकी तरफ खिंच गया… मैंने वंदना की चूचियों को अपने मुँह से निकला और अपनी जीभ को बाहर निकल कर चूचियों के घाटी के बिल्कुल बीच से होते हुए अपनी छाप छोड़ते-छोड़ते सीधा उसकी नाभि में समां कर रुक गए…
अब यह एक और ऐसी जगह है स्त्रियों के शरीर में जहाँ हलकी सी सरसराहट भी उत्तेजित कर देती है और अगर उस जगह जीभ रख दी जाए तो फिर तो सिहरन से शरीर उन्मादित हो उठता है। मैंने वंदना को वही उन्माद दिया था… अपनी जीभ की नोक को उसकी सुन्दर गहरी नाभि में यूँ चलाने लगा मानो एक छोटी सी कटोरी जिसके अन्दर सिर्फ कोई नुकीली चीज़ ही जा सकती है, वहाँ से कोई शहद चाट कर पी लेना चाहता हूँ…
नाभि को चूम-चूम कर मैं फिर से उसकी चूचियों को मसलने लगा। वंदना के हाथ पहले की तरह ही मेरे बालों से खेल रहे थे… 
मेरे हाथों ने एक बार फिर से अपने स्थान परिवर्तन का फैसला किया और अब धीरे-धीरे चूचियों को सहलाते हुए पेट की तरफ बढ़े और फिर मेरी उँगलियाँ वंदना की पटियाला सलवार से टकरा गई… मैं अपनी उँगलियों को आहिस्ते-आहिस्ते कमर की तरफ से उसकी सलवार के अन्दर डाल दिया और लगभग दो उँगलियों से जितना संभव हो सके उतना नीचे की तरफ सरका दिया…
अब मेरी उंगलियों को खेलने के लिए उसकी नाभि और उसकी मुनिया के बीच की सपाट चिकनी सतह मिल गई और उँगलियों ने उस सतह को हौले-हौले सहलाना शुरू किया…
स्त्रियों का यह भाग बहुत ही संवेदनशील होता है… मेरी उँगलियाँ मानो मेरे होठों का मार्गदर्शन कर रही थीं। नाभि को अपने मन मुताबिक़ चूमने के बाद सहसा ही मेरे होंठ नाभि के ठीक नीचे उसी भाग को चूमने लगे… अब मेरे नाक में एक चिर-परिचित महक आने लगी…
जी हाँ… आपका अनुमान बिल्कुल सही है, यह महक वहाँ से आ रही थी जहाँ पहुँचने की लालसा हर एक मर्द में होती है… ‘चूत’ !!
एक मदहोश कर देने वाली महक जिसने हमेशा मुझे मदहोश किया है… आज भी और आज से पहले भी।
वंदना के सपाट पेट और चूत तथा नाभि के बीच के चिकने भाग पर मेरी जीभ खुद बा खुद फिसलने लगी… साथ ही साथ मेरी उँगलियाँ अब बड़े ही मुस्तैदी से वो डोर ढूंढ रहे थे जिसे खींचे बिना स्वर्ग के उस दरवाज़े के दर्शन नहीं हो सकते। ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी मुझे और वंदना के शलवार की डोरी मेरे हाथों में आ गई… मैंने उसके पेडू को चूमते हुए ही डोरी को हल्के से खींचा!
इस बार भी नारी सुलभ लज्जा का प्रदर्शन हुआ और एकदम से वंदना ने अपने हाथों से मेरे हाथों को रोकने का प्रयास किया लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी.. मेरे प्रेम भरे मनुहार ने वंदना के अन्दर अब विरोध करने की शक्ति को क्षीण कर दिया था… थोड़ी सी ना नुकुर के बाद मैंने डोरी को पूरी तरह खोल दिया और एक बार वंदना की तरफ देखा…
वंदना ने अपने हाथों से अपना मुँह ढक लिया… उसकी इस हालत पे मैं वासना भरी मुस्कान के साथ अपने काम में वापस लग गया…
हमें काफी देर हो चुकी थी… उस जगह रुके हुए और अपने प्रेम लीला शुरू किये हुए लगभग डेढ़ घंटे बीत चुके थे… वासना अपनी जगह है और जिम्मेदारियाँ अपनी जगह..
यह एक बात है मेरे अन्दर और यह मैं खुद नहीं कहता, बल्कि मेरे साथ सम्बन्ध बना चुकी हर उस लड़की या स्त्री ने कहा है जिसके हर बात का ध्यान रखा था मैंने।
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