RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
धीरे-धीरे मेरे दायें हाथ ने उसकी चूची को छोड़ दिया और नीचे की तरफ उसके पेट को सहलाने लगा… पेट को थोड़ी देर सहलाने के बाद मेरा हाथ नीचे की तरफ बढ़ चला और मैं उसके जाँघों से लेकर नीचे जहाँ तक हो सके उसकी टांगों को सहलाना शुरू किया।
टांगों से होते हुए जब मेरे हाथ नीचे से ऊपर की तरफ आने लगे तब सहसा ही मेरी उँगलियाँ उसके कुरते के नीचे घुस गईं और और अब मेरी उँगलियों ने उसके चिकने मखमली त्वचा को छुआ…
उफ्फ… कितनी रेशमी थी उसकी त्वचा… मेरी उँगलियाँ खुद बा खुद कुरते के अन्दर फिसलती चली गईं और अब मेरी पूरी हथेली उसके कुरते के अन्दर थी… मैंने बड़े ही प्रेम से उसके मखमली पेट और उसकी नाभि को सहलाया… और धीरे-धीरे उसके कुरते को ऊपर की तरफ खिसकाना शुरू किया… खिसकते खिसकते उसका कुरता इतना ऊपर उठ गया कि अप मेरी उँगलियों से उसकी सिल्की ब्रा टकरा गई…
उसकी ब्रा के सिल्की एहसास ने मेरा जोश और दोगुना कर दिया और अब मैंने कोशिश करनी शुरू कर दी ताकि मेरी पूरी हथेलियों में उसकी चूचियाँ ब्रा सहित आ सके… लेकिन वंदन ने इतना कसा हुआ कुरता पहना हुआ था कि यह मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा लगने लगा…
अपनी असफलता से दुखी होकर मैंने वंदना की आँखों में देखा और उसने मेरी मुश्किल को भांप लिया… अब हम दोनों ने एक दूसरे के होठों को आजाद कर दिया था और मैं इस उधेड़बुन में था कि वो खुद अपने कुरते को निकलेगी या फिर मुझे कोई इशारा देगी…
लेकिन वो बस शरारत भरे अंदाज़ में मुस्कुराती रही…
ये शायद उसका मौन निमंत्रण था जिसमें उसकी रजामंदी भी छिपी थी।
मैंने धीरे से उसे अपनी बाँहों का सहारा देते हुए उठाया और बैठा दिया… अब उसकी आँखों में एक टक देखते हुए उसकी कुरती को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर आहिस्ता-आहिस्ता ऊपर की तरफ निकलने लगा।
वंदना ने शरमाते हुए कार के बाहर चारों तरफ झांक कर सुनिश्चित किया कि कहीं कोई देख न रहा हो… और फिर धीरे से अपनी दोनों गुन्दाज बाहें उठा दीं।
जैसे ही कुरती उसके सीने से ऊपर हुई तो उस अँधेरे में भी उसकी सिल्की ब्रा चमकने लगी और उससे भी ज्यादा उसकी हसीन चूचियाँ दूध की तरह सफ़ेद और मखमली एहसास लिए हुए मेरी आँखों में चमकने लगी।
दोनों बाजुओं के ऊपर होने से उसकी चूचियाँ आपस में बिल्कुल सैट गई थीं और तनकर चूचियों की घाटी को और भी गहरा बना रही थी…
मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ और मैंने झुककर उन घाटियों के ऊपर अपने दहकते हुए होंठ रख दिए।
कुरती अब भी वंदना के गले में फंसी हुई थी और जैसे ही मैंने उसकी चोटियों पे चूमा.. उसने एक ज़ोरदार सांस खींच कर झट से लगभग अपने कुरते को फाड़ते हुए निकाल फेंका और मेरे सर को अपनी चूचियों में दबा लिया…
उफ्फ्फ… वो भीनी सी खुशबू… और वो रेशमी एहसास… बयाँ करना मुश्किल है…स
मैंने अपनी दोनों बाहों में उसके चिकने बदन को बिल्कुल समेट सा लिया और उसकी चूचियों पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी।
‘उफ्फ… समीर… मैं पागल हो जाऊँगी… ऐसा मत करो… सीईईई..’ वंदना ने एक कामुक सी सिसकारी लेते हुए धीरे से मेरे कान के निचले भाग को अपने होठों में भरा और कहा…
वासना और उन्माद की लहरें उसकी आवाज़ में साफ़ साफ़ सुनी जा सकती थी।
उसके ऐसा करने से मुझे थोड़ी सी गुदगुदी हुई और मैंने उसकी चूचियों को अपने दांतों से धीरे से काटा, मैंने उन घाटियों को इतना चूमा कि मेरे चूमने की वजह से वहाँ की पूरी त्वचा लाल सी हो गई… और मेरे मुँह से रिश्ते हुए लार की वजह से पूरी घाटी चमचमा उठी…
वंदना पूरे समर्पण के साथ अपनी आँखें बंद किये लम्बी लम्बी साँसें ले रही थी, मैंने धीरे से अपने हाथों को जो उसकी पीठ पर थे उन्हें सहलाते हुए वंदना की ब्रा के हुक के पास ले आया… मेरे होंठ अब भी उसकी चूचियों पर ही थे।
ब्रा का हुक टूट गया
क्रक… एक जानी पहचानी सी आवाज़ हुई… यह आवाज़ मुझे बहुत पसंद है… पता नहीं कितनी बार इस आवाज़ ने मेरे जोश को और दोगुना किया था… अब आप समझ ही गए होंगे क्यूँ…
इस आवाज़ ने यह एहसास दिलाया कि अब मेरी आँखें उन उन्नत विशाल कोमल कठोर यौवन पर्वतों के दर्शन करने वाले हैं जिसके दर्शन करने को इस पृथ्वी के सारे मर्दों की आँखें हर समय तरसती रहती हैं… चाहे ये पर्वत किसी भी आकार के हों, मर्दों की आँखों में ऐसे समां जाते हैं जैसे उन्हें कभी आँखों से ओझल न होने देना चाहते हों…
उस आवाज़ को सिर्फ मेरे कानों ने ही नहीं सुना था… वंदना को भी इस बात का पूरा एहसास हुआ और उसने झट से अपनी आँखें खोल लीं… और नारी सुलभ लज्जा के कारण अपने दोनों हाथों को अपने सीने पे रख कर अपनी चूचियों को ढक लिया।
वंदना की यह हरकत मुझे ये यकीन दिलाने के लिए काफी थे कि यह शायद उसके लिए पहला अनुभव था जब कोई मर्द उसके उभारों को नग्न देखेगा।
मैं उसे देख कर मुस्कुरा उठा और उसके चेहरे को पकड़ कर उसकी आँखों में आँखें डाल कर एक प्रेम से अभिभूत मिन्नत की… इस मिन्नत में कोई आवाज़ नहीं थी… बस खामोशियाँ और आँखों के इशारे…
प्रेम की कोई भाषा नहीं होती… यहाँ भी कुछ ऐसा ही हाल था। हम दोनों की आँखें एक दूसरे से बातें किये जा रहे थे। मेरी मिन्नत को समझने में वंदना को कोई परेशानी नहीं थी फिर भी औरत तो औरत ही होती है, उसने अपनी नज़रें झुका लीं.. मेरे हाथों ने अब भी उसके चेहरे को यूँ ही पकड़े रखा था।
तभी उसने अपने कांपते हुए हाथों को धीरे से अपने सीने से अलग करते हुए मेरे सर को हौले से पकड़ा और अपनी गर्दन ऊपर पीछे की तरफ करते हुए अपने सीने से लगा दिया।
हाथ हटते ही उसकी चूचियाँ मानो उछल कर बाहर आ गई हों… उसकी सिल्की ब्रा अब उसकी चूचियों को आज़ाद करके खुद एक संतरे के छिलके की तरह लटक चुकी थी पर अब भी उसकी बांहों में ही फंसी हुई थी।
आज़ाद होते ही उसकी बेहतरीन चूचियों पर मैंने अपने नाक से हर जगह की खुशबू लेनी शुरू की, पूरी की पूरी चूची इतने मदहोश कर देने वाली खुशबू छोड़ रही थी कि बस जी कर रहा था कि ऐसे ही उसकी पूरी खुशबू को अपनी साँसों में बसा लूँ।
सूंघते-सूंघते मैंने अपने दाँतों से उसकी ब्रा को पकड़ कर बड़े ही फिल्मी अंदाज़ में उसके हाथों से बाहर कर दिया और बेचारी वो सिल्की सी ब्रा सीट के नीचे गिरकर उस खजाने को लुटते हुए देखने लगी जिसे न जाने कितने दिनों से दुनिया की नज़रों से छुपा रखा था उसने।
मेरी नाक ने वंदना को कई ऐसे सिहरन दिए जिसे वंदना दबा कर नहीं रख पा रही थी और वो सिहरन सिसकारियों के रूप में उसके मुँह से बाहर आ रही थी.. उसकी उँगलियाँ मेरे बालों से अठखेलियाँ कर रही थी।
|