RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
‘अच्छा, वहाँ खूबसूरत लड़कियाँ भी थीं… मुझे तो बस एक ही नज़र आ रही थी… और मैंने तो वो ग़ज़ल भी बस उसी के लिए गाया था.’ मैंने भी उसे प्यार से देखते हुए कहा और मुस्कुरा दिया।
‘झूठे… जाइए, कोई बात नहीं करनी मुझे आपसे…’ वंदना ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा और अपना मुँह बना लिया बिल्कुल रूठे हुए बच्चों की तरह।
तभी जोर से बिजली कड़की… बस होना क्या था, चीखती हुई वो हमसे लिपट गई…
‘हा हा हा हा… डरपोक !!’ मैंने हंसते हुए धीरे से उसे अपनी बाहों में कसते हुए कहा।
‘फिर से डरपोक कहा मुझे… अब तो पक्का बात नहीं करुँगी…’ मेरे सीने से अलग होते हुए वंदना अपनी सीट पर जाने लगी।
और तभी मैंने उसे जोर से अपनी तरफ खींचा, अपने सीने से लगा कर इतनी जोर से जकड़ लिया मानो उसे अपने अन्दर समा लेना चाहता हूँ।
यूँ अचानक खींचे जाने से वंदना थोड़ी सी हैरान तो जरूर हुई लेकिन मेरी बाहों के मजबूत पकड़ में वो अपने सम्पूर्ण समर्पण के साथ किसी लता के समान मुझसे लिपट गई और हम दोनों के बीच सिर्फ खामोशियाँ ही रह गईं।
एक तरफ तेज़ बारिश की आवाज़ थी जिसके शोर में कुछ सुनाई नहीं दे रहा था लेकिन कार के अन्दर इतनी ख़ामोशी थी कि हम दोनों की उखड़ती साँसों की आवाज़ हम साफ़ साफ़ सुन पा रहे थे… बारिश की वजह से हवा में फैली नमी के साथ मिलकर वंदना के बदन से उठ रही एक भीनी सी खुशबू सीधे मेरे अन्दर समां रही थी और मदहोश किये जा रही थी।
लगभग 10 मिनट तक हम वैसे ही एक दूसरे की बाँहों में खोये रहे… न उसने कुछ कहा न ही मैंने!
फिर धीरे से मैंने अपनी पकड़ थोड़ी ढीली की लेकिन अब भी वो मेरी बाहों में ही थी, मैंने उसके चेहरे की तरफ देखा… घना अँधेरा था, बाहर भी और कार के अन्दर भी… कुछ साफ़ तो नहीं दिख रहा था लेकिन रुक रुक कर चमकती बिजलियों की रोशनी में उसके थरथराते होंठ और बंद आँखें उस पल को इतना रोमांटिक बना रही थीं कि दिल से यह दुआ आ रही थी कि ये पल यहीं रुक जाएँ!
कुछ पल मैं यूँ ही उसे निहारता रहा… फिर अपने एक हाथ से उसके चेहरे को ऊपर उठाया… उसने अपनी आँखें नहीं खोली।
मैंने धीरे से उसकी दोनों बंद आँखों के ऊपर से ही चूमा और फिर एक बार उसके माथे को चूम लिया।
अगर सच बताऊँ तो ऐसा मेरे साथ पहली बार नहीं हुआ था जब मैं किसी लड़की के साथ ऐसी सिचुएशन में था… लेकिन आज से पहले जब भी ऐसा हुआ था तब मेरे होंठ सबसे पहले सामने वाली लड़की या औरत के होठों से ही मिलते थे और एक जोरदार चुम्बन की प्रक्रिया शुरू करता था मैं… लेकिन आज पता नहीं क्यूँ मैं ऐसी हरकतें कर रहा था मानो मैं प्रेम से अभिभूत होकर अपनी प्रेमिका को स्नेह और दुलार से चूम रहा हूँ।
उसकी आँखों और माथे पर चूमते ही वंदना ने मुझे और जोर से पकड़ लिया और गहरी साँसें लेना शुरू कर दिया… मुझे लगा कि अब वो अपनी आँखें खोलेगी… लेकिन ऐसा नहीं हुआ… मैं अचंभित सा उसे देख रहा था और तभी एक कड़कती बिजली की रोशनी में मुझे उसके दोनों आँखों के किनारे से मोतियों की तरह आँसुओं की बूँदें दिखाई दीं।
मैं समझ गया था कि ये आँसू क्यूँ निकल रहे थे… यह अलग बात है कि मैं वासना और शारीरिक प्रेम का अनुयायी रहा और आज भी हूँ लेकिन उतना ही ज्यादा भावुक भी हूँ और किसी की भावनाओं को समझने की शक्ति भी रखता हूँ…
मैंने वंदना के चेहरे के करीब जाकर उसके कान में धीरे से पूछा- ए पगली… रो क्यूँ रही हो… मेरा छूना बुरा लगा क्या… अपनी बाहों से आजाद कर दूँ क्या?
इतना सुनते ही उसने आँखें खोलीं और मेरी आँखों में झाँका… इस बार तो आँसुओं की झड़ी ही लग गई…
‘समीर… आप मुझसे दूर तो नहीं चले जाओगे ना… क्या हम ऐसे ही रहेंगे जीवन भर… क्या आप ऐसे ही प्यार करते रहेंगे मुझे…’ एक साथ न जाने कितने सवालों से वंदना ने मुझे झकझोर सा दिया और यूँ ही आँखों से बहती अविरल अश्रु धारा लिए मुझे एकटक देखती रही…
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