RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
उफ्फ्फ्फ़… यह विशाल पिछवाडा मेरी कमजोरी बनती जा रही थीं… दीवाना हो गया था मैं उनका!
तभी मुझे ख्याल आया कि मैं एक औरत के मादक शरीर को वासना भरी नज़रों से घूर रहा हूँ जिसका पति मेरे सामने मेरे साथ बैठा है।
‘हे भगवन… वासना भी इंसान को बिल्कुल अँधा बना देता है…’ मेरे मन में यह विचार आया और मैंने झट से अपनी नज़रें हटा ली और अरविन्द भैया की तरफ देखने लगा।
तभी वंदना अपने कमरे से बाहर आई और मेरे साथ में सोफे पर बैठ गई।
रेणुका भाभी भी सामने से हाथ में चाय का कप लेकर आईं और मुझे देते हुए वापस अपनी जगह पे बैठ गईं।
‘आपने मुझे याद किया भैया… कहिये क्या कर सकता हूँ मै आपके लिए?’ मैंने चाय कि चुस्की लेते हुए अरविन्द भैया से पूछा..
‘भाई समीर, आपको एक कष्ट दे रहा हूँ…’ अरविन्द भैया मेरी तरफ देखते हुए बोले।
‘अरे नहीं भैया, इसमें कष्ट की क्या बात है.. आप आदेश करें!’ मैंने शालीनता से एक अच्छे पड़ोसी की तरह उनसे कहा।
‘दरअसल बात यह है समीर जी कि वंदना की एक सहेली का आज जन्मदिन है और उसे उसके यहाँ जाना है… और आपको तो पता ही है कि वो कितनी जिद्दी है… बिना जाए मानेगी नहीं। मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं है और मैं उसके साथ जा नहीं सकता। इसलिए हम सबने ये विचार किया कि वंदना को आपके साथ भेज दें। आपका भी मन बहल जायेगा और आपके वंदन के साथ होने से हमारी चिंता भी ख़त्म हो जाएगी।’ अरविन्द भैया ने बड़े ही अपनेपन और आत्मीयता के साथ मुझसे आग्रह किया।
मैंने उनकी बातें सुनकर एक बार रेणुका की तरफ देखा और फिर एक बार वंदन की तरफ देखा… दोनों यूँ मुस्कुरा रही थीं मानो इस बात से दोनों बहुत खुश थीं।
वंदना की ख़ुशी मैं समझ सकता था लेकिन रेणुका की आँखों में एक अजीब सी चमक थी जिसे देख कर मैं थोड़ा परेशान हुआ।
अरविन्द भैया को देख कर ऐसा लग नहीं रहा था कि उनकी तबीयत ख़राब है बल्कि ऐसा लग रहा था जैसे वो आज कुछ ज्यादा ही खुश थे।
मेरे शैतानी दिमाग में तुरन्त यह बात आई कि हो सकता है आज अरविन्द भैया की जवानी जाग गई हो और आज वंदना को बाहर भेज कर रेणुका के साथ जबरदस्त चुदाई का खेल खेलने की योजना बनाई हो!
खैर मुझे क्या… रेणुका बीवी थी उनकी, वो नहीं चोदेगा तो और कौन चोदेगा… पर पता नहीं क्यूँ ये विचार आते ही मेरे मन में एक अजीब सा दर्द उभर आया था… रेणुका के साथ इतने दिनों से चोदा-चोदी का खेल खेलते-खेलते शायद मैं उसे अपनी संपत्ति समझने लगा था और यह सोच कर दुखी हो रहा था कि मेरी रेणुका के मखमली और रसीले चूत में कोई और अपना लंड पेलेगा…
हे भगवन, यह मुझे क्या हो रहा था… मेरे साथ ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था… न जाने कितनी ही औरतों और लड़कियों के साथ मैं चुदाई का खेल खेला था लेकिन कभी भी किसी के साथ यों मानसिक तौर पे जुड़ा नहीं था…
इसी उधेड़बुन में मैं खो सा गया था कि तभी अरविन्द भैया की आवाज़ ने मेरी तन्द्रा तोड़ी।
‘क्या हुआ समीर जी… कोई परेशानी है क्या?’ अरविन्द भैया ने मेरी तरफ देखते हुए प्रश्नवाचक शब्दों में पूछा।
‘अरे नहीं भैया जी… ऐसी कोई बात नहीं है… वो बस ज़रा सा ऑफिस का काम था उसे पूरा करना था इसलिए कुछ सोच रहा था।’ मैंने थोड़ा सा परेशान होते हुए कहा।
मेरी बात सुनकर वहाँ बैठे हर इंसान का चेहरा बन गया… सबसे ज्यादा वंदना का.. मानो अभी रो पड़ेगी।
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