RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
मेरा एक हाथ उनकी दूसरी चूची को सहला रहा था जो उन्हें और भी गर्म कर रहा था। मैंने काफी देर तक उनकी चूचियों का रस अदल बदल कर पिया और फिर अपने दोनों हाथों से उनकी मखमली जांघों को सहलाने लगा।
जैसे जैसे मैं अपने हाथ ऊपर की तरफ ले जाता वो और ही सिसकारने लगती और मुझे अपनी तरफ खींचने लगती।
आखिरकार मेरे दोनों हाथ उनकी जांघों के आखिरी छोर पर पहुँच गए और उनकी रेशमी झांटों भरी चूत से टकरा गए।
‘हाय… उफ़ समीर बाबू… छोड़ दीजिये हमें… हम पागल हो जायेंगे… उम्म्ह…’ रेणुका जी ने एक गहरी सांस भरते हुए मेरे हाथों को पकड़ लिया और मेरे हाथ वहीं टिक गए।
अब बस मेरी उँगलियाँ ही आजाद थीं और वो उनकी चूत को ढके हुए रेशमी मुलायम झांटों से खेलने लगीं।
मेरी उँगलियों को उस गीलेपन का एहसास हुआ जो अक्सर ऐसे मौके पर चूत से बह निकलता है… यानि रेणुका जी की चूत ने चुदाई के पहले निकलने वाले काम रस की बौछार कर दी थी।
उन्होंने मेरे हाथों को मजबूती से पकड़ रखा था जिसकी वजह से मेरे हाथ और कुछ भी नहीं कर पा रहे थे।
यूँ तो हम मर्दों में इतनी ताक़त होती है कि हम आसानी से इन बाधाओं को दूर करते हुए अपनी मर्ज़ी से सब कुछ कर सकते हैं लेकिन मेरे विचार से ऐसी स्थिति में महिलाओं की मर्ज़ी के मुताबिक ही आगे बढ़ें तो ज्यादा मज़ा है।
खैर मैंने अपने हाथों को छुड़ाने की कोशिश नहीं की और धीरे से झुक कर उनके सपाट पेट को चूमने लगा।
उनकी बेचैनी और बढ़ गई।
मैंने धीरे से उनकी गोल छोटी सी खूबसूरत सी नाभि को चूमा और अपनी जीभ का सिरा नाभि में डाल दिया।
मेरा इतना करना था कि रेणुका जी ने मेरा हाथ छोड़ दिया और मेरा सर पकड़ लिया।
मैं बड़े मज़े से उनकी नाभि को अपनी जीभ से चोदने लगा और वो सिसकारियों पे सिसकारियाँ भरने लगीं!
अब हाथ पकड़ने की बारी मेरी थी क्योंकि अब मैं वो करने वाला था जिससे कोई भी महिला एक बार तो जरूर उत्तेजनावश उछल पड़ती है।
आपने सही समझा, मैंने रेणुका जी के हाथ पकड़ लिए और अपने होठों को सीधा उनकी गदराई फूली हुई चूत पे रख दिया।
‘आआअह्ह्ह्ह… ये ये ये… क्क्क्या कर दिया आपने समीर जी… उफ्फ्फ्फ़… ऐसा मत कीजिये… मैं मर ही जाऊँगी… उम्म्मम्ह…’ रेणुका ने टूटती आवाज़ में अपने बदन को बिल्कुल कड़क करते हुए कहा।
‘रेणुका भाभी… अब आप वो मज़ा लो जो शायद आपको अरविन्द जी ने भी कभी न दिया हो…’ मैंने एक बार उनकी चूत से मुँह हटाते हुए उनकी आँखों में झांक कर कहा और आँख मार दी।
रेणुका जी बस मुझे देखती ही रही, कुछ कह नहीं पाई…
उससे पहले ही मैंने फिर से अपना मुँह नीचे किया और इस बार अपनी जीभ निकाल कर उनकी योनि की दरार में ऊपर से नीचे तक चलने लगा।
‘उम्म्म्ह… उम्म्म्माह… हाय समीर बाबू… यह कौन सा खेल है… ऐसा तो मेरे साथ कभी नहीं हुआ… प्लीज ऐसा मत कीजिये… मुझसे बर्दाश्त नहीं होगा…’ रेणुका तड़पती हुई अपनी जांघों से मेरा सर दबाने लगी और अपने हाथों को छुड़ाने की कोशिश करने लगी।
मैंने उनके हाथों को बिना छोड़े अपनी जीभ से उनकी छोट की फांकों को अलग करके रास्ता बनाया और अब अपनी जीभ को उनके चूत के द्वार पे रख दिया…
एक भीनी सी खुशबू जिसे मैं तीन महीनों से ढूंढ रहा था, वो अब जाकर मुझे महसूस हुई थी।
मैंने अपनी पूरी जीभ बाहर निकाल ली और उनके चूत के अन्दर ठेलना शुरू कर दिया।
‘हाय राम… उफफ… उम्म्मम्म… तुम बड़े वो हो समीर… उम्म्मम्म… ‘ रेणुका ने अब अपना शरीर ढीला छोड़ दिया था और अपनी जाँघों को और भी फैला कर अपनी चूत की चुसाई और चटाई का मज़ा ले रही थी।
अब मैंने उनके हाथ छोड़ दिए और अपने हाथों से उनकी चूचियों को फिर से पकड़ कर सहलाना शुरू कर दिया।
अब रेणुका जी ने अपने हाथों से मेरा सर पकड़ लिया और अपनी चूत पर दबाने लगीं।
मैं मज़े से उनकी चूत चाट रहा था लेकिन मुझे चूत को अच्छी तरह से चाटने में परेशानी हो रही थी।
उनकी चूत अब भी बहुत सिकुड़ी हुई थी, शायद काफी दिनों से नहीं चुदने की वजह से उनकी चूत के दरवाज़े थोड़े से सिकुड़ गए थे।
मैंने अपना मुँह हटाया और उनकी तरफ देखा।
उनकी आँखें बंद थीं लेकिन अचानक से मुँह हटाने से उन्होंने आँखें खोलीं और मेरी तरफ देख कर पूछा- क्या हुआ समीर बाबू… थक गए क्या?
‘नहीं रेणुका मेरी जान… जरा अपनी चूत को अपने कोमल हाथों से फैलाओ तो सही ताकि मैं पूरा अन्दर घुस सकूँ।’ यह कहते हुए मैंने उन्हें आँख मारी और एक बार उनकी चूत को चूम लिया।
‘छीः… गंदे कहीं के… ऐसे भी कोई बोलता है क्या?’ रेणुका ने मेरे मुँह से यूँ खुल्लम खुल्ला चूत सुनकर शरमाते हुए कहा।
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