RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
मैंने जैसे ही यह सुना कि रेणुका जी ने ही उसे यहाँ भेजा है वो भी मुझे बुलाने के लिए तो मानो मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा।
मेरे चेहरे पे एक चमक आ गई और मेरा मन करने लगा कि मैं दौड़कर अभी रेणुका की पास पहुँच जाऊँ लेकिन तहज़ीब भी कोई चीज़ होती है…
मैंने झूठमूठ ही वन्दना से कहा- मुझे बहुत देरी हो जायेगी ऑफिस पहुँचने में! आज रहने दीजिये… फिर कभी आ जाऊँगा।
मैंने बहाना बनाते हुए कहा।
‘जी नहीं… यह हमारी मम्मी का हुक्म है और उनकी बात कोई नहीं टाल सकता… तो जल्दी से दूध का बर्तन अन्दर रख दीजिये और हमारे साथ चलिए, वरना अगर मम्मी नाराज़ हो गईं तो फिर बहुत बुरा होगा।’ वन्दना ने मुझे डराते हुए कहा।
मैं तो खुद ही उसकी मम्मी से मिलने को तड़प रहा था लेकिन मैंने उसके सामने थोड़ा सा नाटक किया और फिर दूध का बर्तन अपनी रसोई में रख कर उसके साथ चल पड़ा।
मैंने एक बात नोटिस की कि रेणुका जी का नाम सुनते ही मेरी नज़र वन्दना की जवानी को भूल गई और उसकी मदमस्त चूचियों को इतने पास होते हुए भी बिना उनकी तरफ ध्यान दिए हुए रेणुका जी से मिलने की चाहत लिए उसके घर की तरफ चल पड़ा।
शायद रेणुका जी के गदराये बदन की कशिश ही ऐसी थी कि मैं सब भूल गया।
दरवाज़े से अन्दर घुसते ही सामने रेणुका एक गुलाबी रंग की साड़ी में खड़ी खाने की मेज पर नाश्ता लगाती नज़र आई।
गुलाबी रंग में उनका रूप और भी निखर कर सामने आ रहा था।
मैचिंग ब्लाउज वो भी बिना बाहों वाली… उफ्फ्फ… उनके कोमल और भरी भरी बाहें… और उन बाहों पे कन्धों से टपकता हुआ पानी… शायद वो अभी अभी नाहा कर निकलीं थीं तभी उनके बाल भीगे हुए थे और उनसे पानी टपक कर उनके कन्धों पे उनकी ब्लाउज को आधा भिगोये जा रहा था।
उम्म्म… कमाल का सेक्सी नज़ारा था… जी में आया कि उनके कन्धों पे टपकते पानी की एक एक बूँद अपने होठों से पी लूँ… और उनकी गोरी गोरी बाँहों को अपनी हथेलियों से सहला दूँ!
मेरे पहुँचते ही उन्होंने एक नज़र मेरी तरफ देखा और फिर अपनी नज़रें झुका कर मुस्कुराती हुई मुझे बैठने का इशारा किया।
उनकी आँखों में एक अजीब सी मुस्कान और शर्म भरी हुई थी… शायद मुझे देख कर उन्हें कल सुबह की बात याद आ गई हो !!
यह ख्याल मेरे मन में भी आया और मेरे बदन में भी यह सोच कर एक सिहरन सी उठी।
मैंने बिना कुछ कहे बैठ कर चुपचाप इधर उधर देखते हुए नाश्ते की प्लेट की तरफ अपना ध्यान लगाया।
कहीं न कहीं मेरे मन में यह ख्याल भी आ रहा था कि कहीं मेरी कल की हरकतों की वजह से वो मुझे किसी गलत तरह का इंसान न समझ बैठी हो…
शायद तभी आज वो खुद दूध देने नहीं आई…!!
यूँ तो मैं दिल्ली का एक खेला खाया लड़का हूँ लेकिन कहीं न कहीं अपने बिहारी खून के अन्दर मौजूद अपने बिहारी समाज की मान मर्यादाओं का ख्याल भी है मुझे…
और वो ख्याल ये कहता है कि हर औरत एक जैसी नहीं हो सकती… हर औरत बस लंड देख कर उसके लिए पागल नहीं हो जाती और न ही उसे लेने के लिए झट से तैयार हो जाती है।
इन ख्यालों को अपने मन में बसाये मैंने कोई उलटी सीधी हरकत न करने का फैसला लिया और चुपचाप खाने लगा।
मेरे सामने वन्दना भी बैठ कर नाश्ता करने लगी और अपनी बातूनी स्वाभाव के अनुसार इधर उधर की बातें करने लगी।
मेरा ध्यान उसकी बातों पे जा ही नहीं रहा था और मैं चोर नज़रों से रेणुका जी की तरफ चुपके चुपके देख लिया करता था।
रेणुका जी भी बिल्कुल सामान्य होकर हमें खिला रही थीं और बीच बीच में रसोई से गर्मा गर्म परांठे भी ला रही थीं।
हमने अपना नाश्ता ख़त्म किया और मेज से उठ गए।
‘अरे जरा रुकिए… थोड़ा जूस पी लीजिये… सेहत के लिए अच्छा होता है।’ रेणुका जी की मधुर आवाज़ मेरे कानों में पड़ी।
जब से मैं आया था तब से उनकी एक भी आवाज़ नहीं सुनी थी… और जब सुनी तो बस अचानक से उनकी आँखों में झांक पड़ा।
उनकी आँखें मुझे बड़ा कंफ्यूज कर रही थीं… उन आँखों में एक चमक और एक प्रेम भाव था जिसे मैं समझ नहीं पा रहा था.. यह उनकी शालीनता और शराफत भरे इंसानियत के नाते दिखाई देने वाला प्रेम था या उनके मन में भी कल सुबह के बाद कुछ दूसरे ही प्रेम भाव उत्पन्न हुए थे, यह कहना मुश्किल हो रहा था।
‘उफ्फ्फ… माँ, आपको पता है न कि मुझे जूस पसंद नहीं है… मुझे देर हो रही है और मैं कॉलेज जा रही हूँ…’ वन्दना ने बुरा सा मुँह बनाया और अपना बैग उठा कर दरवाज़े की तरफ दौड़ पड़ी।
‘अरे वन्दना थोड़ा सा तो पी ले बेटा… रुक तो सही… रुक जा…’
रेणुका जी उसके पीछे आवाज़ लगाती हुई दरवाज़े तक गईं लेकिन वन्दना तब तक जा चुकी थी।
‘यह लड़की भी न… बिल्कुल तूफ़ान हो गई है… बात ही नहीं सुनती।’ रेणुका मुस्कुराती और बुदबुदाती हुई वापस आई और मेरे नज़दीक आकर खड़ी हो गईं।
‘मैं भी चलता हूँ… काफी देर हो गई है…’ मैंने उनकी तरफ देखते हुए मुँह बनाया और ऐसा दिखाया जैसे मुझे जाने का मन तो नहीं है लेकिन मज़बूरी है इसलिए जाना पड़ेगा।
‘अरे अब कम से कम आप तो मेरी बात सुन लीजिये… ये बाप और बेटी तो मेरी कभी सुनते नहीं…!!’ वन्दना ने थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा और मेरा कन्धा पकड़ कर मुझे वापस बिठा दिया।
उनका हाथ मेरे कंधे पर पड़ा तो उस नर्म एहसास ने मेरे बदन में एक झुरझुरी सी पैदा कर दी और मैं मस्त होकर बैठ गया और उनकी तरफ देख कर हंसने लगा।
रेणुका जी ने जल्दी से फ्रिज से जूस का जग निकला और गिलास में जूस भरने लगीं।
मैं एकटक उनके चेहरे और फिर उनके सीने के उभारों को देखने लगा…
वन्दना को रोकने के लिए उन्होंने तेज़ क़दमों का इस्तेमाल किया था जिसकी वजह से उनकी साँसें तेज़ हो गई थीं और उसका परिणाम मेरी आँखों के सामने था।
जूस का गिलास भरते ही उन्होंने मेरी तरफ देखा तो मेरी नज़रों को अपने उभारों पे टिका हुआ देख लिया और यह देख कर उनका चेहरा फिर से शर्म से लाल हो गया और उन्होंने अपने निचले होठों को दांतों से काट लिया।
पता नहीं इस वक़्त मेरी मर्यादाओं को कौन सा सांप सूंघ गया था जो मैं बिना अपनी नज़रें हटायें उनके चेहरे की तरफ एकटक देखता रहा…
रेणुका जी भी मेरी आँखों में देखते हुए वैसे ही खड़ी रहीं और फिर धीरे से गिलास मेरी तरफ बढ़ा दिया।
हमारी नज़रें अब भी एक दूसरे पे टिकी हुई थीं.. और इसी अवस्था में मैंने हाथ आगे बढ़ा कर गिलास पकड़ा और सहसा मेरी उंगलियाँ उनकी उँगलियों से टकरा गईं।
एक नर्म और रेशमी एहसास… साथ ही साथ एक मचल जाने वाली फीलिंग.. मेरी उंगलियों ने उनकी उँगलियों को दबा दिया।
रेणुका जी ने जैसे ही अपनी उँगलियों पे मेरी उँगलियों का स्पर्श महसूस किया वैसे ही मानो झटका लगा हो और उन्होंने अपने हाथ खींच लिए..
और शरमा कर अपनी नज़रें फेर लीं।
मैंने एक सांस में पूरा जूस का गिलास खाली कर दिया और गिलास को उनकी तरफ बढ़ा दिया।
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