RE: Kamukta Story कामुक कलियों की प्यास
अमर ने जल्दी से रचना को नंगा कर दिया और खुद भी नंगा हो गया। इतनी देर में वो तीनों भी नंगे हो गए थे।
ललिता- वाउ क्या बात है… कितने लौड़े मेरी नज़रों के सामने हैं…. भाई आपका 6 का, सचिन का 7.30 के लगभग होगा, अशोक आपका 8 का और सबसे बड़ा शरद जी का 9″ का, ऐसा लग रहा है, जैसे लौड़ों की दुकान लगी हो। हर साइज़ के मिल रहे हैं हा हा हा हा…!
शरद- दुकान नहीं लगी है रंडी, आज तेरी ठुकाई ऐसे होगी कि आज के बाद तू हाथी का लौड़ा भी अपनी चूत में लेने से नहीं डरेगी हा हा हा हा…!
सब के सब शरद की बात सुनकर हँसने लगे।
ललिता- शरद जी मैं कच्ची कली हूँ… आप मुझे रंडी क्यों बोल रहे हो…!
शरद- प्यार से मेरी जान, सेक्स के समय जितनी गालियाँ दो, प्यार का मज़ा आता है, मगर तुम मुझे गाली मत देना क्योंकि मुझे गाली सुनना पसन्द नहीं है।
हाँ देनी है, तो तेरे हरामी भाई को दे देना।
अमर- हाँ बहना मुझे चाहे जितनी गाली दो, अब कोई फरक नहीं पड़ता। अब जल्दी से लौड़ा चूस न.. ऐसे क्या बातों में समय खराब कर रही है यार…!
ललिता- ओके..ओके.. सब गोल घेरा बना कर खड़े हो जाओ, मैंने एक इंग्लिश फिल्म में देखा है, एक लड़की सब के लौड़े कैसे चूसती है।
शरद- अच्छा मेरी रानी को इंग्लिश पोज़ बनाना है… साली अभी जब लौड़ा चूत और गाण्ड में जाएगा न.. तो इंग्लिश तो दूर हिन्दी भी भूल जाओगी..! बस उईई आईईइ करेगी जैसे कोई चाइना की बिल्ली करती है हा हा हा हा हा…!
दोस्तों उस कमरे का माहौल ऐसा हो गया, जैसे कभी कुछ हुआ ही ना हो। सही कहते हैं सज़ा देने वाले से माफ़ करने वाला ज़्यादा बड़ा होता है। सब गोल घेरा बना कर खड़े हो गए। तकरीबन सब के लौड़े तने हुए थे। ललिता एक-एक करके सब के लौड़े चूस रही थी। जीभ से चाट रही थी। रचना बेहोश नहीं थी, बस उसकी आँखें बन्द थीं। वो सब सुन रही थी मगर उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कुछ बोलने की और ललिता लौड़ों का रस लेने में बिज़ी थी।
अशोक- उफ्फ तेरे होंठों का कमाल है ललिता आ क्या मज़ा आ रहा है…!
अमर- अरे बहना साली… मेरा लौड़ा थोड़ी देर लेती है, तेरे यार सचिन का ज़्यादा चूस रही है।
ललिता- चुप साले बहनचोद मेरा यार सचिन नहीं अशोक है समझे…!
शरद- साली मादरचोद रंडी रात तक तो तेरा यार मैं था… अब अशोक हो गया। लगता है साली लौड़े के साथ ही तेरा यार बदल जाता है।
ललिता- ही ही ही ही सॉरी शरद जी मजाक कर रही थी, आप तो मेरे यार से बढ़ कर हो। आपने तो इस क़ाबिल बनाया कि आज लौड़े नहीं, लौड़ों को चूस रही
हूँ ही ही ही ही…!
ललिता को हंसता देख अशोक ने जल्दी से उसके खुले मुँह में पूरा लौड़ा फँसा दिया और बाल पकड़ कर झटके मारने लगा।
अमर- बस भाई मुझ से अब बर्दाश्त नहीं होता मैं तो चला रचना को चोदने।
सचिन- अब बस भी कर अशोक, इसके मुँह में झड़ने का इरादा है क्या? कर दे साली की गाण्ड का मुहूरत…!
शरद- चल छिनाल, अब चुदने को तैयार हो जा। सचिन नीचे लेट जा और इसकी चूत में लौड़ा डाल दे।
सचिन सीधा लेट जाता है, ललिता उसके लौड़े पर बैठ जाती है, ‘सर्रर्र’ से लौड़ा चूत में समा जाता है।
ललिता- आईईईई उफफफफ्फ़ ककककक…!
शरद- बस रंडी, अभी से नाटक मत कर अभी तेरी गाण्ड बाकी है। अशोक अच्छे से थूक लगा कर डाल दे।
अशोक- हाँ भाई आप अपना बम्बू इसके मुँह में डाल दो ताकि साली ज़्यादा शोर ना मचाए।
ललिता सचिन पर लेट गई। आगे से शरद ने अपना लौड़ा उसके मुँह में डाल दिया और अब उसकी गाण्ड का गुलाबी सुराख अशोक के सामने था। अशोक ने लौड़े पर अच्छे से थूक लगाया और उसकी गाण्ड पर थूक कर छेद में ऊँगली से थूक डाल दिया। ललिता मस्ती में शरद का लौड़ा चूस रही थी। सचिन अपना लौड़ा डाले शान्त
पड़ा रहा, ताकि अशोक आराम से गाण्ड में लौड़ा घुसा दे। अशोक ने ऊँगली से गाण्ड को खोंला और अपनी टोपी फंसा कर जोरदार धक्का मारा…. आधा लौड़ा गाण्ड को फाड़ता हुआ अन्दर घुस गया, ललिता बस “गूं गूं अईयू” करती रही, मुँह में जो लौड़ा फँसा हुआ था। अशोक ने देर ना करते हुए लौड़ा पीछे खींचा और दोबारा पूरी ताक़त से लौड़ा अन्दर डाला। अबकी बार पूरा 8″ का लौड़ा गाण्ड की गहराइयों में खों गया। ललिता को इतना दर्द हुआ, अगर लौड़ा मुँह में नहीं होता, तो उसकी चीखों से पूरा फार्म गूँज जाता।
शरद- उईईई साली काटती क्यों है, आ..हह.. यार अशोक आराम से डाल ना देख कैसे आँखों में आँसू आ गए बेचारी के…!
नीचे से सचिन धका-धक चोदने में बिज़ी था।
सचिन- उह उह आ..हह.. इसी को आह…आह शौक चढ़ा था, ग्रुप-चुदाई का आह आहा…!
अशोक भी अब दे दना-दन शॉट मार रहा था। उधर अमर रचना की चूत में लौड़ा पेले जा रहा था। वो भी एकदम मस्ती में था।
अमर- आ आ..हह.. चोदो आ..हह.. मेरी दोनों बहनों को एक साथ चुदाई करो उफ्फ मज़ा आ रहा है, रचना माय डार्लिंग काश तुम होश में होतीं… उफ्फ देखो ललिता
का कैसे गैंग-बैंग हो रहा है।
पन्द्रह मिनट तक ललिता की गाण्ड और चूत में धक्के लगते रहे और शरद उसके मुँह को चोदने में बिज़ी था। ललिता इस तिहरी चुदाई से दो बार झड़ गई थी।
अब अशोक का बाँध भी टूटने वाला था, वो फुल स्पीड से दोनों को चोदने लगा।
अशोक- आह आह उहह उहह मैं गया आ..हह.. इसकी गाण्ड बहुत मस्त है आ… अशोक ने पूरा पानी गाण्ड में भर दिया और लौड़ा निकाल कर साइड में लेट गया।
लौड़ा निकलते ही ‘पुच्छ’ की आवाज़ आई और ललिता को असीम दर्द का अहसास हुआ। ललिता ने शरद का लौड़ा मुँह से निकाल दिया।
ललिता- आइ उफ्फ आ..हह.. शरद जी आ..हह.. डाल दो लौड़ा गाण्ड में… उफ्फ ये दर्द अब मज़ा देने लगा है… आप भी मेरी गाण्ड का मज़ा लो आ..हह….!
जैसे ही शरद ने लौड़ा गाण्ड में घुसाया,
ललिता- आईईईई उइ मा मर गई आ..हह.. ससस्स आह सचिन आह उफ़फ्फ़ ज़ोर से चोदो आ..हह.. मैं गई उफ़फ्फ़ आईईइ…!
सचिन और ज़ोर से चोदने लगा। वो भी झड़ने के करीब था।
सचिन- आ..हह.. ले साली छिनाल आ..हह.. उह उह आ..हह.. एयाया उफफफफ्फ़…!
सचिन भी झड़ गया, पर शरद तो गाण्ड का भुर्ता बनाने में लगा हुआ था। अमर एकदम स्पीड बढ़ा देता है और अपना पूरा पानी रचना की चूत में छोड़ देता है।
अमर- आह उफ़फ्फ़ मज़ा आ गया शरद सब झड़ गए… अब तू भी पानी निकाल दे यार.. क्यों मेरी बहन की गाण्ड की गंगोत्री बना रहा है।
शरद- आ..हह.. उह उह अबे चुप साले मादरचोद इस रंडी को पूछ… मज़ा आ रहा है या नहीं… उह उह कहाँ ऐसा लौड़ा मिलेगा इसको… उह आ आ…!
ललिता- आ..हह.. उ आ..हह.. हा भाई उफ्फ दर्द तो बहुत है पर आ आ..हह.. सच में ऐसा तगड़ा आ..हह.. लौड़ा कहाँ मिलेगा आ..हह…..!
शरद अब ज़ोर-ज़ोर से झटके मारने लगा था शायद उसके लौड़े में झनझनाहट हो गई थी।
ललिता- आ..हह.. उफ्फ तेज़ शरद जी आ..हह.. प्लीज़ लौड़ा आ आ..हह.. मेरी चूत में डाल कर ही पानी निकालना आ..हह.. मेरा भी आह निकलने वाला है आ..हह.. उ…!
शरद ने जल्दी से लौड़ा गाण्ड से निकाला और ललिता की चूत में पेल दिया।
ललिता- आइ आइ कितना चुदवा कर भी आ आपका लौड़ा तो चूत में आ..हह.. दर्द ही करता है…उईई अब फास्ट प्लीज़ आ..हह.. फास्ट मैं गई आ आ..हह.. आह…!
दोनों एक साथ झड़ जाते हैं।
अमर- वाउ यार ललिता की गाण्ड तो देखो कैसे लाल हो गई है और छेद देखो कैसे खुला हुआ है, यार शरद तेरा लौड़ा बहुत भारी है कसम से मेरी बहनों की तो लॉटरी निकल गई.. ऐसा लौड़ा पाकर…!
अशोक- बस कर साले कुत्ते, अभी भी मेरे दिमाग़ में सिम्मी घूम रही है, साले तेरी जान ले लूँगा मैं अब…!
सचिन- भाई उन दो कुत्तों का क्या करना है अब..!
शरद- रहने दो उनको वहीं पर। थोड़ा रेस्ट कर लो सब.. बाद में बात करेंगे…!
सब नंगे ही वहाँ सो गए जैसे यहाँ कोई सेक्स का मेला लगा हो ललिता को नींद नहीं आ रही थी। उसकी गाण्ड में बहुत दर्द था, वो उठकर बाथरूम में चली गई और गर्म पानी करके टब में गाण्ड और चूत सेंकने लगी। करीब आधा घंटा वो वहीं बैठी रही। फिर नहाकर रूम में आकर बेड पर लेट गई। चुदाई की थकान से उसको भी नींद आ गई। दोपहर तक सब के सब सोते रहे। सबसे पहले रचना की आँख खुली अब दवा का असर जाता रहा। रचना ने सब पर निगाह मारी और सीधी बाथरूम में चली गई। बीस मिनट बाद फ्रेश होकर वो नंगी ही बाहर आई, तब अशोक नींद में ललिता के ऊपर पैर डाले पड़ा था और उसका लौड़ा ललिता की जाँघों पर चढ़ा हुआ था।
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