Antarvasna Sex kahani वक़्त के हाथों मजबूर
04-05-2019, 01:10 PM,
RE: Antarvasna Sex kahani वक़्त के हाथों मजबूर
जग्गा- कुछ याद आया मेरी जान वो कॉलेज का कॅंपस जहाँ मैने तुझे एक बार छेड़ा था और बदले में तूने मेरी इज़्ज़त सारे कॉलेज के सामने उतारी थी. आज मैं अपनी बेइज़्ज़ती का बदला तुझसे एक एक कर लूँगा. आज मैं तेरी इज़्ज़त यहाँ इन सब के सामने उतारूँगा फिर तुझे भी पता चलेगा कि इज़्ज़त उतरते समय कैसा महसूस होता हैं.


राधिका गुस्से से चीख पड़ती हैं- बिहारी ये क्या तमाशा लगा रखा हैं तुमने. मैं कोई रंडी नही हूँ कि तुम जिसके साथ जैसा चाहो मुझे ये सब करने को कहोगे और मैं करूँगी. अगर तुम्हारा इरादा मेरे साथ इन सब के साथ सेक्स करवाने का हैं तो मुझसे ये सब नहीं होगा.


बिहारी बड़े प्यार से राधिका की ओर देखने लगता हैं- नाराज़ क्यों होती हो मेरी जान बात ये हुई थी कि मैं जो तुझसे कहूँगा तू वही करेगी चाहे मैं तुझे जिसके साथ भी सेक्स करने को क्यों ना कहूँ. और हां ये तेरी नादानी को मैं आख़िरी बार माफ़ कर रहा हूँ अगर दुबारा उँची आवाज़ में मुझसे बात की तो तेरा वो हाल करूँगा कि तुझे अपनी परछाई से भी डर लगेगा.


राधिका चुप चाप अपनी नज़रें नीची कर लेती हैं तभी विजय उसके पास आता हैं और राधिका के पीछे खड़ा होकर अपने दोनो हाथों से राधिका के दोनो बूब्स को कसकर अपनी मुट्ठी में थाम लेता हैं और पूरी ताक़त से उसे मसल देता हैं. राधिका के मूह से एक तेज़्ज़ सिसकारी निकल पड़ती हैं. वो इस अचानक हमले से वो चौंक जाती हैं तभी बिहारी ज़ोर से विजय को गाली देता हैं और राधिका से दूर हटने को बोलता हैं.


बिहारी- ये क्या तरीका हैं विजय. मैने कहा राधिका से दूर हट जाओ. और अब राधिका को दुबारा छूने की कोशिश भी मत करना. और हां अब मेरी मर्ज़ी के बिना अब कोई भी राधिका को हाथ नहीं लगाएगा.


विजय एक नज़र घूर कर बिहारी को देखता हैं मगर कुछ नहीं कहता. गुस्सा तो उसे बिहारी पर बहुत आता हैं मगर वो जानता था कि अगर बिहारी से इस समय बहस हुआ तो राधिका उसके हाथ से निकल जाएगी और वो किसी भी हाल में राधिका जैसी आइटम को अपनी हाथों से जाने नहीं देना चाहता था.


बिहारी- ये मेरा घर हैं और अब यहाँ पर मैं जैसा चाहूँगा वैसा ही होगा. अगर मेरी बात तुम सबको बुरी लगती हैं तो तुम सब बेशक यहाँ से जा सकते हो. मगर जब तक यहाँ पर रहोगे जो मैं बोलूँगा जैसा बोलूँगा तुम सब को मेरी बात मानना पड़ेगा. नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा.


बिहारी की चेतावनी से विजय और जाग्गा वहीं चुप चाप खामोशी से वहीं पर बैठ जाते हैं. दोनो अच्छे से जानते थे कि अब बिहारी की बात मानने में ही भलाई हैं.


तभी बिहारी एक नौकर को बुलाता हैं और राधिका के लिए जूस लाने को बोलता हैं. थोड़े देर में वो नौकर राधिका के लिए जूस लेकर आता हैं. साथ में कुछ नमकीन भी थी.


बिहारी- चिंता मत कर राधिका अब कोई भी मेरी मर्ज़ी के बिना तुझे हाथ नहीं लगाएगा. फिर बिहारी राधिका को वो जूस पीने का इशारा करता हैं. राधिका बिना किसी सवाल के वो जूस से भरा काँच का ग्लास उठाती हैं और फिर धीरे धीरे पूरा पी जाती हैं.


बिहारी- क्या करूँ राधिका पता नहीं क्यों तुझ में कोई तो बात हैं जो मेरा ध्यान बार बार तेरी ओर खीच लेती हैं. चल आज तुझे मैं एक मौका देता हूँ तेरी आज़ादी के लिए. और दुवा करूँगा कि तू यहाँ से आज़ाद हो जाए.


राधिका फिर से सवालियों नज़र से बिहारी को देखने लगती हैं- मैं कुछ समझी नहीं बिहारी तुम आख़िर क्या कहना चाहते हो.


बिहारी- चल आज एक गेम खेलते हैं. अगर इस खेल में तू जीती तो मैं तुझे पूरेय इज़्ज़त के साथ इसी वक़्त यहाँ से तुझे अपने घर जाने दूँगा अगर तू हार गयी तो फिर तू पूरे एक हफ्ते के बाद यहाँ से जाएगी और मेरी गुलाम बनकर रहेगी. बोल मज़ूर हैं तुझे एक आखरी बाज़ी..............खेलना चाहेगी क्या ये खेल???


राधिका के चेहरे पर थोड़ी खुशी आ जाती है और वो तुरंत हां में इशारा करती हैं- मुझे मंज़ूर हैं. राधिका के पास इस वक़्त यहाँ से निकलने का कोई दूसरा ऑप्षन नहीं था. इसलिए वो बिना सोचे समझे झट से हां कह देती हैं.


बिहारी के मूह से ऐसी बातें सुनकर विजय और जग्गा दोनो गुस्से से बौखला जाते हैं. वो अच्छे से जानते थे कि बिहारी ज़ुबान का पक्का इंसान हैं. और अगर राधिका ये गेम जीत गयी तो वो सच में उसे हाथ नहीं लगाएगा और इतना अच्छा मौका राधिका को चोदने का हाथ से निकल जाएगा. अपने हाथ से ये मौका निकलता देखकर विजय गुस्से से पागल हो जाता हैं.


विजय- मुझे अब कोई गेम नहीं खेलना है. अरे इतना अच्छा मौका मिला हैं और तुम अब राधिका को बिना कुछ किए बगैर कैसे जाने दे सकते हो मुझे तुम्हारे इस खेल में कोई शौक नहीं हैं.


बिहारी- मैने पहले भी कहा था और अब भी कहता हूँ अगर तुम मेरे हिसाब से नहीं चल सकते तो बेसक तुम यहाँ से जा सकते हो. आइन्दा मैं दखल अंदाज़ी बिकुल बर्दास्त नहीं करूँगा.


विजय ना चाहते हुए भी पैर पटक कर वहीं गुस्से से बैठ जाता हैं.
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