RE: Bhabhi ki Chudai भाभी का बदला
मैने भैया के लंड पर दूसरी और फिर तीसरी उंगली लगाते हुए उसको सहलाने लगी. मैं अपनी उंगलियों को उपर नीचे करने लगी, और आगे पीछे दोनो तरफ सहलाने लगी. भैया का लंड अब पहले से भी ज़्यादा झटके मार रहा था, और भैया भी अब पहले से ज़्यादा ज़ोर से कराह रहे थे.
मैने अपने होंठों पर जीभ फिराई, और भैया के चेहरे की तरफ देखा. वो अब मेरी तरफ नही देख रहे थे. वो आराम से तकिये के सहारे लेते हुए थे, और मेरे ख्याल से उनकी आँखें बंद थी.
भैया के तने हुए लंड जो कि मेरे सामने था, उसकी तरफ देखते हुए, मैने अपनी उंगलियाँ उनके लंड के गिर्द लपेट ली. भैया के उस विशालकाय लंड के सामने मेरी उंगलियों बहुत छोटी लग रही थी . मैने भैया के लंड को कस के पकड़ लिया, और नीचे की तरफ सरका दिया. भैया ने एक गहरी साँस ली. मैने फिर से उसको उपर कर दिया, और मेरी मुट्ठी के उपर होते ही वो फिर से कराह उठे.
मेरे पैरों में से तो मानो जान ही निकल गयी थी. मैं भैया के लंड को पकड़े हुए ही, बेड पर चढ़ गयी. मेरे पास बस एक ही विकल्प था कि मैं अपने पैरों को पिल्लो की तरफ कर लूँ और भैया से थोड़ा दूर रहते हुए, पेट के बल लेट जाऊ, जिस से मेरा काम वैसे ही चलता रहे. मैं भैया के लंड की दीवानी हो चुकी थी.
जैसे ही मैने अपनी पोज़िशन बदली, मेरा हाथ थोड़ा उपर की तरफ फिसल गया, और भैया के मून्ह से एक कराह निकल गयी. मैं अपने होंठों पर जीभ फिराते हुए, भैया के लंड की तरफ थोड़ा आगे खिसकी. मैने लंड की चमड़ी को फिर से नीचे खिसका दिया, और मेरा मूँह अब लंड से बस कुछ ही उपर मंडरा रहा था.
मैने अपनी नज़रें नीचे करके भैया के लंड की तरफ देखा, और देखने लगी कि वो उपर से कैसा दिखता है. भैया के लंड के सुपाडे के बीच में एक छोटा सा छेद दिखाई दिया, उस छेद में से एक चमकती हुई चिकने पानी की बूँद निकल रही थी. भैया का शरीर काँप रहा था, और उनका लंड मेरी उंगलियों के बीच आगे पीछे हिल रहा था. जैसे ही मैने उस बूँद को सुपाडे के छेद में से निकलते हुए देखा, मैं अपने होंठों पर जीभ फिराने लगी.
मैने नीचे झुकते हुए, अपनी जीभ थोड़ी सी बाहर निकाल ली. उस दिन से पहले मैने 10+2 के समय, अपने एक क्लासमेट के लंड को चूसा था, उसने मुझसे एक शर्त हारने के बाद ज़बरदस्ती लंड चुस्वाया था, और मुझे ऐसा करने में बिल्कुल अच्छा नही लगा था. किसी तरह मैने अपने दाँतों को उसके लंड को छीलने से रोका था, मुझे बहुत घिंन आ रही थी और वो मेरा सिर पकड़ के अपने लंड के उपर दबाए जा रहा था. वो बहुत ही खराब एक्सपीरियेन्स रहा था.
लेकिन आज कुछ भी खराब होने वाली बात ही नही थी. मैं भैया ले लंड को नीचे झुकते हुए निहार रही थी. और मैं भैया के लंड को टेस्ट करना चाहती थी. मैं उनके प्रेकुं को चख कर देखना चाहती थी. मैं उनके लंड की स्किन को चूसना चाहती थी, और अपने होंठों के बीच आगे पीछे होते हुए महसूस करना चाहती थी.
मेरी जीभ ने लंड के सुपाडे की नोक को छू लिया. मैने सोचा प्रेकुं का कुछ स्पेशल टेस्ट होगा, लेकिन ऐसा मुझे नही लगा. वो चिकना और चिपचिपा ज़रूर था. मैं अपनी जीभ सुपाडे के छेद पर फिराने लगी, और जो कुछ प्रेकुं बचा हुआ था, उसको चूसने लगी. भैया के मूँह से एक ज़ोर की आहह निकल गयी. मैने भी एक गहरी साँस ली, और भैया के लंड की गंध को महसूस करने लगी. ऐसा सब करते हुए मुझे माहौल बहुत सेक्सी और कामुक लग रहा था.
मैने एक हाथ से लंड को नीचे से पकड़ा हुआ था, जिस से वो सीधा खड़ा रहे. धीरे धीरे मैं अपनी जीभ सुपाडे की रिम पर फिराने लगी. “हे भगवान,” भैया कराहते हुए बोले. मैने एक बार फिर से सुपाडे की रिम पर अपनी जीभ फिराई, और उसके नीचे लंड की मुलायम पिंक स्किन को महसूस करने लगी. वो बहुत गरम थी मैं अब लंड को अपने मूँह में भर लेना चाहती थी. ऐसा करने की मेरी इच्छा इतनी ज़्यादा स्ट्रॉंग हो चुकी थी, कि अब मुझे रोकना असंभव था.
थोड़ा औ आगे झुकते हुए, मैने अपने होंठ सुपाडे पर ज़ोर ज़ोर से दबा दिए. फिर धीरे धीरे मैं और आगे खिसकने लगी. और साथ ही साथ, लंड की लंबाई को अपने मूँह में भरने लगी. वो अब ज़ोर ज़ोर से कराहने लगे, भैया के लंड की मोटाई मेरे मुट्ठी को और ज़्यादा खुलने के लिए मजबूर कर रही थी. मैं चाहती थी कि भैया इस सब का ज़्यादा से ज़्यादा आनंद लें.
मुझे उस समय एहसास हुआ, कि जो कुछ मैं भैया के साथ कर रही थी, वो सब मुझे बहुत ज्याता उत्तेजित और गरम कर रहा था, जैसा उस दिन से पहले मैने कभी महसूस नही किया था. मेरी दोनो टाँगें आपस में ज़ोर से चिपकी हुई थी. और मेरा चूत का दाना जोरों से फडक रहा था. अब मुझे भैया के लंड पर ध्यान केंद्रित करने में थोड़ी दिक्कत हो रही थी, लेकिन मैं किसी तरह वो सब कर रही थी.
सब कुछ धीरे धीरे आराम से करने की इच्छा पर वासना हावी होती जा रही थी. मैं नीचे झुकी, और भैया का लंड मेरे होंठों को चौड़ा करता हुआ, मेरे मूँह में और अंदर चला गया. जैसे जैसे लंड मेरे मूँह में और ज़्यादा अंदर घुस रहा था, भैया की कराहने की आवाज़ तेज होती जा रही थी. मैं अब लंड को चूसने लगी थी, उसको चाट रही थी. और प्रेकुं को स्वाद लेकर निगल रही थी. जब मैं प्रेकुं को अंदर सटकती तो मेरे होंठ बंद हो जाते, और भैया फिर से कराह उठाते. भैया के हिप्स अपने आप बेड से एक दो इंच उपर उछलने लगे, और मैं उनके लंड को अपने मूँह में और अंदर घुसते हुए महसूस कर रही थी.
मेरा मूँह अब मेरे हाथ तक पहुँच चुका था. मैने लंड को और ज़्यादा अंदर ना ले जाते हुए अपने मूँह को वहीं पर रोक लिया. मुझे डर लग रहा था, कि भैया का इतना बड़ा लंड मेरे मूँह में जा भी पाएगा या नहीं. मेरे होंठ तो पहले से ही चौड़े हो गये थे. अगले कुछ समय तक, मैं वैसे ही लंड को अपने मूँह में बिना कुछ और ज़्यादा किए लेटी रही, बस अपनी जीभ को सुपाडे पर फिरा रही थी.
शुपाडे पर जीभ फिराने की वजह से भैया अब तरह तरह के रिक्षन दे रहे थे. उनका शरीर अकड़ने लगा था, और उनके टाँगों की मसल्स टाइट होने लगी थी. “ऊओ,” वो कराहे. और फिर फुसफुसा कर बोले, “संध्या, मैं ऐसे ज़्यादा देर तक नही रोक पाउन्गा...”
मैं समझ गयी, और अपने होंठों को थोड़ा और आगे खिसकाया, और लंड को थोड़ा और अपने मूँह में घुसा लिया. लंड जितना मेरे मूँह में जा सकता था, वो करीब करीब उतना मेरे घुस चुका था, और वो अभी एक तिहाई भी नही घुसा था, मैने फिर से प्रेकुं को जीभ से चाट कर निगल लिया. मैने फिर से अपनी दोनो टाँगों को आपस में और ज़्यादा चिपका लिया. मेरे पेट से नीचे के सारे हिस्से में अजीब सी गुदगुदी हो रही थी.
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