RE: Bhabhi ki Chudai भाभी का बदला
मैं और दीदी मेरी शादी के रिसेप्षन के लिए बुक, उस 5 स्टार होटेल के दीदी के रूम में सोफे बैठे हुए बातें कर रहे थे, और दीदी मुझे अपने ससुराल में बीते पिछले 6 महीनों के दौरान जो कुछ उनके साथ हुआ था, उसके बारे में बता रही थी.......
दीदी ने आगे बताना जारी रखा.....
"संध्या, यहाँ आओ" धीरज हक के साथ बोला.
संध्या ने वैसा ही किया जैसा उसके भैया ने कहा था, लेकिन उसने अपने आप को छूना और सहलाना जारी रखा.
"मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी मदद करो, मैं तुम्हारी भाभी को सबक सिखाना चाहता हूँ. आओ, बेड पर आ जाओ, और भाभी के मूँह पर घुटनों के बल झुक जाओ. और जब तक मैं इसकी चुदाई करूँ, तुम अपनी चूत इस से चटवाती रहो."
ये सोच कर ही मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी, और मैं संध्या की आँखों में देखने लगी. मैने मन ही मन सोचा, हे भगवान, ये सब क्या हो रहा है! संध्या ने वैसा ही किया,जैसे उसके भैया ने उसको करने के लिया कहा था, और वो सावधानी से मेरे चेहरे के उपर आ गयी, इस तरह से कि वो मेरी आँखों में आँखें डाल के देख भी सके, और उसने अपनी चिकनी गीली चूत मेरे मूँह के उपर रख दी. मैं देख रही थी, कैसे संध्या अपने निपल्स को दबा और मसल रही थी, मानो आगे होने वाले कार्यक्रम के लिए तायारी कर रही हो. हम दोनो एक दूसरे की आँखों में आँखें डाल कर एक दूसरे को निहार रहे थे, और मैने संध्या की चिकनी चमक रही चूत को चाटना शुरू कर दिया.
"ऊ, हां. ऐसे ही" संध्या कराहते हुए बोली, जैसे ही मैने अपनी जीभ उसकी चूत के उपर घुमानी शुरू की.
बस कुछ ही देर में, संध्या मेरे मूँह पर अपनी चूत का नंगा नाच करने लगी, और अपनी गान्ड को आगे पीछे हिलाने लगी, और मेरे मूँह को भी अपने चूत के लिसिलीसे पानी से चिकना करने लगी. धीरज ने मेरी टाँगें इतनी ज़्यादा उठा कर उपर कर दी, जिस से वो आराम से उनके बीच बैठ कर मुझे चोद सके. उसने फिर से अपना लंड मेरी चूत में घुसा दिया, और चूत के दाने को छूते हुए इस तरह मेरी चूत में घुसाया, जिस से वो ज़्यादा से ज़्यादा चूत के दाने को हर धक्के के साथ घिस सके, और अपनी बेहन की ताल के साथ ताल मिलाने लगा. फिर धीरज ने अपना हाथ का अंगूठा अपने मूँह में डाल कर गीला किया, और मेरी चूत के दाने को अंगूठे से चोदने के साथ साथ घिसने लगा. मेरा दिल मेरी छाती को फाड़ कर मानो बाहर निकलने वाला था. मैं बड़ी मुश्किल से साँसें ले पा रही थी, और बड़ी मुश्किल से संध्या की चूत में अपनी जीच घुसा रही थी, और किसी तरह उसकी चूत की पूरी लंबाई को अपने मूँह से घिस रही थी.
"ओह चोद दो भैया, भाभी मुझे चूस के ही झाड़ देंगी!" संध्या ज़ोर से बोली.
मुझे अपने आप पर प्राउड फील हुआ, मुझे नही मालूम था कि संध्या इतना जल्दी झड्ने को तयार हो जाएगी.
"संध्या, मेरी बेहन, छोड़ दे इसके मूँह पर अपने चूत का पानी” धीरज बोला. ओए बस इतना सुनते ही, संध्या ने अपने मूँह से एक ज़ोर की कराह निकाली आआआहह.
"ऑश शिट! .." उसका शरीर अकड़ने लगा, और उसने मेरे बालों को अपने एक हाथ में भर कर पकड़ लिया और दूसरे हाथ से अपने निपल्स को मसल्ने लगी.
संध्या जैसे ही झडि, उसने अपने आप को मेरे चेहरे पर से उठा लिया, और बस उसकी चूत से झड्ति हुई पानी की एक बूँद मेरे खुले हुए मूँह के अंदर गिर पड़ी.
"पी लो इसको, डॉली !" धीरज ने आअदेश पूर्वक कहा.
मैने उसके आदेश का पालन किया, संध्या के अपनी चूत में उंगली डाल ने वजह से, चरम पर पहुँचने के बाद, निकल रहे पानी को, मैने अपना मूँह खोलकर उसमे टपकने दिया. संध्या के अपनी गीली चूत में घुस रही उंगली के अंदर बाहर करने से निकल रही आवाज़ सुनकर, धीरज और ज़्यादा एग्ज़ाइटेड हो गया, और उसने अपने एक हाथ के अंगूठे से मेरी चूत के दाने को सहलाना शुरू कर दिया, और दूसरे हाथ से मेरी चूंचियों को दबाने लगा, और ज़ोर से तेज़ी के साथ, मेरी चुदाई करने लगा. मेरी दोनो टाँगों के बीच भी आग बढ़ती जा रही थी, धीरज के लंड ने मेरी चूत में आग लगा दी थी, और संध्या की चूत से अभी भी पानी टपक रहा था, मैं मानो काँपने लगी थी.
"चोद दो धीरज, ज़ोर से!" मेरे मूँह से अपने आप निकल गया.
इतना सुनते ही धीरज अपने प्रयासों में दोगुनी तेज़ी ले आया, और मेरी चूत में घुसते धीरज के फुन्कार्ते हुए लंड के हर धक्के के साथ, मेरे मूँह से आहह ऊओह की आवाज़ें निकलने लगी. धीरज और संध्या दोनो के नीचे लेटे हुए, जैसे ही मैं झडि, मेरा शरीर बीच में से उठकर धनुष की तरह हो गया, धीरज ने मुझे जब तक पकड़े रखा, जब तक कि मैं पूरी तरह झड नही गयी. मुझे इस तरह झड्ने में बहुत मज़ा आया था. मेरी आँखे अपने आप बंद हो गयी, और मेरे पूरे शरीर में इस चरम पर पहुँचने का अपार आनंद मिल रहा था. साँस लेने के लिए, मैने संध्या की चूत में से मेरे मूँह में टपक रहे पानी को निगल लिया, और फिर मेरे मूँह से परम सुख से भरी हुई एक आहह निकल गयी. वो आहह इतना ज़ोर से निकली, कि मेरे मूँह के उपर संध्या की चूत भी फुदक उठी. मेरी चूत ने धीरज के लंड को निचोड़ना शुरू कर दिया, और फिर कुछ सेकेंड के बाद ही वो भी मेरे साथ कराहने की आवाज़ निकालने लगा. उसने अपने लंड को मेरी चूत में अंदर तक पेल दिया, और दोनो हाथों से मेरी चूंचियों को अपनी हथेलियों में भर लिया. और मेरे निपल्स को उंगली और अंगूठे मे बीच दबाकर घुमाने लगा, और अपने लंड से वीर्य के पानी की गाढ़ी धार मेरी चूत में छोड़ने लगा. जैसे ही धीरज ने मेरी चूत को वीर्य के पानी से भरा, मुझे लगा मैं दूसरी बार झड गयी थी, और मेरी चूत के वीर्य मिश्रित पानी की बूंदे मेरी गान्ड के छेद तक टपक कर आ गयी थी.
"हे भगवान! हां!" मेरे मूँह से अजीब अजीब आवाज़ें निकल रही थी, जब धीरज अपने लंड से वीर्य की धार पर धार मेरी चूत में छोड़े जा रहा था. जैसे ही अपने लास्ट झटकों तक पहुचा उसके शरीर काँप उठा. उसके वीर्य के गरम गरम पानी की गर्माहट मैं अपनी चूत में महसूस कर पा रही थी, और जो बाहर निकल कर बह रहा था उसकी गर्माहट मेरी त्वचा महसूस कर रही थी.
"ओके संध्या, मुझे लगता हाँ, इसको एक किस की ज़रूरत है. तुम ही टेस्ट करो," धीरज ने मेरी चूत में से लंड को निकालते हुए संध्या को ऑर्डर दिया.
संध्या ने वो ही किया जो उसको बोला गया था, वो मेरे उपर से उतर गयी, और मुझे एक कामुक वासना से भरा हुआ किस किया, और फिर मेरे मूँह पर लगे अपनी चूत के पानी को चाट लिया. संध्या मेरे तरफ देख कर मुस्कुराने लगी.
"थॅंक यू" संध्या फुसफुसाई.
मैं भी वासना के नशे में डूबी हुई, संध्या की तरफ देख कर मैं भी मुस्कुरा दी, मानो कह रही हूँ, नही थॅंक यू तो मुझे बोलना चाहिए.
"बस एक लास्ट बात डॉली," धीरज बोला "तुमको ये सभी चाटना पड़ेगा" वो अपने लंड को हाथ में पकड़ते हुए बोला, लंड के सुपाडे के छेद में से वीर्य की एक बूँद निकल कर टपकाने को तय्यार थी.
"तुम को भी चैन नही है?" मैने पूछा.
"बस जो कह रहा हूँ, करती रहो, कोई सवाल नही" धीरज ने शांति से ऑर्डर दिया, और मेरे मूँह में अपने लंड को एक बार फिर से घुसा दिया. मैने वैसे ही किया जैसे मुझ से करने को बोला गया था, और मुझे भी अभी कुछ देर पहले झड्ने के बाद मज़ा आ रहा था. मैने उसके लंड से वीर्य की आख़िरी बूँद निचोड़ कर चूस ली, और मुझे दोनो बेहन भाई के चूत और लंड के पानी का स्वाद आज मिल गया था.
जब धीरज को लगा कि अब उसके वीर्य की आख़िरी बूँद भी नीचूड़ चुकी है, तो वो उठ कर खड़ा हो गया, मानो बाथरूम में शवर लेने के लिए जाने वाला हो.
"अब तुम दोनो, मेरे हाथ पैर खॉलोगे भी या नही?" मैने पूछा.
संध्या ने घूम कर धीरज को देखा, मानो पूछ रही हो, "खोल दूँ?", लेकिन धीरज ने बस गर्दन हिला दी.
मेरी बात को सुन कर, दोनो भाई बेहन सहमति से गर्दन हिलाने लगे. धीरज ने संध्या को कुछ इशारा किया, और फिर शवर लेने के लिए बाथरूम में चला गया, और बस मैं और संध्या ही रूम में रह गये.
संध्या ने एक कुटिल मुस्कान से मेरे को देखा और बोली, "ओके भाभी, अब मुझे तुमको खोल देना चाहिए." और फिर संध्या मेरे हाथ पाँव से बँधे उन रस्सी के टुकड़ों को खोलने लगी. और जब उसने मुझे खोल कर आज़ाद कर दिया, उसके बाद फिर से एक बार मेरे गाल पर एक प्यार भरा किस कर लिया.
"अब हम ननद भाभी ही नही, अच्छे दोस्त भी हैं, क्यों सही है ना?" संध्या ने हंसते हुए पूछा.
मैने एक पल एक लिए सोचा और फिर बोला, "नही... अब हम दोस्ती और ननद भाभी के रिश्ते से बहुत आगे निकल चुके हैं. बस कुछ मिनिट पहले ही तो तुम्हारी चूत को अपने मूँह से चूस रही थी... याद है ना."
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