RE: Bhabhi ki Chudai भाभी का बदला
मैं और दीदी मेरी शादी के रिसेप्षन के लिए बुक, उस 5 स्टार होटेल के दीदी के रूम में सोफे बैठे हुए बातें कर रहे थे, और दीदी मुझे अपने ससुराल में बीते पिछले 6 महीनों के दौरान जो कुछ उनके साथ हुआ था, उसके बारे में बता रही थी.......
दीदी ने आगे बताना जारी रखा.....
कुछ मिनिट्स के बाद धीरज के कार की आने की आवाज़ सुनाई दी. संध्या ने अपने कपड़े उठाए, सारे घर की लाइट्स ऑफ कर दी, और अपने बेडरूम का दरवाजा आधा खोलकर, जल्दी से मेरे रूम में भाग गयी.
जैसे ही मुझे डोर के खुलने की आवाज़ सुनाई दी, मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा. ये मैने क्या मुसीबत मोल ले ली थी? संध्या की छेड़खानी ने वैसे ही मुझे मूड में ला दिया था, लेकिन अब क्या होगा, इसी एग्ज़ाइट्मेंट ने मेरी जान ले रखी थी. मेरे शरीर का हर भाग मानो किसी के टच करने के लिए भीख माँग रहा हो, और वो चादर जिसने मुझे ढक रखा था, वो मेरी हर साँस के साथ चूंचियों और जांघों पर, हल्के से हिल कर सहला रही थी.
और फिर मुझे धीरज के घर में दाखिल होने की आवाज़ सुनाई दी, फिर मेन डोर को लॉक करने की, और फिर उसके किचन में जाने की. मैं चुप चाप लेटे हुए इंतेजार कर रही थी, जैसे ही मुझे धीरज के रूम में दाखिल होने का एहसास हुआ, मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा. कुछ पलों बाद, धीरज अपनी शर्ट उतारने लगा, और फिर जिस बेड पर मैं बँधी हुई थी, उसके पास खड़े होकर अंधेरे में अपनी आँखों को देखने का अभ्यस्त करने का प्रयास करने लगा, और पॅंट के उपर से ही अपने लंड को सहलाने लगा. और फिर उसने अपनी पॅंट और अंडरवेर को उतार के फेंक दिया, मेरी नज़र उसके लंड पर जमी हुई थी. फिर धीरज ने पास आकर, मेरी चादर को हटाना शुरू किया, और मेरा नंगा बदन फिर से उजागर हो गया. मुझे उसकी नज़र मेरे शरीर के उपर घूमती हुई महसूस हो रही थी, मेरी धड़कन और ज़्यादा तेज हो गयी थी. मैं अपने आप को समझा रही थी, कि रिलॅक्स, उसको पता नही है कि मैं उसकी बेहन नही, उसकी बीवी हूँ. धीरज ने मेरी टाँगों को चूमना शुरू कर दिया, उसकी हर किस के साथ मेरी चूत और ज़्यादा फुदक रही थी. मेरे शरीर के टच करवाने की चाहत, धीरज के होंठों के छूने के बाद और ज़्यादा बढ़ गयी थी. फिर, धीरज किस करते हुए मेरी जांघों तक पहुँच गया, और फिर बेड पर आते हुए, झुककर मेरी चूत को उसने किस कर लिया. धीरज की गरम गरम साँसें जैसी ही मेरी चूत की फांकों पर पड़ी, ऐसा लगा जैसे मैं स्वर्ग में पहुँच गयी हूँ.
धीरज ने धीरे धीरे नीचे से उपर तक , मेरी चूत के नरम होंठों को चाटना शुरू कर दिया, और सावधानी के साथ मेरी चूत को अपने थूक से गीला करने लगा. मुझे बहुत मज़ा आ रहा था, लेकिन सच कह रही हूँ राज, मुझे उस समय भी तेरा मेरी चूत को सबसे पहली बार, प्यार से चाटना याद आ रहा था. फिर धीरज ने अपनी उंगली को मूँह में डाल कर चाट कर गीला किया, और फिर आराम से मेरी चूत में घुसा दिया. अब तक मेरी चूत चुदने को इतनी ज़्यादा बेकरार हो चुकी थी, कि धीरज की उंगली किसी लंड से भी ज़्यादा मज़ा दे रही थी. फिर धीरज ने दो उंगलियाँ मेरी चूत में घुसा दी, और मेरी गीली चूत में अंदर बाहर करने लगा, जैसे ही उसकी उंगली मेरे चूत के उपरी भाग के दाने को छूती, मैं जन्नत में पहुँच जाती.
धीरज फिर ठीक से मेरे पास, अपनी साइड लेट गया, और मुझे अपनी बेहन समझकर अपनी उंगली से मेरी चुदाई करने लगा. और दूसरे हाथ से मेरी चूंचियों को अपनी हथेली में भर कर मसल्ने लगा. और फिर, धीरज ने थोड़ा नीचे झुक कर मेरे होंठों को किस कर लिया. मेरे भी सब्र का बाँध टूट गया, और बेड पर बँधे हुए ही, मैं उपर होते हुए उसको किस करने लगी. मेरे मूँह में जीभ घुसाकर, धीरज मस्त किस कर रहा था, और उसकी साँसें भी अब तेज होने लगी थी. उसकी उंगली मेरी चूत में तेज़ी से गहराई तक अंदर बाहर हो रही थी, और मेरी गान्ड भी उछल उछल कर उसकी उंगली के अंदर बाहर होते हुए ताल से ताल मिला रही थी. हम दोनो की जीभ एक दूसरे में लिपट कर अठखेलियाँ कर रही थी. मैं अब चुदने को बेसब्र हो चुकी थी. धीरज ने जैसे ही किस को तोड़ा, मैने एक गहरी साँस ली, मुझे लगा कि वो मेरी ज़रूरत समझ गया है. धीरज ने नीचे होकर, मेरे निपल को पहले किस किया, और फिर ज़्यादा से ज़्यादा अपने मूँह में भर कर निपल को चूसने लगा. मैने फिर से एक गहरी साँस ली, और अपने मूँह से निकल रही आहह ऊहह की आवाज़ों को दबाने का असफल प्रयत्न किया. मैं नही चाहती थी, कि धीरज को पता चले कि ये सब वो अपनी बेहन के साथ नही, बल्कि अपनी बीवी के साथ कर रहा है. लेकिन अब बर्दाश्त करना मुहकिल होता जेया रहा था.
धीरज ने अब चूत में उंगली घुसाना बंद कर दिया, और बस मेरी चूत के दाने को अपनी गीली उंगलियों से घिसने लगा. फिर वो उठा और 69 के पोज़ में होते हुए, अपने फूँकार मार रहे लंड को अपने हाथ में पकड़ा, और मेरे चेहरे और मेरे मूँह के पास ले आया. मैं उसका इशारा समझ गयी, और अपना मूँह पूरा खोल दिया, जिस से धीरज अपना लंड थोड़ा थोडा कर के उसमे पूरा घुसा सके. जितना ज़्यादा हो सकता था, मैं धीरज के लंड को अपने मूँह में अंदर ले गयी, और उसको अपनी जीभ से साइड से चाटने लगी. एक बार जब उसका लंड थोडा ठीक से गीला हो गया, तो धीरज उसको मेरे मूँह के अंदर बाहर करने लगा, और मेरे मूँह की चुदाई करने लगा, उसकी उंगलियाँ अब भी मेरी चूत के दाने से खेल रही थी. और दूसरे हाथ से उसने मेरा सिर पकड़ रखा था, जिस से लंड को अंदर बाहर करने में गाइड कर सके. कुछ ही सेकेंड में मेरे मूँह लंड के घुसे होने के कारण ऊओनह आनह की अजीब घुटि हुई आवाज़ें निकलने लगी.
"हां, मेरी बेहन संध्या." धीरज फुसफुसाया, "तुमको अपने भैया का लंड चूसने में बहुत मज़ा आता है ना?" आज से पहले, और किसी गंदी बातों ने मुहे इतना एग्ज़ाइट नही किया था, जितना उसके ये कहने के बाद मैं एग्ज़ाइटेड हो गयी थी, और मैं उसकी बात का जवाब, उसके लंड को और ज़्यादा अपने मूँह में अंदर तक,भरकर देने लगी.
"उःम्म्म-ह्म" हे भगवान, हां. मैं कुछ कुछ बक रही थी, और उसकी बेहन बनकर चुदने में बहुत मज़ा आ रहा था.
"क्या चाहती हो अब, तुम कहो तो चोद दूँ?"
"म्म्महममम्म" मैने ज़ोर से आवाज़ निकाली, मैं झडने के करीब पहुँचने ही वाली थी.
धीरज ने अपने आप को मेरे होंठों से दूर कर लिया, और मेरी बँधी हुई टाँगों के बीच आ गया.
"तुम्हारी चूत को चाहिए मेरा लंड?" धीरज ने छेड़ते हुए कहा, और अपने लंड के सुपाडे को मेरी पनिया रही चूत के उपर घिसने लगा.
"ओह हां, छोड़ दो भैया. डाल दो इसको मेरी चूत के अंदर." मैने धीरे से कहा, जिस से की वो पहचान नही पाए, कि मैं संध्या नही हूँ.
धीरज ने अपने लंड के सुपाडे को मेरी चूत पर घिसना जारी रखा, और अब उसको चूत के छेद की रिम पर घुमाने लगा, ये सब मुझे वासना की आग में जलाकर पागल कर रहा था. मैं अपनी गान्ड उछालने लगी थी, और उसके लंड को जल्दी से अपने अंदर घुसाने के प्रयास कर रही थी, लेकिन वो मुझे कामयाब नही होने दे रहा था, और हर बार बस लंड को चूत के छेद पर टच कर के दूर हटा लेता. मैं बेड पर बँधी हुई थी, और लाचार थी, और बस अपने उपर छाये हुए उस व्यक्ति के रहम पर निर्भर थी. वो जो चाहता मेरे साथ कर सकता था, और मैं उसको रोकने के लिया कुछ नही कर सकती थी. ये सब सोच के ही मैं उत्तेजित हुए जा रही थी.
"प्लीज़, चोद दो" मैने गिडगिडाते हुए कहा, उसके लंड के सुपाडे के मेरी चूत पर घिसने के कारण मेरी टाँगों के बँधे होने के बावजूद, मेरे घुटने उपर उठाने की कोशिश कर रहे थे.
धीरज ने धीरे से मेरी पानी छोड़ रही चूत के छेद में अपने लंड के सुपाडे को थोड़ा अंदर घुसाया. और फिर धीरे धीरे मेरी चूत में अपने लंड को घुसाने लगा. मुझसे अब बर्दाश्त नही हो रहा था, और जैसे ही उसके लंड का सुपाड़ा मेरी चूत में घुसा, मैं ज़ोर से कराह उठी. धीरज एक पल को रुका, और फिर आराम से लंड को मेरी चूत में घुसाने लगा, थोड़ा थोड़ा कर के. मैं उसके लंड के घुसते हुए हर इंच को महसूस कर रही थी, उसके लंड की हर नस को, और मेरी चूत धीरज को अपने अंदर निगलते हुए उसके लंड के बनावट का पूरा आनंद ले रही थी. धीरज ने लंड को मेरी चूत में घुसाना जारी रखा, और मेरी गीली चूत में अपने लंड की पूरी लंबाई को घुसा दिया, उसके लंड का सुपाड़ा मेरी चूत की सामने की दीवार से टकराने लगा. चूत और लंड का खेल ही निराला है, चुदाई के उस पल को मैं बता नही सकती, मुझे कितना मज़ा आ रहा था. धीरज जैसे ही झटके मार के अपने लंड को मेरी चूत में अंदर बाहर करने लगा, मुझे लगा कि उसको अपनी बेहन को चोदने में कितना मज़ा आ रहा है, ऐसा ही तुमको भी आता होगा, जब तुम मुझको चोदते थे, राज.
कुछ मिनिट्स के बाद, धीरज मेरे उपर आकर मेरे पास आ गया, और लंड को ज़ोर से गहराई तक, अंदर बाहर करते हुए, मुझे एक ज़ोर्से किस करना लगा. उसने मेरे गालों को किस किया, फिर मेरी गर्दन को, और फिर धीरे से मेरे कान में फुसफुसाया...
"तुम को तो मेरी बेहन संध्या से भी ज़्यादा मज़ा आ रहा होगा."
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