RE: Bhabhi ki Chudai भाभी का बदला
"हां भाभी, ये सब हम बाद में देखेंगे" संध्या बोली, और उसने सिर्फ़ रस्सी के कुछ छोटे छोटे टुकड़े बाहर निकाल लिए. "ये रस्सी देखने में ही मोटी लगती है, लेकिन होती बहुत मुलायम है, और इससे चोट भी नही लगती है" वो मुस्कुराते हुए बोली. "बस हम को तो आपको बेड से बाँधना है. मैं ऐसा पहले भी एक दो बार कर चुकी हूँ. मैं अपने आप को ठीक तरह से बेड से बाँध लेती थी, और फिर भैया आकर जो वो चाहते मेरे साथ करते. लेकिन आज हम आपको बेड से बांधेंगे. इस तरह आपको कुछ भी करने की ज़रूरत नही पड़ेगी, जो कुछ करना है, भैया ही आप के साथ करेंगे. “
"लेकिन तुम अपने आप को अपने ही हाथों से कैसे बाँध लेती हो?" मैने आश्चर्य के साथ पूछा.
"तीन रेग्युलर नाट्स, और एक स्लिप नाट अपने आख़िरी फ्री हॅंड के लिए." संध्या ने किसी एक्सपर्ट की तरह समझाते हुए कहा.
हम दोनो दिन भर प्लॅनिंग करते रहे, संध्या ने मुझे कुछ ऐसी बात बताई जो धीरज चुदाई के टाइम सुनना पसंद करता था. रात के 10 बजे हम दोनो ने तैयारी शुरू कर दी, मैने और संध्या ने एक दूसरे के पुर कपड़े उतार कर एक दूसरे को पूरा नंगा कर दिया, और ये सब करते हुए हम दोनो ही बहुत एग्ज़ाइटेड हो रही थी. संध्या ने मुझे बेड से बाँध दिया, बीच बीच में वो मुझे किस करते हुए छेड़ भी रही थी. मेरे चारों हाथ और पैर, बेड के चारों किनारों से बाँध दिए थे, और मैं हाथ और टाँगें फैला कर, बेड पर सीधे पीठ के बल लेट कर, बेड से बँधी हुई थी.
"देखा भाभी, क्या मस्त सीन है!" संध्या गहरी साँस लेते हुए बोली, मानो अपने किए हुए काम को सर्वे कर रही हो. "मेरा तो मन कर रहा है, कि मैं भी थोड़ा सा आप के साथ खेल लूँ, भाभी."
"हे ऐसा कुछ मत करना!" मैने अपने आप को असहाय पाते हुए बोला, मैं दोनो बाहें और टाँगें फैलाए हुए बेड से बँधी पड़ी हुई थी, लेकिन मेरा शरीर किसी के अटेन्षन की मानो भीख माँग रहा हो, और कह रहा हो.... प्लीज़... मेरे साथ कोई तो खेलो... और जो चाहे मेरे साथ कर लो.
संध्या एक झपट्टा मारते हुए मेरे नंगे शरीर के उपर आ गयी, और मानो किसी बादल की तरह, कुछ दूरी रखकर, अपने शरीर से मेरे शरीर को धक लिया. हम दोनो एक दूसर को निहारने लगे. मैने पहली बार संध्या का चेहरा इतने करीब से देखा था, उसके गुलाबी होंठ, मुलायम गाल, पटकी सुंदर नाक, और उसकी बड़ी गोल आँखें. माइ गॉड, क्या आँखें हैं उसकी. मैं तो मानो उसकी आँखों में डूब ही गयी, मानो कोई अप्सरा हो. ज़्यादातर सभी के चेहरों पर एक टाइम पर एक एक्सप्रेशन ही रहता है, खुशी का या दुख का. लेकिन संध्या की आँखों में तो एक्सप्रेशन्स का समंदर था, वो बस एक नज़र से दुनिया भर के सारे एक्सप्रेशन बयान कर सकती थी, परम आनंद, हिफ़ाज़त, इबादत, हसरत, वासना और सब कुछ. जैसे ही संध्या बेड पर नीचे झुकने लगी, उसके निपल्स मेरे निपल्स से, किसी तितली की तरह नाज़ुक और मुलायम, हल्के से स्पर्श करने लगे. संध्या मेरी आँखों में एकटक नज़र मिला कर देख रही थी....
नही, संध्या, प्लीज़ अभी मत जाओ. मुझे लग रहा था कि संध्या मेरी लाचारी और हवस की भूख देख कर थोड़ा झिझक रही थी. संध्या का चेहरा मेरी फुदक रही चूत की तरफ झुका हुआ था, और उसकी हाथ की उंगलियाँ मेरी छाती और कमर की साइड पर फिसल रही थी. जहाँ जहाँ उसकी उंगलियाँ मुझे छूती, मेरी स्किन को ना जाने क्या होने लगता, थोडा गरम, थोड़ा ठंडा और फिर मेरे सारे शरीर पर रोंगटे खड़े होने शुरू हो गये, और मेरे निपल्स टाइट होकर खड़े हो गये, ये सब कुछ माहौल को और ज़्यादा सेक्सी बना रहा था. संध्या का शायद इस सब का ज़्यादा असर नही हो रहा था, उसकी आँखों में वासना भरी हुई थी, और वो मेरी उपर नीचे हो रही चुचियों को एक टक देख रही थी. मानो बस एक ही बात कर रही हों, बस एक बार कर लेने दो..... मेरा शरीर उसकी निगाहों का जवाब देने लगा था, मानो मुझे संध्या की आँखों ने अपने मोहज़ाल में फँसा लिया हो. एक पल को मुझे लगा, कि कहीं संध्या, बिना मेरी चूत को टच किए ही, मुझे झड्ने पर मजबूर ना कर दे. संध्या की आँखें मानो कोई दैविय गृह हों, जिन्होने मेरी दोनो टाँगों के बीच मानो आग लगा दी हो.
संध्या धीरे से, ना चाहते हुए, मुझसे दूर हट गयी, और एक गहरी साँस लेते हुए मेरे सामने खड़ी हो गयी. संध्या के शरीर पर भी रोंगटे खड़े हो गये थे. ये सब कुछ देख कर, मेरे मूँह से शब्द नही निकल रहे थे. जितनी कामुक वो मुझे लग रही थी, उसके लिए अदभुद भी सही शब्द नही है. फिर मेरे मूँह से वो शब्द निकल ही गया, जिस की मुझे तलाश थी, पर्फेक्ट... संध्या बिल्कुल पर्फेक्ट थी.
संध्या ने अपने मोबाइल से धीरज को फोन मिलाया, और मेरे सो जाने की बात कही, और बोला, “मेरे रूम का दूर थोड़ा सा खुला हुआ है, सीधे मेरे पास ही आ जाना, मैं वेट कर रही हूँ, आज कुछ अलग करेंगे, भैया.”
संध्या ने अपनी आल्मिराह में से एक सॉफ धूलि हुई पिंक कलर की चादर निकाली और मेरे शरीर को पूरा उस चादर से ढक दिया.
"भैया को आज बहुत मज़ा आएगा... और आपको भी भाभी, चुदि तो आप भैया से काई बार होंगी, लेकिन आज जैसा मज़ा आपको पहले कभी नही आया होगा, मुझे तो इस तरह बहुत मज़ा आता है भाभी" संध्या खिलखिला कर खुश होते हुए बोली, मानो किसी चीज़ का अड्वर्टाइज़्मेंट कर रही हो.
संध्या, अपने भाई के लंड और चुदाई की प्रशंसा करते हुए मानो कहीं खो गयी. फिर उसने एक गहरी साँस ली, और एक पल को मानो भूल ही गयी कि वो वहाँ पर क्यों खड़ी हुई है.
"चलो तो ठीक है, मुझे पूरा विश्वास है, आपको मज़ा आएगा भाभी."
कुछ मिनिट्स के बाद धीरज के कार की आने की आवाज़ सुनाई दी. संध्या ने अपने कपड़े उठाए, सारे घर की लाइट्स ऑफ कर दी, और अपने बेडरूम का दरवाजा आधा खोलकर, जल्दी से मेरे रूम में भाग गयी.
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