Bhabhi ki Chudai भाभी का बदला
03-31-2019, 05:32 PM,
RE: Bhabhi ki Chudai भाभी का बदला
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अब आगे की कहानी डॉली दीदी की ज़ुबानी
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जब मैं शादी के बाद ससुराल पहुँची, तो मुझे सभी परिवार वालों का, सास, ससुर, धीरज और उसकी छोटी बेहन संध्या का भरपूर सहयोग मिला. संध्या तो मानो मेरी सहेली बन गयी. हर समय मेरे साथ हँसी ठिठोली करती रहती. धीरज ने शादी के बाद 15 दिनों के लिए ऑफीस ना जाने का डिसाइड किया था. मेरे ससुर दीनानाथ जी ही बिज़्नेस देख रहे थे.

धीरज रोजाना दोपहर में लंच करने के बाद मुझे 2-3 घंटे तक पूरी तरह गरम करने के बाद अलग अलग पोज़ में चोदा करता था. रात में हम दोनो डिन्नर के बाद टाइम से सो जाया करते थे, दिन में जबरदस्त चुदाई के बाद मुझे जल्द ही गहरी नींद आ जाती.

ये तब की बात है, जब एक बार मेरे सास, ससुर किसी रिश्तेदार की शादी में 2-3 दिनों के लिए गये हुए थे.

रात के 1 बजे एक बजे जब मेरी नींद खुली, तो मैने धीरज को बेड से गायब पाया, शुरू में मैने सोचा, हो सकता है टाय्लेट गया हो, लेकिन जब वो बहुत देर तक नही लौटा तो मैं बेड से उठकर, रूम से बाहर जाकर चेक करने के लिए, रूम से बाहर निकल आई. मैने संध्या के रूम से कुछ आवाज़ें आती सुनी, तो उसी तरफ बढ़ चली. टाय्लेट में पानी की आवाज़ से ये कन्फर्म हो चुका था, कि धीरज तो टाय्लेट में ही है. संध्या के रूम का डोर पूरी तरह से बंद नही था, डोर और चौखट के बीच की दरार में से रूम के अंदर का सब कुछ सॉफ सॉफ दिखाई दे रहा था. रूम में से आ रही हवस और वासना से भरी कराहने की आवाज़ें मुझे पागल कर रही थी, मेरी भी छूट गीली होने लगी थी. मेरे दिमाग़ में चल रहा था, कि शायड धीरज तो टाय्लेट में है, और संध्या अपने रूम में अपनी चूत में उंगली डाल रही है. मेरी भी धीरज से चुदने की इच्छा बलवती होने लगी थी, मेरा हाथ मेरी चूत पर पहुँच कर पाजामे और पैंटी के उपर से ही चूत को सहलाने लगा था. मेरा एक हाथ चूत पर था, तो दूसरा मेरी चुचियों के निपल को मसल रहा था. मेरे सारे शरीर में आग लग चुकी थी, जो शरीर के हर भाग को जला रही थी.

मैं बहुत ज़्यादा गरम हो चुकी थी, लेकिन तभी मैने जब संध्या के रूम में अंदर झाँक कर देखा, संध्या नीचे से पूरी तरह नंगी होकर बेड पर लेटी पड़ी थी, उसने बस टी-शर्ट पहना हुआ था, और अपनी चूत में उंगली डाल कर अंदर बाहर कर रही थी. उसकी चूत इतनी गीली हो चुकी थी, की उंगली के अंदर बाहर होने के आवाज़ मुझे बाहर तक सॉफ सुनाई दे रही थी. मुझे लगा कि धीरज अब टाय्लेट से निकलने ही वाला है, और कहीं वो अपनी बेहन को इस रूप में ना देख ले. 

मैने अपना मूँह डोर के अंदर घुसाते हुए कहा, “संध्या, रूम का डोर बंद कर के ये सब किया करो.”

संध्या के उपर मेरी बात का कोई असर नही हुआ, और वो चूत में उंगली डाल कर अपनी मस्ती में खोए हुए, हस्तमैथुन करती रही. इसके बाद उसने अपनी टी-शर्ट और फिर धीरे से अपनी ब्रा भी उतार दी, और पूरी तरह नंगी हो गयी. मेरा दिल भी उस कच्ची कली के नंगे बदन को देख कर ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा. वो फिर से अपना हाथ अपनी चूत पर ले गयी, और चूत के दाने को सहलाने लगी. 

मैने गुस्से में कहा, “संध्या, जो तुम्हे करना है करो, लेकिन डोर तो बंद कर लिया करो, धीरज बाथरूम में है, उसने देख लिया तो?” संध्या अपने बेड पर इस तरह घूम गयी, और उसने अपनी टाँगें फैला दी, की अब उसकी बिना झान्टो वाली, शेव्ड चिकनी चूत बिल्कुल मेरे चेहरे के सामने थी. मेरी बात सुनकर, संध्या ने अपने पुर शरीर पर पिंक कलर का चादर ओढ़ लिया, और और चादर के अंदर, अपनी चूत के दाने को कराहने की आवाज़ों के साथ, सहलाने लगी. 

ये सब देख कर मैं भी बहुत ज़्यादा गरम हो चुकी थी, और मैने भी अपने पाजामे और पैंटी के अंदर हाथ घुसा के अपनी चूत को सहलाना शुरू कर दिया. संध्या के हाथ के चादर के अंदर चलते हुए देख कर, मुझ से अपने आप पर ज़्यादा देर तक कंट्रोल नही हुआ, और मेरी आँखें बंद हो गयी, और संध्या की चिकनी चूत मेरे दिमाग़ में घूमने लगी, और मैं जल्द ही झड गयी. 

जैसे ही मुझे होश आया, मुझे एहसास हुआ कि धीरज कभी भी टाय्लेट से बाहर आ सकता है, मैं तुरंत अपने रूम में जाकर, बेड पर लेट गयी. जब थोड़ी देर बाद टाय्लेट का डोर खुलने की आवाज़ आई, कुछ देर इंतेजार करने के बाद जब धीरज फिर भी हमारे रूम में नही आया, तो मैं दबे पाँव डोर खोल के बाहर झाँकने लगी. धीरज, संध्या के रूम की तरफ जा रहा था. जब वो अंदर घुस गया, तो मैं धीरे से डोर और चौखट की दरार में अंदर झाँक कर देखने लगी.


रूम के अंदर घुसते ही, धीरज ने संध्या की ओढी हुई चादर को हटा दिया, और वो पूरी तारह नंगी होकर, अपने भैया के सामने अपने बेड चूत में उंगली डाले हुए लेटी पड़ी थी. उसकी आँखे बंद थी.

और फिर धीरज ने अपना कुर्ता पाजामा उतारना शुरू कर दिया. नाइट लॅंप में संध्या का नग्न गोरा शरीर, संगमरमर की तरह चमक रहा था. धीरज अपनी सग़ी छोटी बेहन के सामने अपने कपड़े उतार रहा था. मैं वहीं, रूम के बाहर खड़े होकर, दरार में से झाँक कर रूम के अंदर देख रही थी, मुझे लग रहा था, मानो मैं कोई सपना देख रही हूँ. 

धीरज ने कुर्ता पाजामा उतारने के बाद,बनियान और अंडरवेर को भी एक झटके उतार फेंका. धीरज का गातीला शरीर, नाइट लॅंप की रोशनी में बहुत आकर्षक लग रहा था, और उसका लंड खड़ा होकर, उपर नीचे हो रहा था, मानो सलामी मार रहा हो. धीरज के लंड को तो मैं हर दोपहर में देख भी रही थी, और भोग भी रही थी, लेकिन इस परिस्थिति में सब कुछ कामुक और वासना से भरा हुआ लग रहा था. धीरज ने अपने सारे कपड़ों को फर्श पर ही पड़े रहने दिया, और उनको पैर से इकट्ठा कर दिया, और अपनी सग़ी छोटी बेहन संध्या के नंगे शरीर को निहारने लगा. इस समय धीरज का चेहरा तो मेरे सामने नही था, लेकिन जिस तरह से उसका लंड खड़ा होकर, उपर नीचे हो रहा था, इतना तो मेरे भी समझ में आ रहा था, कि वो अपनी सग़ी छोटी बेहन को चोदना चाहता है. ये सोचकर मैं भी उत्तेजित होने लगी, मेरे निपल्स भी खड़े हो गये, और मेरा हाथ भी पाजामे और पैंटी के अंदर मेरी चूत तक फिर से पहुँच गया. इस बार मैं भी बेशर्मी से बिना किसी डर के अपनी चूत पर उंगली घिसने लगी. क्योंकि घर में हम तीनों के सिवा और कोई नही था, और वो दोनो भाई बेहन अपनी काम क्रीड़ा में लगे हुए थे. 

धीरज कुछ देर वहीं बेड के पास खड़ा होकर, संध्या के नंगे शरीर को निहारता रहा, और फिर धीरे से संध्या के बेड पर चढ़ गया, अपने भाई को बेड पर चढ़ते देख, संध्या ने करवट ले ली और साइड से लेट गयी. संध्या अब भी अपनी आँखें बंद किए हुए लेटी हुई थी, मानो सो रही हो. धीरज सावधानी के साथ, संध्या की पीठ से चिपक गया, और उसकी गोरी गोरी जांघों को अपने हाथ से सहलाने लगा. मैं इस सब को अचरज के साथ खड़ी हुई देख रही थी. धीरज ने संध्या को सीधा लिटाते हुए, उसकी दोनो टाँगों को पकड़ के चौड़ा कर फैला दिया, धीरज ऐसे सावधानी बरत रहा था, जैसे कि वो उसे नींद से उठाना ना चाहता हो. फिर धीरज ने नीचे आते हुए, संध्या की गोरी मुलायम जांघों को हल्के से किस करना शुरू कर दिया, हर किस के साथ, वो संध्या की जाँघ की अन्द्रुनि गहराई में, उसकी गुलाबी चूत के और पास घुसता जा रहा था. 

मुझे ये सब देखकर विश्वास ही नही हो रहा था, कि जो काम मैं अपने सगे भाई के साथ अपने मायके में किया करती थी, वो ही आज अपनी ससुराल में अपने पति और ननद के बीच होते देख रही हूँ. मुझे ये सब अभी भी एक सपने की ही तरह लग रहा था. ये तो मुझे पता था, कि संध्या जागी हुई है, उसने बस अपनी आँखें ही बंद कर रखी हैं, और इस सब में उसकी सहमति है, लेकिन मैं ये इस सोच रही थी, कि क्या मुझे कुछ बोलना चाहिए? क्या मुझे इस सब को रोकना चाहिए? लेकिन मेरा कुछ भी निर्णय लेने की शक्ति जवाब दे चुकी थी. मैं इस सब को देख कर, इतना ज़्यादा एग्ज़ाइटेड हो गयी थी, मुझे मेरे और तेरे बीच जो कुछ हुआ था, वो सब कुछ याद आने लगा था, मुझे थोड़ी शरम भी आ रही थी, कि मैं ना तो कुछ बोल ही पाई, और ना ही उन दोनो को रोक ही पाई. सब कुछ देखते हुए, मेरा हाथ अभी भी पैंटी के अंदर घुसा हुआ था, और मेरी चूत को सहला रहा था.....
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RE: Bhabhi ki Chudai भाभी का बदला - by sexstories - 03-31-2019, 05:32 PM

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