RE: Bhabhi ki Chudai भाभी का बदला
दीदी समझ रही थी कि मेरे अंदर क्या सब कुछ चल रहा है, दीदी ने खुश होते हुए मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा दी, फिर अपनी नज़रें नीची कर ली, और फिर मेरी आँखों में आँखें डालकर देखने लगी.
दीदी अब भी खुश नज़र आ रही थी, वो बोली, "मुझे मालूम है कि शायद ये सब ठीक नही है, और मुझे ये भी मालूम है कि हम इस तरह जिंदगी भर नही रह सकते, मेरी मँगनी के बाद हमको ये सब नही करना चाहिए." मैने हां में गर्दन हिला दी, दीदी आगे बोलती रही, "लेकिन इस वक़्त, मैं वो करना चाहती हूँ, जो मुझे अच्छा लगता है..." दीदी ने झेन्पते हुए अपने पैर के पंजों को हिलाया, और फिर नर्वसली बोला, ...मैं तुम्हारी होना चाहती हूँ."
मैं दीदी के पास आया और दीदी के गले में अपनी बाहे डाल दी, और दीदी के माथे को चूम लिया. "मुझे भी लगता है, कि ये सब सही नही है और ये बात भी सही है कि हम ये सब जिंदगी भर नही कर सकते, लेकिन आज की तारीख में तुम मेरी जिंदगी में सबसे इंपॉर्टेंट पर्सन हो, और मैं तुम्हारे साथ जब तक सभव हो, ज़्यादा से ज़्यादा रहना और टाइम स्पेंड करना चाहता हूँ."
दीदी मेरी तरफ देख के मुस्कुराइ, और फिर थोडा आगे बढ़ के मुझे एक किस कर लिया.
"तो फिर, अब ठीक हो?" दीदी ने पूछा.
"हां, दीदी अब मैं अच्छा फील कर रहा हूँ." मैने दीदी के दमकते चेहर की तरफ देखते हुए कहा.
हम दोनो ने एक दूसरे के हाथ पकड़ लिए. हम दोनो हमारी जिंदगी में बाकी सब कुछ जो हो रहा था, उसके बारे में बाते कर ही रहे थे, तभी जोरदार बेरिश शुरू हो गयी, दीदी बारिश होती देख बहुत खुश हो गयी, और वो खुश होकर हँसने और खिलखिलाने लगी. हवा में गर्मी तो अभी भी थी लेकिन उमस थोड़ी कम हो गयी थी.
दीदी ने मेरी तरफ एग्ज़ाइटेड होकर देखा और आँखें गोल गोल घुमाकर पूछा, “तुम कभी नंगे होकर बारिश में नहाए हो?”
"हां...कई बार सोचा तो है, लेकिन बस सोच कर ही रह गया."
"तुम नहाना चाहोगे?" दीदी ने पूछा.
मैने झिझकते हुए अपने कंधे उँचका दिए. "अगर हम अपने कपड़े इसी झोंपड़ी में उतार दें तो ये गीले नही होंगे...."
कुछ देर बाद हम दोनो अपने शूस के लेसस खोल रहे थे और हमने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए. दीदी ने अपनी ट्रॅक पॅंट और टी-शर्ट उतार दी, और पैंटी उतारते हुए मेरी तरफ स्माइल कर के देखा. मैं अपने बॉक्सर्स को उतार रहा था, उस वक़्त दीदी अपनी ब्रा के हुक को खोल के उसको उतार रही थी. हमने अपने कपड़े इकट्ठे करके उस चारपाई पर रख दिए, और पूरे नंगे होकेर बारिश में भीगने को बाहर आ गये, ज़मीन गीली होकर सॉफ्ट हो गयी थी, और मिट्टी हमारे पैरों पर चिपक रही थी. दीदी ने मेरा हाथ पकड़ के आगे की तरफ खींचा.
दीदी बारिश में भीग के बहुत खुश थी, वो अपने हाथों को उपर कर के अपने को बारिश में भीगने का भरपूर आनंद ले रही थी. मैं दीदी के शरीर के उभारों की मन ही मन प्रशंसा कर रहा था, और जब रहा ना गया तो दीदी को अपने पास खींच के मैने अपने शरीर से चिपका लिया. हम दोनो एक दम नंगे चिपक कर, दूर दूर तक प्राकृतिक हरियाली के बीच खड़े हुए थे.
काफ़ी देर बारिश में भीगने के बाद मैने दीदी से पूछा, दीदी अब थोड़ा देर चारपाई पर बैठ लें? दीदी तुरंत मान गयी और झोंपड़ी में अंदर जा कर चारपाई पर हंसते हुए बैठ गयी, और फिर अपने पैर चारपाई से लटकाए हुए ही, अपनी पीठ के बल लेट गयी. मुझे तो जन्नत का दीदार हो गया. अपने सिर को थोड़ा उठाते हुए और अपनी आँखों पर आए पानी को पोंछते हुए दीदी बोली "आज से पहले इतना मज़ा कभी नही आया!"
मैने वहाँ पर पड़ी हुई एक इंट (ब्रिक) उठाई और उसको चारपाई के पास, दीदी के पैरों के पास रख कर उस पर बैठ गया. मैने दीदी के दोनो पैरों को प्यार से अलग करके उनको चौड़ा कर दिया. मैं अपनी गान्ड इंट (ब्रिक) पर से उठा के दीदी के पैरों के बीच में आ गया. “हे भगवान...” दीदी के मूँह से अपने आप निकल गया, और उन्होने फिर से अपनी गर्दन नीचे करके अपने हाथो को अपने चेहरे पर रखते हुए, अपने सिर को चारपाई पर टिका लिया, और अपने आप ही अपनी टाँगें थोड़ी और चौड़ी करके, अपनी मस्त चूत का प्रदर्शन और ज़्यादा कराने लगी. मैने थोड़ा आगे बढ़कर अपना मूँह चूत की दोनो फांकों के बीच रख दिया, और चूत के बाहरी दोनो लिप्स जो हल्की हल्की झान्टो से ढके हुए थे उनको चूमने लगा, कुछ देर बाद मुझे चूत के अन्द्रूनि सॉफ्ट और गीले लिप्स का स्वाद लेने का भी मौका मिला. दीदी एक दम चिहुन्क उठी जब मेरी जीभ ने उनकी चूत के दाने की छूआ. बाहर मूसलाधार बारिश हो रही थी, और मैं दीदी की चूत चूस कर एक मादक नशे में खोता जा रहा था.
कुछ देर में दीदी की चूत के अंदर वाले लिप्स में हरकत होने लगी और चूत से लिसलिसा पानी निकलने लगा, और दीदी की चूत पनियाने लगी. मैने थोड़ा उपर की तरफ देखा तो दीदी ज़ोर ज़ोर से साँसें ले रही थी, उसने अपने हाथ अभी भी अपने चेहरे पर रखे हुए थे, लेकिन इतनी दूरी के साथ के उसको साँस लेने में कोई परेशानी ना हो.
तभी यकायक ज़ोर दार बिजली कडकी, मैं डॉली दीदी के और थोड़ा पास आ गया. दीदी ने अपना सिर उठा के मेरी तरफ देखा, और जैसे ही मैं उनके उपर झूका, दीदी ने अपने घूटने मोड़ कर उपर कर लिए. मेरा लंड तो अब तक खड़ा होकर फूँकार मारने लगा था, जैसे ही उठकर थोड़ा उपर हुआ, दीदी ने अपनी गीली बाहें मेरी पीठ के गिर्द लपेट ली, मेरे लंड ने दीदी की दहक्ति चूत को छूआ और बड़े आराम से जगह बनाते हुए अंदर घुस गया. दीदी ने एक ज़ोर से साँस बाहर की तरफ मेरे कान के उपर छोड़ी, और अपनी टाँगें मेरी गान्ड के चारों तरफ़ लपेट ली, मैं अपने लंड को दीदी की चूत के अंदर बाहर करने लगा. मेरे मूँह से अपने आप तरह तरह की आवाज़ें निकलने लगी, दीदी भी अब हाँफने लगी थी, हम दोनो के भीगे हुए शरीर अब एक हो रहे थे.
हम दोनो आलंगंबध होकर चुंबन ले रहे थे, और मेरे सिर में बारिस का जमा हुआ पानी मेरे गालों और थोड़ी पर से होता हुआ दीदी के मूँह पर गिर रहा था. जिस प्रकार हम कस के आलिंगंबध थे, दीदी की चूंचियाँ मेरी छाती से फिसल फिसलकर दब रही थी. दीदी ने अपनी गान्ड उठाकर मेरे लंड को ज़्यादा से ज़्यादा अपने अंदर ले जाने का प्रयास किया.
दीदी की हाथों की उंगलियाँ अब मेरी पीठ में ज़ोर से दबाव डाल के गढ़ रही थी, दीदी के मूँह से आहें और कराहने की आवाज़ें अब चरम पर पहुँच चुकी थी, तभी दीदी ज़ोर से झटका मारते हुए झड गयी, और उनकी चूत ने ढेर सारा पानी छोड़ दिया. दीदी के चेहरे पर अब भी मेरे बालों में से पानी गिर रहा था, लेकिन दीदी को इस चीज़ की कोई परवाह नही थी, वो ज़ोर ज़ोर से काँप रही थी, और दीदी का चेहरा लाल पड़ गया था. दीदी ने एक ज़ोर की आहह की आवाज़ निकालते हुए मुझे ज़ोर से अपनी टाँगों के बीच जकड लिया, दीदी की गान्ड अपने आप उछलने लगी, और अपने आप मेरे लंड को ज़ोर से कभी अंदर और कभी बाहर करने लगी. लंड दीदी की चूत के अंतिम छोर तक पहुँच कर किसी मुलायम चीज़ से टकराने लगा था, और मुझे भी अब अपने उपर काबू रखना मुश्किल हो रहा था. जैसे ही दीदी की चूत ने मेरे लंड को निचोड़ना बंद किया, मैने अपने लंड को बाहर निकाल लिया. दीदी मेरी गर्दन पर प्यार से हाथ फेरने लगी, और तभी मैने गुर्राते हुए अपने लंड से वीर्य की पिचकारी छोड़ दी जो दीदी की गान्ड के छेद और चारपाई पर गिरी.
बारिश अब थोड़ा धीरे हो चुकी थी, और मैं अपनी नंगी दीदी के उपर उनको अपनी बाहों में लेकर उनके उपर नंगा लेटा हुआ था, हम ऐसे ही एक दूसरे को तब तक सहलाते रहे जब तक बारिश पूरी तरह से थम नही गयी. जैसे ही मैं दीदी के उपर से उठा, दीदी ने अपनी आँखों पर आए पानी को सॉफ किया, और फिर अपने चेहरे को अपने हाथो से पोंच्छा, मैने अपना हाथ बढ़ाकर दीदी को उठाने में मदद की. कुछ देर हम ऐसे ही चारपाई पर बैठे रहे, और दूर तक फैली मूँग की दाल और गन्ने की खेती की हरियाली को देखते रहे.
कुछ देर बाद हमने अपने हाथों से एक दूसरे के उपर जमा पानी को हाथो से सॉफ करने का प्रयास किया, जिस से हम ज़्यादा से ज़्यादा सूख सके, और फिर कुछ देर हवा में अपने आप को सुखाया, और फिर अपने अपने कपड़े पहन लिए. दूर सड़क पर खड़ी कार तक आने में हालत खराब हो गयी, क्योंकि हम दोनो ही काफ़ी थक चुके थे, और कार की तरफ चलते हुए, हर कदम पर हम एक दूसरे का हौंसला बढ़ा रहे थे....
दीदी और धीरज की मँगनी बड़ी धूम धाम के साथ शहर के सबसे अच्छे 5 स्टार होटेल में हुई. तान्या और उसके मम्मी पापा भी शादी की सारी तय्यारियों में हमारा भरपूर सहयोग कर रहे थे. अब शादी को बस 2 महीने बचे थे, पापा और मैं इन्विटेशन कार्ड्स बाँटनें, होटेल के अरेंज्मेंट्स, और इवेंट मॅनेजर के साथ मीटिंग्स में बहुत बिज़ी हो गये थे.
दीदी और धीरज अब अक्सर मिलने जुलने लगे थे और मम्मी पापा की पर्मिशन लेकर कई बार मूवीस देखने भी जाते थे. मँगनी की रसम के 1 हफ्ते बाद मुझे लगने लगा था, कि शायद वो दोनो सेक्स भी करते हैं, क्यों कि एक दिन मैने दीदी के रूम में एक यूज़्ड कॉंडम देखा था. एक दिन मैने उन दोनो को सेक्स करते हुए देखने का प्लान बनाया. एक दिन मम्मी पापा एक पार्टी में जा रहे थे, और वो देर रात को लौटने वाले थे. मैने उनसे अपने फ्रेंड के यहाँ कंबाइंड स्टडी के लिए रुकने की पर्मिशन ले ली, हालाँकि मैं जाने वाला नही था. जैसे ही मम्मी पापा पार्टी के लिए गये, मैने दीदी को बोला कि मैं भी जा रहा हूँ. दीदी मुझे जल्दी से जल्दी विदा करना चाहती थी, क्यों कि उसने धीरज को बुलाया हुआ था. मैं आगे वाले दरवाजे से बाहर निकल के, पीछे वाले (जिसको मैं पहले ही खोल गया था) से घुस के नीचे अंडरग्राउंड वाले स्टोर रूम में छुप के बैठ गया.
एक घंटे मैं वहीं पर छुपा रहा, तब मुझे धीरज के आने के आवाज़ सुनाई दी. मुझे मालूम था कि वो दोनो इतने ज़्यादा बेकरार होंगे कि बिना ज़्यादा देर किए वो ड्रॉयिंग रूम में ही चालू हो जाएँगे. मैं धीरे से उपर आया और ड्रॉयिंग हॉल से बेसमेंट में जाने के लिए बने डोर के पीछे छुप कर सब कुछ देखने लगा. जो कुछ मैने देखा वो अविश्वशनीय था, मानो कोई पॉर्न मूवी चल रही हो.
बस कुछ सेकेंड्स के बाद मुझे सब समझ में आ गया, और मैं सॉफ सॉफ देखने लगा. धीरज ड्रॉयिंग रूम के बींचो बीच नंगा खड़ा हुआ था, उसका लंड खड़ा था और उसका लंड भी काफ़ी बड़ा था. डॉली दीदी उसके सामने खड़े होकर उसको सम्मोहित करते हुए अपने एक एक करके कपड़े उतार रही थी. दीदी को एक एक करके कपड़े उतारते देख मेरा लंड खड़ा होने लगा. दीदी ने पहले अपनी टी-शर्ट उतारी और फिर धीरे धीरे अपनी ब्रा के हुक को पीछे से खोल के, पहले अपनी एक चून्चि दिखाई और फिर दूसरी, और एक बार फिर से दोनो को ढक लिया. फिर पीछे दूसरी तरफ घूम के ब्रा को नीचे गिरा दिया. मैं साइड से दीदी की चूंचियों के उपर खड़े हो चुके निपल्स को देख पा रहा था. मेरा लंड अब जीन्स के अंदर परेशान करने लगा था, इसलिए मैने जीन्स का बटन और ज़िप खोल के उसको थोड़ी आज़ादी दी.
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