RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
रिंकी और मेरी रासलीला की भूमिका
वो मेरे कमरे के दरवाज़े तक आई और धीरे से मुझसे कहने लगी, "मैं बस थोड़ी देर में चली आऊँगी। तुम कब तक वापस आओगे?" मुझे पता था कि वो मेरे बारे में नहीं बल्कि राजेश के बारे में जानना चाहती थी। उसे पता था कि मैं राजेश के साथ बाज़ार जा रहा हूँ और फिर उसके साथ ही वापस आऊँगा...और फिर उन दोनों की अधूरी कहानी पूरी हो जायेगी। पता नहीं मुझे क्या हुआ लेकिन मैंने उसे यह नहीं बताया कि राजेश के मामा जी का एक्सीडेंट हुआ है और वो आजमगढ़ चला गया है। मैंने बस मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखा और एक कुटिल मुस्कान के साथ कहा,"हम भी जल्दी ही वापस आ जायेंगे।"
मेरी कुटिल मुस्कान के जवाब में उसने भी एक स्माइल दी और अपना सर झुका कर तेज़ क़दमों से चल कर बाहर निकल गई।
मैं अपने कमरे में अकेला यह सोचने लगा कि अब मैं क्या करूँ। राजेश था नहीं इसलिए बाहर जाने का दिल नहीं था। मैंने अपना कंप्यूटर चालू किया और लगा सेक्सी फ़िल्में देखने। लेकिन न जाने क्यों हमेशा से अलग आज सेक्सी फ़िल्में देखने में मेरा मन नहीं लग रहा था, बार बार रिंकी का चेहरा नजरों के सामनें से घुम जाता था, जैसे उसके लौट आनें का मुझे बेसब्री से इन्तजार हो। मैने कंप्यूटर बन्द किया और पहली मंजिल पर नीचे उतर आया और हाँल में सोफे पर बैठ कर टीवी आन कर लिया। अब मुझे समझ में आ रहा था कि क्यो राजेश को मुठ मारने और कंप्यूटर पर ब्लू फिल्में देखने में बिल्कुल भी दिलचस्पी नही थी। ये सब तो नकली मजा था। ये तो असली की परछाईं बराबर भी नही था तो राजेश को इसमें भला कैसै रूचि आती?
लगभग एक घंटे के बाद नीचे गेट पे किसी के आने की आहट हुई। मैंने बाहर निकल कर हाँल की बालकनी से नीचे झाँका तो पाया कि रिंकी अपने हाथों में कुछ किताबें और एक हाथ में एक छोटी सी पोलीथिन लटकाए घर के अन्दर दाखिल हुई। मैं तुरन्त वापस लौट कर फिर से सोफे पर बैठ गया और उसके उपर आनें का इन्तजार करनें लगा। जैसे ही उसनें हाँल का दरवाजा खोला सामनें मुझे वहाँ सोफे पर बैठा देख कर वह चौक गई और हड़बड़ाहट में उसके हाथों मे से पोलीथिन और किताबें छूट कर नीचे गिर पड़ी और पोलीथिन में रखी एक बड़ी सी ट्यूब छिटक कर बाहर आ गई। और इससे पहले कि वह नीचे झूक कर ट्यूब पोलीथिन के अन्दर डालती मेरी पैनी नजर उस पर पड़ चुकी थी और उसे देख कर मैं आवाक रह गया, ट्यूब थी हेयर रिमूवर क्रीम की! टी वी पे कई बार इस क्रीम का एड मैनें देखा था।
मेरी आँखों में एक चमक आ गई, मैं समझ गया कि आज रिंकी रानी अपनी हरी भरी चूत को चिकनी करने वाली है। मैं इस ख्याल से ही सिहर गया और उसकी झांटों भरी चूत को याद करके यह कल्पना करने लगा कि जब उसकी चूत चिकनी होकर सामने आएगी तो क्या नज़ारा होगा। वह कितनी स्मार्ट थी इस बात का पता इससे ही चलता है कि उसे अच्छी तरह याद था कि कल राजेश के उसकी चूत को चूसते समय उसकी चूत के बाल राजेश के मुह में जा रहे थे जिससे आज उसकी सफाई करना उसनें जरूरी समझा।
रिंकी ने मुझे अपनी ओर घूरते देख कर सवालिया निगाहों से कुछ पूछना चाहा पर कोई शब्द उसके मुँह से बाहर नहीं आये और वो मुस्कुराते हुए अपने कमरे की ओर बढ़ गई। शायद वो सोच रही थी कि यहाँ बैठा मैं राजेश का ही इन्तजार कर रहा हूँ और राजेश बस आने ही वाला है। और बस थोड़ी देर में उसकी रास लीला चालू हो जाएगी। लेकिन उसे क्या पता था कि आज तो उसका यार शहर में था ही नहीं।
कल रात के पहले वाले सोनू में और कल रात के बाद वाले सोनू में जमीन आसमान का अन्तर आ चुका था। एक तो कल रात पहली बार भूखे शेर के मुँह को आदमी का खुन लग चुका था और दूसरे मैं और रिंकी दोनों एक दूसरे का राज़ जानते थे। सो मेरे मन में न आज कोई डर था और न ही कोई झिझक।
तभी अचानक मेरे दिमाग में एक शैतानी भरा ख्याल आने लगा और मैंने पूरी प्लानिंग तैयार ली। मैंने ठान लिया कि आज राजेश की कमी मैं पूरी करूँगा और फिर जो होगा देखा जायेगा। जब मन में कोई डर न हो तो दिमाग भी तेजी से काम करने लगता है। मैं अभी इसी ख्याल में डूबा हुआ था कि न जाने कब से मेरे मिठ्ठू मियाँ अपना सर उठाने लगे थे।
मुझे पता था कि रिंकी सीधा अपने बाथरूम में घुसेगी और अपनी चूत की सफाई करेगी। इन सब में उसे कम से कम आधा घंटा तो लगना ही था। मैंने भी जल्दी नहीं की। आराम से वक़्त बीतने का इंतज़ार करता रहा और हाँल की बालकनी में आ कर टहलने लगा। थोड़ी देर में रिंकी अपने बेडरूम की बालकनी के किनारे पर आई जो हाँल की बालकनी से साफ़ नजर आता था। अब तक उसने अपने कपड़े बदल लिए थे और एक हल्के गुलाबी रंग का टॉप पहन लिया था। बालकनी की दीवार की वजह से नीचे का कुछ दिख नहीं रहा था इसलिए समझ में नहीं आया कि नीचे क्या पहना है।
खैर, उसे देखकर मैं समझ गया कि उसने अपना काम पूरा कर लिया है और अब वो अपने प्रीतम का इंतज़ार कर रही है। थोड़ी देर वहाँ खड़े रहने के बाद वो अन्दर चली गई। अब मैंने अपने धड़कते दिल को संभाला और हिम्मत जुटा कर फिर से सोफे पर आकर बैठ गया और टीवी पर चल रही फिल्म देखने लगा। मेरे मन में ये ख्याल चल रहे थे कि किस तरह से इस मौके का फायदा उठाया जाए। मुझे इतना तो विश्वास था कि आज रिंकी पूरी तरह से मानसिक रूप से चुदाई के लिए तैयार है। बस उसे थोड़ा सा उत्तेजित करने की जरुरत है, फिर तो वो अपनी टाँगें फैला कर अपने दीवाने खास का गुप्त द्वार खोल, मेरे नवाब का स्वागत करने को खुद ब खुद उतावली हो जायेगी ।
थोड़ी देर में रिंकी अपने कमरे से बाहर निकली और मै अभी भी वहीं सोफे पर बैठा टी वी पर फिल्म देख रहा था। मुझे देख कर उसने स्माइल दी और हाँल में चारो ओर देखने लगी। उसे लगा राजेश शायद आ गया होगा। लेकिन किसी को न देख कर उसका चेहरा थोड़ा सा उदास हो गया।
“आओ, रिंकी...बैठो” मैनें उसे पास बुलाते हुये कहा।
“कुछ काम था क्या?" बनते हुये बड़े भोलेपन से उसनें मुझ से पूछा।
"हाँ, तुमको एक सन्देश देना था" मैंने मुस्कुराते हुए कहा और वह प्रश्न भरी निगाहों से सोफे पे आकर बैठ गई। हम दोनों बड़े से सोफे के अलग अलग किनारों पर एक दूसरे की तरफ मुँह कर बैठ गए। मैं गौर से रिंकी की आँखों में देख रहा था और मुस्कुरा रहा था। रिंकी भी एकटक मुझे देखे जा रही थी फिर उसने चुप्पी तोड़ी,"हाँ बोलो, कुछ बोलने वाले थे न तुम...?"
"हाँ, असल में तुम्हारे लिए अच्छी खबर नहीं है। राजेश का अभी थोड़ी देर पहले ही फोन आया है कि उसको अचानक किसी जरुरी काम से आजमगढ़ जाना पड़ रहा है इसलिए वो आज नहीं आ सकता।" मैंने राजेश के नाम पर थोड़ा जोर देकर उसे छेड़ते हुये कहा। रिंकी मेरी इस हरकत से थोड़ा शरमा गई और राजेश के बाहर जाने की बात सुन कर उदास हो गई। उसका उदास चेहरा देख कर साफ लग रहा था कि इस समाचार नें मानों उसकी कल की अधूरी प्यास पर तुषारापात कर दिया हो, उसकी कामाग्नि पर एक साथ सैकड़ों घड़े पानी डाल दिया हो।
"अरे चिंता मत करो, मैं हूँ ना!! तुम्हें बोर नहीं होने दूँगा।" इतना कह उसे ढाढ़स बंधाते हुए मैं थोड़ा सा सरक कर उसके करीब चला गया। अब हमारे बीच महज कुछ इंच का ही फासला रह गया था।
कुछ रूक कर फिर मैंने उसे दुबारा छेड़ने के अंदाज में कहा "वैसे आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो।"
"क्यूँ, आज से पहले कभी नहीं लगी क्या?" रिंकी ने अपनी तारीफ सुनकर थोड़ा सा लजाते हुए मुझे उलाहना देने के अंदाज में पूछा।
"ऐसी बात नहीं है, असल में आज से पहले कभी तुम्हें इतने गौर से देखा ही नहीं था लेकिन आज तो तुम्हारे ऊपर से नज़र ही नहीं हट रही है।" मैंने एक लम्बी सांस लेते हुए उसकी आँखों में बिना पलकें झपकाए झाँकने लगा।
"हाँ जी...आपको फुर्सत ही कहाँ है जो आप हमारी तरफ देखोगे। तुम्हारी आँखें तो आजकल किसी और को देखती रहती हैं।" रिंकी ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा।
"यह क्या बात हुई, मैंने कभी किसी को नहीं देखा यार...मेरे पास इतना वक़्त ही कहाँ है।" मैंने जवाब दिया।
"अब बनो मत...मेरे पास भी आँखें हैं और मुझे भी सब दिखता है कि आजकल साहब कहाँ बिजी रहते हैं..." रिंकी ने शिकायत भरे अंदाज में कहा। मैं समझ गया कि वो बीती रात की बात कर रही है। थोड़ी देर के लिए मैं चुप सा हो गया लेकिन उसकी तरफ देखता ही रहा।
"बड़े थके थके से लग रहे हो, रात भर सोये नहीं क्या?" रिंकी ने मेरी आँखों में घूरते हुए पूछा।
"मेरी छोड़ो, तुम अपनी बताओ...लगता है तुम्हें रात भर नींद नहीं आई...शायद किसी का इंतज़ार करते करते बेचैन हो रही होगी रात भर, है न?" मैंने उल्टा उसके ऊपर ही सवाल दाग दिया।
उसने मेरी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए एक ठण्डी सांस भरी..."अपनी आँखों के सामने वो सब होता देख कर किसे नींद आएगी।"
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