RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
उसकी इस हरकत पर मैं हस पड़ा और अपन दरवाज़ा बंद कर लिया। इस जोश भरे खेल के बाद मैं थक चुका था और आंटी के देखने वाली बात से थोड़ा डर भी गया था।
मैंने लाइट बंद की और कंप्यूटर भी बंद करके अपने बिस्तर पर गिर पड़ा। डर की वजह से नींद तो आ नहीं रही थी लेकिन फिर भी मैंने अपनी आँखें बंद की और सुबह होने वाले ड्रामे के बारे में सोचते सोचते सो गया...।
मेरी प्रातः पूजा और मेरे मन का चोर
सुबह जल्दी ही मेरी आँख खुल गई। बहुत फ्रेश फील कर रहा था मैं। शायद कल रात के हुए उस हसीन खेल का असर था जिसका अनुभव अपने जीवन में, भले अभी अधूरा ही सही पर इतना भी मैंने पहली बार किया था। बिस्तर पे लेटे-लेटे ही मेरी आँखों के सामने वो हर एक पल नज़र आने लगा। मैं मुस्कुरा उठा और फिर अपने बाथरूम की तरफ चल पड़ा।
घर में सब कुछ सामान्य था। सब लोग अपने अपने काम में लगे हुए थे। मैं नहा धोकर अपने रूटीन के अनुसार छत पर पूजा करने और सूरज देवता को जल अर्पित करने गया। यह मेरा रोज़ का काम था। छत पर स्मिता आंटी कपड़े डालने आई हुईं थीं। उन्हें देखते ही मेरी साँसे रूक गई और मुझे वो दृश्य याद आ गया जब मेरे और प्रिया के खेल को किसी ने मेरे कमरे की सीढ़ियों वाली खिड़की से देखा था।
मुझे पूरी पूरी आशंका इसी बात की थी कि वो आंटी ही थीं क्यूंकि मुझे पायल की आवाज़ सुनाई दी थी और सीढ़ियों से ऊपर चढ़ने की आवाज़ भी आई थी।
मेरे अन्दर का डर जो अब तक कहीं गुम था अचानक से सामने आ गया और मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा, मुझे लगा कि अब तो मैं गया और आंटी मेरी अच्छी खबर लेंगी।
मैं डरते डरते आगे बढ़ा और अपने हाथ के लोटे से सूरज को जल अर्पित करने लगा, यकीन मानिए कि मेरे हाथ इतने काँप रहे थे कि मेरे लोटे से जल गिर ही नहीं रहा था। जैसे तैसे मैंने पूजा पूरी की और वापस मुड़ कर जाने लगा। तब तक आंटी ने सारे कपड़े सूखने के लिए डाल दिए थे।
कपड़े धोने और सुखाने के क्रम में स्मिता आंटी की साड़ी नीचे से थोड़ी गीली हो गई थी जिसे उन्होंने अपने हाथों से निचोड़ने के लिए हल्का सा ऊपर उठाया और अपने हाथों में लेकर निचोड़ने लगी। मेरा ध्यान सीधे उनके पैरों पर गया। और यह क्या?
मैं तो जैसे स्तब्ध रह गया। स्मिता आंटी के पैर तो बिल्कुल खाली पड़े थे। मतलब उनके पैरों में तो पायल थी ही नहीं। मैं चौंक कर एकटक उनकी तरफ देखने लगा। मेरा दिमाग जल्दी जल्दी न जाने क्या क्या कयास लगाने लगा। मैं कुछ भी नहीं समझ पा रहा था। तभी आंटी ने मेरी ओर देख कर एक हल्की सी स्माइल दी जैसा कि वो हमेशा करती थीं और अपनी साड़ी ठीक करके नीचे उतर गईं। मैं उसी अवस्था में छत की रेलिंग पर बैठ गया और सोचने लगा कि अगर रात को आंटी नहीं थीं तो और कौन हो सकता है? वो भी पायल पहने हुए!
मैं चाह कर भी किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पा रहा था। हार कर मैं नीचे उतर गया और अपने कमरे में जाकर थोड़ी देर के लिए टेबल पे बैठकर अनमने ढंग से कंप्यूटर ऑन करके सोच में पड़ गया।
एक तरफ मैं खुश था कि चलो आंटी से बच गया पर फिर सवाल था कि आखिर वो कौन हो सकती थी। तभी नेहा दीदी ने मुझे आवाज़ लगाई और सुबह के नाश्ते के लिए ऊपर चलने को कहा। मैंने अपना कंप्यूटर बंद किया और उनके साथ ऊपर चला गया। आंटी किचन में थीं और रिंकी उनके साथ उनकी मदद में लगी हुई थी। मैं और नेहा दीदी खाने की मेज पर बैठ गए। मेरी नज़रें प्रिया को ढूंढ रही थीं। पता चला कि वो बाथरूम में है और नहा रही है।
मैं वापस अपनी उलझन में खो गया और उसी बात के बारे में सोचने लगा। अचानक से मेरे कानों में वही आवाज़ पड़ी... वही पायल की आवाज़ जो कल रात सुनी थी। मैंने हड़बड़ा कर अपना ध्यान उस आवाज़ की तरफ लगाया और मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। रिंकी अपने हाथों में नाश्ते का प्लेट लेकर हमारी तरफ आ रही थी और उसके कदमों की हर आहट के साथ उसी पायल की आवाज़ आ रही थी। मेरी नज़र सीधे उसके पैरों की तरफ चली गई और मेरी आँखों के सामने उसके पैरों में बल खाते पायल नज़र आने लगे ।
थोड़ी देर के लिए तो मैं बिल्कुल जम सा गया...तो वो आंटी नहीं रिंकी थी जिसने कल हमारा खेल देखा था।
हे भगवन...यह क्या खेल खेल रहा था ऊपर वाला मेरे साथ...!!! रिंकी की आँखें मेरी आँखों में ही थीं और उसकी आँखों में एक चमक थी और कुछ चुहलपन भी था। कुछ न कहते हुए भी उसकी आँखों ने मुझसे सब कुछ कह दिया था। मैंने अपनी नज़रे घुमा लीं और सहसा मेरे अधरों पे एक मुस्कान उभर आई। मैंने फिर से अपनी नज़र उठाई तो पाया कि रिंकी नेहा दीदी के बगल में बैठ कर मुझे देखकर मुस्कुराये जा रही थी।
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