RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
प्रिया और उसकी पहली असली पढ़ाई
"चलो भैया, खाना तैयार है। सब आपका इंतज़ार कर रहे हैं।" प्रिया ने मेरी तरफ देख कर कहा। मैं उससे नज़रें मिलाना नहीं चाहता था लेकिन जब उसकी तरफ देखा तो मेरी नज़र अटक गई।
प्रिया ने आज एक बड़े गले का टॉप और एक छोटी सी स्कर्ट पहन रखी थी। उसकी चिकनी जांघें कमरे की रोशनी में चमक रही थी। मेरा मन डोल गया। उसके सीने की तरफ मेरी नज़र गई तो मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा। बड़े से गले वाले टॉप में उसकी चूचियों की घाटी का हल्का सा नज़ारा दिख रहा था। सच कहूँ तो ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसकी चूचियाँ अचानक से दो इन्च और बड़ी हो गई हों। मेरी तो आँखें ही अटक गई थीं उन पर। मैंने सोचा था कि जब प्रिया मेरे सामने आएगी तो मैं उससे पूछूँगा कि उसने कहीं दोपहर वाली बात अपनी माँ से तो नहीं बता दी। लेकिन मैं तो किसी और ही दुनिया में था।
"क्या हुआ, खाना नहीं खाना है क्या? तबीयत तो ठीक है ना?"
प्रिया की खनकती आवाज़ ने मेरा ध्यान तोड़ा और मैंने उसे अन्दर आने को कहा। प्रिया ने मेरी तरफ प्रश्नवाचक नज़रों से देखा, शायद उसे मेरा अन्दर बुलाना अजीब सा लगा हो या फिर हो सकता है उसे दोपहर वाली घटना याद आ गई हो।
वो दरवाज़े पर ही खड़ी रही। मैंने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ा और उसे अन्दर खींचा। उसका हाथ बिल्कुल ठंडा था, शायद डर की वजह से।
उसने डरते डरते पूछा, "क.. क.. क्या बात है सोनू भैया??"
"एक बात बताओ, जब मैंने तुम्हें मना किया था तो फिर भी तुमने आंटी को सब कुछ बता क्यूँ दिया?" मैंने रोनी सी सूरत बनाकर पूछा।
"आपको ऐसा लगता है कि मैंने माँ से कुछ कहा होगा?" प्रिया ने एक चिढ़ाने वाली हंसी के साथ मेरी आँखों में देखते हुए मुझसे ही सवाल कर दिया।
"मुझे नहीं पता, लेकिन जिस तरह से आंटी ने मुझसे मेरी तबीयत के बारे में पूछा तो मुझे लगा जैसे तुमने सब बता दिया है।"...मैंने असमंजस की स्थिति व्यक्त करते हुए कहा।
"ये सब बातें सबसे नहीं की जातीं मेरे बुद्धू भैया...और हाँ, आगे से जब तुम्हें ऐसा कुछ करना हो तो कम से कम दरवाज़ा तो बंद कर लिया करो।"
प्रिया की बात सुनकर मेरे कान खड़े हो गए और आश्चर्य से मेरी आँखें बड़ी हो गई। यह क्या कह रही है...इसका मतलब इसे सब पता है इन सबके बारे में...हे भगवन!!
मैं एकटक उसकी तरफ देखता रह गया...
"अब उठो और चलो, वरना खाना ठंडा हो जायेगा। खाना गर्म हो तो ही खाने का मज़ा है।" प्रिया ने मेरा हाथ पकड़कर मुझे उठाने की कोशिश की।
मैं आश्चर्यचकित हो गया था उसकी बातें सुनकर। मैंने सोचा भी नहीं था कि जिसे मैं छोटी बच्ची समझता था वो तो पूरी गुरु है।
"वैसे आपको अपना राज छुपाने के लिए मुझे थोड़ी रिश्वत देनी पड़ेगी।" प्रिया ने चहकते हुए धीरे से मुझसे कहा।
मैं डर गया, पता नहीं वो क्या मांग ले। फिर मैंने सोचा ज्यादा से ज्यादा क्या मांगेगी...मेरा लंड ही न, मैं तो पहले से ही किसी चूत में घुसने के लिए तड़प रहा था।
मैंने जोश में आकर उसका हाथ जोर से पकड़ लिया और पूछा,"क्या चाहिए, तू जो कहेगी मैं देने को तैयार हूँ।"
"अरे डरो मत, मैं ज्यादा कुछ नहीं मांगूगी, बस मेरी थोड़ी सी हेल्प कर देना, मुझे कुछ नोट्स तैयार करने हैं। तुम मेरी मदद कर देना।" उसने शरारत से मेरी ओर देखते हुए कहा।
"ये ले, सोचा चूत और मिली पढाई!" मैंने अपने मन में सोचा...मेरा मूड थोड़ा ख़राब हो गया लेकिन इस बात की तसल्ली हो गई कि वो मेरे मुठ मारने की बात को किसी से नहीं कहेगी। प्रिया को मेरी हालत का अंदाज़ा हो गया था शायद। उसने मुझे फिर से पकड़ा और मुझे लेकर ऊपर जाने लगी।
उसने मेरी बाह पकड़ ली और मुझसे सट कर सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। उसने इस तरह से मेरा बाजू पकड़ा था कि उसकी एक चूची मेरे बाजू से हल्के हल्के रगड़ खा रही थी और हम चुपचाप ऊपर खाने की मेज की तरफ बढ़ चले। ऊपर पहुँचते ही उसने मेरा बाजू छोड़ दिया।
खाने की मेज पर सभी मेरा इंतज़ार कर रहे थे। मेरी दीदी भी वहीं थी। मैंने माहौल को हल्का करने के लिए अपनी दीदी की तरफ देखा और पूछने लगा,"अरे दीदी तुम ऊपर हो और मैं तुम्हे नीचे पूरे घर में खोज रहा था।"
"मैं जल्दी ही ऊपर आ गई थी भाई, नीचे कोई नहीं था इसलिए मैंने ऊपर आना ही सही समझा।" दीदी ने मेरी तरफ देखकर कहा।
मैं जाकर अपनी जगह पर बैठ गया। मेरे बगल वाली कुर्सी पर मेरी दीदी थी। मेरे सामने एक तरफ रिंकी थी और मेरे ठीक सामने प्रिया बैठ गई। आंटी हम सबको खाना परोस रही थी। हमने खाना शुरू किया।
मैं अपना सर नीचे करके खाए जा रहा था, तभी किसी ने मेरे पैरों में ठोकर मारी। मैंने अपना सर उठाया तो सामने देखा की प्रिया मुस्कुरा रही है और जान बूझकर झुक झुक कर अपनी प्लेट से खाना खा रही थी। उसके टॉप के बड़े गले से उसकी आधी चूचियाँ झांक रही थीं। मेरा खाना मेरे गले में ही अटक गया। मैंने एकटक उसकी चूचियों को देखना शुरू किया और वो मुस्कुरा मुस्कुरा कर मुझे अपने स्तनों के दर्शन करवाए जा रही थी।
"क्या हुआ बेटा, रुक क्यूँ गए...खाना अच्छा नहीं है क्या?" आंटी की आवाज़ ने मुझे झकझोरा।
"नहीं आंटी, खाना तो बहुत टेस्टी है...जी कर रहा है खाता ही चला जाऊं...!"
मैंने दोहरे मतलब वाली भाषा में कहते हुए प्रिया की तरफ देखा। उसका चेहरा चमक रहा था मानो मैंने खाने की नहीं उसकी चूचियों की तारीफ की हो। बात सच भी थी, मैंने तो उसकी चूचियों को ही टेस्टी कहा था...लेकिन सहारा खाने का लिया था।
रिंकी जो प्रिया के बगल में बैठी थी, उसकी नज़र अचानक मेरी आँखों की दिशा तलाशने लगे। मेरा ध्यान तब गया जब उसने मुझे प्रिया के सीने पर टकटकी लगाये पाया। मेरी नज़र जब रिंकी के ऊपर गई तब मुझे एहसास हुआ कि मैं कुछ ज्यादा ही कर रहा हूँ और मेरी इस हरकत से बनती हुई बात बिगड़ सकती थी। लेकिन कहीं न कहीं मुझे यह पता था कि अगर रिंकी मुझे प्रिया को चोदते हुए भी देख ले तो कोई दिक्कत नहीं होने वाली थी। आखिर उसे भी पता था कि उसके लिए लंड की व्यवस्था मेरी वजह से ही हुई थी।
मैंने फिर भी अपने आप को सम्हाला और चुपचाप खाना ख़त्म करने लगा। खाना खाते खाते बीच में ही प्रिया बोल पड़ी,"माँ, मुझे आज अपने नोट्स तैयार करने हैं, बहुत जरूरी हैं इसलिए मैंने सोनू भैया से कह दिया है वो मेरी मदद करेंगे। मैं अभी नीचे उनके कमरे में जाकर अपने नोट्स बनाऊँगी।"
प्रिया ने एक ही सांस में अपनी बात कह दी।
"बेटा, तुम्हारे सोनू भैया की तबीयत ठीक नहीं है उसे परेशान मत करो। तुम रिंकी के साथ बैठ कर अपना काम पूरा कर लो।" आंटी ने प्रिया को रोकते हुए कहा।
मैं एक बार प्रिया की तरफ देख रहा था तो दूसरी तरफ आंटी को। समझ में नहीं आ रहा था कि किसे रोकूँ और किसे हाँ करूँ...एक तरफ प्रिया थी जिसने मुझे अपनी बातों और अपनी हरकतों से झकझोर कर रख दिया था और दूसरी तरफ आंटी थी जिन्हें मेरी तबीयत की फ़िक्र हो रही थी। मैं खुद भी थका थका सा महसूस कर रहा था और यह सोच रहा था कि खाना खाकर सीधा अपने बिस्तर पर गिर पडूंगा और सो जाऊँगा...।
मेरे दिमाग में आने वाले कल की प्लानिंग चल रही थी जहाँ मुझे रिंकी और राजेश की चुदाई का सीधा प्रसारण देखना था। लेकिन प्रिया के बारे में ख्याल आया तो दोपहर का वो वाक्य याद आ गया जब प्रिया ने मेरे खड़े नन्दगोपाल को देखा था और मैंने उसकी चूचियों की गोलाइयाँ नापी थीं।
मेरे बदन में एक झुझुरी सी हुई और मेरा मन यह सोच कर उत्साह से भर गया कि आज हो न हो, मुझे प्रिया की अनछुई चूत का स्वाद चखने को मिल सकता है...
यह ख्याल आते ही मैंने अपनी चुप्पी तोड़ी,"आंटी, आप चिंता न करें, मेरी तबीयत ठीक है और मैं प्रिया की मदद कर दूँगा... मैं ठीक हूँ, आप खामख्वाह ही चिंता कर रही हैं।" मैंने बड़े ही इत्मीनान से अपनी बात कही।
मैं नहीं चाहता था कि मेरी उत्सुकता किसी को दिखे और मुझ पर किसी को शक हो।
"ठीक है बेटा, जैसा तुम ठीक समझो!" आंटी ने मुस्कुरा कर कहा।
"और प्रिया, तुम भैया को ज्यादा परेशान मत करना। जल्दी ही अपना काम ख़त्म कर लेना और ऊपर आकर सो जाना।" आंटी ने प्रिया को हिदायत दी।
"ठीक है माँ, आप चिंता न करें। मैं आपके सोनू बेटे का ख्याल रखूँगी और उन्हें ज्यादा नहीं सताऊँगी।" प्रिया ने ठिठोली करते हुए कहा और उसकी बात पर हम सब हंस पड़े।
हम सबने अपना अपना खाना खत्म किया और अपने अपने कमरे की तरफ चल पड़े। रिंकी और नेहा दीदी उनके कमरे में चले गए। आंटी किचन का बिखरा हुआ सामान समेटने में लग गईं। प्रिया भी अपने कमरे में चली गई अपने नोट्स और किताबें लेने के लिए। मैं नीचे अपने कमरे में आ गया और कंप्यूटर पर बैठ कर मेल चेक करने लगा।
मेल चेक करने के साथ साथ मैंने एक दूसरी विंडो में अपनी फेवरेट पोर्न साईट खोल ली। मैं कुछ चुनिन्दा पोर्न साइट्स का दीवाना था और आज भी हूँ। जब तक एक बार उन साइट्स को चेक न कर लूँ मुझे नींद ही नहीं आती।
थोड़ी देर के बाद मुझे किसी के कदमों की आहट सुनाई दी। मैंने कंप्यूटर पर विंडो बदल दिया और फ़िर से मेल देखने लगा। मुझे लगा था कि प्रिया अपनी किताबें लेकर आई होगी लेकिन मुझे पायल के छनकने की आवाज़ सुनाई दी।
मेरे दिमाग ने झटका खाया और मुझे याद आया कि ये स्मिता आंटी हैं, क्यूंकि एक वो ही थीं जो पायल पहनती थीं। वैसा ही हुआ और आंटी मेरे कमरे में दूध के दो गिलास लेकर दाखिल हुई। उन्होंने मेरी तरफ प्यार भरी नज़रों से देखा और मेरे मेज पर ग्लास रख दिया। फिर उन्होंने मेरे माथे पर हाथ रखते हुए कहा,"ये तुम दोनों के लिए है, पी लेना और आराम करना, तुम्हारी तबीयत ठीक हो जाएगी। तुम्हारे वाले दूध में हल्दी भी मिला दी है, तुम्हें पिछले कुछ दिनों से कमजोरी सी महसूस हो रही है न, इसे पीकर तुम्हारे अन्दर ताक़त आ जाएगी और तुम्हें अच्छा लगेगा।" आंटी के जाते ही मैनें राहत की सांस ली और अपने आप से कहा इस बार बच गये बच्चू वर्ना पता नहीं क्या होता।
सच कहूँ तो मैं पूरी तरह से असमंजस में था, क्या करूँ क्या न करूँ। मैंने एक गहरी सांस ली और अपने कंप्यूटर पर वापस पोर्न साईट देखने लगा। मैं अपनी धुन में पोर्न विडियो देख रहा था और अपने लंड को पैंट के ऊपर से ही सहला रहा था। मैं इतना ध्यान मग्न था कि मुझे पता ही नहीं चला की कब प्रिया मेरे कमरे में आ चुकी थी और मेरे बगल में खड़े होकर कंप्यूटर पर अपनी आँखें गड़ाए हुए चुदाई की फिल्म देख रही थी।
उसकी तेज़ सांस की आवाज़ ने मेरी तन्द्रा तोड़ी और मैंने बगल में देखा तो प्रिया फिर से उसी हालत में थी जैसे उसकी हालत दोपहर में मुझे मुठ मारते हुए देख कर हुई थी।
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