RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
स्मिता आंटी द्वारा मेरी चोरी का पकड़ा जाना
अचानक मेरे कमरे का दरवाज़ा खुला और कोई मेरे पीछे आकार खड़ा हो गया। मेरी तो जान ही सूख गई, ये स्मिता आंटी थीं। मैंने झट से अपना मॉनीटर बंद कर दिया। आंटी ने मेरी तरफ देखा और अपने चेहरे पर ऐसे भाव ले आईं जैसे उन्होंने मेरा बहुत बड़ा अपराध पकड़ लिया हो। मेरी तो शर्म से गर्दन ही झुक गई और मैं पसीना पसीना हो गया था। आंटी ने कुछ कहा नहीं और मिठाई की खाली प्लेट लेकर चली गईं।
अब तक मैं पसीने से पूरी तरह नहा चुका था, चुपचाप उठा और अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया और सोचने लगा कि इस नये परिवार के आने से जहाँ एक ओर मेरी आजादी खत्म हो रही थी वहीं दूसरी ओर बदनामी का खतरा भी मडँराने लगा था। ऐसा सब मेरी जिन्दगी में पहली बार हो रहा था। आज तक कभी मेरी कोई चोरी पकड़ी नही गई थी। इस परिवार के आने से पहले इस तरह अचानक मेरे कमरे में कभी कोई नही घुस आता था यहाँ तक कि नेहा दीदी और मम्मी-पापा भी नही। अब तक अपने जिस मकान के इतने बड़े होनें का मुझे गर्व होता था वही मकान आज बहुत छोटा नजर आ रहा था। इसी उधेड़बुन में कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।
सुबह जब मुझे नाश्ते के लिए बुलाया गया तो मैंने मना कर दिया और कह दिया कि मेरी तबियत ठीक नहीं है और मेरा मन भी नहीं है। मैं ऐसे ही बिस्तर पर पड़ा था कि थोड़ी देर में ही मुझे अपने कमरे में किसी के आने की आहट सुनाई दी, मैनें नजर उठा कर देखा तो आंटी अपने हाथों में नाश्ते की ट्रे लेकर सामने खड़ी थीं। उन्हें देखकर मेरी घबराहट फिर से बढ़ गई और मैं सोचने लगा कि नाश्ता तो शायद बहाना है, हो न हो आंटी रात वाले टॉपिक पर ही बात करनें आई हैं। मैं चुपचाप अपने बिस्तर पर कोहनियों के सहारे बैठ गया। आंटी आईं और मेरे सर पर अपना हाथ रखकर बुखार चेक करने लगी “बुखार तो नहीं है, फिर तुम खा क्यूँ नहीं रहे हो। चलो जल्दी से फ्रेश हो जाओ और नाश्ता कर लो”।
हाँलाकि आंटी का बर्ताव बिल्कुल सामान्य था, लेकिन मेरे मन में तो अब भी उथल पुथल थी और आंटी कुछ बोलें उसके पहले मैनें ही माफी माँग लेना ज्यादा ठीक समझा। मैंने अचानक से आंटी का हाथ पकड़ा और उनकी तरफ विनती भरी नजरों से देखकर कहा, "आंटी, मैं कल रात के लिए बहुत शर्मिंदा हूँ। आप गुस्सा तो नहीं हो न। मैं वादा करता हूँ कि दुबारा ऐसा नहीं होगा।" मैंने अपनी सूरत ऐसी बना ली जैसे अभी रो पड़ूँगा।
आंटी ने मेरे हाथ को अपने हाथों से पकड़ा और मेरी आँखों में देखा। उनकी आँखें में कुछ अजीब से भाव थे। लेकिन उस वक्त मेरा दिमाग कुछ भी सोचने समझने की हालत में नहीं था। आंटी ने मेरे माथे को दुलारते हुये चूमा और कहा, “मैं तुमसे नाराज़ या गुस्सा नहीं हूँ लेकिन अगर तुमने नाश्ता नहीं किया तो मैं सच में नाराज़ हो जाऊँगी।”
मेरे लिए यह विश्वास से परे था, मैंने ऐसी उम्मीद नहीं की थी। लेकिन जो भी हुआ उससे मेरे अंदर का डर जाता रहा और मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। आंटी के इस वर्ताव से मेरे मन मे उनके लिये इज्जत बहुत बढ़ गई और अपनापन महसूस होने लगा। पता नहीं मुझे क्या हुआ और मैंने भी एक नटखट नन्हे बच्चे की तरह आंटी के गाल पर एक चुम्मी दे दी और मेरे मुँह से अपने आप निकल पड़ा “आंटी आप बहुत अच्छी हो” और फिर भाग कर मैं बाथरूम में फ्रेश होनें चला गया। मैं फ्रेश होकर बाहर आया, तब तक आंटी जा चुकी थीं। मैंने फटाफट अपना नाश्ता खत्म किया और बिल्कुल तरोताज़ा हो गया।
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