RE: Hindi Porn Kahani फटफटी फिर से चल पड़ी
मेरी गांड फट गई
साला यह क्या चुतियापा हो गया
मैंने फटाक से अपने बाबू राव को खाट से बाहर खिंचा, बाबूराव काकी की मुठ्ठी से सर्र से फिसलता हुआ निकल गया, मैंने लोअर को ऊपर चढ़ाया और खाट पर उठ बैठा
लल्ली काकी चिल्लाई, " अरे भागा भागा, देख बेटा कहां गया"
मैंने अपने घबराहट पर काबू पाया और कहा, "अरे ह...ह.....हाँ..... हाँ ...वो भाग गया"
लल्ली काकी खाट के निचे से बाहर निकली, इस आपधापी में उनका आंचल सरक गया था और उसी सफेद ब्लाउज में वो दोनों खरबूजे मानो मुझे चिढ़ाने लगे मैंने नजर भर के उन खरबूजा का रसपान किया और बोला.
"च...च...चूहा था काकी.....भाग गया"
लल्ली काकी के चेहरे पर थोड़े अचरज के भाव थे वह बोली
"हे राम ऐसा कैसा चूहा था, था तो अच्छा बड़ा,,,,,,, छोटा चूहा तो नहीं लगता था पर इतना नरम था.
जैसे छोटे चूहे की खाल बिल्कुल चिकनी होती है वैसा....... कहां भागा बेटा"
मैंने कहा, "ज...ज...वो... सामने वाली नाली में भाग गया"
काकी ने ठंडी सांस ली, "भगवान बहुत चूहे हो गए हैं घर में, इतना अनाज़ रखा है क्या करें...... दवाई डालो तो भी मरते नहीं है....फिर मैं ये सब किसके भरोसे छोड़ कर जाऊँ ......"
मैं क्या बोलता मेरी तो फटफटी.....
काकी ने कहा, "चल बेटा हाथ मुंह धो ले फिर तब तक हरिया आता होगा उसके साथ खेत देख आना"
मैंने कहा, "अरे......हमें तो चलना था..... आप तैयारी कर लो हमें चलना था ना....इटावा....."
लल्ली काकी बोली, "अरे हां बेटा..... चल ठीक है........ मैं तैयार होती हूं"
यह कहकर काकी धीरे धीरे चलती हुई अपनी कोठरी में गई. भेनचोद इस औरत का पिछवाड़ा क्या क़यामत है.
६ फुट का बदन......हल्का गोरा गेंहुआ रंग......मोटे मोटे भरे हुए हाथ. खरबूजे जैसे चुचे....चूची बोलना गलत हो जाता.
5 - ५ के तरबूज जैसी बिलकुल गोल गोल गांड. सफ़ेद साड़ी में लिपटी लल्ली काकी की गांड गांड नहीं, बुलावा थी.
काकी का पेट थोड़ा सा निकला हुआ था मगर मोती तो वो कतई नहीं थी... वो तो गाँव की असली भरी पूरी औरत थी.
40 -45 की उम्र में एक औरत अपने चरम पे होती है.....सुंदरता.....मादकता.......गदराया बदन....
भेनचोद मेरी तो उनके देख कर ही छूट होनी थी.
काकी कोठरी से अपने हाथों में कपड़े लिए बाहर निकली
"बेटा मैं नहा लूं तब तक तू यहीं बैठे रहना"
यह बोलकर लल्ली का कि कोने में बने बाथरूम में चली गई
मेरी सांसे तेज चलने लगी भेनचोद बाथरूम में दरवाजा ही नहीं था
सिर्फ एक पर्दा डाला हुआ था काकी अंदर गयी और पर्दा गिरा लिया.
अंदर पानी गिरने की आवाज आने लगी मैं धीरे धीरे चलता हुआ बाथरुम के बाहर तक पहुंच गया बाल्टी में गिरते पानी की आवाज के बीच मुझे कपड़ों की सर सर की आवाज़ भी आ रही थी इसकी मां की चूत यह ६ फीटी गदराए बदन की औरत नंगी हो रही थी और उसके और मेरे बीच में सिर्फ एक पर्दे का फासला
कीड़ा कुलबुलाने लगा
घर काफी पुराना था और पुराने घरों में बाथरूम और लैट्रिन नहीं बने होते थे तो शायद यह बाथरूम बाद में बनाया गया था और इसमें दरवाजे की जरूरत इसलिए नहीं पड़ी होगी कि दरवाजा होने से अंधी लल्ली काकी को समस्या होती मगर यह समस्या मेरे लिए वरदान बनने वाली थी
काकी के विशाल गदराये नंगे बदन का दीदार करने के विचार मात्र से मेरा रोम-रोम सनसनाने लगा
अंदर से काकी के गुनगुनाने की आवाजें आने लगी मैंने धीरे से परदे को पकड़ा और उठाने लगा तभी जोर की हवा का झोंका आया और मैं इसके पहले कि मैं काकी के बदन का दीदार कर पाता पर्दा मेरे हाथ से छूट गया और काकी को एहसास हो गया कि शायद वहां कोई है
काकी जोर से चिल्लाई, " हाय.. राम.... कौन है ?"
मेरी गांड फटी और मैं उल्टे पैर भागा. मेरे भागने में मेरा पैर वहां रखे बर्तनों से जा टकराया और सारे बर्तन बिखर गए काकी फिर चिल्लाई, "लल्ला..... बेटा कौन है यहां...?"
मैंने अपनी फटी गांड और धड़कते दिल को काबू में किया और कहा, " क..क..काकी....व्...व्...वो.....वहीँ चूहा......उस चूहे के पीछे बिल्ली भागी थी....."
काकी बाथरूम के अंदर से ही चिल्लाई, "है राम वो चूहा फिर आ गया....राम कैसा दुष्ट चूहा है"
मैंने लोअर में तंबू बनाए बाबूराव को देखते हुए कहा, "हाँ....काकी....."
काकी बाथरूम से नहाकर निकली तो फिर से वही सफेद ब्लाउज और साड़ी पहना हुआ था मगर उनके गीले बाल ब्लाउज पर पड़ने से सफेद रंग का ब्लाउज पारदर्शी होने लगा था और उनकी गोरी मासल पीठ ब्लाउज के अंदर से दिख रही थी देखने वाली बात यह थी कि उस सफेद ब्लाउज में मुझे ब्रा का नामोनिशान भी नहीं दिख रहा था मैंने समझ गया ह गांव की औरतें क्या ब्रा-पैंटी पहनती होंगी
तभी मेरे दिमाग में विचार आया कि अगर काकी का ब्लाउज पूरा गीला हो जाए तो नजारा दिख सकता है
इसके पहले कि मैं कुछ दिमाग लगाता. किवाड़ बजने लगा
काकी ने कहा " देख तो बेटा कौन आया है ?"
मैं भारी कदमों से चलता हुआ दरवाजे के पास पहुंचा और फिर अंदर से चिल्लाया " कौन ...."
बाहर से आवाज आई, " हम हैं हरिया........... मालकिन है क्या...?"
मैंने मुड़कर काकी से पूछा , " कोई हरिया है "
" अरे ...तो खोल दे बेटा.... हरिया ही तो अपने खेत खलिहान संभालता है....उसे बिठाओ मैं आती हूं"
यह कहकर काकी कोठरी में घुस गई और दरवाजा बंद कर लिया मैंने दरवाजा खोला 35 40 की उम्र का गठीले बदन का काला कलूटा आदमी खड़ा था
हरिया मुझे देखकर ऐसा खुश हुआ जैसे मैं कोई राहुल गाँधी हूँ ...वह मेरे पैरों में गिर पड़ा और बोला
"अरे लल्ला बाबूजी आप कितने बड़े हो गए.....कितने लम्बे हो गए......"
बहनचोद मैं लोगों के पैर छूता था खुद के पैर छूआने का मौका पहली बार हुआ मुझे कुछ समझ नहीं पड़ा
वो लौडू तो मारे ख़ुशी के फटा जा रहा था.
" मालकिन ...कहा है....?"
मैंने कहा आ रही है बैठो....
वो तुरंत खाट पर बैठ गया
फिर उचका...."लल्ला बाबूजी...आप मालकिन को ले जा रहे हो इनकी आंखें सही करा दोगे न......लखन बाबूजी के जाने के बाद से मालकिन ने ही हमें संभाला है.....हम तो बेघर लोग थे बाबूजी........आज पूरी खेती हमारे हवाले कर दी.....मालकिन बहुत ध्यान रखती है सबका.......हमारी जोरू को भी साड़ी कपडा अनाज देती रहती है......वो तो हमरा बिटवा छोटा है इसलिए धन्नो मालकिन के साथ दिन भर नहीं रह पाती.......नहीं तो वो छिनाल...चमेली की क्या जरुरत थी......माफ़ करना लल्ला बाबू.......हम गलत बोल दिए.....पर..."
यह भोसड़ी का क्या फेविकोल का जोड़ है......मादरचोद साँस भी नहीं ले रहा
वो फिर चालू हो गया
"मालिक पर अभी आप शहर कैसे जाओगे ? "
मैंने कहा, " (भोसड़ी के..) दिन की बस से... भाई .............."
हरिया खींसे निपोरते हुए बोला, "पर मालिक चम्बल नदी पर बना पुल तो कल रात को गिर गया और नदी में पानी ज्यादा है इसलिए यहां से बस वहां नहीं जा सकती.... तीन-चार दिन में नाव वगैरह चले तो चले.... तब तक तो आपको यहीं रुकना पड़ेगा"
बहनचोद अब ये क्या हुआ.....मेरे पास तो कपडे तक नहीं थे.
हरिया बोला, " अब तो चलो मालिक आपको खेत ले चलूँ "
यहाँ भोसड़ी का....मैं इस बियाबान गाँव में फँस गया और इस मादरचोद के दस्त ही बंद नहीं हो रहे है....खेत चलो खेत चलो....अरे तेरी गांड में भर ले खेत.....भोसड़ी का.
मैंने कहा, "अरे... टूट गया...ऐसे कैसे टूट गया.....दूसरा रास्ता होगा.....बस होगी.....?"
हरिया धीरज से मुस्कुराते हुए बोला, " नहीं है मालिक.....एक ही रास्ता है...."
"रुको मुझे काकी से बात करने दो......नहीं....बाबूजी से बात करता हूँ.......अरे मेरा फोन....."
लो गधे के लंड से लिखी दास्तान.
मोबाईल में सिग्नल नहीं.
मैंने लल्ली काकी को आवाज़ लगाई.
काकी कोठरी से बहार आयी. उन्होंने अपने कपड़े ठीक ठाक कर लिए थे और बालों को टॉवल में लपेट लिया था उनका ब्लाउज भी सूख चुका था इसलिए कुछ नहीं दिख रहा था. वो अपने भरे-पूरे बदन को संभालते हुए धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए आई और रुक कर बोली
"क्यों रे हरिया क्या हुआ"
"मालकिन वह चम्बल का पुल गिर गया.....रात में......अब तो तीन-चार दिन जाने का कोई इंतजाम नहीं है....छोटे बाबू को वही समझा रहे है.......रुकना ही पड़ेगा...."
न जाने क्यों काकी को यह खबर सुन कर बड़ी खुशी हुई उनका चेहरा मानो खिल गया
वह बोली, "चलो अच्छा....कोई बात नहीं लल्ला बेटा तीन-चार दिन बाद चलेंगे"
लंड तीन-चार दिन बाद चलेंगे बहनचोद गांव में 4 दिन में तो मैं पागल हो जाऊंगा
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