Hindi Porn Kahani फटफटी फिर से चल पड़ी
03-26-2019, 12:12 PM,
RE: Hindi Porn Kahani फटफटी फिर से चल पड़ी
लल्ली काकी ने मुझसे कहा, "आ जा बेटा"

उन्होंने फिर कहा, "अरे बेटा लल्ला अंदर आ जा बेटा"

तब जाकर कहीं मुझे होश आया और मेरी नजरे उनके बदन से हटकर उनके चेहरे पर टिकी 

लल्ली काकी के चेहरे पर सबसे पहले जो चीज दिखती थी वह थी उनकी बड़ी बड़ी आंखें और घनी पलके श्रीदेवी के जैसी 

उनका मुंह गोल था और थोड़ी मोटी नाक हल्की सी दबी हुई 

अगर लल्ली काकी का बदन खूबसूरत था तो उनका चेहरा किसी अप्सरा के जैसा था मैं हुमक हुमक कर आंखों से उनका हुस्न पी रहा था और फिर भी मेरा मन नहीं भर रहा था

काकी थोड़ा जोर से बोली, " अरे लल्ला बेटा अंदर आ जा" 

तो मैंने एकदम से कहा, " हैं ....अरे.... हां. हां.. हां" 

और मैं घर के अंदर दाखिल हुआ

घर जैसा की गांव में होता है, दरवाजे में घुसते से ही एक बड़ा चौक और उसके चारों तरफ छोटे छोटे कमरे 

चौक काफी बड़ा था और खुला आसमान था वहीं पर एक खाट थी मैं जा कर उस पर बैठ गया खाट मेरे बैठने से चरमराई 

काकी समझ गई कि मैं बैठ गया हूं 

उन्होंने कहा, "बेटा तू थक गया होगा रास्ते तो बहुत खराब है चाय बना दूँ"

मैंने कहा, " ज ज ज जी.....म..म..म... मुझे पानी ...." 

भेंनचोद मेरा हकलापन फिर शुरू हो गया 

काकी सधे हुए कदमों से चलते हुए कोने में गई और वहां रखे मटके से झुक कर पानी निकालने लगी 

मेरी आंखें तुरंत सीसीटीवी कैमरे जैसे काकी के बदन से चिपक गयी 

मेरी हालत उस इंसान के जैसी थी कि जो महीनों भोजन के लिए तरसा हो और तभी उसके सामने छप्पन भोग मालपुए रबड़ी आ जाए 

काकी ने मुझे पानी पकड़ाया और अपनी साड़ी संभालने लगी अंधी होते हुए भी उसे पता था कि उसके कपड़े कहां पर है काकी ने अपनी साड़ी के पल्लू को चौड़ा किया और अपने ब्लाउज को और कमर को ढक लिया 

लो बुझ गई बत्ती 

काकी वहीं रखे बांस के स्टूल पर धीरे से टटोल कर बैठ गई

"तेरे बाबूजी का फोन आया था कि तू आने वाला है मुझे लेने के लिए, इतने सारे काम पड़े हैं, बता भला मैं ऐसे कैसे उठ कर चली जाऊं ? पर फिर जब तेरे पिताजी ने कहा कि मेरी आंखें फिर से आ सकती है तो मैं अपने आप को रोक नहीं पाई और मैंने हां कर दी एक बात तो बता बेटा आंखों के ऑपरेशन में कितने पैसे लगेंगे ? लल्ला बेटा क्या हुआ ?"

लल्ला क्या लंड बोलता मेरी आंखें तो काकी के चेहरे से बदन, बदन से चेहरे पर जा रही थी 

" |ज..ज....ज....जी.....हाँ.....मतलब....."

"वही तो बेटा इस लिए सारा सामन कमरों में बंद करवा दिया ....तेरे पिताजी बोले...की एक महीना लगेगा वापस आने में....."

फिर काकी बोली, "बेटा रात होने वाली है शायद, चिड़िया चहचहा रही है मतलब अंधेरा होने ही वाला है, एक काम कर तू हाथ मुंह धो ले और मैं खाना लगा देती हूं"

मैंने कहा, "काकी हमें आज ही लौटना है ना.....आपका सामान.....?" 

काकी मुस्कुराई और बोली, " अरे बेटा अब रात पड़े तुझे कौनसी बस मिलेगी कल दिन वाली बस से चलेंगे"

मैंने कहा लो बहन चोद यहां तो चूतियापा हो गया 

मन मसोसकर मैंने इधर उधर देखा साइड में एक नल था वहां जाकर अपने जीन्स को ऊपर चढ़ाया और हाथ मुंह धोने लगा 

काकी धीरे धीरे चलती हुई आई और मुझे गमछा पकड़ा दिया मैंने गमछे से अपने हाथ पैर मुंह पूछा और फिर खाट पर बैठ गया खाट फिर चरमराई 

काकी इधर उधर की बातें करती रही और मैं पक्के बेशरम की तरह उनके बदन का मुआयना करता रहा 

थोड़ी देर बाद खाना लगा दिया और मैंने वही चौक में बैठकर खाना खाया एक बात थी कि भले काकी को अँधा हुए 2 साल ही हुए थे मगर उन्होंने अपने अंधेपन से जीना सीख लिया था वह लगभग बिना टटोले पूरे घर में घूम लेती थी और घर क्या था सिर्फ एक चौक उसके कोने में खुली रसोई और उसके पीछे काकी का कमरा बाकी सारे कमरों के दरवाजे बंद थे 

काकी बोली, "वो करम जली चमेली उस दर्जी के छोकरी के साथ भाग गई अपने मां बाप का तो मुंह काला किया ही मुझे भी अधर में छोड़ गई अब बेटा तू बता मैं अकेली अंधी बुढ़िया कैसे अपना काम चलाऊ, अरे बाजार जाना सामान लाना खेत देखना यह वाला मुझसे अकेले थोड़ी होगा. राम करे मेरी आंखें फिर से आ जाए तो मैं भले अकेले सब काम कर भी लूं. अब मेरी किस्मत में तो अकेलापन ही लिखा है पहले तेरे काका छोड़ गए और अब यह चमेली भाग गई"

मैं खाता रहा और हूँ हाँ करता रहा था 

काकी मेरे सामने ही एक छोटे से स्टूल पर बैठी थी, छोटा सा लकड़ी का स्टूल था और काकी उस पर बैठी ऐसी लग रही थी मानो स्टूल हो ही नहीं .

काकी का विशाल गदराया बदन उस स्टूल को पूरी तरह से ढके हुए था

मेरी नजरें काकी के साड़ी में कहीं झिर्री या दरार ढूंढ रही थी जिससे मुझे काकी के गदराये बदन का एक नजारा तो दिख सके मगर काकी को अंधेपन में भी अपनी साड़ी संभालने का एहसास था मुझे कुछ नहीं दिख रहा था दिख रहा था तो बस काकी का विशाल गदराया हुआ बदन

एक सफेद साड़ी के अंदर लिपटा हुआ 

बाबू राव ने अपना सर धीरे-धीरे उठाना शुरू कर दिया था क्योंकि भाई औरत औरत होती है और चूत चूत होती है 

मैंने काकी को देखते देखते ही बाबूराव को जीन्स में एडजस्ट किया 

काकी ने मेरी थाली उठाई और उसे फुर्ती से मांज दिया. उन्होंने वहीँ स्टूल खिंच लिया था.....काकी बर्तन वहीँ चौक के कोने में मांज रही थी और उनका 6 फूटा गदराया बदन उनके बर्तन धोने से धीरे धीरे हील रहा था. बाबूराव तो ऐसा बड़े जा रहा था की थोड़ी देर में बाबूराव ने धीरे से लोअर के इलास्टिक से बाहर मुंह निकाल लिया.

मैंने बाबूराव की धीरे से अंदर किया और मोबाइल निकाला तो उसमें सिग्नल नहीं आ रहा था 

"अरे...क...क..काकी.....यहां मोबाइल का सिग्नल नहीं आता है क्या"

काकी बोली, " अरे राम यहां सिर्फ bsnl का मोबाइल ही चलता है बाकी कुछ नहीं चलता"

लो लण्ड अब मैं जिओ की सिम से रात भर पिक्चर भी नहीं देख पाऊंगा 

पूरे घर में धीरे-धीरे अंधेरा सा छा गया, मैंने कहा कहा, "आपने लाइट नहीं जलाई" 

काकी ने फीकी सी हंसी हंसी और कहा, "अरे बेटा मुझे क्या फर्क पड़ता है अंधेरा हो या उजाला.... देख वहां सामने ही बिजली का बटन है जला ले बत्ती"

मुझे बेचारि अंधी कर दया आई पर दया की जगह बहुत जल्दी फिर ठरक ने ली. मैं आराम से खाट पर पड़े पड़े काकी का मुआयना करता रहा. 

तभी काकी बोली, " लल्ला सारे कमरों में अनाज भरा है सिर्फ मेरी कोठरी ही खाली है तू कहे तो तेरा बिस्तर बाहर खाट पर लगा दूं हल्की हल्की ठंड है तुझे अच्छी नींद आ जाएगी कोठरी में तो गर्मी लगेगी"

और मैं चुतिया......... मैंने कहा "ह...ह....हाँ....जी..... बाहर लगा दो"

फिर मुझे ध्यान आया कि अगर कोठरी में चाची के साथ होता तो कुछ..............

पर अब क्या अपनी चुटियाई का दुख मनाते हुए मैंने कहा, "मैं खाट पर ही सो जाता हूं"

काकी धीरे से उठी कोठरी में गई एक तकिया और एक मोटी सी चादर मुझे दी और मुझसे कहीं बेटा जल्दी सो जा यहां सब जल्दी उठ जाते हैं सुबह-सुबह बहुत काम होते हैं 

मैंने फिर मोबाइल निकाला और उसमें कुछ मसाला ढूंढने लगा मगर मेरा मोबाइल अक्सर पिताजी चेक कर लिया करते थे इसलिए मैं उस में कुछ भी नंगा पुंगा 
सामान नहीं रखता था और रात को जियो के सहारे CLIPS देखकर अपने आपको ठंडा कर लिया करता था मगर भोसड़ी का यहां तो नेटवर्क ही नहीं था 

अब क्या लंड होगा 

काकी धीरे से कोठरी में चली गई उन्होंने किवाड़ लगा लिया और मैं भी थक हार कर खाट पर लेट गया और सोचने लगा कि बहनचोद क्या किस्मत है मुझे इतनी जल्दी नींद नहीं आती थी तो मैं करवटें बदलते रहा थोड़ी देर बाद जब मैं खाट पर पेट के बल लेटा था तो मेरे दिमाग में काकी का बदन पिक्चर की तरह चलने लगा और मैं और मेरा बाबूराव दोनों धीरे-धीरे मस्ताने लगे. मैं खाट पर पेट के बल लेता था पर खाट पर लेटे लेटे बाबूराव उफन्ने लगा था मैंने उसको एडजस्ट किया मगर खाट के झुके होने से मेरा बाबूराव कंफर्टेबल नहीं हो पा रहा था वह खाट निवार की थी उसमें बीच बीच में काफी गैप था

ऐसा लग रहा था मानो चूत का गाला हो तभी मेरे दिमाग में कीड़ा कुलबुलाने लगा 

मैंने बाबूराव को लोअर नीचे सरका कर आजाद किया और खाट की निवार के बीच की जगह में फंसा दिया कसम उड़ान छल्ले की एक अलग ही फीलिंग आई 
अब मेरे पास मुठ मारने के लिए कुछ मसाला तो था नहीं मैं आंखें बंद करके धीरे-धीरे अपनी कमर हिलाने लगा और धीरे धीरे निवार में फंसा बाबूराव अंदर बाहर होने लगा मुठ मारने से तो यह ज्यादा अच्छा था 

आंखें बंद करके मैं कल्पना करने लगा कि मैं नीलू चाची के बदन पर लेटा हूं और उनके बदन को मसलते हुए उनकी चिकनी चमेली के अंदर अपने बाबूराव को पेल रहा हूं ऐसा मजा आ रहा था कि मैं बता नहीं सकता 

थोड़ी ही देर में मेरे गोटों में उबाल आने लगा और अचानक मेरी आँखों में चाची की जगह लल्ली काकी का चेहरा आया बाबूराव ने फचक फचक रस की धार पर धार छोड़ना शुरू कर दी 

खाट के निवास में फंसा मेरा लंड पिचकारी पिचकारी चला रहा था आनंद के अतिरेक से मेरी आंखें बंद हो गई और कब मुझे नींद गई मुझे पता ही नहीं चला 

निवार में लण्ड फंसाये मैं यूँही सो गया 

अचानक मेरी नींद खुली मुझे लगा की कुछ मेरे बाबूराव से टकराया है मेरी आंखें एकदम खुली 

लल्ली काकी झाड़ू लिए खाट के नीचे घुसी हुई थी और उनके झाड़ू लगाने से उनका हाथ और सर मेरे निवार में फंसे बाबूराव से टकरा रहा था 

मेरी गांड फट कर गले में आ गयी. 

अचानक काकी पीछे हुई और उनका हाथ फिर मेरे बाबूराव से टकराया का की बोली, "अरे राम यह क्या है लगता है कोई चूहा खाट में फंस गया, अरे लल्ला ...ओ ..लल्ला ...देख तो बेटा ..."

मैं उठता इसके पहले काकी ने मेरे बाबू राव को चूहा समझकर पकड़ लिया
बहनचोद.............फटफटी चल पड़ी . 
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