Indian Sex Story कमसिन शालिनी की सील
कमसिन शालिनी की सील
यह कहानी शालिनी जैन की है जो पालम पुर में मेरे ही मोहल्ले में रहती थी.वैसे तो हमारे मोहल्ले में एक से बढ़ कर एक भरपूर जवानियाँ और खिलती कमसिन कलियाँ हैं जिनसे मोहल्ले में रौनक, चहल पहल बनी रहती है, जैसे किसी बाग़ में रंग बिरंगे फूल खिले रहते हैं और तितलियाँ मंडराती रहती हैं और सबको लुभाती रहती हैं. आप सबकी तरह मैं भी हाड़ मांस का बना साधारण इंसान हूँ और ये हुस्न की परियाँ मुझे भी लुभाती रहती हैं और जिनके नंगे जिस्म को अपने ख्यालों में चोदता हुआ न जाने कितनी बार मुठ मार चूका हूँ.
पर बात उन सब की नहीं… शालिनी जैन की है यहाँ. शालिनी जैन जो मेरे ही सामने पैदा हुई थी, खेलते खेलते कब बड़ी हुई और वो नाक बहाती मैली कुचैली सी लड़की कब ‘माल’ में परिवर्तित होती चली गई… समय का कुछ पता ही नहीं चला.
बारहवीं कक्षा तक आते आते वो हाहाकारी हुस्न की मलिका में तबदील हो चुकी थी जिसके मदमस्त यौवन के किस्से गली चौराहों में चलने लगे थे.
साइकिल से स्कूल जाती तो अपने सीने के गदराये हुये अवयवों को निष्ठा पूर्वक दुपट्टे से ढक छुपा लेती लेकिन वो कहाँ छुपने वाले थे, किसी के भी कभी नहीं छुपे, सड़क पर जरा सा ऊंचा नीचा होने से साइकिल जम्प लेती और वो कपोत ऊंची उड़ान भरने लगते.
कोई देख रहा होता तो वो झेंप कर अपना दुपट्टा फिर से यथास्थान कर लेती और अगले को कनखियों से घायल करती हुई जल्दी जल्दी पैडल मारती हुई निकल लेती.
धीरे धीरे उसके मदमस्त यौवन की महक चहूँ ओर फैल गई और उसके इन्तजार में भँवरे टाइप के लौंडे लपाड़े रोमियो गली के मोड़ पर खड़े हो उसे रिझाने की प्रतिस्पर्धा करने लगे.
शालिनी साइकिल से स्कूल और कोचिंग जाती तो कभी कभी मुझसे भी आमना सामना हो जाता. मैं तो बस मुग्ध भाव से उसकी देह यष्टि को निहारता रह जाता. मोहल्ले का ही होने के नाते वो मुझे पहचान कर ‘नमस्ते अंकल जी’ कहती और उसके मोतियों से दांत और हंसती हुई आँखें खिल उठतीं.
‘नमस्ते स्वीटी…’ मैं भी तत्परता से जवाब देता और मेरी नजर उसके सीने के उभारों का जायजा लेती हुई उसकी पुष्ट जंघाओं तक फिसल जाती.
‘अभी से छुरियाँ चलाना सीख गई ये तो!’ मैं मन ही मन सोचता रह जाता.
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