RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
बहन की इच्छा—10
गतान्क से आगे…………………………………..
"शायद तुम ठीक कह रहे हो, सागर!. लेकिन वो ऐसा कुच्छ करेंगे नही. इस'लिए मुझे यही हालत स्वीकार कर के रहना चाहिए."
"नही, दीदी. पूरा कामसुख लेना आपका हक़ है और अगर वो तुम्हें जीजू से नही मिलता हो तो में तुम्हें दूँगा!! एक भाई होने के नाते मेरी बहन को सुखी रखना मेरा कर्तव्य है, चाहे वो कोई भी सुख क्यों ना हो."
"अरे पागले!. बहन-भाई में ऐसे संबंध बनते नही है. समाज उन्हे कबूला नही करता."
"मुझे मालूम है, दीदी. लेकिन हम समाज के साम'ने थोड़ी वैसे कर'नेवाले है? हम तो ऐसे करेंगे कि किसी को पता ना चले."
"फिर भी, सागर. हमारा बहेन-भाई का रिश्ता ही ऐसा है के हम ऐसे संबंध रख नही सकते."
"क्यों नही, दीदी??. आज सुबह से हम दोनो ने प्रेमी जोड़ी की तरह जो मज़ा कीया तब हम दोनो भाई-बहेन नही थे? अगर हम दोनो एक दूसरे के साथ इतना घुल'मील जाते है, एक दूसरे के साथ खुल'कर रहते है और एक दूसरे से हम खुशी पातें है तो फिर 'वो' खुशीया भी हम दोनो क्यों ना ले?? अब मुझे ये बताओ, दीदी. थोड़ी देर पह'ले हम'ने जो किया उस'से तुम्हें आनंद मिला के नही?"
"हम'ने नही.. तुम'ने किया, सागर! में तो विरोध कर रही थी लेकिन तुम'ने मुझे जाकड़ के रखा था."
"अच्च्छा, बाबा. मेने किया. लेकिन तुम'ने भी तो मेरा साथ दिया ना?"
"मेने कब तुम्हारा साथ दिया?" ऊर्मि दीदी ने शरारती अंदाज में कहा.
"बस क्या, दीदी?. मेने बाद में तुम्हें छ्चोड़ दिया था और फिर भी तुम'ने मुझे हटाया नही. उलटा तुम नीचे से उच्छल उच्छल'कर मेरा साथ दे रही थी.."
"तो फिर क्या कर'ती में, सागर?" उर्मई दीदी ने थोड़ा शरमा'कर हंस'ते हुए जवाब दिया,
"तुम मुझे छ्चोड़ नही रहे थे और 'वैसा' कुच्छ कर के तुम मुझे भड़का रहे थे. आख़िर कब तक में चुप रह'ती? तुम्हारी बहन हूँ तो क्या हुआ, आख़िर एक स्त्री हूँ. मेरी भी भावनाएँ भड़क उठी और अप'ने आप में तुम्हें साथ देने लगी."
"एग्ज़ॅक्ट्ली!!.. कुच्छ पल के लिए तुम्हें अजीब सा लगा होगा लेकिन बाद में तुम्हें भी मज़ा आया के नही? इस'लिए अगर तुम्हें मज़ा मिल रहा हो तो क्यों नही तुम ये सुख लेती हो?"
"सागर!. मेरे एक सवाल का जवाब दो. वैसे तुम'ने मुझे 'वहाँ पर' चाट के सुख दिया लेकिन तुम्हें उस में से कौन सा सुख मिला?"
"बिल'कुल सही सवाल पुछा, दीदी. आम तौर पे आदमी को औरतो की 'वो' जगहा चाट'कर कोई ख़ास सुख नही मिलता. इस'लिए ज़्यादातर आदमी वैसे कर'ते नही है. लेकिन औरत को पूरा सुख देना ये उस'का कर्तव्य होता है इस'लिए उस'ने वैसे कर'ना ही चाहिए. अब अगर मेरी बात करोगी तो में कहूँगा.. में हमेशा तैयार हूँ तुम्हें 'वो' सुख देने के लिए. तुम्हें सुख देने में ही मेरा सुख है, दीदी!!"
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