RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
मुझे बैठ'ने के लिए कह'कर ऊर्मि दीदी अंदर गई और मेरे लिए पानी लेकर आई. उतने ही समय में मेने उसे निहार लिया और मेरे ध्यान में आया के वो दोपहर की नींद ले रही थी इस'लिए उसकी साड़ी और पल्लू अस्तव्यस्त हो गया था. मुझे रिलक्स होने के लिए कह'कर वो अंदर गयी और मूँ'ह वग़ैरा धोके, फ्रेश होकर वो बाहर आई. हम'ने गपशप लगाना चालू किया और में उसे गये दिनो के हाल हवाल के बारे में बताने लगा. बातें कर'ते कर'ते मेरे साम'ने खडी रह'कर ऊर्मि दीदी ने अप'नी साड़ी निकाल दी और वो उसे फिर से अच्छी तरह पहन'ने लगी. में उसके साथ बातें कर रहा था लेकिन चुपके से में उसको निहार भी रहा था.
ऊर्मि दीदी के साड़ी निकाल'ने के बाद सबसे पह'ले मेरी नज़र अगर कहाँ गई तो वो उसके ब्लाउस में कस'कर भरे हुए छाती के उभार'पर. या तो उस'का ब्लाउस टाइट था या फिर उसके छाती के उभार बड़े हो गये थे क्योंकी ब्लाउस उसके उभारों पर इस कदर टाइट बैठा था के ब्लाउस के दो बटनो के बीच में गॅप पड गयी थी, जिसमें से उसकी काली ब्रेसीयर और गोरे गोरे रंग के उभारो की झल'कीया नज़र आ रही थी.
सरल चिक'ने पेट'पर उसकी गोल नाभी और भी गहरी मालूम पड रही थी. उस'ने पहना हुआ पेटीकोट उसके गुब्बारे जैसे चुतड'पर कसा के बैठा था.
मा कसम!. क्या सेक्सी हो गयी थी मेरी बाहें!! साड़ी का पल्लू अप'ने कन्धेपर लेकर ऊर्मि दीदी ने साड़ी पहन ली और फिर कंघी लेकर वो बाल सुधार'ने लगी. हमलोग अब भी बातें कर रहे थे और बीच बीच में वो मुझे कुच्छ पुछती थी और में उसको जवाब देता था. अलमारी के आईने में देख'कर वो कंघी कर रही थी जिस'से मुझे उसे सीधा से निहार'ने को मिल रहा था. जब जब वो हाथ उपर कर के बालो में कंघी घूमाती थी तब तब उसकी गदराई छाती उप्पर नीचे हिलती नज़र आ रही थी. मेरा लंड तो एकदम टाइट हो गया अप'नी बहेन की हलचल देख'कर.
बाद में शाम तक में ऊर्मि दीदी से बातें कर'ते कर'ते उसके आजूबाजू में ही था और वो घरेलू कामो में व्यस्त यहाँ वहाँ घूम रही थी. मेने उसे अप'ने भानजे के बारे में पुछा के वो कब नर्सरी स्कूल से वापस आएगा तो उस'ने कहा के उस'का स्कूल तो दीवाली की छुट्टीयो के लिए बंद हो गया था और परसो ही उसकी ननद आई थी और उसे अप'ने घर रह'ने के लिए ले के गयी थी, एक दो हफ्ते के लिए. मेने उसे पुछा के एक दो हफ्ते उस'का बेटा कैसे उस'से दूर रहेगा तो वो बोली उसकी ननद के बच्चों के साथ वो अच्छी तराहा से घुलमील जाता है और कई बार उनके घर वो रहा है. उस दिन भी उस'ने ननद के साथ जा'ने की ज़िद कर ली इस'लिए वो उसे लेकर गयी.
और इसी वजह से ऊर्मि दीदी ने हमारी मा को फ़ोन कर के बताया के उसे दीवाली के लिए हमारे घर आना है क्योंकी दिनभर घर में अकेली बैठ'कर वो बोर हो जाती है. मेने उसे पुछा के वो मुंबई जा'ने के बाद उसके पती के खाने का क्या होगा तो वो बोली उस'का कोई टेंशन नही है और वो बाहर होटल में खा लेंगे. सच बात तो ये थी कि उसे मायके जा'ने के बारे में उसके पती ने ही सुझाव दिया था और वो झट से तैयार हो गयी थी. मेने उसे कहा के मुझे मेरे भानजे को मिलना है तो उस'ने कहा के कल हम उसकी ननद के घर जाएँगे उस'से मिल'ने के लिए.
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