RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
मुझे ऊर्मि दीदी के कह'ने से मालूम पड़ा के वो अप'नी शादीशुदा जिंदगी से खुस नही है. उस'के वयस्क पती के साथ उस'का काम'जीवन भी आनंददायक नही है. शादी के बाद शुरू शुरू में उस'के पती ने उसे बहुत प्यार दिया. उसी दौरान वो गर्भवती रही और उन्हे लड़का हुआ. लेकिन बाद में वो अप'ने बच्चे में व्यस्त होती गयी और उस'के पती अप'ने धांडे में उलझते गये. इस वजह से उनके काम'जीवन में एक दरार सी पड गयी थी जिसे मिटाने की कोशीष उस'के पती नही कर रहे थे. एक दूसरे से समझौता, यही उनका जीवन बन रहा था और धीरे धीरे ऊर्मि दीदी को ऐसे जीवन की आदत होती जा रही थी. दिख'ने में तो उनका वैवाहिक जीवन आदर्श लग रहा था लेकिन अंदर की बात ये थी के ऊर्मि दीदी उस'से खूस नही थी.
भले ही मेरे मन में ऊर्मि दीदी के बारे में काम भावना थी लेकिन आखीर में उस'का सगा भाई था इस'लिए मुझे उस'की हालत से दुख होता था और उस'की मानसिकता पर मुझे तरस आता था. इस'लिए में उसे हमेशा तसल्ली देता था और उस'की आशाएँ बढ़ाते रहता था. उसे अलग अलग जोक्स, चुटकुले और मजेदार बातें बताते रहता था. में हमेशा उसे हंसाने की कोशीष करता रहता था और उस'का मूड हमेशा आनंददायक और प्रसन्न रहे इस कोशीष में रहता था.
जब वो हमारे घर आती थी या फिर में उस'के घर जाता था, तब में उसे बाहर घुमाने ले जाया करता था. कभी शापींग के लिए तो कभी सिनेमा देखाने के लिए तो फिर कभी हम ऐसे ही घूम'ने जाया कर'ते थे. कई बार में उसे अच्छे रेस्टोरेंट में खाना खाने लेके जाया करता था. ऊर्मि दीदी के पसंदीदा और उसे खूस कर'ने वाली हर वो बात में करता था, जो असल में उस'के पती को कर'नी चाहिए थी.
एक दिन में ऑफीस से घर आया तो मा ने बताया के ऊर्मि दीदी का फ़ोन आया था और उसे दीवाली के लिए हमारे घर आना है. हमेशा की तरह उस'के पती को अप'नी दुकान से फुरसत नही थी उसे हमारे घर ला के छोड'ने की इस'लिए ऊर्मि दीदी पुछ रही थी कि मुझे सम'य है क्या, जा के उसे लाने के लिए. ऊर्मि दीदी को लाने के लिए उस'के घर जाने की कल्पना से में उत्तेजीत हुआ. चार महीने पहीले में उस'के घर गया था तब क्या क्या हुआ ये मुझे याद आया.
दिनभर ऊर्मि दीदी के पती अप'नी दुकान'पर रहते थे और दोपहर के सम'य उस'का लड़का नर्सरी स्कूल में जाया करता था. इस'लिए ज़्यादा तर सम'य दीदी और में घर में अकेले रहते थे और में उसे बिना जीझक निहाराते रहता था. काम कर'ते सम'य दीदी अप'नी साड़ी और छाती के पल्लू के बारे में थोड़ी बेफिकर रहती थी जिस'से मुझे उस'के छाती के उभारो की गहराईयो अच्छी तरह से देख'ने को मिलती थी. फर्श'पर पोछा मारते सम'य या तो कपड़े धोते सम'य वो अप'नी साड़ी उपर कर के बैठती थी तब मुझे उस'की सुडौल टाँगे और जाँघ देख'ने को मिलती थी.
क्रमशः……………………………
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