mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
03-21-2019, 12:24 PM,
#42
RE: mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
अपडेट - 40


अब देखते हैं क्या होता है। अब आएगा जलाने और मानाने का मजा.....



हम सब दिए समय पर रेडी हो गए पर 2:30 pm तक्। अबतक घर के सभी लोग खाना खा कर या तो रेस्ट कर रहे थे या अपने कामों में लगे थे । चिढाने का पहला प्रोसेस यंही से शुरू हो रहा था इसलिए सुनैना मेरे पास आते ही.....



"राहुल ये ले एड्रेस और उर्वशी को भाई थोड़ा पिक अप कर लेना उसके घर से"



मैं भी एक्टिंग करते हुए..... नहीं हमलोग जाते समय पिक अप करते हुए चले जाएंगे ।



सुनैना... नहीं भाई दोनों अलग रूट में है इसलिए पहले पिक अप कर के आ फिर हम सब साथ चलेंगे।



मैं हाँ बोल कर निकल गया। अब मैं उर्वशी के साथ 3 : 45 pm तक पहुंचा प्लान के हिसाब से और इस प्लान की तीसरी और आखरी किरदार उर्वशी ही थी।



मेरे पहुंचते ही परिधि का चेहरा देखने लायक था और आग में घी का काम उर्वशी ने किया। पता नहीं इस वक़्त उसके दिमाग में क्या चल रहा था पर जो भी हो उसके लिए अब बहुत हो चूका था ।



मैं उसे इस हालत मैं देखना सेह नहीं पा रहा था मेरे अंतर आत्मा से ये आवाज़ आई बस अब बस करो।


पर अगले ही पल मैं इन सब बातों को भूलते हुए सुनैना को बुलया।



सुनैना गुस्से के एक्सप्रेशन मैं तमतमाते हुए आई...



"क्या वक़्त तय हुआ था और तुम इसे लेने गए थे या कंही से घुमा कर ला रहे हो"।



एक साँस मैं सब बोल दी जैसे कई दिनों से इस डायलॉग की प्रैक्टिस कर रही हो...



"मुझसे क्या पूछ रही हो अपने फ्रेंड से पूछ लो मुझे मत कहो" इतना कह मैं चुप हो गया।



अब उर्वशी........ नहीं वो मेरे सर में दर्द हो रही थी तो मैंने ही इसे फ़ोर्स किया था कॉफ़ी शॉप चलके 1 कप चाय के लिए ।



ये एक और झटका था परिधि के लिए लेकिन जितना उसे बुरा लगता उसका फेसिअल एक्सप्रेशन देख कर तो उस से ज्यादा बुरा तो मुझे लगता ।



सुनैना ने सबको चलने को कहा और हम निकल पड़े लेकिन घर से निकलते समय झटका लगने की बारी मेरी थी क्योंकि दिया भी हमारे साथ जा रही थी।



अब क्या मेरा मुँह लटक गया कि हो गया सब किये कराये पर चौपट। क्योंकि ये जाएगी तो मैं और उर्वशी कंही भी नहीं निकल पाएँगे।



खैर हम सब नीचे पहुंचे तो उर्वशी मेरे साथ आगे वाली सीट पर बैठ ने को हुए लेकिन सुनैना ने उसे अपने पास बुला लिया चूँकि ये पहले से प्लान था तो उर्वशी उस हिसाब से सही जगह बैठ रही थी पर सुनैना को मालूम था की जब दिया होती है तो फिर मेरे पास की सीट हमेशा उसके लिए रिज़र्व रह्ती है। बात कोई ध्यान देने वाली नहीं है लेकिन दिया के लिए ये बहुत मायने रखती है।



हम सब बढ़े अब अपनी मंज़िल की ओर अभी कुछ देर हम चले ही थे की दिया....



"क्या भैया मैंने सुना है की कल जिसका साथ आप 1मि के लिए भी न छोड़ रहे थे उसे आज आप इतना इग्नोर कर रहे हैं बात क्या है"?



इसका मैं क्या करूं भगवान। एक खून मनपफ़ कर दो तो अभी गला दबा दूँ पता नहीं जब भी मुंह खोलती है मेरा पोपट ही करती है....



"दिया तू क्या पूछ रही है और किसके बारे में" बड़े भोलेपन से और अनजान बनते हुए पूछा ।



दिया.... गुस्से में तो तुम्हे पता नहीं है, अब मुझसे 1 शब्द भी बात किये तो आप की कसम खा कर कहती हूँ मैं कार से कूद जाउंगी ।



ब्रेक अपने आप ही लग गए , कार रुक गयी और मेरे आँखें जैसे अब रो पडूंगा । बस इस ख्याल से की ये "कूद सकती है" मैंने कार रोक दि।



मैं बाहर आ गया, मेरे गले से आवाज़ भी नहीं निकल रही थी मैंने किसी तरह परिधि से रिक्वेस्ट की वो इन सब को वॉटरफॉल दिखा कर ले आये मैं नहीं जा पाऊंगा ।



जो अबतक मुझ से नाराज बैठी थी, जिसे कल से मैंने केवल और केवल तंग किया था, और अपना एगो सटिस्फी करने के लिए जिसे मैंने तड़पाया था , अब वो अपनी तड़प भूल कर बस मामला सँभालने में लगी थी।



परिधि हड़बड़ाते हुए नीचे उतरी और मुझे समझते हुए...... बच्ची है राहुल ऐसा वो बोल गयी केवल , उसका कहने का ये मतलब नहीं था ।



अबतक कार से सब उतर आये थे कार के पास अब ट्रैफिक बढ़ रही थी फिर परिधि ने सबको कार में बैठने को कहा मगर मैं अभी इस हालत में नहीं था की किसी से कुछ बोल पाऊं या दिया के साथ बैठ कर जाऊ, इसलिए मैंने परिधि से कहा की सब को वॉटरफॉल से घुमा लाओ मैं कॉफ़ी शॉप मैं इंतज़ार करता हू ।



परिधि मौके की नजाकत को देखते हुए कार बढ़ा दी और मैं टैक्सी लेकर कॉफ़ी शॉप चला गया । मैं अब भी बहुत चिंता में था कि क्यों वो ऐसी बात बोल गयी और इतना सीरियस होकर। मेरा तो कलेजा फट गया था ।



मैं कॉफ़ी शॉप में बैठा रहा और खुद को नार्मल करता रहा । पर जब आप को किसी बुरे ख्याल का अहसास होता है तो वो ख्याल दिल से जाने का नाम ही नहीं लेता और वही हुआ था मेरे साथ्।



बैठे बैठे 8,10 कॉफ़ी भी पी गया। पता नहीं कितनी देर बैठा बस एक गम सा खाया जा रहा था और साथ ही साथ इतना गुस्सा कि क्या बताऊ । कि तभी मुझे सामने गेट से अब दिया और परिधि आती हुई नजर आई ।



आकर दोनों मेरे पास बैठ गयी अब दिया....



दिया..... भैया चलो घर चलते है ।



मैं... परिधि इस से बोल दो कि मैं अभी बहुत गुस्से मैं हूँ मुझे ये अभी छोड़ दे मैं घर आता हूँ तो बात करता हू ।



दिया.... बहुत मिन्न्नते भरे स्वर में... भैया गलती हो गयी मैं उस वक़्त, उस वक़्त पता नहीं मुझे क्या हो गया था ।




मुझे अब मेरा गुस्सा संभालना मुश्किल हुआ तो मैं बोल पड़ा..... मैं क्या हूँ पागल या तुम लोगों की मुझे फ़िक्र होती है ये गलती है। कभी वो सुनैना सुना के चली जाती है, तो कभी तू सुना देती है, तो कभी मुझे थप्पड़ खाने पड़ते है। मालूम है आज कल क्या बीत रही है मुझ्पर, मैं चिरचिरा होता चला जा रहा हू । परिधि की तरफ इशारा करते हुए पता है इस चिरचिरेपन का बदला मैं कल से इस से ले रहा हू । यह मेरे लिए आयी है आज सुबह से मैंने ठीक से बात तक नहीं कि कल भी ये मुझे हॉस्पिटल ले कर गयी एक स्माइल तक नहीं दी मैंने इसे ।




दिल की जितनी भड़ास थी सब निकलने के बाद मैं शांत बैठ गया सिर निचे कर के लेकिन तभी मेरे कंधे पर हाँथ परा मै सर उठा के देखा तो सिमरन थी।



मैने अपने आप को शांत करते हुए..... बैठो दीदी आप यंहा कैसे ।



सिमरन परिधि और दिया को बोलते हुए....



मालूम क्या है, जब हमलोग गुस्सा होते हैं तो हम किसी से ठीक से बात तक नहीं करते लेकिन ये ऐषा लड़का है जिसकी समझ गुस्से में भी काम करती है। दिया मुझे तुझ से इस तरह की उम्मीद नहीं थी।



अब मेरे चेहरे पर हलकी मुस्कान थी और दीदी भी मुस्कुरा रही थी क्योंकि मुझे मालूम था कि जो कुछ भी हुआ होगा वो घर पर ही हो चूका होगा सिमरन यंहा केवल ड्रामा कर रही है।



फिर मैंने दिया के कान पकरते हुए........ अगली बार यदि सपने में भी ऐसी गलती की तो मैं तुझसे कभी बात नहीं करुन्गा।



हम सब के सब वंहा 1 कॉफ़ी पी फिर मैंने सिमरन और दिया को ड्राप कर परिधि को उसके घर ड्रॉप करने निकल गया।



मैने कार को एक पार्क के नजदीक रोका और परिधि को साथ अंदर चला गया। पार्क में हम एक बेंच पर बैठ गए लेकिन दोनों ही खामोष, पर दिल में इतनी हलचल इतनी हलचल की क्या बताऊ ।



पता नहीं एक अजीब सा अहसास था.। मैं बैठा था और मेरे कंधे पे परिधि का सिर, ऑंखें मेरी और परिधि दोनों की बन्द थी । मेरे कानों के बगल से हवा गुजरती तो एक मधुरमय संगीत का आभास सी होता और उन्हीं हवाओं में उसके बाल जब मेरे चेहरे पर आते तो एक अजीब सी सिरहन दिल मैं पैदा कर जाती। पंछियों की चहचहाट से असीम शांति की अनुभूति हो रही थी।



प्यार ये तो होना ही था । मैं परिधि को ख्यालो से बाहर निकलते हुए....



"परी, परी....... हुं (खुमारी भरे स्वर में).......... उठो तो..... नहीं अभी नहीं....सुनो तो परी... कितना अच्छा लग रहा है कुछ देर और............ सुनो कल मैं वापस चंडीगढ़ जा रहा हू ।



अचानक से मेरे कंधे से अलग होती है और एक लम्बी सी साँस अन्दर खिंचति हुई...



"हहहह! इतनी जल्दी क्यों जा रहे हो"



मैं..... जाना तो पड़ेगा ही फिर आज जाऊ या कल ।



परिधि.... अब थोड़ी भारी स्वर में.... लेकिन आज तो पूरा दिन तुमने मुझसे बात कंहा की ।



मैं... मैं क्या करता मैं तुमसे कितना बेचैन था बात करने के लिए लेकिन पता नहीं तुम हमेशा मेरे बोलने से पहले ही टाइम उप कर देती हो।



परिधि..... मुझे अच्छा लगता है जब मैं तुम्हे टाइम अप कहती हूँ और तुम बोलते बोलते रुक जाते हो।



मैं.... मालूम है आज वॉटरफॉल जाना सब प्लान था मैंने और सुनैना ने की थी ।



परिधि.... मुझे भी मालूम था कि ये प्लान है क्योंकि जब तुम यूँ अचानक सुनैना के पास गए तभी मैं समझ गायी।



परिधि मैं तुम से एक बात बोलू...... ।यशःह्ह्ह! अभी चुप अभी मुझे सोना है तुम्हारे कंधे पर सर रख कर।



हम दोनों इस पल में समाये चले गए बहुत देर तक बैठे रहें वइसे ही। न कोई मन में विचार, न कोई गइले-सिक्वे न कोई सिकायत हमारे बीते आज के दिन के बारे में, बस इस पल को हम महसूस कर रहे थे ।



मैने परिधि को अपने से थोड़ा हटते हुए... चलो अब हमें चलना चहिये ।



परिधि.... प्लीज् थोड़ी देर और ।



मैं..... देखो अगर तुम यूँ ही प्यार जता ति रही तो मुझे तुम से प्यार हो जाएगा ।



परिधि..... तो हो जाने दो... प्लीज कुछ देर और ।



पर खुद बोलकर फिर अचानक उठ गयी और उठते ही.....मुझे मनपफ़ करना मैं थोड़ी भावनाओ में बह गायी ।



मैं...... लेकिन परिधि ।



इतना ही बोल पाया की परिधि ने फिर टाइम अप और एक मीठी सी मुस्कान अपने चेहरे पर लेट हुए........ तो क्या चलें सर ।



परिधि को लेकर मैं उसके घर पहुंचा, घर में सब लोग मिल गए मोहित अंकल , रंजना आंटी , लाल।



हम सब बातें करने लगे और परिधि अपने रूम में चली गायी। कुछ देर मैं यूँ ही बातें करता रहा सब लोगों से फिर मैंने जाने की आज्ञा ली पर सोचा की जाने से पहले एक आखरी बार परिधि से मिल लिया जाए ।



मैं.... आंटी चलो थोड़ा परिधि के कमरे तक ।



आंटी.... मैं काम कर रही हूँ तू चला जा ना ।



पर जैसे ही मैं दो कदम बढ़ाया परिधि के पास जाने के लिए की पीछे से आंटी टोकते हुए.... इधर आ बदमास तुझे अभी बताती हु ।



मैने एक स्माइल दी आंटी को और बोला... गाल लेके अभी हाजिर हुआ ।



और कहते हुए मैं परिधि के रूम के पास पहुंचा ।



मैन गेट पर से "may I come in" करते अभी दो कदम बढ़ा ही था की परिधि आकर मेरे गले से लग गायी।



मैने भी उसे बाँहों में भर लिया। हम दोनों कुछ देर यूँ ही एक दूसरे की बाँहों में रहे फिर मैंने परिधि से कहा..... जाओ नहीं तो आंटी आज सच में कटवा देगी मुझे।




लेकिन परिधि उसे तो जैसे एक ख़ुमार सा चढ़ा था और मुझसे एक पल के लिए अलग नहीं होना चाहती थी।




मैने उसको अपने से अलग किया वो सर नीचे किये हुए मुझ से अलग हुए। मैंने परिधि का चेहरा अपनी दोनों हांथों में लेते हुए उसे ऊपर उठाया ।



"ये क्या पड़ी तुम रो क्यों रही हो"



आंखों में आंसू और चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान लिये।।
"आंशु तो अपने आप ही निकल गए शायद तुम से बिछड़ने का गम है"



मैने उसके आँशु पोछे और कहा "जा रहा हूं" ।




कुछ न बोल पाए और फिर से उसके आँखों में आँसू आ गै
मैन उसके आंशू पोछते हुए...



"जाने दो मुझे यूँ न रोको अब , मुझे अपने आंशूं के साथ विदा मत करो"



परिधि.... मेरी एक बात मनोगे.... क्या?



परिधि.... " बस एक बार अपनी इस दोस्त को रोज याद कर लेना वंहा जाकर भूल मत जाना " 



अब मुझ से मेरे अरमान काबू कर पाना मुश्किल हो चला था , मैं कुछ न बोल पाया सिवाय "हनणण" के।



मैन पीछे मुड़ा और बिना दुबारा उसे देखे निकल गया।



घर पंहुचा और सीधा अपने रूम में चला गया और जाते ही अपने ख्यालो में गुम हो गया। ये एक अहसास ही था जो परिधि के पास न होते हुए भी पास होने की अनुभूति दे रहा था 



मैन बस परिधि के ख्यालों में खोए रहना चाहता था इसलिए आज खाना भी जल्दी खा लिया और चुपचाप अपना गेट लॉक कर फिर से डूबा रहा परिधि के ख्यालों में।



कब सोया पता नहीं । और देखते देखते अब हम सब को दिल्ली से विदा लेने का वक़्त आ गया। दिल्ली के बिताये मेरे कुछ दिन ये मेरे लिए मेरी जिंदगी के बहुत ही खास दिन थे ।





अब फाइनली विदा ली दिल्ली और परिधि दोनों से और साथ छोड़ आया अपना दिल जो अब अपना नहीं था.....[Image: 1f622.png][Image: 1f622.png][Image: 1f622.png]



कहानी जारी रहेगी....
Reply


Messages In This Thread
RE: mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी ) - by sexstories - 03-21-2019, 12:24 PM

Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,526,456 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 547,202 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,242,874 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 939,547 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,668,621 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,093,750 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,972,709 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 14,126,947 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,058,823 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 287,344 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 1 Guest(s)