RE: mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
अपडेट - 30
अब मैं गुंजन दी और सुनैना निकले शॉपिंग करने। पर मुझे क्या पता था की अचानक से इस गुंजन दीदी का खुश होना और शॉपिंग पर जाना एक प्लान था ऐसा प्लान जिसने मुझे चौंका दिया......
जब शॉपिंग मॉल पहुंच तो गुंजन भागते हुए किसी एक ओर जा रही थी मैं बस गुंजन को यूँ जाते देख मैं भी उसके पीछे जाने लगा पर सुनैना मुझे लगातार किसी दूसरी तरफ चलने का बहाना कर रही थी..
मैं नहीं माना और चला गया उनके पीछे पर ये क्या यंहा तो गुंजन किसी के आलिंगन मैं थी किसके पता नहीं दोनों एक दूशरे को पगलों की तरह चुमे जा रहे थे और पुरे बदन पर एक दूशरे के हाँथ फेर रहे थे.....
मुझे तो बिलकुल जैसे बिजली का झटका लगा मैं चिल्लाते हुए.....
"आखिर तुम कर क्या रही हो जरा भी शर्म है की नहीं"
मेरी बातों से जैसे अब दोनों को होश आया तो वो लड़का मुझे गौर से देख रहा था अबतक सुनैना भी आ गयी थी और गुंजन अपनी पलकें झुकाए.....
"राहुल ये तुम्हारे होने वाले जीजाजी है निखिल और निखिल ये है मेरा कजिन रहुल"
निखिल.....हेलो राहुल ।
में...सुन ले ओ जीजे अपनी हरकतों पर थोड़ा काबू रखो अगर तुम्हारा इंगेजमेंट न होता तो, आज तू नहीं बचने वाले थे ।
मेरे बात से माहौल थोड़ा सीरियस हो गया फिर मैं हँसते हुए......
"चिलल जीजे अब तो हमारा मज़ाक यु ही चलता रहेंगा" पर मैंने गुंजन को जरूर कड़ी-खोटी सुनायी।
खैर दोनों बहनें को मैंने ड्रेस सेलेक्ट करने भेज दिया और मैं निखिल के साथ बैठ गया उस से बातें करने के लिये। बातों बातों में पता चला की निखिल चौहान साब की होटल चैन का सीईओ है। पर अभी तक मेरे और उनके बड़े मैं किसी को पता नहीं था ।
बातों से ऐसा भी लगता था की वो चौहान अंकल की इज़्ज़त भी बहुत करता है एक तरह से फैन था, हर दो लाइन मैं उनका जिक्र जरूर करता था । अब मैं निखिल को छेरते हुए...."सर जब चौहान साब इतने अच्छे है तो मैं सोच रहा हूँ गुंजन दी की शादी का प्रपोजल चौहान सब के पास ही ले जाऊं ।
निखिल समझ चूका था मैं मज़ाक कर रहा हूँ इसलिए हस्ते हुए....
" यह लो मोबाइल नो..********** और यह एड्रेस *********** आज ही रिश्ता लेकर जाओ अपनी बहन का "
फिर हम दोनों मुस्कुराते हुए बातें करते रहे पर अब मैंने सोचा की इन दोनों निखिल और गुंजन को थोड़ी प्राइवेसी देनी चाहिए इसलिए मैंने उन्दोनो को वंही मॉल मैं छोर दिया और मैं और सुनैना निकल पड़े । हालाँकि मेरे और सुनैना के बिच मैं हमेसा 36क आंकड़ा रहा है पर हालत को मध्य नजर रखते हुए हम दोनों साथ में थे ।
सुनैना.... राहुल तू मुझे कंहा ले जा रहा है।
मैं.... पता नहीं ।
सुनैना....तो पता कर ना ।
मैं.... मुझे क्या मालूम मैं दिल्ली के बड़े मैं क्या जानू ।
सुनैना....तो तू जानता क्या है।
मैं.... तू मुझ से लड़ क्यों रही है।
सुनैना.... मैं क्यों लड़ने लगी तू लाया है यंहा तो तुझे मालूम होनी चहिये।
मैं....अच्छा चिल कर चलते है किसी कॉफ़ी शॉप मैं वंहा कॉफ़ी का मज़ा लेंगे और आराम से सोचेंगे कान्हा चलना है ।
सुनैना.... हाँ ये ठीक रहेगा ।
फिर मैंने ड्रेस का बिल पे किया और पहुंचा वही कॉफ़ी शॉप जंहा मुझे परिधि ले कर आई थी। अभी हम बैठे ही थे की सुनैना को किसी का कॉल आया और वो उठ कर चली गयी बात करने। मैं अकेला और अकेला दिमाग शैतान का घर फिर मैंने परिधि को थोड़ा परेशान करने का सोचा ।
फ़ोन से कॉल लगते हुए परिधि को...
तिरिंग- तिरिंग, तिरिंग- तिरिंग, तिरिंग- तिरिंग,
परिधि....
बोलिये सर कैसे यद् किया आप तो फ़ोन नहीं करने वाले थे ।
मैं.....पहले सोचा 2 दिन की तुम्हे सजा दूँ पर अब मैं तुम्हे अभी सजा देना चाहता हू ।
परिधि.....हा हा हा सजा वह! वह! और जरा हम भी तो सुने की मेरी सजा क्या तय हुई है।
मैं....इंतज़ार करो अभी बता ता हूँ ।
"ये आज कल मैं भी कितना दफर होते जा रहा हूँ फ़ोन करने से पहले मुझे सोचना था न कैसे तंग किया जाए, अब इसे क्या बोलूं" मैं अभी यही सब सोच रहा था की....
तिरिंग- तिरिंग, तिरिंग- तिरिंग, तिरिंग- तिरिंग ( परिधि का कॉल )
मैं....
मैने तुम्हे कहा की मैं फ़ोन करता हूँ तो फिर तुमने फ़ोन क्यों किया ।
परिधि....मैंने सोचा राहुल जी अब परेशान हो गए होंगे कुछ सूझ न रहा होगा की क्या सजा दे, तो मैंने सोचा मैं ही कुछ मदद कर दुं ।
मैं..... देखो तुम कुछ जायदा ही स्मार्ट बन रही हो वो तो में, मैं तुम्हे फ़ोन करने ही वाला था ।
परिधि... क्या हुआ मेरा बच्चा, घबरा गया अच्छा चलो सजा ही सुना दो ।
मैं....( झूठा गुस्सा बनाते हुए ) नहीं अब सजा तय समय पर ही मिलेगी बाई फ़ोन कट ।
"यार मैं उस से जयादा रूढ़ तो नहीं हो गया कंही नाराज न हो जै" दिल मैं अजीब अजीब ख्याल। , 5 मि,10मि ,15 मि, अब तक कॉल नहीं आयी पर सुनैना जरूर आ गायी।
"कन्हा थी तू अब तक और ये किस से बात कर रही थी" चिंता मुझे परिधि के कॉल की थी और झुँझलाकर मैंने सुनैना से बोल दिया मज़े की बात तो ये थी की फ़ोन पर बात करने के बाद मुझ से जयादा पदेसन तो सुनैना थी अब बस क्या....
"तु मेरा बाप बन ने कोसिस मत कर, कंहा थी, किस से बात कर रही थी, अपना काम से काम रख न। मेरा जयादा सागा वाला बनने की कोसिस मत कर"
मै बस रोया नहीं, सुनैना की बातें मेरे कलेजे को चीरती चली गायी, अभी मेरी आत्मा तक रो रही थी पर आज आँखों मैं आंसू नहीं आए । मेरा चेहरा उतर गया पर मैं खुद को सँभालते हुए बिलकुल रोये रोये से आवज़ में....
"मुझे माफ कर दो तुम इतनी देर तक मुझे अकेला छोरा था तो मैं थोड़ा चीड गया था"।
इसके बाद मैं एक सब्द नहीं बोल, यदि कुछ पूछती या कहति तो केवल क्लोज आंसर हुह्, नहीं और हाँ ही बोलता । उसको शाम को घुमने की जिम्मेदारी ली थी सो मैं उसे यंहा से वंहा ये मार्किट से वो मार्किट घुमता रहा ।
बाद मैं मैंने गुंजन को मॉल से पिक किया और सुनैना को लेकर चल दी कार घर के तरफ। मैं रस्ते भर चुप रहा गुंजन ने मेरे चुप रहने के बड़े मैं पुछा भी तो मैंने बोल दिया हेडाचे हो रहा है। घर पहुंच गए मेरी अभी किसी से बात करने को दिल नहीं कर रहा था इसलिए मासी को हेडाचे का बहाना बोल चला गया रूम मैं और रूम लॉक कर दिया । फ़ोन डिसट्रब करती तो उसे भी ऑफ कर दिया।
बहुत टूटा था आज में। कोई भी परेशानी उतनी बड़ी नहीं होति, कोई भी ज़खम उतना गहरा नहीं होता जितना गहरा सदमा किसी के कटाक्ष भरे शब्दों का होता है और वो भी यदि बोलने वाला आप का कोई अपना हो....
कहानी जारी रहेगी.....
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