RE: Kamukta kahani हरामी साहूकार
खैर, उसकी तंद्रा तब टूटी जब उसे अपने कुल्हों पर नंदू के घुटनो के ठुड्डे पड़ते हुए महसूस हुए ,
गोरी का पूरा शरीर झनझना उठा उस स्पर्श से...
काश वो उसकी चूत को भी अपने लंड से इसी तरह से कूट डाले...
उसका इतना सोचना था की गोरी के मन में गंदी-2 बातों का सैलाब सा उमड़ पड़ा...
'उफ़फ्फ़....कैसा होगा मेरे बेटे का लंड ..इसके हष्ट पुष्ट शरीर के हिसाब से तो मोटा ही होना चाहिए...क्या लाला से भी बड़ा होगा...नही नही..लाला से बड़ा होता तो लाला की तरह उसके बेटे की भी चर्चा होती पूरे गाँव में ...हर लड़की और औरत उसके बेटे के लंड से भी चुदती .. पर कोई और क्यों चुदे उसके बेटे से...उसपर पहला हक़ तो उसका है ना...अपने बेटे के लंड को सिर्फ़ वही लेगी, किसी और को नही लेने देगी...'
और ये सब सोचते-2 उसने निश्चय कर लिया की आज कुछ भी हो जाए, वो उसके लंड को लेकर ही रहेगी...ले ना पाई तो कम से कम उसे देख ज़रूर लेगी...
और ऐसा सोचने के बाद उसके दिमाग़ में योजनाए बननी शुरू हो गयी...
पर वो नही जानती थी की मर्दों का ठरकी दिमाग़ इन मामलो में औरत से ज़्यादा चलता है,
जो इस वक़्त नंदू का चल रहा था, अपनी माँ को चोदने के बारे में सोचकर और उसके नर्म कुल्हो को महसूस करके..
जल्द ही अपनी-2 योजना बनाकर वो खेतो में पहुँच गये...
खेतों में काम करने के लिए गोरी ने एक अलग ही साड़ी और ब्लाउस वहां रखा हुआ था , साड़ी थोड़ी पुरानी थी, ताकि काम करते हुए हर बार कपड़े गंदे ना हो...
इसलिए खेतों में जाते ही वो सबसे पहले वो ट्यूबवेल वाले कमरे में जाकर अपनी साड़ी बदलती थी और शाम को नहा धोकर वापिस फिर से अपनी सुबह पहन कर आई साड़ी में घर आ जाती थी.
और ये बात नंदू अच्छे से जानता था...
इसलिए जैसे ही गोरी उस कमरे में गयी, नंदू भी भागकर पीछे की तरफ आ गया, जहाँ सरकंडों की दीवार में उसने अंदर देखने वाला एक छेद बनाया हुआ था...
वो तो सिर्फ़ अपनी माँ का सुडोल बदन देखने की चाहत में आया था जो उसे पेटीकोत और ब्लाउज़ में दिखना था,
पर बेचारा ये नही जानता था की आज उसे सुबह - 2 ही अपनी माँ के नंगे जिस्म के दर्शन हो जाएँगे...
कमरे में जाते ही गोरी ने बड़ी ही बेबाकी से अपनी साड़ी उतारी और फिर ब्लाउज़ भी खोकर निकाल दिया...
फिर उसने अपनी ब्रा भी उतार फेंकी...
अब वो सिर्फ़ अपने पेटीकोट में खड़ी थी,
अपनी माँ के तने हुए मुम्मे देखकर नंदू का तो दिमाग़ ही चलना बंद सा हो गया...
पर वो हैरान हो रहा था की आख़िर वो करना क्या चाहती है...
क्योंकि ये नहाने का समय तो है नही,
अभी कुछ देर पहले ही तो वो नहा धोकर घर से आई है...
पर ज़ाल्द ही उसे अपने सवालो का जवाब मिल गया...
उसकी माँ ने अपने पूरे शरीर को अपने कोमल हाथो से सहलाया, अपने निप्पल्स को उमेठा और फिर मंद-2 मुस्कुराते हुए ब्रा को छोड़कर सीधा ब्लाउज़ पहन लिया...
और वो बाहर खड़ा होकर सॉफ देख पा रहा था की बिना ब्रा के उन मुम्मो को ब्लाउज़ में धकेलने में कितनी मुशक्कत करनी पर रही है उसकी माँ को...
पर वो उन कबूतरों को उस कबूतरखाने में बंद करके ही मानी...
और उसके बाद जब सामने के सारे हुक्स बंद किए तो बीच-2 में से नंदू को अपनी माँ के जिस्म का नंगा माँस सॉफ दिखाई दे रहा था...
और दोनो तरफ थे एकदम कड़क होकर खड़े हुए निप्पल्स....
फिर उसने अपनी काम वाली साड़ी उठाई और उसे पहनने लगी...
नंदू भी जल्दी से वहां से निकलकर खेतों के बीचो बीच पहुँच गया ताकि उसकी माँ को उसपर कोई शक ना हो...
कुछ ही देर में उसे उसकी माँ अपनी तरफ आती दिखाई दे गयी...
जान तो वो चुका ही था की इस वक़्त उसकी माँ ने बिना ब्रा के ब्लाउज़ पहना हुआ है, पर ना भी जानता तो उन्हे दूर से ऐसे चलकर आते देखकर खुद ही जान चुका होता की ब्लाउज़ के अंदर कुछ भी नही है...
क्योंकि इतने बड़े-2 मुम्मो को ढीला छोड़ने के बाद उनकी फेलावट देखते ही बनती थी, लचक वो रहे थे सो अलग.
नंदू समझ गया की जैसे उसके दिमाग़ में अपनी माँ को चोदने के लिए प्लानिंग चल रही है, वैसा ही शायद उसकी माँ के मन में भी है...
पर ये भी तो हो सकता है की गर्मी की वजह से उसकी माँ ने ब्रा निकाली हो...
इसलिए उसने सोच लिया की पहले वो अपनी माँ की हरकतों को नोट करेगा, और उसे ज़रा भी आभास हुआ की उनके मन में चुदासी भरी हुई है, वो तुरंत उन्हे चोद डालेगा आज उसी खेत में.
वहीं दूसरी तरफ, अपनी ब्रा निकालने के बाद गोरी के बदन की आग और भी ज़्यादा भड़क चुकी थी, और वो आग उन मोटे-2 निप्पलो की वजह से दिखाई भी दे रही थी,
अपने योवन को अच्छे से दिखाने के लिए गोरी ने अपनी साड़ी का पल्लू इस तरह से डाला की एक पूरा मुम्मा सामने की तरफ सॉफ दिखाई देने लग गया और उसपर चमक रहा निप्पल भी...
वो नंदू के करीब आई और बोली : "चल नंदू, आज खेतों के चारों तरफ बनी नाली को ठीक करना है..., वरना हर कोने में पानी जाने में मुश्किल आएगी....''
नंदू भी माँ की बात मानकर उनके पीछे-2 चल दिया...
जाते हुए वो उनकी पीछे की तरफ निकली हुई गांड देखकर अपने लंड को मसल रहा था...
गोरी भी जानती थी की वो क्या कर रहा होगा, और वो चाहती तो झटके से पलटकर उसे लंड मसलते हुए रंगे हाथो पकड़ लेती ।
पर आज के दिन वो अपने बेटे को शर्मिंदा नही करना चाहती थी...
अलबत्ता उसे मज़े देने के लिए उसने एकदम से चलते-2 अपनी चाल पर डिस्क ब्रेक लगा डाली और परिणाम स्वरूप पीछे से आ रहा नंदू सीधा खड़े लंड के साथ उसकी गांड से आ टकराया....
उफफफफफफफफफफफ्फ़...
ये कपड़े बीच में ना होते तो वहीं बेंड बज जाना था...
वो कड़क लंड सीधा अंदर घुस जाना था उस रसीली चूत के..
हड़बड़ाते हुए नंदू थोड़ा पीछे हुआ और बोला : "क...क्या हुआ माँ ....ऐसे रुक क्यों गयी अचानक ...''
गोरी ने नीचे की तरफ इशारा करते हुए कहा : "ये नाली तो यहाँ से भी टूटी हुई है, पहले इसे ही ठीक कर लेते है...''
इतना कहते हुए वो अपनी साड़ी को घुटनो तक मोड़कर नीचे बैठ गयी...
वहां मिट्टी की नाली टूटने से पानी एक जगह जमा हो गया था, कीचड़ सा हुआ पड़ा था वहां
पर गोरी को इन सबकी आदत थी,
वो काम करते हुए ये नही देखती थी की कीचड़ है या गोबर...
बस कूद पड़ती थी...
कपड़ो की माँ चाहे चुद जाए, वो काम करके ही मानती थी...
अभी भी यही हो रहा था....
बैठ तो वो गयी थी वहां,
पर मिट्टी वाला पानी इतना था की उसकी गांड उसमे डूब सी गयी...
नंदू भी अपनी धोती को चड़ा कर सामने आकर बैठ गया और हाथो में पकड़ी खुरपी से वो मिट्टी उठा कर नाली की मरम्मत करने लगा....
काम करते हुए उसकी नज़रें जब सामने अपनी माँ पर गयी तो उसके हाथ वहीं जम कर रह गये...
बिना ब्रा के मुम्मे उसकी आँखो से सिर्फ़ 2 फुट की दूरी पर झूल रहे थे, और उनपर पके हुए बेर दूर से ही चमक रहे थे....
उपर से माँ के कपड़े भी गीले से हो रहे थे, और इधर-उधर हाथ लगने से ब्लाउज़ भी तोड़ा बहुत गीला होने लगा था, एक बार गीला होते ही पतले कपड़े ने पारदर्शिता दिखाई और वो गोरी के जिस्म से चिपक सा गया, अंदर की गोलाइयाँ सॉफ आकार में देखी जा सकती थी अब...
गोरी भी मंद-2 मुस्कुराते हुए अपने जलवे बिखेरने में लगी हुई थी....
वो जान बूझकर उस पानी वाली जगह पर बैठी थी ताकि कपड़े भी गंदे हो और शरीर भी गीला हो..
नीचे से मिल रही ठंडक भी गोरी को कुछ और करने के लिए उकसा रही थी....
और रही सही कसर नंदू ने पूरी कर दी क्योंकि बैठने से उसके लंड का उभार भी सॉफ दिखाई दे रहा था गोरी को...
अब आलम ये था की नंदू की नज़रें अपनी माँ की छाती पर जमी हुई थी और गोरी की नज़रें अपने बेटे के लंड पर... दोनो ही बिना हाथ-पाँव हिलाए उस कीचड़ में बैठे थे और एकटक एक दूसरे के अंगो को निहारे जा रहे थे....
कुछ देर बाद जब दोनो को एहसास हुआ तो अपनी-2 नज़रें चुराते हुए दोनो उठ खड़े हुए और आगे की तरफ चल दिए...
अब तो नंदू समझ चुका था की लोहा गर्म है, हथोड़ा मार देना चाहिए, और उसे पक्का विश्वास था की अब वो अपनी तरफ से कुछ भी पहल करेगा तो उसकी माँ चुद कर ही रहेगी उसके लंड से...
इसलिए एक ताज़ा-2 योजना बनाकर वो एकदम से अपने लंड को पकड़ कर चिल्लाने सा लगा...
उसकी माँ भी हैरान परेशान सी होकर उसे देखने लगी पर तब तक नंदू लंड को पकड़ कर वहीँ खेतों में लोटनियां मारने लगा..
गोरी : "हाय राम ...सब ठीक है ना..... क्या हो गया एकदम से तुझे....''
नंदू : "माँआआअ.......आआहहह...लगता है कोई कीड़ा घुस गया है अंदर.....अहह......काट लिया माँआआआआआआ''
गोरी को लगा की शायद उस कीचड़ में बैठने से कोई कीड़ा उसकी धोती में अटक गया होगा....
तभी बेचारा ऐसे छटपटा रहा है....
और जगह भी तो ऐसी है....
पर वो बेचारी क्या करे...
पर माँ तो माँ ही होती है ना आख़िर...
वो आगे बड़ी और तड़पते हुए नंदू के सिर को अपनी गोद में रखकर उसे शांत करने लगी...
पर फिर भी वो ऐसे छटपटाता रहा जैसे उसकी जान ही निकल जाएगी...
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