RE: Antarvasna kahani घरेलू चुदाई समारोह
“इतना गहरे तो पहले तुम कभी नहीं गये, सुनील…” मनीषा बोली- “चोदो इस चूत को और तुम भी झड़ो और मुझे भी तारे दिखा दो…”
सुनील को हमेशा इस बात से और उन्माद आता था, जब उससे चुदा रही औरत इस तरह की अश्लील भाषा का प्रयोग करती थी। उसने अपनी रफ्तार तेज़ कर दी। उसके लण्ड से निकली वीर्य की धार मनीषा की धार के साथ ही छूटी। दोनों जैसे स्वर्ग में थे।
मनीषा- “हे मेरे रब्बा… इतना आनंद… यही स्वर्ग है… और तुम फरिश्ते हो, सुनील…”
सुनील ने अपना सिकुड़ा हुआ लण्ड एक पाप की अवाज़ के साथ बाहर निकाला। उसने घड़ी देखी तो जल्दी से कपड़े पहनने लगा। उसका ग्राहक आने ही वाला था।
सुनील- “मैं चलता हूँ…” उसने जल्दी से विदा माँगी।
मनीषा- “तुम बड़े रूखे इन्सान हो…”
सुनील- “मैं तुम्हें बाद में मिलूंगाा अभी मुझे वाकई जल्दी है…”
मनीषा भी उठकर नहाने चली गई। हालांकि उनकी चुदाई तेज़ और तीखी रही थी पर उसे याद नहीं पड़ता था कि वह इतनी बार कभी झड़ी हो। उसने दो जबरदस्त पैग बनाकर पिये और एक लम्बा स्नान लिया। फिर वोह बाहर जाने के लिए तैयार हुई और हमेशा की तरह भड़कीले कपड़े पहने। अभी उसने अपने ऊँची एंड़ी के सैंडल पहने ही थे कि इतने में ही उसके दरवाज़े पर दस्तक हुई। यह सोचकर कि शायद सुनील का गोल्फ का साथी नहीं आया, उसने तत्काल ही दरवाज़ा खोला। पर उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि सजल आया था।
सजल बोला- “मनीषा आंटी, मैं अपने पापा को ढूढ़ रहा था, कुछ देर पहले मैंने उन्हें यहीं देखा था। मैंने सोचा शायद वो अभी यहीं हैं…”
“हाँ वो यहाँ थे तो सही… मेरी वाशिंग मशीन को ठीक कर रहे थे। पर वो कुछ मिनट पहले ही निकले हैं। किसी के साथ गोल्फ खेलने जाना था उन्हें… क्या तुमने उन्हें नहीं देखा…”
“फिर तो मैं उन्हें बाद में ही देख पाऊँगा। माफ करना आंटी मैनें आपको बेवजह परेशान किया… धन्यवाद…”
जब सजल वापस जाने के लिये मुड़ा तो मनीषा के दिमाग में एक शैतानी ख्याल आया। वो बोली- “रुको, सजल… तुम अंदर आकर क्यों नहीं मेरे साथ एक पेप्सी लेते…” कहकर उसने सजल को उसकी बांह से पकड़कर अंदर खींचा। उसके मन में आया कि कोमल से इससे अच्छा बदला क्या होगा कि उसका पति और बेटा दोनों उसकी गिरफ्त में हों…
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