RE: Antarvasna kahani घरेलू चुदाई समारोह
“कचोट लो उन्हें प्यारे। और एक अँगुली और डालो मेरी चूत में…” मनीषा ने विनती की। उसने सुनील का लण्ड हाथ में लिया और उसे सहलाना शुरू कर दिया। वह सुबह से चुदवाने को बेचैन थी और उसका पूरा जिश्म वासना की आग में झुलस रहा था। उसने सुनील की मुठ मारनी शुरू कर दी। फिर बोली- “पहले मुझे ज़रा नाश्ता तो कराओ…” कहते हुए उसने लेटते हुए सुनील का लण्ड अपने मुँह में ले लिया। मनीषा ने पूरे जोर-शोर से अपनी भूख मिटानी शुरू कर दी। वो तो उसे कभी न छोड़ती अगर सुनील जल्दी में न होता। उसने बेमन से सुनील का लण्ड अपने मुँह से निकाला।
“अब तुम मुझे चोदो राजा… वही पुराने तरीके से, तेज़ और गहरे… पेल दो ये मूसल मेरी चूत में…” मनीषा ने सुनील के लण्ड को अपनी चूत के मुँह पर रखकर कांपते हुए स्वर में सुनील से मिन्नत की।
“अरे मादरचोद…” जैसे ही वह हलब्बी लौड़ा अंदर गया मनीषा के मुँह से चीख निकली। सुनील ने एक ही धक्के में अपना पूरा लण्ड अंदर जो पेल दिया था।
“दे दो मुझे ये पूरा लंड़ पर जल्दी झड़ना नहीं। मुझे कई बार झाड़े बिना मत झड़ना। मुझे कई बार झड़ना है। कई बार…”
सुनील के लिये ये कोई आसान काम नहीं था। वो जितनी ताकत और तेज़ी से मनीषा को चोद रहा था उसमें अपने आपको काबू में रखना मुश्किल था। उसने अपना ध्यान दूसरी ओर करने की कोशिश की जिससे वह जल्दी न झड़े। उसने गोल्फ, अपनी नौकरी और अपने दोस्तों के बारे में सोचने की कोशिश की।
जब पहला झटका आया तो मनीषा फिर चीखी- “वाह रे मेरे ठोंकू… चोद मुझे… मैं जली जा रही हूँ। मेरी चूत में आग लगी हुई है। झड़ना नहीं, मेरा इंतज़ार करना, सुनील…”
सुनील खुद आश्चयर्चकित था कि इस घनघोर चुदाई के बावज़ूद वो अभी तक टिका हुआ था। उसका हौसला बढ़ा और उसने पूरी चेष्टा की कि मनीषा झड़-झड़ कर बेहाल हो जाए।
“तुम नीचे आओ…” मनीषा बोली।
“पर हमारे पास ज्यादा समय नहीं है…”
पर मनीषा नहीं मानी और सुनील को पीठ के बल लिटाकर उसके लण्ड को अपनी बुर में ठुंसकर कलाबाजियां खाने लगी। बोली- “मैं फिर से झड़ रही हूँ…” पर वह रुकी नहीं। दो ही मिनट में वो फिर बोली- “फिर से झड़ी, वाह क्या ज़िंदगी है…”
सुनील मनीषा के पुट्ठे पकड़कर उसे अपने लण्ड पर कलाबाजी खाने में मदद कर रहा था। वो उस चुदासी औरत की उछलती छातियों को देखने में इतना मस्त था कि उसे अपनी संतुष्टि का ख्याल ही नहीं आया। मनीषा के जिश्म ने एक झटका लिया और वो सुनील के ऊपर ढह गई। उसने सुनील का एक दीर्घ चुम्बन लिया और वह बिस्तर पर कुतिया वाले आसन में आ गई। उसका लाल चेहरा तकिया में छुप गया।
मनीषा- “एक बार मुझे इस आसन में और चोदो फिर मैं तुम्हें छोड़ दूंगी…”
सुनील ले अपने सामने फैली हुई गाण्ड को देखा तो उसके मुँह में पानी आ गया। उसने अपने हाथों से अपने भारी लण्ड को सम्भाला और मनीषा के पीछे जाकर अपना लण्ड उसकी गीली चूत में जड़ तक समा दिया। इस बार उसने इस बात का ध्यान नहीं दिया कि मनीषा झड़ेगी या नहीं। आखिर यह उसका भी आज का अंतिम पराक्रम था।
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