RE: Antarvasna kahani घरेलू चुदाई समारोह
प्रेम ने कहा कि उसके कमरे में शराब की एक बोतल रखी है जो वह उसके साथ बांटना चाहता है।
कोमल ने हामी भरी और वो अंदर चले गये। जितनी शराब उसने पी थी उसके बाद उसे और शराब की ज़रूरत नहीं थी। पहले से ही हल्के नशे के कारण वो ऊँची हील के सैंडलों में थोड़ी सी लड़खड़ा रही थी, पर वो यह जानती थी कि प्रेम का यह सुझाव उसे अपने कमरे में बुलाने का एक बहाना था। उसने अभी यह निश्चित नहीं किया था कि वो प्रेम से चुदवायेगी या नहीं, पर वो उसका साथ खोना नहीं चाहती थी। जब प्रेम ने उसके गिलास में वोडका डाली और पास आकर बिस्तर पर बैठा तो उसकी नज़र प्रेम के कच्छे से झाँकते लण्ड पर पड़ गई। प्रेम भी उसके वस्त्रों के अगले भाग से झाँक रहा था। उसके कपड़ों का निचला हिस्सा घुटनों तक चढ़ गया था। प्रेम समझ नहीं पा रहा था कि वो आंखों से किस अंग का सेवन करे - विशाल मम्मों का या चिकनी जांघों का।
“मैं भी शादीशुदा हूँ, कोमल। मैं अधिकतर अपनी पत्नी के साथ दगा नहीं करता, पर तुम इतनी सुंदर हो कि मैं…” वो कहते हुए रुक गया।
कोमल को भी आश्चर्य हुआ जब उसने अपने आपको यह कहते हुए सुना- “क्या तुम यह कहना चाहते हो कि तुम मेरे साथ हमबिस्तर होना चाहते हो…” शायद यह उस शराब का ही असर था जो उसने इतनी बड़ी बात इतनी आसानी से कह दी थी।
“हाँ…” प्रेम फुसफुसाकर बोला।
“तो आगे बढ़ो न…” वो भी वापस फुसफुसाई।
जब प्रेम की बलिष्ठ बाहों ने उसे घेरा तो उसे लगा कि वो बेहोश हो जायेगी। अपने पति से विश्वासघात करने के रोमांच ने उसकी ग्लानि को दबा दिया था। जब प्रेम ने उसके शरीर को बिस्तर पे बिछाया तो वो उससे चिपक गई। प्रेम ने एक प्रगाढ़ चुम्बन की शुरूआत की।
“मेरी गर्दन को चूमो और काटो…” कोमल बोली- “हाँ… हाँ प्रेम ऐसे ही, और जोर से…”
जब प्रेम ने उसके वस्त्रों के पीछे लगे ज़िप को खोलने की चेष्टा की तो कोमल बोली- “जल्दी मुझे नंगा करो प्रेम… मैं तुमसे अपने मम्मों को कटवाना चाहती हूँ… उन्हें भी उसी तरह काटो जैसे तुमने मेरी गर्दन को काटा था…”
प्रेम ने रिकार्ड समय में उसकी यह हसरत पूरी कर दी। कोमल ने अपने शरीर को बिस्तर पर ठीक से व्यविस्थत किया। “वाह, क्या शानदार गोलाइयां हैं…” प्रेम ने उसकी नंगी चूचियों को देखकर कहा।
“बातें मत करो, मेरी चूचियों को चबाओ…” कोमल ने प्रेम का चेहरा अपने स्तनों की ओर खींचते हुए कहा। हालांकि उसे तारीफ़ अच्छी लगी थी पर उसका संयम चुक सा गया था।
प्रेम ने वही किया। कोमल की चूचियां पहाड़ सी खड़ी थीं।
“काटो, मुझे यह बहुत अच्छा लगता है… चूसो, काटो… तुम मुझे तकलीफ़ नहीं दे रहे हो। तुम जितनी जोर से चाहो चूस और काट सकते हो…”
“रुको कोमल, तुमने मुझे उन्हें जी भरकर देखने ही नहीं दिया…” अपना मुँह हटाते हुए प्रेम ने कहा और उन हसीन पहाड़ियों का अवलोकन करने लगा।
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