Kamukta Story मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन
03-08-2019, 01:54 PM,
#69
RE: Kamukta Story मेरा प्यार मेरी सौतेली मा�...
मैने वो पेज फाडा और उसे फोल्ड करके अपनी जेब मे डाल लिया….फिर कॉपी और पेन बॅग मे डाला और वेट करने लगा….थोड़ी देर बाद मेरा कॉलेज आ गया….लेकिन मैं वहाँ पर नही उतरा….मैने टिकेट पहले से आगे तक ले रखी थी….करीब 5 मिनट बाद वो स्टॉप आया….जहाँ पर नाज़िया ने उतरना था…..वो अपनी सीट से खड़ी हुई…अपने पर्स को कंधे पर टांगा और बस के डोर की तरफ जाने लगी…मैं भी जल्दी से खड़ा हुआ अपना बॅग कंधे पर टाँग करके उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया…जब वो सीट से उठ कर घूमी थी तो उसकी नज़र मुझ पर पड़ी थी…उसे सब मालूम था कि, मैं अभी भी उसके पीछे खड़ा हूँ…अभी बस रुकी नही थी कि, सारे लोग लाइन मे खड़े हो चुके थे….मैने अपनी जेब से वो पर्ची निकाली और अपना हाथ नीचे करके आगे की तरफ खिसका दी…और मैने वो पर्ची नाज़िया के हाथ मे जैसे ही पकड़ाई तो, नाज़िया ने चोंक कर नीचे की तरफ देखा…मैं उसके हाथ की मुट्ठी को बंद करने पर लगा हुआ था….

उसने वो पर्ची को पकड़ ली…..लेकिन शायद उसके ख्यालातो से उसे रोका हुआ था…लेकिन फिर कुछ देर बाद मैने जब अपना हाथ हटाया तो, उसने वो पर्ची पकड़ रखी थी… उसके बाद लोग नीचे उतरने लगे…..मैं भी नाज़िया के पीछे उतर आया…और बिना उसकी तरफ देखे…रोड की दूसरी तरफ चला गया…वहाँ रिक्सा पकड़ कर अपने कॉलेज के लिए चल पड़ा…..कॉलेज तो पहुच गया था…लेकिन आज मेरा दिल किसी भी काम मे नही लग रहा था…मैं यही सोचता रहा कि, वो मंज़र कैसा होगा जब नाज़िया मेरे नीचे लेटी हुई मेरा लंड अपनी फुद्दि मे लेकर मुझसे चुदवा रही होगी…

मैं ऐसा क्या करूँ….कि नाज़िया मुझसे चुदवाने के लिए तैयार हो जाए….फ़ैज़ भी कॉलेज आया हुआ था….लेकिन मैने उससे कोई ज़्यादा बात चीत नही की अपने ही ख्यालों मे खोया रहा;…और सोचता रहा कि, नाज़िया को कैसे पटाऊ…पूरा दिन मेरे दिमाग़ मे यही सब चलता रहा…एक बात मेरे दिमाग़ मे ये भी थी कि, नाज़िया नही जानती कि वो लड़का मे हूँ…और वो सब इन कपड़ो की वजह से है…जिसमे उसने मुझे कभी नही देखा है…नाज़िया की नज़र घर पर कभी भी इन कपड़ो पर नही पड़नी चाहिए… और मुझे ऐसे दो तीन जोड़े और चाहिए होंगे….जो नये हो….लेकिन मेरे पास इतने पैसे नही थे कि, मैं नये कपड़े खरीद सकता…..बहुत देर सोचने के बाद मैने सोचा क्यों ना आज अब्बू के बॅंक जाकर उनसे पैसे माँग लूँ…लेकिन अगर वहाँ जाता तो, नाज़िया के सामने आने का भी ख़तरा था…

कॉलेज ख़तम हुआ तो फ़ैज़ और मैं कॉलेज से बाहर निकले तो, फ़ैज़ स्टॅंड से अपनी बाइक लेकर आ गया…”यार फ़ैज़ तेरे पास कुछ पैसे है क्या…..?” मैने आज तक किसी दोस्त से ऐसे पैसे उधार नही लिए थे…

..”क्या हुआ कितने पैसे चाहिए….?” फ़ैज़ ने मेरी तरफ देख कर हैरत से पूछा….

मैं: 2000 रुपये है तुम्हारे पास….

फ़ैज़: है लेकिन इतने पैसे का क्या करना है तुमने…..

मैं: यार वो कुछ नये कपड़े लने है…3-4 दिन बाद अब्बू से लेकर तुम्हे वापिस कर दूँगा….

फ़ैज़: कोई बात नही तूँ पैसे ले ले….जब तेरे पास हो तब वापिस कर देना….

फ़ैज़ ने मुझे 2000 रुपये दिए….और मैं फ़ैज़ के साथ मार्केट की तरफ चला गया…वहाँ अपने लिए 2 पेंट्स और 2 शर्ट्स खरीद लिए…..और एक जॅकेट भी खरीद लिया…अब रोज एक ही जोड़ा पहना कर तो कॉलेज नही जा सकता था….हम वहाँ से फारिघ् होकर गाँव की तरफ चल पड़े….जब हम गाओं पहुचे तो, गाओं के एक आदमी ने इशारा करके फ़ैज़ को बाइक रोकने को कहा….”क्या हुआ चाचा….” फ़ैज़ ने उस घबराए हुए आदमी की तरफ देखते हुए कहा….

आदमी: बेटा तुम्हारे दादा जी की मौत हो गयी है….तुम जल्दी से अपने घर जाओ…..

फ़ैज़ ने बाइक मे गियर डाला और तेज़ी से हम फ़ैज़ के घर पहुचे…तो वहाँ गाओं की कुछ औरतें नीचे बैठी हुई थी….फ़ैज़ के नजीदक रहने वाले रिस्तेदार भी आ चुके थे….बातो बातो मे पता चला कि 1 घंटे पहले ही फ़ैज़ के दादा की मौत हुई है….मैं थोड़ी देर वहाँ रुका और घर वापिस आ गया…..मैने डोर बेल बजाई तो साना ने गेट खोला….मैं उसकी तरफ देखे बिना वहाँ से अपने रूम मे आ गया….अपनी अलमारी खोली और वो सारे कपड़े रख कर अपने कपड़े चेंज किए…

अब मैं आपको थोड़ा शॉर्ट मे बता रहा हूँ….उस दिन और कुछ ख़ास ना हुआ…मेरा सारा दिन फ़ैज़ के घर गुज़रा….अम्मी अबू भी फ़ैज़ की अम्मी से मिलने के लिए आ गये…..अगले दिन सुबह जनाज़ा था….रात को अब्बू खाने के टेबल पर बड़े परेशान दिखाई दे रहे थे….मैने जब उनसे पूछा तो, उन्होने ने बताया कि, उनका ट्रान्स्फर दूसरी सिटी मे हो गया है….अब उनको दूसरी तरफ वाली सिटी मे जाना पड़ेगा… जिस तरफ से बस सुबह आती थी….उस तरफ….नजीबा का तो उसकी अम्मी ने पक्का बंदोबस्त कर दिया था…नजीबा के स्कूल की बस थी…जो सुबह मेन रोड पर आकर रुकती थी….और वही से वो बच्चो को स्कूल लेकर और ड्रॉप करके जाती थी…

उस दिन मैने नाज़िया पर बड़ी तवज्जो दी….उसकी किसी भी हरक़त से जाहिर नही हो रहा था कि, आज उसके साथ बस मे क्या हुआ था…और ना मुझे कोई हिंट मिल रहा था कि, जो उसके साथ मैं नक़ाब की आड मे कर रहा हूँ…वो उससे खुस है या परेशान… खैर अगले दिन सुबह मुझे मजबूरन कॉलेज से छुट्टी करनी पड़ी…क्यों कि फ़ैज़ मेरा बड़ा करीबी दोस्त था…वो सारा दिन भी फ़ैज़ के घर मे गुज़रा…जनाज़े के बाद घर आए लोगो के लिए खाने पीने का इंतज़ाम मे इधर उधर दौड़ते रहे…. 
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