RE: Hindi Sex Kahaniya हाईईईईईईई में चुद गई दु�...
ज्यों ही मेरी नज़र इस गरम गाने के सेक्सी सीन्स पर पड़ी .तो इस गाने के ये बोल सुनते ही मैने सोफे पर लेटे लेटे नीचे से एक बार फिर विनोद के मोटे,तगड़े लंड का जायज़ा लिया.
विनोद के तने हुए सख़्त लंड को अपनी आँखों के इतने करीब देख कर मेरी दिमाग़ ने एक दम अपना काम करना छोड़ दिया.
“हाईईईईईईईईईईईईईईईईई इतना सब कुछ होने के बाद खुद अब को मत रोको, और चाहे एक बार ही सही,आज एक नये लंड का स्वाद और मज़ा चख ही लो सायराआआआआ” विनोद के सख़्त लंड को देखते देखते मुझे ऐसा महसूस हुआ. जैसे हवस के मारे आज मेरी चूत ही मुझ से मुकताब हो रही है.और अपनी चूत को यूँ मुझ से बातें करते हुए महसूस कर के मुझे अपने प्यासे जिस्म की इस काफियत पर खुद भी हैरत हुई.
फिर अपने दिल की बात मानते और अपने शौहर यासिर की दिखाई हुई राह पर चलते हुए मेरी टांगे खुद ब खुद विनोद के मोटे ताज़े अनकट लंड के इस्तक़बाल करने के लिए मज़ीद चौड़ी होती गईं.
और एक मशराकी औरत का फ़र्ज़ निभाने की खातिर यासिर की तरह में खुद भी एक हिंदू मर्द के साथ गुनाह करने पर तूल गई.
ज्यों ही अपनी फुद्दि की गर्मी की वजह से मैने टांगे चौड़ी कीं. तो औरतों के मामले में माहिर खिलाड़ी और शातिर मर्द विनोद के लिए ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल नही रहा. कि अपनी जिस्मानी हवस के हाथों मजबूर हो कर मेरी हालत इस वक्त एक पके हुए उस फल की तरह हो चुकी है. जो हाथ लगाते ही एक दम से इंसान की झोली में आ गिरता है.
कमरे में इस वक्त में अपनी टांगे खोले विनोद के मोटे लंबे सख़्त लंड से अपनी छोटी सी चूत फाडवाने के लिए मचलने लगी थी.
तो दूसरी तरफ विनोद भी अब एक भूके शख्स की तरह मेरी चूत का पका हुआ फ्रूट खाने के लिए बे सबरा हो चुका था.
अपने मोटे लंड को हाथ से सहलाते हुए विनोद आहिस्ता आहिस्ता चलता हुआ मेरी चूत के खुले मुँह के नज़दीक आया. और अपने गर्म और पत्थर की तरह सख़्त लंड को मेरी पानी से शरा बोर चूत के होंठों पर रगड़ने लगा.
विनोद के मोटे ताज़े और जवान लंड का अपनी गरम प्यासी चूत के साथ टकराव महसूस करते ही मेरी गीली चूत एक दम कांप सी गई और मेरे मुँह से बे इकतियार एक सिसकी निकल गई ““हाआआआआआआआआआअ”
“अपनी गान्ड के नीचे हाथ रख कर अपनी इस भारी गान्ड को उपर उठाओ सायराअ” ज्यों ही विनोद का लंड पहली बार मेरी फुद्दि के मुँह से छुआ. तो अपने लंड के मोटे टोपे को मेरी फुद्दि के बहते पानी से गीला करते हुए विनोद ने मुझ से कहा.
इधर विनोद ने मुझ से ये फरमाइश की और उधर मैने अपनी गान्ड के नीचे हाथ डाल कर अपनी गान्ड को उपर की तरफ उठा दिया.
“उफफफफफफ्फ़ अपने शौहर के हिंदू दोस्त की फरमाइश तो में ऐसे पूरी कर रही हूँ, जैसे यासिर की जगह विनोद ही अब मेरा शौहर हो” विनोद के कहने पर अपने हाथों की मदद से अपनी गान्ड को हवा में उपर उठाते हुए मैने सोचा,तो मुझे अपनी इस हरकत पर खुद भी हैरत हुई.
असल में विनोद की बात को मानते हुए उस पर अमल करने की वजह ये थी. कि अपनी जिन्सी हवस और विनोद की दिलकश शक्सियत के सहर में खो कर मेरी हालत अब एक कठ पुतली जेसी हो गई थी. जिसे विनोद अब अपने इशारों पर नचाने लगा था.
और में भी अब किसी मजबूरी की हालत या किसी ज़ोर जबर्जस्ती की वजह से नही, बल्कि खुशी खुशी विनोद के इशारों पर नाचने में मसगूल होने लगी थी.
फिर विनोद के कहने के मुताबिक जैसे ही मैने अपने हाथों की मदद से अपनी गान्ड को उपर की तरफ उठाया. तो मेरी चूत का मुँह विनोद के मोटे लंड के लिए एक दम से पूरे का पूरा खुल गया.
विनोद ने अपने लंड को मेरी चूत के खुले मुँह के ऐन उपर रख कर एक मंझे हुए खिलाड़ी की तरह अपना एक पावं सोफे पर रखा. और फिर अपने जिस्म को थोड़ा से नीचे झुकाते हुए अपने लंड को हल्का सा धक्का मारा.
तो विनोद के अनकट हिंदू लंड का मोटा टोपा मेरी चूत के रास्ते हुए पानी से पिच पिच करती मेरी गीली पाकीज़ा मुस्लिम चूत की दीवारों से रगड़ ख़ाता हुआ मेरी उस फुद्दि के अंदर दाखिल हो गया. जिस चूत ने आज तक अपने शौहर यासिर के अलावा किसी और मर्द के लंड का ज़ायक़ा नही चखा था.
इधर विनोद के अनकट लंड के छोड़ टोपे ने मेरी फुद्दि के माखन जैसे गुदाज होंठों को किसी तेज छुरी की तरह चीरते हुए नीचे से मेरी मासूम फुद्दि का मुँह खोला तो मज़े और दर्द के एक मिले जुले अहसास की वजह से उपर से मेरा मुँह खुद ब खुद खुलता चला गया. और मेरे मुँह से बे इकतियार एक लंबी सिसकी निकल गई “हाईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई ओह”
शादी शुदा होने के बावजूद मुझे विनोद के लंड को अपनी तंग फुद्दि में लेते हुए ऐसी तकलीफ़ हुई. जैसे में आज अपनी सुहाग रात में पहली बार किसी मर्द का लंड लेने लगी थी.
मेरी फुद्दि विनोद के मोटे लंड के इतनी टाइट थी. कि मेरी चूत काफ़ी गीली होने के बावजूद विनोद के लंड का सिर्फ़ मोटा टोपा ही मेरी फुद्दि के अंदर जा सका था.
“ओह विनोद के मोटे टोपे की मोटाई और उस के अनकट लंड की रगड़ के स्वाद से तो मेरी मुलायम फुद्दि का रोम रोम ही मचल उठा है, जो सरूर और स्वाद विनोद का ये अनकट हिंदू लंड इस वक्त मेरी इस पाकीज़ा चूत को पहुँचा रहा है, ये लज़्जत और मज़ा तो मुझे अपनी सुहाग रात को यासिर से अपनी कुँवारी चूत की सील तुड़वाते भी नही महसूस हुआ था, वैसे लंड तो लंड ही होता है,और लंड को चूत में लेने का अपना ही एक मज़ा है, मगर मुझे यासिर के लंड से कभी ऐसी लज़्जत क्यों नही मिली,जेसी इस वक्त मुझे विनोद के लंड से मिल रही है ” अपनी दो साला शादी शुदा ज़िंदगी में आज पहली बार अपने शौहर के लंड के अलावा किसी और मर्द का लंड अपनी गरम चूत में लेते हुए मेरी फुद्दि को जो अनोखा मज़ा मिल रहा था. उसी मज़े से बे हाल होते हुए मेरे ज़हन में ये ख्याल आया.
मगर मुझे इस वक्त अपनी इस सोच का कोई फॉरी जवाब ना मिल सका. कि मर्द होने के नाते जब यासिर और विनोद दोनो के पास लंड है. तो यासिर और विनोद के लंड का मज़ा फिर अलग अलग क्यों है.
अभी में अपनी इस सोच में गुम थी. कि इतने में मुझे की विनोद की आवाज़ सुनाई दी ““उफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ तुम्हारी फुद्दि तो बहुत ही टाइट है,देखो तो सही केसे मेरा लंड तुम्हारी फुद्दि में फँसा हुआ है, ऐसे लगता है जैसे यासिर ने तुम्हारी चूत को अभी तक सही तरीके से नही चोदा है, इसीलिए तुम्हारी चूत में लंड डालते वक्त मुझे यूँ लग रहा है, कि जैसे में आज किसी कुँवारी चूत में पहली बार अपना लंड डाल रहा हूँ में सायराआआआ” विनोद ने मेरी चूत के मुँह में अपने लंड की फँसी हुई टोपी की तरफ इशारा करते हुए मुझ से कहा.
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