Hindi Sex Stories By raj sharma
02-26-2019, 09:38 PM,
RE: Hindi Sex Stories By raj sharma
राज ओर नौकरानी राधिका का प्यार


हेलो दोस्तो मैं यानी आपका राज शर्मा एक ओर कहानी लेकेर आपकी सेवा मैं हाजिर हू दोस्तो कहानी पढ़कर एक कमेंट तो दे दिया करो
हमारे घर मे के औरत आती थी बर्तन मांझणे, उसका नाम था राधिका, बहुत ही खूबसूरत,
शादी शुदा,मैं भी शादी शुदा हून.ईत्नि खूबसूरत की देखते ही मान ललचाए,हमेशा घागरा चोली पहनती थी और उपर से एक चुनी,कई बार जब चुनी नीचे गिर जाती थी तो चोली के उपर से उसके उभरे दो बूबे दिख जाते थे,जो मुझे और भी गरम कर देते थे, लगता था की नीचे से ब्रसियर नहीं पहनी हो और किया चाल थी, पीच्चे से मैं उसे देखता ही रह जाता था, लचीले दो तारे जीली की काँपते. जी करता था पीच्चे से ही उसे अपनी बाहों मे जाकर लून, मगर तमन्ना दिल मे ही रह जाती थी, कई बार तो उसका ख़याल दिल मे लाकर मुट्ठी भी मार चुका था.
ऐसे ही एक बार मेरी औरत अपनी बहन के घर गयी हुई थी हमारे बचे के साथ लेकर और वहीं रात बिताने का वीछर थ.शाम का समय मैं अकेला था घर मे और राधिका आई बरतन मांझणे, मेरे दिल मे तेज़ गुदगुदी सी होने लगी, अकेला घर, उसमे वो और मैं अकेले, सोच रहा था काश उसको बाहों मे भर कर नंगा कर डून, और उसके खूबसूरत जिस्म को देख सकून.Mअगर हमेशा की तरह अपनी इच्छा को दबाए रखा, ऐसा करना ठीक नहीं था, वो शादी शुदा और मैं भी. पर ऐसे महॉल मेमैन बहुत ही गरम हो रहा था और अपने लंड को अपने आप ही मसलने लगा, राधिका रसोई मे बर्तन मांझ रही थी, रसोई के बाद बैठक थी और उसके बाद मेरा कमरा, जैसे की मुट्ठी मारने मे और भी मज़ा आए तो मैने कमरे मे रखे ड्रेसिंग तबले के आईने को घुमा कर ऐसे रखा जैसे की कमरे के दूसरे तरफ खरे होकर मैं बैठक का दरवाज़ा देख सकूँ जहाँ से राधिका बर्तन मांझणे के बात आती और मैं एक दम नंगा होकर अपने लंड से को मसालने लगा और आईने की तरफ देखता रहा, सोचा अगर उसने देख लिया और कुच्छ कहती भी है तो कह देता मैं तो अपने कमरे मे कापरे बदल रहा था और आईने की तरफ ध्यान नहीं गया की बाहर से दिख रहा है.
थोरी देर के बाद बर्तन ढोने की आवाज़ बंद हुई और मेरा दिल और भी ज़ोर से धरकने लगा, किसी भी समय वो आईने मे दिखे और ऐसा ही हुआ उसे देख कर मैं ऐसे करने लगा जैसे अपने कापरे बदल रहा हूँ, कुच्छ पल के बाद मैने अपनी आँखें उपर उठाई तो देखता ही रह गया, वो अभी तक आईने से दिख रही थी और उसका एक हाथ चोली के अंदर बूब्स से खेल रहे थे और दूसरा हाथ घग्रे के उपर से छूट पर रखा था, शायद उसने मुझे आईने से देख लिया था, मेरी धरकन और भी तेज़ होने लगी, समझ गया की आग उधर भी लगी थी, दो बार नहीं सोचा और धराकते दिल से वैसे ही नंगा मैं बाहर की तरफ गया, वो मदहोश आँखें बंद किए अपने जिस्म से खेल रही थी, मेरे आने की आहत से चौंक उठी और घबरा कर जल्दी से अपनी चुनी ठीक करने लगी और मैने उसके हाथ थाम लिए और कहा--"घबराव मत राधिका, मैं भी तुम्हे प्यार करने के लिए बेचैन हो रहा हूँ."
शरमाती घबराती कहने लगी--"आपको आईने मे नंगा देख कर अपने आप को रोक नहीं पाई, एक मीठी सी गुदगुदी होने लगी थी, मगर मैने नहीं समझा की आप मुझे देख लोगे." उसकी इस अदा ने मुझे और भी मदहोश कर दिया और कहा--"मैने जानभुज कर आईना ऐसे ही रखा था जैसे मैं तुम्हे देख सकूँ और शायद तुम भी मुझे देख सको." उसका कोमल चेहरा अपने दोनो हाथो मे लेते हुए आगे कहा--" तुम बहुत ही खूबसूरत हो राधिका, तुम्हारा यह चेहरा एक गुलाब के फूल जैसा सनडर है और तुम्हारे यह दो होंठ जैसे गुलाब की दो पंखुरियँ हो, चूमने को जी करता है." शरमाते हुए कहने लगी--"मुझे जाने दो बाबूजी, यह ठीक नहीं है, मुझे शरम आती है." उसकी अनसुनी करके मैने अपने तपते होंठ उसके काँपते होंठो पर रख दिए, कितने कोमल होंठ थे उसके, कितनी मिठास थी उन होंठो मे.
शरमाती, अपनी आँखें झुककर कहने लगी--"ऐसा मत कहिए बाबूजी, ऐसा मत कीजिए, मैं सह नहीं पवँगी, आज तक किसी ने मेरी तारीफ नहीं की, मैं तो खामोश अपने टन को राहत देना चाहती थी, आप का नंगा बदन,उठा हुअ...ंऐन तारप उठी, पर आप ने देख लिया."
मैने हैरानी मे पूचछा--"क्यूँ, तुम्हारा मर्द तुम्हारी तारीफ नहीं करता, इतनी हसीन,इतनी खुबुसरत हो तुम."
अपना सिर नीचा कर लिया उसने--"कहना नहीं चाहिए, पर मेरा मर्द तो शराब के नशे मे धुत रात को आता है और मेरी तरफ देखता भी नहीं, जब उसकी इच्छा होती है अपनी पतलून नीचे करके मेरा घग्रा उपर करके बस अपनी आग ठंडी कर लेता और मैं तारपति रह जाती हूँ, उसे भी कितने महीने हो गये, शराब के नशे मे आते ही सो जाता है, कभी कभी तो खाना भी नहीं ख़ाता, लरखरते हुए आता है और सीधा बिस्तर मे जाकर सो जाता है."
"तुम्हारा मर्द बदनसीब है, इतनी सनडर औरत और देखता भी नहीं, मैने तो जब से तुम्हे देखा है, फिदा हो गया हूँ तुम पर. जी करता है तुम्हे देखता ही रहूं, अपनी बाहों मे लेकर प्यार करूँ और तुम्हारा यह प्यारा मुखरा चूमता रहूं." कहते हुए मैने उसे अपने आगोश मे ले लिया. चुपचाप मेरी बाहों मे समा गयी और अपना सिर मेरे सीने पर रख लिया, उसे बहुत ही राहत मिल रही थी, उसका घबराना कुच्छ कम हुआ था. इन सभ बातों मे मेरा लंड भी तोरा सा मुरझा गया था, उसका खूबसूरत, कोमल जिस्म मेरी बाहों मे था, मुझे भी बहुत ही अच्छा लगा रहा था, थोरी देर तक ऐसे ही उसे आप्बी बाहों मे बँधे रखा और फिर उसके गाल को सहला कर उसका मुहन उपर किया, हमारी निगाहें मिली, प्यार भरा था उसकी आँखों मे, उसे अपना महसूस कर रहा था, शायद वो भी ऐसा ही महसूस कर रही थी इसीलिए वो भी बेफिकर मेरी बाहों मे बँधी थी, मैने उसका माता चूम लिया और उन प्यारी सी आँखों पर अपने होंठ रख कर एक चुंबन दिया और कहा--"राधिका, आज मैं तुम्हे प्यार करके तुम्हारी यह तारप निकाल दूँगा, और तुम्हे महसूस करौंगा की तुम वाकई मे कितनी हसीन हो." कहते हुए मैने अपने होंठ उसके होंठो पर रख दिए, इस बार वो नहीं हटी और मेरे चुंबन का जवाब अपने चुंबन से दिया, मैने अपने होंठ नहीं हटाए और उसका होंठ अपने होंठो के बीच लेकर चूसने लगा, जवाब मे उसने भी मेरा उपर का होंठ चूसने लगि.बिन होंठ हटाए कहने लगी--"मुझे पिघल दिया तुमने, बेताब थी ऐसे चुंबन के लिए, मेरा दिल इतना धारक रहा है की ऐसे लग रहा है की उच्छल कर बाहर आ जाएगा."
उसके गाल को चूम कर कहें लगा--"मैं भी सुनू कैसे धारक रहा है तुम्हारा दिल."
कहते हुए मैं नीचे हुआ और अपना कान उसके कोमल सीने पर रख दिया, एक लंबी साँस ली उसने, वाकई मे बहुत ही तेज़ धारक रहा था, मेरी बाहें उसकी कमर के इर्द गिर्द थी, साँस लेकर उसने अपना एक हाथ मेरी पीठ पर रख दिया और दूसरा हाथ मेरे बालों मे डाल कर अपनी तरफ हल्के से दबाया, उसकी धरकने सुन कर अपने होंठो से चोली के उपर से ही उसके बूबे चूमने लगा और उसकी एक निपल पर अपने होंठ रख कर एक चुंबन दिया, वो सिसक उठी, पीच्चे हाथ करके उसकी चोली को ढीला करके चोली उतार दी, उसके तारपते दो कोमल पांच्ची आज़ाद होकर उच्छल कर बाहर आ गये, नंगे बूबों पर चूमा और फिर उसकी निपल अपने होंठो मे लेकर छुपने लगा, उपर होते हुए गले को चूमता हुआ फिर उसके होंठो पर अपने होंठ रख चूमा और अपनी जीभ से उसकी जीभ टटोलने लगा, उसने मेरा साथ देते हुए अपनी जीभ मेरी जीभ से मिला ली और दोनो एक दूसरे को चूमने और चूसने लगे.
मेरा लंड फिर से टाइट होने लगा था, उसके बूब्स मेरे सीने से डब रहे थे, उसकी धरकन मेरी धरकन से मिल गयी थी, उसके घग्रे का नारा खोल दिया मैने, नारा ढीला होते ही घग्रा एक दम नीचे फर्श पर गिर गया, उसके तारे दबाते हुए और होंठ चूस्ते हुए मैने अपना एक हाथ उसके छूट पर रख दिया और नीचे होते हुए उसका कच्चा भी नीचे करने लगा,
घुटनो के बाल बैठ कर अपने होंठ उसकी छूट के बालों पर रख कर चूमा तो फिर सिसक उठी , अपनी जीभ से छूट के होंठ पर रख कर उसे गुदगुदी करने लग.उस्ने मेरे सिर को थाम कर अपनी छूट की तरफ दबाया और मैं उसकी छूट को चाटने लगा, मुझे भी इच्छा हो रही थी की राधिका भी मेरे लंड को अपने कोमल हाथो मे लेकर मसले और अपने नाज़ुक होंठो के बीच लेकर छुपे, मैं उठा और उसे नीचे घुटनो के बाल बिता कर अपने लंड को थाम कर उसके गालो पर सहलाने लगा, वो अपना मुहन खोलकर लंड को पाकरने की करने लगी, तोरा सा उसे तरपा कर मैने अपना लंड उसके होंठो पर रख दिया, चूमते हुए उसने आहिस्ता से जितना अंदर जेया सकता था उतना लंड मुहन मे डाल दिया और धीरे से बाहर निकालने लगी चूपते हुए, जब लंड की मुंधी पर पहुचि तो ऐसे छुपने लगी जैसे लॉली-पोप चूस रही हो, बहुत ही मीठी सी गुदगुदी होने लगी मुझे, फिर आहिस्ता से लंड को अपने मुहन मे वैसे ही डाला और फिर धीरे धीरे निकाल कर चूसने लगी, मैने उसका सिर थाम कर अपनी तरफ दबा कर उसके मुहन मे छोड़ने लगा, उसने एक हाथ मे मेरे बॉल्स पाकर लिए थे और धीरे से दबा कर सहला रही थिंऐने उसे उठाकर उसका हाता थाम कर कहा--" तुम्हारी खूबसूरती देखने दो राधिका"
अपने से तोरा सा डोर करके उसका खुबुसरत नंगा जिस्म देखने लगा--"वाकई मे तुम बहुत ही खुबुसरत हो, एक गुलाब के फूल की तरह हसीन और कोमल." शर्मा कर आँखें झुका ली और झट से मेरी बाहों मे समा गयी अपना सिर मेरे सीने पर रख कर, हमारे नंगे जिस्म एक दूसरे मे समा गये थे, इतना ज़ोर से अपनी बाहों मे दबाया की उसकी साँस थमने लगी, अपने से अलग करके उसके होंठ और जीभ चूस्ते हुए अपनी बाहों मे उपर उठा लिया, उसने अपनी दोनो टाँगे मेरी कमर से बाँध ली, उसके बूब्स मेरे होंठो के करीब और मेरा उठा हुआ लंड उसकी छूट को छ्छूने लगा, उसके बूब्स चूपते हुए अपने लंड को उसकी गरम छूट पर सहलाने लगा, एक दूसरे की गर्माहट से दोनो मदहोश हुए जेया रहे थे, हल्के से मैं उसकी छूट के अंदर गया, मदहोशी मे बाल खाने लगी राधिका, और लिपट गयी वो मुझसे, एक झटके से लंड को और अंदर डाला तो उसके मुहन से एक चीख निकल आई, मैं उसे छोड़ने के लिए पागल होने लगा, दीवार का सहारा लेकर अपनी गोदी मे लिए उसे और ज़ोर से छोड़ने लगा, उसकी कोमल छूट की धरकन मैं अपने लंड पर महसूस कर रहा था जो मुझे और भी मदहोश किए जेया रही थी, उसे डाइनिंग तबले पर लिटा कर मैने उसकी टाँगे खोलकर उपर कर दी और झांगो को सहलाते थामे और फिर उसकी छूट को छुपने लगा, छूट के दोनो होंठो को साथ लिए अपने होंठो मे लेकर चूसा और जीभ से बीच मे सहलाने लगा, उसके सारे जिस्म मे गुदगुदी होने लगी थी और इधर से उधर बाल खाने लगी, मैं फिर खरा हुआ टॅंगो को खोले मैने अपना टाइट लंड उसकी छूट के उपर रखा, मगर अंदर नहीं डाला और दबाते हुए अपने दोनो हाथो से उसके दोनो बूब्स थाम कर दबाते हुए मसलता हुआ लंड को छूट से दबाते हुए आगे झुका और एक एक करके उसके बूब्स के निपल चूसे और फिर उसकी टॅंगो को थाम कर लंड को एक ही झटके मे छूट के अंदर डाला, एक और चीख निकली उसके मुहन से, दर्द से बिलख उठी, पर गुदगुदी भी बहुत हो रही थी, तबले को थामे और माँगने लगी--"और ज़ोर से चोद राज." उसके मुहन से मेरा नाम और भी अच्छा लगा, हमेशा बाबूजी कहती थी, तोरा और छोड़ा, लंड को छूट से निकाले बिना उसे उठाया और वैसे ही अपनी गोदी मे ले लिया, अपनी टाँगे मेरी कमर पर बाँध ली उसने और उसे अपने बेडरूम मे ले गया. बिस्तर पर सुला कर उसे सिर से पावन् तक चूमने लगा और रह रह कर जीभ से चाट भी रहा था, जब मेरे होंठ उसकी छूट पर रुके तो फिर सिसक कर बाल खाने लगी, इतनी तेज़ गुदगुदी होने लगी थी की अपनी टाँगे बंद करने लगी.
मैने उसकी दोनो टाँगे खोलकर उपर कर ली और छूट का हसीन नज़ारा देखने लगा, गुलाबी, गीला छूट उस पर काले, घुंघराले बॉल बहुत ही अच्छा लग रहा था, उसका लचीला जिस्म, टाँगे एक दम पीच्चे कर ली उपर उठाते हुए और मैने अपना टाइट लंड उसकी छूट मे डाल दिया, दर्द और मज़े से तारपने लगी, अपने सिर को आँखें बंद किए इधर से उधर करने लगी, उसके बॉल उसके चेहरे पर बिखरे,होंठ भींचे हुए उसे और भी खूबसूरत कर रहे थे, और मैं पàअग्लों की तरह उसे छोड़ने लगा, राधिका दर्द को सहन नहीं कर पा रही थी और मुझे नीचे उतार दिया, मैने उसके कोमल जिस्म से लिपट परा, दोनो के होंठ एक दूसरे से मिले, एक दूसरे को चूस्ते हुए उसे पलटा कर मैं नीचे हुआ और उसे अपने उपर कर दिया, मेरे होंठ चूमते हुए वो नीचे हुई और मेरे खरे लंड को अपने हाथ मे लेकर मसालते हुए अपने मुहन मे डाल दिया और ज़ोर से उपर नीचे करते छुपने लगी, इस बीच मे उसकी छूट का दर्द तोरा सा कम हुआ तो मेरे दोनो तरफ टाँगे करके छूट के अंदर लंड डाल कर उपर नीचे होने लगी, मैने भी उसकी कमर थाम कर अपनी कमर को उपर नीचे करके उसे छोड़ने लगा, अब बर्दाश्त से बाहर था, लंड मे बहुत ही तेज़ गुदगुदी हो रही थी, उसे पलट कर फिर उसे नीचे करके मैं उसके उपर हुआ और ज़ोर से छोड़ने लगा, बस लंड और नहीं सहन कर पाया और एक पिचकारी निकली मेरे गरम पानी की और छूट को अंदर से भिगो दिया, मेरा गरम पानी अंदर महसूस करके वो भी ज़ोर से अपनी कमर को इधर उधर हिला कर मुझसे से और भी लिपट गयी अपनी दोनो टाँगे मेरी कमर से लपेट कर अपने से चिपका लिया, उसका शरीर काँप रहा था. कितनी देर तक हम ऐसे ही एक दूसरे की बाहों मे लपेटे सोए रहे, मेरे होंठ चूमते हुए उसने कहा--" राज, आज पहली बार अपने को एक औरत महसूस किया है, अभी तक तो ऐसे लगता था जैसे मैं अपने मारद का खिलोना हूँ, जब उसे जी चाहता है मेरे जिस्म से खेल लेता है, बिना यह सोचे की मैं किया चाहती हूँ."
होंठो से होंठ मिले रहे,"मुझे खुशी हुई की तुम्हे अच्छा लगा, मुझे भी तुमसे प्यार करके बहुत ही अच्छा लगा." मैने जवाब मे कहा.
"पहली बार महसूस किया है प्यार का मज़ा, पहली बार महसूस किया है सेक्स का आनंद, मुझे तो ऐसा महसूस लग रहा है जैसे मुझे पंख लग गये हो और मैं उरह रही हून.इत्न आनंद मिला की मेरा जिस्म काँप रहा था, ख़ासकर जब मेरी छूट चुप रहे थे, जब तुम्हारा गरम पानी अंदर गहराई मे महसूस किया, मैं तो अपने होश खो रही थी."
"यह ऑर्गॅज़म था जो तुम्हे इस तरह कंपन दे रहा था तुम्हारे जिस्म मे." मैने उसके बॉल सहलाते हुए, चूमते हुए कहा.
"अब मुझे जाना चाहिए, और भी भर हैं जहाँ काम करना है."
"जी तो करता है, ऐसे ही मेरी बाहों मे समय रहो, मुझे अच्छा नहीं लगता की तुम दूसरे के घर मे बर्तन मांझणे का काम करो, अगर मैं तुम्हारे लिए कुच्छ कर सकूँ तो सिर्फ़ कहने की देर है." मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मुझे उस से प्यार हो गया हो.
"मेरी फिकर मत करो, मुझे कुच्छ भी ज़रूरत होगी तो मैं तुम्हे कह दूँगी." मेरे होंठ चूमते हुए उसने कहा और मुझसे अलग होकर उठी और कापरे पहनने लगी और मैं चुपचाप उसे देखता रहा, उसे देख कर मेरी दिल की धरकन मेरे काबू मे नहीं थी और प्यार करने को जी कर रहा था, शायद राधिका ने मेरे दिल की बात सुन ली थी और कहने लगी--"जब भी मौका मिलेगा और अगर नहीं मिलेगा तो ढूँढ लेंगे इसी तरह प्यार करने के लिए.
कपड़े पहन कर जाने लगी, मगर जाने से पहले हम एक बार फिर एक दूसरे की बाहों मे बन्ध गये.
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Hindi Sex Stories By raj sharma - by sexstories - 02-24-2019, 01:16 PM
RE: Hindi Sex Stories By raj sharma - by Pinku099 - 03-07-2019, 10:48 PM
RE: Hindi Sex Stories By raj sharma - by sexstories - 02-26-2019, 09:38 PM

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