Hindi Sex Stories By raj sharma
02-26-2019, 09:28 PM,
RE: Hindi Sex Stories By raj sharma
हिंदी सेक्सी कहानियाँ
मासूम--2
गतान्क से आगे...................
विट्ठल ने जो भी उसके शरीर के अंदर छोड़ा था, अब वो बाहर निकल कर उसकी
टाँगो पर बहता महसूस हो
रहा था.
उस दिन जो हुआ था, उसका ज़िक्र सिरिशा ने कभी किसी से नही किया. फादर
पीटर से भी नही.
2 हफ्ते बाद ही उसे वो खबर सुनने को मिल गयी थी. गाओं में हर कोई इसी
बारे में बात कर रहा था.

विट्ठल की शादी राजलक्ष्मी से होने जा रही थी. विट्ठल की तरह ही
राजलक्ष्मी का परिवार भी आस पास के इलाक़े मे काफ़ी जाना माना था. पर
जहाँ विट्ठल के घरवाले सिर्फ़ व्यापारी थे और सिर्फ़ कपड़ो और जूतो का
धंधा करना जानते थे, वहीं राजलक्ष्मी के घरवाले पैसे के कारोबार में थे.
कर्ज़े पर पैसा देना और ब्याज़ कमाना, यही उनका काम था और पॉलिटीशियन और
बड़े बड़े लोगों के साथ उनका बहुत उठना बैठना था. ये कहना ग़लत नही होगा
के वो ताक़त और प्रतिष्ठा में विट्ठल के परिवार से 100 गुना ज़्यादा थे.

दो रईस और बड़े परिवार के बीच हो रहा ये रिश्ता जैसे उस वक़्त हर किसी की
ज़ुबान पर था.

जब सिरिशा को विट्ठल की शादी के बारे में पता चला तो वो खुद जैसे नफ़रत
के एक अंधे कुएँ में गिर गयी. धीरे धीरे नफ़रत बदला लेने की एक भारी
इच्छा में तब्दील होने लगी. उसे ऐसा लगने लगा जैसे वो विट्ठल से बदला
लेने के लिए, उसे तड़प्ता देखने के लिए कुच्छ भी करने को तैय्यार थी.

पर ऐसा कुच्छ ना तो वो कर पाई और ना ही उसे करने को मौका मिला. ज़िंदगी
यूँ ही धीरे धीरे आगे बढ़ती रही और वो अपने आप में कुढती रही, जलती रही.
कई बार दिल में ख्याल आया के सबको बता दे के विट्ठल ने उसके साथ क्या
किया था पर वो बखुबी जानती थी के ऐसा करना सिर्फ़ खुद उसे ही बदनाम करता.

उसकी ज़िंदगी अपनी स्कूल की किताबो और चर्च के बीच सिमट कर रह गयी थी.
"तू इतनी बड़ी भक्त कैसे बन गयी? अपनी उमर की लड़कियों को देखा है? सजने
सवरने से फ़ुर्सत नही मिलती उन्हें और तू है के बस पुजारन बनी बैठी है"
उसकी माँ ने एक दिन उसे कहा था.
"मुझे अच्छा लगता है चर्च जाना. वहाँ भगवान के सामने बैठती हूँ तो ऐसा
लगता है जैसे मेरा कुच्छ नही च्छूपा उनसे, सब देख रहे हैं वो" जवाब में
सिरिशा बस इतना ही कह पाई थी.

2 महीने गुज़र गये और उसने फिर कभी विट्ठल को नही देखा. फादर पीटर भी अब
अपने देश वापिस जा चुके थे. अब कन्फेशन बॉक्स में बैठकर उसने दिल का हाल
सुनने वाला और उसे समझने वाला कोई नही था.

और फिर बरसात का मौसम भी आ गया. पूरे अगस्त के महीने भी बारिश ने रुकने
का नाम नही लिया. बादल हर वक़्त आसमान में छाए रहते और कभी भी अचानक
बरसने लगते. गाओं की सड़कों पर हर तरफ कीचड़ जमा हो गया था और छत पर हर
वक़्त पड़ती बारिश की बूँदों की आवाज़ जैसे कभी कभी पागल
ही कर देती थी. और अगर बारिश रुकती भी थी तो हवा में इतनी नमी होती के
इंसान बैठे बैठे ही पसीने से नहा जाए और फिर बारिश की दुआ करने लगे.

और एक दिन, जबके उसका पूरा परिवार उसके छ्होटे भाई का बर्तडे मनाने के
लिए इकट्ठा हुआ था, कुच्छ ऐसा हुआ जिसका डर सिरिशा को हफ़्तो से सता रहा
था. वो अपने छ्होटे कज़िन के साथ बैठी बाल्कनी में खेल रही थी के अचानक
वो अंजान बच्चा सबके सामने बोल पड़ा.

"दीदी आप कितनी मोटी हो गयी हो. देखो आपका पेट कैसे बाहर को निकल आया है"

पूरे घर में हर किसी की नज़र सिरिशा के पेट की तरफ हो गयी थी. जैसे
सिरिशा के पेट का वो उठान देखा तो सबने था पर इंतेज़ार कर रहे थे के पहले
कौन बोलेगा.

उस दिन सिरिशा को ना स्कूल जाने दिया गया और ना चर्च.

"हमें यूँ शर्मिंदा करके तुझे क्या मिला?" उसकी माँ ने रोते हुए उससे
पुछा था "क्या कमी रह गयी थी हमारी तरफ से जो तूने हमें ये दिन दिखाया?
कौन करेगा अब तुझसे शादी? इस उमर में अपने बाप का नाम इस तरह उच्छालके
तुझे क्या हासिल हुआ? वो तो अच्छा हुआ के वो ये दिन देखने से पहले ही चल
बसे?
आज अगर वो ज़िंदा होते तो खड़े खड़े ही मर जाते"

सुबह शाम इस तरह की बातों का जैसे एक सिलसिला ही चल निकला. कभी उसकी माँ
तो कभी रिश्तेदार. हर कोई उसे यही बातें सुनाता रहता और हर किसी की
ज़ुबान पर एक ही सवाल था,
"बच्चे का बाप कौन है?"

और जब सिरिशा से और बर्दाश्त ना हुआ तो उसने हार कर उस दोपहर के बारे में
सबको बता दिया जब उसे राह चलते विट्ठल मिल गया था.
"अगर बदनाम होना ही था तो मेरी मासूम बच्ची अकेली बदनाम नही होगी. अपने
हिस्से की बदनामी विट्ठल भी उठाएगा" बात ख़तम होने पर उसकी माँ ने कहा था
और हर कोई हैरानी से उनकी तरफ देखने लगा था.
"इसको दाई के पास ले चलें? वो जानती हैं के बच्चा कैसे गिराते हैं" उसकी
बड़ी बहेन इंद्रा बोली
"तेरा दिमाग़ खराब हुआ है? उस औरत को बच्चा जानना तो आता नही, गिराएगी
क्या खाक" सिरिशा की माँ ने कहा
अगले दिन ही सिरषा अपनी माँ के साथ शहर के एक हॉस्पिटल में गयी थी.
टेस्ट्स से साबित हो गया था के वो प्रेग्नेंट थी.

"कुच्छ किया जा सकता है?" उसकी माँ ने डॉक्टर से पुछा
"जितनी जल्दी हो सके, इसकी शादी करा दीजिए" डॉक्टर ने जवाब दिया. वो उसके
पिता के एक पुराने दोस्त थे और अक्सर उनके घर आते जाते थे
"अब आप ही बताइए के इस मनहूस से शादी कौन करेगा? इस बच्चे का कुच्छ नही
हो सकता क्या?"

बाहर अब भी बारिश का मौसम था. आसमान में बदल इस कदर फेले हुए थे के दिन
में भी रात का एहसास होता था. कमरे में जल रहे बल्ब के चारो तरह अजीब
अजीब तरह के कीट पतंगे उड़ रहे थे.
"बच्चे का इंटेज़ाम मैं कर तो सकता हूँ" डॉक्टर बहुत धीमी आवाज़ में बोला
"पर पैदा होने के बाद. बच्चा इस वक़्त गिराया नही जा सकता. आपकी बेटी
वैसे ही बहुत दुबली पतली है और उपेर से 3 महीने की प्रेग्नेंट है. अगर जो
डेट्स ये हमें बता रही है वो सही हैं तो और 3 महीने में ये फुल टर्म हो
जाएगी. इस वक़्त कुच्छ भी किया तो मामला बिगड़ सकता है. बच्चे के साथ साथ
इसकी जान को भी ख़तरा हो सकता है"

"और अगर बच्चा पैदा किया" उसकी माँ ने मुँह बनाते हुए कहा "अगर पैदा किया
तो उसके बाद क्या?"
"मैं बच्चा रखना चाहती हूँ माँ" सिरिशा अचानक बोल पड़ी
"बेवकूफ़ मत बन"
"ये बच्चा मेरा है. मैं इसे पैदा करना चाहती हूँ. अपने पास रखना चाहती हूँ"
"और खर्चे कौन उठाएगा? कौन देखभाल करेगा तुम दोनो की?"
"मेरा होने वाला पति" सिरिशा ने अपनी माँ की आँख से पहली बार आँख मिलाई
"और कौन करेगा तुझसे शादी?"
"विट्ठल. मुझसे शादी वही करेगा जो मेरी इस हालत के लिए ज़िम्मेदार है"
"आपकी बेटी इतनी बेवकूफ़ है नही" डॉक्टर जो अब तक माँ बेटी की बातें सुन
रहा था बीच में बोल पड़ा.
"वैसे भी आपको इसकी शादी तो करनी है ही तो विट्ठल से ही एक बार बात चला
के देखिए. कोशिश करने में क्या हर्ज है?"

और फिर जैसा के सिरिशा चाहती थी, उसकी माँ उसे लेकर विट्ठल के घर जा
पहुँची. हैरानी सबको तब हुई जब विट्ठल ने बिना कोई ना नुकुर किए इस बात
की हामी भरी के उसने सिरिशा के साथ ज़बरदस्ती की थी. और उससे भी बड़ी
हैरानी तब हुई जब वो सिरिशा से शादी करने के लिए भी फ़ौरन तैय्यार हो
गया.

"शायद इतना बुरा ये है नही जितना मैं सोच रही थी" पहली बार सिरिशा के दिल
में विट्ठल के लिए एक नाज़ुक जगह बनी थी.

बात उड़ चुकी थी और साथ में उड़ चुका था विट्ठल के परिवार का नाम. हर तरफ
हो रही बदनामी से बचने का उनके पास अब एक ही रास्ता था और वो ये के जिस
ग़रीब लड़की का उनके बेटे ने फ़ायदा उठाया, वो उसे अपने घर की बहू बनाए.
और इसके लिए सबसे पहला कदम था राजलक्ष्मी के साथ तय हो चुकी विट्ठल की
शादी को तोड़ना.
किसी ने कहा के विट्ठल एक कायर था इसलिए शादी के लिए मान गया था.
किसी ने कहा के उसके घरवाले पोलीस के मामले में पड़ना नही चाहते थे इसलिए
शादी का ज़ोर डाला गया था.
किसी ने कहा था के सिरिशा ने विट्ठल पर रेप केस कर दिया था इसलिए शादी की
बात चला दी गयी थी.
किसी ने कहा, और जो कि खुद सिरिशा ने भी सोचा था, के विट्ठल उस बदसूरत
राजलक्ष्मी से शादी नही करना चाहता था इसलिए उसे फ़ौरन सिरिशा का हाथ थाम
लिया था. राजलक्ष्मी रईस और एक बड़े घराने से ज़रूर थी पर हर कोई जानता
था के वो देखने में सुंदर तो क्या, एक आम लड़की से भी गयी गुज़री थी,
और उपेर से कितनी मोटी भी तो थी वो. उसके मुक़ाबले मासूम सी दिखने वाली
सिरिशा तो जैसे आसमान से उतरी एक परी थी. विट्ठल ने ज़बरदस्ती राजलक्ष्मी
से हो रही अपनी शादी से बचने के लिए सिरिशा का सहारा लिया था.
मासूम--3
गतान्क से आगे...................
वजह जो भी थी, विट्ठल शादी के लिए मान गया था और उसने काफ़ी समझदार से
काम लिया था. और उससे कहीं ज़्यादा समझदारी दिखाई थी राजलक्ष्मी के
घरवालो ने. अंदर से भले ही उन्हें ही इस तरह रिश्ता तोड़ दिए जाने पर
बे-इज़्ज़ती महसूस हुई हो पर उपेर से उन्होने कुच्छ भी ज़ाहिर नही होने
दिया. और तो और, उन्होने तो विट्ठल के परिवार के साथ अपनी बोल-चाल भी
जारी रखी थी.

राजलक्ष्मी के तीनो भाइयों ने विट्ठल को अपने नये फार्म-हाउस पर आने का
नियोता तक भेज दिया ताकि दोनो परिवार के बीच जो कुच्छ भी हुआ था, वो
ख़ाता किया जा सके और वो लोग बिना दिल में कुच्छ रखे आगे बढ़ सकें.
विट्ठल भी यही चाहता था के इस सारे कांड में किसी को कोई नुकसान ना
पहुँचे इसलिए उसने फ़ौरन हां कर दी.

उसी दिन फार्म-हाउस की तरफ जाते हुए विट्ठल की कार का आक्सिडेंट हो गया
और उसने मौके पर ही दम तोड़ दिया था. ना तो उस ट्रक का पता चला जिससे
विट्ठल की कार की टक्कर हुई थी और ना ही उस ट्रक ड्राइवर का.
3 दिन बाद विट्ठल का क्रिया करम कर दिया गया. एक बार फिर बातों का बाज़ार
गरम हो चला था. कुच्छ को भरोसा था के विट्ठल के साथ जो कुच्छ हुआ उसमें
भगवान का हाथ था. एक मासूम लड़की के साथ किए गये उसके सलूक की सज़ा भगवान
ने उसे दी थी. भगवान नाराज़ थे और यही वजह थी के इस साल इस क़दर
बरसात हुई थी.
कुच्छ लोगों का मानना था के विट्ठल मरा नही बल्कि उसे मारा गया है.
राजलक्ष्मी के परिवार वाले इज़्ज़त और रोबदार लोग थे. अपनी बेटी की यूँ
शादी तोड़ दिए जाने से सरे-आम हुई बदनामी को वो कैसे बर्दाश्त कर सकते
थे. 3 भाइयों की वो अकेली बहेन थी. अपनी बहेन का बदला लिया था भाइयों ने.

"कुच्छ भी हो भाय्या" क्रिया करम में शामिल होने आए लोगों में से किसी ने
कहा था "हम कौन हैं बोलने वाले? पोलीस ने तो लड़के का शरीर ठंडा पड़ने से
पहले ही आक्सिडेंट बोलकर फाइल बंद कर दी थी. आक्सिडेंट कैसे हुआ, क्यूँ
हुआ ये जाने की कोशिश तक नही की गयी थी.

हैरत की बात थी के इतने दिन से लगातार हो रही बरसात उस दिन रुकी थी जिस
दिन विट्ठल की चिता को आग दी गयी.

सबको लगा था के विट्ठल की मौत का सिरिशा को बहुत सदमा होगा. आख़िर वो
उसके बच्चे का बाप था और उसका होने वाला पति. और शायद ऐसा हुआ भी. सिरिशा
पूरी तरह मातम में शामिल थी. लोगों की बात माने तो ये सदमा था या
कुच्छ और पर ड्यू डेट आई और निकल गयी पर सिरिशा को बच्चा नही हुआ.

और जब हुआ तब तक ड्यू डेट को एक पूरा महीना निकल चुका था. यानी तब सिरिशा
पूरे 10 महीने की प्रेग्नेंट थी.

हॉस्पिटल का पूरा खर्चा विट्ठल के परिवार ने उठाया. शहर के एक महेंगे
हॉस्पिटल में बच्चे को जनम दिया गया और पैदा होने से पहले ही विट्ठल के
पिता इस बात के एलान कर चुके थे के बच्चे को विट्ठल का नाम दिया जाएगा और
उसे पाल पोसने का पूरा खर्चा वो खुद उठाएँगे.

वो खुद अपने पैरवार के साथ बच्चा हो जाने के बाद सिरिशा से मिलने भी आए
थे और बच्चे का नाम-करण कर गये थे.

पूरा दिन सिरिशा को अकेले रहने का बिल्कुल मौका नही मिला. लोगों का आना
जाना लगा रहा. कोई ना कोई उससे मिलने आता रहता. तरह तरह के गिफ्ट्स कोई
नयी माँ के लिए लाता तो बच्चे के लिए.

कोई उसके घर का था तो कोई विट्ठल के घर का जिन्होने शायद तकदीर के आगे
हार मान ली थी और अपने बेटे की निशानी, उसके बच्चे को अपना लिया था.

आने वालो में कोई शकल सूरत से बच्चे को सिरिशा जैसा बताता तो कोई विट्ठल जैसा.

अगले दिन जब उसकी माँ घर से कुच्छ समान लाने के लिए गयी तो सिरिशा को
पहली बार बच्चे के साथ अकेले होने का मौका मिला. उसने प्यार से अपने
बच्चे को गोद में लिया और उसकी तरफ तूकटुकी लगाकर देखने लगी.

एक नज़र में ही उसे एहसास हो गया था के बच्चा ना तो उसके जैसा दिखता था
और ना ही विट्ठल के जैसा.
बच्चे की आँखें भूरे रंग की थी और ब्राउन आइज़ ना तो सिरिशा की थी और ना विट्ठल की.

उन दोनो की क्या, पूरे गाओं में भूरी आँखें किसी की नही थी. तो
क्या................सोचो दोस्तो सिरिशा क्या वास्तव मे मासूम थी क्या
बच्चा वास्तव विट्ठल का था या फिर....
दोस्तो कैसी लगी ये कहानी ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा
समाप्त........
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Hindi Sex Stories By raj sharma - by sexstories - 02-24-2019, 01:16 PM
RE: Hindi Sex Stories By raj sharma - by Pinku099 - 03-07-2019, 10:48 PM
RE: Hindi Sex Stories By raj sharma - by sexstories - 02-26-2019, 09:28 PM

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