RE: Nangi Sex Kahani एक अनोखा बंधन
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मैं: जान...ये क्या कर रहे हो आप? आपको भारी सामान नहीं उठाना चाहिए!
भौजी खिल-खिला के हँसने लगी... और मैं उनकी इस मुस्कान को एक टक देखता रहा? ऐसा लगा जैसे एक अरसे बाद उन्हें खिल-खिला के हँसते हुए देख रहा हूँ|
भौजी: क्या देख रहे हो?
मैं: आपकी मुस्कान.... जाने किस की नजर लग गई थी|
भौजी: जिसकी भी थी...अब वो रो अवश्य " रो रही" होगी की उसके भरसक प्रयास के बात भी हमारे बीच कोई दरार नहीं आई| खेर...अभी वो समय नहीं आया जब गर्भवती महिलाओं को भारी सामान उठाने से मना किया जाता है|
मैं: पर अगर आप अभी से Precaution लो तो क्या हर्ज़ है?
भौजी: ठीक है बाबा! नहीं उठाऊंगी अब से! चलो अब आप नहा लो?
मैं: यहाँ...आपके सामने?
भौजी: क्यों जानू? डर लगता है? की अगर मेरा ईमान डोल गया तो.... (भौजी ने जानबूझ के मुझे छेड़ते हुए कहा)
मैं: नहीं.... मैं सोच रहा था की आप मेरे साथ ही नहाओगे!
भौजी: मैं नहा चुकी हूँ... आपके पास मौका था मुझे नहाते हुए देखने का ...पर आप सो रहे थे!
मैं: तो उठाया क्यों नहीं मुझे?
भौजी: ही..ही..ही.. आपका मौका तो गया ...पर मेरा मौका तो सामने खड़ा है!
मैं: ठीक है...
मैंने अपनी टी-शर्ट उतार उनकी ओर फेंकी! फिर अपना पजामा उतार फेंका! अब मैं सिर्फ कच्छे में था|
भौजी: ये भी तो उतारो! (उन्होंने मेरे कच्छे की ओर इशारा करते हुआ कहा|)
मैं: पर अगर कोई आ गया तो?
भौजी: इसीलिए तो मैं दरवाजे के सामने चारपाई डाल के बैठी हूँ?
मैं: ठीक है बाबा|
मैंने कच्छा भी उतार के दिवार पे रख दिया| अब मैं पूरा नंगा था और भौजी मुझे बड़े प्यार से देख रही थी|
मैं: आप बड़े प्यार से देख रहे हो? ऐसा कुछ है जो आपने नहीं देखा?
भौजी: आपको बस अपनी आँखों में बसाना चाहती हूँ!
इसके आगे मैं कुछ नहीं बोला...बस नहाने लगा| नहाते समय मैं आगे-पीछे घूम के उन्हें अपने पूरे जिस्म के दर्शन करा रहा था| बिलकुल किसी Exhibitioneer की तरह! मेरा स्नान पूरा हुआ;
मैं: मेरा टॉवल देना?
भौजी: नहीं...ये लो (उन्होंने मेरी ओर कच्छा फेंक दिया) पहले इसे पहन लो!
मैं: पर ये गीला हो जायेगा ... पानी तो पोछने दो|
भौजी ने अपना टॉवल उठाया ओर मेरा टॉवल मुझे देते हुए बोलीं;
भौजी: ये लो अपना टॉवल नीचे लपेट लो! आपके जिस्म से पानी मैं पोछूँगी|
मैं: As you wish !
मैंने अपना टॉवल कमर पे लपेट लिया| भौजी अपना तौलिया लेके मेरे पास आईं और तौलिये से मेरे बदन पे पड़ी पानी की बूँदें पोछने लगीं| सबसे पहले उन्होंने मेरी छाती पे पड़ी पानी की बूंदें पोंछीं .... पोछते समय उनकी नजरें मेरी नजरों में झाँक रहीं थीं| मैंने कुछ नहीं कहा...ना ही उन्होंने कुछ कहा बस एक प्यारी सी मुस्कान दी| उसके बाद मैं ने उनकी ओर अपनी पीठ कर दी और वो उसे भी पोछने लगीं| फिर उन्होंने मुझे अपनी तरफ घुमाया और दोनों हाथों को भी पोछ के सुखा दिया| भौजी पाँव पोंछने को झुकीं तो मैं दो कदम पीछे चला गया;
भौजी: अरे पाँव तो पोंछने दो?
मैं: आपको पता है ना मैं आपको कभी अपने पाँव छूने नहीं देता| लाओ ...मैं खुद पोंछ देता हूँ!
भौजी मुस्कुराईं और मुझे तौलिया दे दिया और मैंने अपने पाँव पोंछने के बाद उन्हें तौलिया वापस दे दिया| फिर मुझे एक शररत सूझी;
मैं: अरे...आप एक जगह पोंछनी तो भूल गए?
भौजी: कौन सी?
मैं: (अपना तौलिया उनके सामने खोलते हुए) ये !!!
भौजी: नहीं...वो नहीं... (भौजी शर्मा गईं)
मुझे उनकी ये हरकत थोड़ी अजीब लगी...क्योंकि ऐसा शर्माने जैसा तो हमारे बीच कुछ था नहीं| पर मैंने इस बात को ज्यादा तूल नहीं दी, और वैसे भी मैं खुश था की कम से कम वो खुश हैं|
मैं: अच्छा ...एक बात बताओ? आप इस तौलिये का करोगे क्या?
भौजी: संभाल के रखूंगी!
मैं: क्यों?
भौजी: क्योंकि इसमें आपकी खुशबु बसी है! जब भी मन करेगा आपसे मिलने का...तो इस तौलिये को खुद से लपेट लुंगी ...और सोचूंगी की आप मुझे गले लगाय हो!
मैं: यार... (मैं उनको कहना चाहता था की मैं हमेशा के लिए नहीं जा रहा, मैं वापस आऊँगा...एक वादे के लिए...एक वादा तोड़ के....!!!)
खेर मैं नहीं चाहता था की वो फिर से भावुक हो जाएं, तो मैंने पुनः बात बदल गई;
मैं: अच्छा ये बताओ की आपने मुझसे कैसे पूछा की मुझे खाना बनाना पसंद है या नहीं?
भौजी: मैं ये तो जानती हूँ की शहर में आप माँ की मद्द्द् करते रहते हो..खाना बनाने में बस ये जानना था की आप को वाकई में पसंद है या सिर्फ फ़र्ज़ निभाते हो! और मैंने सब से कह दिया की आजका खाना आप और मैं मिलके बनाएंगे!
मैं: Wow! That’s Wonderful! I love expermintal cooking! तो आपने सोच रखा है की क्या बनाना है? या मैं बताऊँ?
भौजी: आप बताओ?
मैं: म्म्म्म... घर पे फूल गोभी है?
भौजी: हाँ है
मैं: दही है?
भौजी: हाँ है
मैं: ठीक है.... दाल आप बनाना बस तरीका मैं बताऊंगा और ये गोभी वाली सब्जी मैं बनाऊँगा|
भौजी: मतलब आज मुझे आपसे कुछ सीखने को मिलेगा!
मैं: अगर अच्छे शागिर्द की तरह सीखोगे तो ...वरना अगर बदमाशी की...तो.... (मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा|)
मैं कपडे पहन के भर आ गया और नेहा को ढूंढने लगा;
भौजी: वो तो गई.... पिताजी (मेरे) उसे छोड़ ने गए हैं|
इतने में वहां बड़की अम्मा और माँ आ गए;
बड़की अम्मा: तो प्रधान रसोइया जी....क्या बनाने वाले हैं आप?
मैं: अम्मा...वो तो मैं आपको नहीं बताऊंगा..और हाँ...जब तक खाना बन नहीं जाता..तब तक आप लोग वहां नहीं आएंगे..कोई भी नहीं! जो चाहिए वो मांग लेना...
माँ: ठीक है...अब जल्दी जा...
मित्रों आगे जो मैं recipe लिखने जा रहा हूँ..ये मेरी खुद की है| मैंने इस सब्जी को बनाया भी है और चखा भी है...और मैं कह सकता हूँ की ये टेस्टी भी है| अब यदि आप लोगों को मैं पर्सनली जानता तो घर पे बुला के खिलता भी|
मैंने भौजी से उर्द दाल ,चना दाल ,लाल मसूर, मूँग दाल और अरहर दाल धो के लाने को कहा क्योंकि आज मैं उनसे पंचरंगी दाल बनवाने वाला था| और इधर मैं गोभी के फूल अलग कर के उन्हें धो लाया और उन्हें मखमली कपडे पे सूखने को छोड़ दिया| तब तक मैं और भौजी प्याज, टमाटर, अदरक, लस्सन और हरी मिर्च काटने लगे| अब शहर में तो मैं चौप्पिंग बोर्ड का इस्तेमाल करता था और वहां चौप्पिंग बोर्ड था नहीं...तो मुझे नौसिखिये की तरह काटना पड़ा| अब इधर भौजी टमाटर काट रहीं थीं और मेरी और देख के मुझे जीभ चिढ़ा रहीं थीं| मेरी नजर उनके चेहरे से झलक रही मासूमियत और प्यार से हट ही नहीं रही थी और इसी वजह से मेरी ऊँगली कट गई| जब भौजी ने देखा की मेरी ऊँगली कट गई है तो उन्होंने फ़ौरन मेरी ऊँगली अपने मुंह में ले के चूसने लॉगिन और मैं बस उन्हें देखे जा रहा था|
भौजी: ऐसे भी क्या खो गए थे की ये भी ध्यान नही रहा की ऊँगली कट गई है?
मैं: आपके चेहरे ...से नजर ही नहीं हट रही| तो नजरें हम क्या देखें?
भौजी: क्या बात है....बड़ा शायराना मूड है?
मैं: भई खाना बनाना एक art है...कला है... जैसा मूड होगा वैसा खाना बनेगा ....
भौजी अपनी साडी का पल्लू फाड़ के मेरी ऊँगली को पट्टी करने वाली थीं, की तभी मैंने उन्हें रोक दिया|
मैं: क्या..कर रहे हो? एक cut ही तो है...उसके लिए अपनी साडी फाड़ रहे हो| घर से एक Band-Aid ले आओ!
भौजी Band-Aid लेने गईं और तब तक मैं अकेला बैठा कुछ सोचने लगा| भौजी Band-Aid लेके आईं और मेरी ऊँगली पे लगा दी| अब मैंने उनसे दही माँगा...और उसमें कुछ मसाले डाले जैसे धनिया पाउडर, जीरा पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, थड़ा सा गर्म मसाला और दाल चीनी पाउडर| अब मैं इन मसालों को दही में mix तो कर नहीं सकता था तो मैंने भौजी से कहा; "जान...प्लीज इन सब को Mix कर दो, उसके बाद इसमें गोबी के फूल डाल के Merinate होने को छोड़ देना|" भौजी ने ठीक वैसा ही किया पर वो थोड़ा हैरान थीं..क्योंकि इस तरह से खाना पकाने के स्टाइल में वो नहीं जानती थी| अब बात आई दाल की..तो मैंने उन्हें बस इतना कहा; "आप जैसे दाल बनाते हो उसी तरह पहले इन पाँचों दालों को उबाल लो...फिर प्याज-टमाटर का छौंका लगाने से पहले मुझे बताना|" भौजी ने सर हाँ मिलाया और मुस्कुरा के अपना काम करने लगीं|
मैं: अच्छा ...अब आप मुहे एक लकड़ी का साफ़ टुकड़ा दो|
भौजी: किस लिया?
मैं: आप एक अच्छे शागिर्द की तरह गुरु की बात मानो...और सवाल मत पूछो|
भौजी ने एक लकड़ी का टुकड़ा, अच्छे से धो के ला के दिया| मैंने उस टुकड़े को अपना चोपपिणः बोर्ड बनाया और गोभी की सब्जी के लिए प्याज के लच्छे काटने लगा|
भौजी: जानू मुझे कह देते...मैं काट देती!
मैं: हाँ...पर उसमें फिर मेरा फ्लेवर नहीं आता|
भौजी: O
गोभी की सब्जी की तैयारी पूरी हो चुकी थी...अब बारी थी पंचरंगी दाल की! तो भौजी ने उसके लिए जर्रूरत का सारा सामान काट-पीट के तैयार कर लिया था| अब मैंने भौजी से कहा की आप बाहर आओ और मुझे चूल्हे के पास बैठने दो| भौजी बाहर आ गईं और मैं प्रधान रसोइये की जगह लेके बैठ गया| बारी थी गोभी की सब्जी तैयार करने की, तो सबसे पहले मैंने एक कढ़ाई चढ़ाई...उसमें तेल डाला... फिर साबुत जीरा दाल के उसे चटपट होने तक भुना...फिर प्याज के लच्छे डाले... हरी मिर्च फाड़ के डाली... और अदरक के पतले-पतले लम्बे टुकड़े डाले| जब इस मिश्रण का रंग बदला तब मैंने उसमें कटे हुए टमाटर डाले| नमक दाल के मिश्रण को पकने के लिए छोड़ दिया| एक मिनट बाद जब मिश्रण पाक गया तब मैंने उसमें गोभी जो Marinate होने को राखी थी उसे डाला| थोड़ा चलाने के बाद..उसमें गर्म मसाला... और जीरा पाउडर डाला| अब चूँकि वहाँ सिरका तो था नहीं तो मैंने उसमें थोड़ा सा चाट मसाला डाला और सब्जी पकने के बाद, ऊपर से धनिये से गार्निश किया और सब्जी को आग पर से उतार लिया| सब्जी की महक सूंघते हुए भौजी बोलीं;
भौजी: WOW जानू! इसकी खुशबु इतनी अच्छी है तो...Taste कितना अच्छा होगा?
मैं: यार..आप अभी कुछ मत कहो...जब तक सब इसकी बढ़ाई नहीं करते तब तक मैं कुछ नहीं मानूँगा!
भौजी: वैसे ...मेरे पास आपकी एक और निशानी है|
मैं: वो क्या?
भौजी: अभी दिखाती हूँ! (भौजी उठीं और अपने कमरे में कुछ लेने के लिए गईं|)
मैं: क्या है..दिखाओ भी?
भौजी ने वो चीज अपनी कमर के पीछे छुपा रखी थी| मेरे पूछने पे उन्होंने दिखाया, वो मेरी तस्वीर थी!
मैं: ये कब आई आपके पास?
भौजी: आपके घर से चुराई है!
मैं: हम्म्म.... बताओ ना किसने दी?
भौजी: माँ ने...अभी कुछ दिन पहले...वो कपडे समेत रहीं थीं..मेरे जिद्द करने पे उन्होंने दे दी!
मैं कुछ बोला नहीं बस होल से मुस्कुरा दिया!
अब बारी थी पंचरंगी दाल की! तो सबसे पहले कढ़ाई गर्म की, घी डाला... फिर जीरा...फिर हरी मिर्च काट के...फिर अदरक-लस्सन का पेस्ट ...फिर प्याज...इन सब के भुनने के बाद इसमें टमाटर मिलाये...फिर नमक...फिर मसाले मिलाये... धनिया पाउडर..लाल मिर्च पाउडर, हल्दी पाउडर ...मिश्रण को एक दो मिनट चलाने के बाद, उबली हुई दाल मिला दी| कुछ देर पकने के बाद ...ऊपर से गर्म मसाला और थोड़ा सा जीरा पाउडर मिलाया| २-३ मिनट बाद दाल तैयार हो गई| अब बारी थी आँटा गुंडने की...अब ये काम ऐसा था जो मैं ना तो कभी करना चाहता था ...न मुझे अच्छा लगता था!
भौजी: लीजिये..गुंदिये आँटा?
मैं: क्या?
इतने माँ वहाँ आ गईं..व रसोई में नहीं आईं बस बहार से ही हमारी बात सुनते हुए बोलीं;
माँ: अरे बहु..इसे नहीं आता गूंदना| एक बार गुंडा था तो अपने सारे हाथ आते में सान लिए थे!
भौजी: कोई बात नहीं माँ...मैं सीखा दूँगी|
मैं: पर कैसे...ऊँगली कट गई है ना? (मैंने अपनी ऊँगली दिखाते हुए बहाना मार)
भौजी: हम्म्म..तो आप मुझे देखो और सीखो|
भौजी आँटा गूंदने लगीं ...पर एरा ध्यान तो उनके चेहरे से हट ही नहीं रहा था| मन कर रहा था की बीएस घंटों इसी तरह बैठा उन्हें निहारता रहूँ! फिर मैंने ही बात शुरू की;
मैं: यार ये सही है... मेरी सब निशानियाँ आपके पास हैं| मेरी फोटो... मेरे बदन की महक...और तो और ये भी (मैंने उनकी कोख की ओर इशारा करते हुए कहा और भौजी मेरी बात समझ गईं और मुस्कुराने लगीं|) पर मेरे पास आपकी एक भी निशानी नहीं...ऐसा क्यों?
भौजी: अब मैं क्या करूँ...ना तो मेरे पास अपनी कोई तस्वीर है जो मैं आपको दे दूँ...और महक की बात तो आप भूल जाओ...आप सो रहे थे तो आपने अपना मौका गँवा दिया|
गर्मी के कारन भौजी आँटा गूंदते-गूंदते पसीने से तरबतर हो गईं| उनके मुख पे पसीना आने लगा और इससे पीला वो पोंछ पातीं मैंने अपनी जेब से रुमाल निकला और उनका पसीना पोंछा;
भौजी: Thank You
मैं: NO .....THANK YOU !
भौजी: पर आपने मुझे thank you क्यों कहा? पसीना तो आपने पोछा मेरा!
मैं: क्योंकि अब मैं इस रुमाल को संभाल के रखूँगा...कभी नहीं धोऊंगा....इसमें आपकी खुशबु है! (ऐसा कहते हुए मैंने रुमाल को सुंघा|)
भौजी मुस्कुराने लगीं और अब उनका आँटा गूंदने का काम भी हो चूका था| मैंने घडी में देखा तो अभी ग्यारह बजे थे...और नेहा की स्कूल की छुट्टी बराह बजे होती थी|
मैंने जानबूझ के जूठ बोला;
मैं: अरे .... नेहा के स्कूल की छुट्टी होने वाली है|
भौजी: तो आप ले आओ!
मैं: चलो दोनों साथ चलते हैं उसे लेने?
भौजी: ठीक है...मैं हाथ धो के आई|
फिर हम दोनों चल दिए नेहा को लेने| स्कूल पहुँच के मैंने उनसे कहा;
मैं: अभी एक घंटा बाकी है!
भौजी: क्या?.... मतलब आपने ....आप बहुत शरारती हो! अब एक घंटा हम क्या करें?
मैं: देखो...वहाँ एक बाग़ है...वहीँ चलके बैठते हैं| (वो बाग़ करीब पाँच मिनट की दूरी पे था)
हम बाग़ में पहुंचे...वहाँ बहुत से झुरमुट थे... घांस थी ...और बीचों बीच एक बरगद का पेड़ था| हम उसी बरगद के पेड़ के नीचे खड़े थे| बिना कुछ कहे ..हम बस एक दूसरे को देख रहे थे... मैंने आगे बढ़ कर उनका हाथ थामा और उन्हें धीरे से अपनी ओर खींचा| भौजी आ के मेरी छाती से लग गईं| मैंने आस-पास देखा..की कहीं कोई हमें देख तो नहीं रहा... और सुनिश्चित करने पे उनके होठों के पास अपने होंठ लाया ओर उन्हें Kiss करने लगा| पर भौजी ने मेरे होठों पे अपनी ऊँगली रख दी ओर बोलीं;
भौजी: प्लीज बुरा मत मानना.... This is not how I want to remember this day!
मैं: okay ... no problem !!!
भौजी: आपको बुरा लगा हो तो Sorry !
मैंने ना में सर हिलाया ओर मुस्कुरा दिया| हालाँकि मैं बस उन्हें Kiss करना चाहता था| पर मैंने ना तो आजतक उनके साथ कभी जबरदस्ती की और ना ही करना चाहता था| और ना ही मैंने इस बात को दिल से लगाया! करीभ आधा घंटे तक हम वहीँ खड़े रहे| फिर मैंने भौजी से कहा;
मैं: चलो चलते हैं|
भौजी: पर अभी तो आधा घंटा बाकी है|
मैं: तो क्या हुआ...मैं हेडमास्टर साहब से रिक्वेस्ट कर लूँगा|
पर भौजी मैंने को तैयार नहीं थीं, उनका कहना था की मैं किसी से रिक्वेस्ट क्यों करूँ? पर उनकी ख़ुशी के लिए कुछ भी कर सकता था| मैं उन्हें जबरदस्ती स्कूल तक ले आया और उनको साथ ले के हेडमास्टर साहब के पास पहुँच गया| उनके कमरे में एक लड़का बैठा था...जो उम्र में भौजी के बराबर का था| भौजी ने हालाँकि घूँघट काढ़ा हुआ था पर उस लड़के को देखते ही उन्होंने मेरा हाथ जोर से दबा दिया| मैं समझ गया की कुछ तो बात है!
खेर हमें आता देख वो लड़का खुद ही बहार निकल गया;
हेडमास्टर साहब: अरे मानु ...आओ-आओ बैठो!
मैं: जी शुक्रिया हेडमास्टर शब..दरअसल में आपसे एक दरख्वास्त करने आया था| आशा करता हूँ आप बुरा नहीं मानेंगे|
हेडमास्टर साहब: हाँ..हाँ बोलिए!
मैं: सर दरअसल कल मैं दिल्ली वापस जा रहा हूँ| नेहा मुझसे बहुत प्यार करती है...और मैं भी उसे बहुत प्यार करता हूँ| मेरे पास समय बहुत कम है..तो मैं चाहता हूँ की जितना भी समय है मैं उसके साथ गुजारूं| मेरी आपसे गुजारिश है की क्या मैं उसे अभी ले जा सकता हूँ? जानता हूँ की बस आधा घंटा ही है पर...प्लीज!
हेडमास्टर साहब: देखिये..अगर आपकी जगह कोई और होता तो मं मन कर देता पर चूँकि मैं आपको पर्सनल लेवल पे जानता हूँ तो आप लेजाइये... वैसे अब कब आना होगा आपका?
मैं: जी ...जल्द ही!
हेडमास्टर साहब: oh that's good !
मैं: सर जी... ये लड़का जो अभी यहाँ .... (मेरी बात पूरी होने से पहले ही उन्होंने जवाब दे दिया)
हेडमास्टर साहब: जी ये मेरा बेटा है, शहर से आया था...समय नहीं मिला की आपके घर आके इसे मिलवा सकूँ....अभी तो ये दुबई जा रहा है|
मैं: oh ... चलिए कोई बात नहीं...मैं चलता हूँ और एक बार और आपका बहुत-बहुत शुक्रिया|
चूँकि नेहा अभी छोटी क्लास में थी तो हेडमास्टर साहब ने जाने दिया...अगर बड़ी क्लास में होती तो मैं स्वयं ही कुछ नहीं कहता| पर जब हम बहार आये तो वो लड़का हमें चबूतरे के पास खड़ा सिगरट पीता हुआ नजर आया| मैंने भौजी से मेरे हाथ दबाने के बारे में पूछा;
मैं: क्या हुआ था? आप जानते हो उस लड़के को? (मैंने उसलड़के की ओर इशारा करते हुए उनसे पूछा)
भौजी: वो..मेरे साथ स्कूल में पढता था|
मैं: तो बात कर लो उससे....?
भौजी: पर ये पुरानी बात है... वैसे भी स्कूल में कभी उससे बात नहीं हुई| छोडो उसे...चलो नेहा को ले कर घर चलते हैं|
मैं: सच में उससे बात नहीं करनी?
भौजी: करनी तो है...पर ....आप साथ हो इसलिए!!!
अब ये सुन के मेरी बुरी तरह किलस गई!
मैं: तो आप बात करो उससे ...मैं नेहा को ले आता हूँ|
भौजी: वैसे ... He had a crush on me!!!
मैं: oh और आप...मतलब did you had a crush on him too?
भौजी: हम्म्म... That’s something I don’t wanna talk about!
साफ़ था की भौजी मेरी जलन समझ चुकीं थीं ....और मैं सोच रहा था की कल तो उन्होंने बताया था की वो मेरे अलावा किसी और से प्यार नहीं करतीं? अब तो वो आग में घी डाल-डाल के मुझे जला रहीं थीं|
मैंने उस समय तो कुछ नहीं कहा बस वो जलन बर्दाश्त कर के रह गया और नेहा की क्लास के द्वार पे खड़ा हो के अध्यापक महोदय से बात की और उन्होंने नेहा को भेज दिया| भौजी हाथ पसारे खड़ीं थीं की नेहा उनके गले लगेगी...पर वो तो आके मुझसे लिपट गई| अब दोनों माँ-बेटी एक दूसरे को जीभ चिढ़ाते रहे और मैं उस लड़के से जलन करने लगा|हम घर आ गए और रास्ते में मैंने भौजी से कोई बात नहीं की..और वो भी समझ चुकीं थी की मैं अंदर ही अंदर जल रहा हूँ| घर आके भौजी रोटी बनाने लगीं, अब चूँकि मुझे ये काम आता नहीं था तो मैं रसोई के पास ही बैठा था| जब भी मैंने रोटी बनाने की कोसिह की तो वो कभी रूस तो कभी अमरीका का नक्शा ही बानी है इसलिए मैं इस काम से दूर ही रहता हूँ!
भौजी: तो...आपने पूछा नहीं उस लड़के का नाम क्या है?
मैं: तो आप ही बता दो!
भौजी: रमेश
मैं: तो आपको उसका नाम भी याद है?
भौजी: अजी नाम क्या...हमें तो उसका जन्मदिन भी याद है!
मैं: वैसे आपको मेरा जन्मदिन याद है?
भौजी: अम्म्म ...Sorry भूल गई!
मैं: हाँ भई हमें कौन याद रखता है!
भौजी: जलन हो रही है?
मैं: मैं क्यों जलूँगा?
भौजी: अच्छा बाबा...चलो अब सबको बुला लो..खाना खाने के लिए|
मैं: जाता हूँ|
मैं जा के सब को बुला लाया और सब के सब आके छप्पर के नीचे बैठ गए| पिताजी, बड़के दादा, चन्दर भैया और अजय भैया| माँ और बड़की अम्मा बैठीं पँखा कर रही थीं और मैं सब को खाना परोस के दे रहा था|
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