RE: Nangi Sex Kahani एक अनोखा बंधन
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कुछ समय बाद मैं, माँ और पिताजी साथ बैठे थे और मैं पिताजी को कल जो हुआ उसके बारे में बता रहा था| इतने में वहाँ बड़के दादा, रसिका भाभी, भौजी और बड़की अम्मा भी आ गए;
मैं: जैसे ही पीछे से भगदड़ मची मैं नेहा और भौजी अकेले रह गए| भीड़ का धक्का इतना तेज था की वो आप लोगों को आगे बहा के ले गया पर इधर हम फंस गए| अगर हम उसी बहाव में बहते तो शायद हम लोगों के पैरों तले दब जाते! इसलिए हमदोनों नेहा को लेके एक छोटी सी गली में घुस गया| भीड़ ने आगे का रास्ता ब्लॉक कर दिया था इसलिए हम टैक्सी स्टैंड वाले रास्ते की ओर नहीं बढ़ सकते थे| मैंने भौजी औरपीछे जाने के लिए कहा, मुझे लगा शायद थोड़ा घूम के ही सही हम टैक्सी स्टैंड तक पहुँच जाएँ पर आगे कोई रास्ता ही नहीं था| इतने में भीड़ का एक झुण्ड हमारी ओर भगा आ रहा था...मैं बहुत घबरा गया| अगर अकेला होता तो भाग निकलता पर नेहा साथ थी इसलिए मैं छुपने के लिए कोई आश्रय ढूंढने लगा| तभी वहाँ एक होटल का बोर्ड दिखा हम उसके बहार खड़े हो गए ओर दरवाजा भड़भड़ाने लगे पर किसी ने दरवाजा नहीं खोला| हार के एक धर्मशाला के बहार पहुंचे ओर उसका दरवाजा खटखटाया पर कोई नहीं खोल रहा था| तब मैंने चिल्ला के कहा की मेरे साथ एक छोटी सी बच्ची है ओर नेहा ने भी अब तक रोना शुरू कर दिया था| उसकी आवाज सुन एक बुजुर्ग से अंकल ने दरवाजा खोला ओर हम फटा-फट अंदर घुस गए| अब वो तो शुक्र है की माँ ने मुझे कुछ पैसे पहले दिए थे जिसकी वजह से हमें वहाँ दो कमरे मिल गए वरना रात सड़क पे बितानी पड़ती|
(इस बात चीत में मैंने कहीं भी भौजी को "भौजी: कह के सम्बोधित नहीं किया...क्योंकि अब उन्हें भौजी कहने में शर्म आने लगी थी! ओर वो भी कभी मुझे मानु जी या तुम नहीं कहतीं थी...हमेशा इन्होने या आप कहके ही सम्भोधित करती थीं|)
पिताजी: भई मानना पड़ेगा तुम्हारी माँ की होशियारी काम आ ही गई|
माँ: देखा आपने...जब भी मैं पैसे आधे-आधे करती थी तो सबसे ज्यादा आपको ही तकलीफ होती थी| आज मेरी सूझबूझ काम आ ही गई|
पिताजी: (माँ की पीठ थपथपाते हुए) शाबाश देवी जी!
पिताजी: भैया आप समधी साहब को भी फोन कर दो की सब ठीक-ठाक पहुँच गए हैं|
बड़के दादा: हाँ भैया मैंने खबर पहुँचा दी है|
मैं: आपने ससुर जी..... मतलब... को खबर पहुंचा दी?
(भौजी की आदत मुझे भी लग गई थी....अब बात को सम्भालूँ कैसे ये समझ नहीं आया, पर मैं फिर भी बच गया| वो ऐसे की कुछ साल पहले अजय भैया की साली जब घर आई थी तब उन दिनों मैं भी घर पे था, तो वो मुझे भी जीजा कहती थी...इसी बात के मद्दे नजर पिताजी ने कुछ नहीं कहा|)
पिताजी: अरे बेटा खबर तो पहुंचानी जर्रुरी थी| मैं तो तुम्हें भी बताने वाला था की तुम्हारी माँ यहाँ कितनी परेशान है, वो तो घर भी नहीं आना चाहती थी| कह रही थी जबतक लड़का नहीं आता मैं सड़क पर रह लुंगी पर घर नहीं जाउंगी| वो तो मैंने उसे समझाया-बुझाया तब जाके मानी| ओर जब तुम्हारा फोन आया तो उसने मना कर दिया की मैं तुमहिं कुछ ना बताऊँ वरना तुम उसी भगदड़ में भाग आओगे|
मैं: ये आपने सही कहा...अगर मुझे पता होता तो मैं रात को ही जैसे-तैसे पहुँच जाता|
पिताजी: इसीलिए कुछ नहीं बताया|
बड़के दादा: मुन्ना तुम्हारी बात सुन के हमें तुम पे बहुत गर्व है| तुमने इस खानदान की गरिमा बढ़ाई है| शाबाश!!! (ओर बड़के दादा मेरी पीठ थपथपाने लगे) ओर हाँ समधी साहब ने तुम्हें बुलाया है| इसी बहाने तुम उन्हें प्रसाद भी दे आना|
अब मेरा हाल तो ऐसे था जैसे अंधे को क्या चाहिए, दो आँखें! मैं तो खुद उनसे मिलना चाहता था आखिर जिस शोरूम की कार इतनी मस्त है उस शोरूम के मालिक से मिलना तो बनता ही था!!!
मैं: जी जर्रूर...
बात खत्म हुई ओर बड़के दादा और अम्मा उठ के भूसे वाले कमरे में सफाई करने चले गए| इधर रसिका भाभी उठ के कपडे धोने कुऐं पर चलीं गईं| अब बच गए पिताजी, माँ, भौजी और मैं| भौजी डेढ़ हाथ का घूँघट काढ़े चुप-चाप खड़ीं थी, ऐसा लग रहा था जैसे वो कुछ कहना चाहतीं हों| मुझे लगा की कहीं उन्हेोन मेरी बातों का बुरा तो नहीं लगा लिया?
पर जब वो बोलीं तो बातें स्पष्ट हो गईं;
भौजी: पिताजी... माँ.... मुझे आपसे कुछ कहना है?
पिताजी: बोलो बहु|
भौजी: मैं आपको और माँ को अपने माँ-पिताजी ही मानती हूँ| आप लोगों के यहाँ होने से मुझे बिलकुल घर जैसा लगता है| आप के यहाँ रहते हुए मुझे कभी अपने मायके की याद नहीं आती और ना ही मन करता है मायके जाने का| कल जिस तरह से इन्होने मेरी और नेहा की रक्षा की उसके बाद तो जैसे आप सब का मेरी जिंदगी पर पूरा हक़ है| पर यदि मेरे आपको माँ-पिताजी कहने से कोई आपत्ति है तो आप बता दें, मैं आपको चाचा-चाची ही कहूँगी!
माँ: नहीं बहु...ऐसी कोई बात नहीं है| तुम हमें अपने माँ-पिताजी की तरह मानती हो ये तो अच्छी बात है, पर क्या जीजी तुम्हें प्यार नहीं करतीं?
भौजी: करती हैं... पर आप सब तो बेहतर जानते हो की यहाँ एक लड़का होने की आस बंधी है| नेहा के होने के बाद तो शायद ही कभी अम्मा और दादा ने उसे पुचकारा हो| ऐसे में मुझे वो दर्ज़ा वो प्यार कभी नहीं मिला जो आप लोग देते हैं|
पिताजी: बहु देखो... अपने बड़े भाई साहब से तो मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता पर यकीन मानो हमें तुम्हारा हमें माँ-पिताजी कहना बिलकुल बुरा नहीं लगा| ऐसी छोटी-छोटी बातों को दिल से ना लगाया करो|
भौजी: जी पिताजी!
पिताजी: तो लाड साहब कब जाना है अपनी भौजी के मायके?
मैं: जी आप कहें तो आज..नहीं तो कल!
पिताजी: बेटा प्रसाद कभी लेट नहीं करना चाहिए| आज शाम ही चले जाना पर रात होने से पहले लौट आना?
मैं: जी ठीक है.... पर माँ आज रात का खाना आप बनाना?
भौजी: क्यों? मेरा हाथ का खाना अच्छा नहीं लगता आपको?
भौजी की बात सुन माँ-पिताजी हँस पड़े|
मैं: अच्छा लगता है... पर बहुत दीं हुए माँ के हाथ का खाना खाए हुए! वैसे अगर माँ और बड़की अम्मा दोनों खाना बनायें तो स्वाद ही कुछ और होगा|
मेरी इस बात पे पिताजी ने हांमी भरी और बड़की अम्मा को आवाज लगा के रात के खाने का प्लान बता दिया|
भौजी और माँ-पिताजी की जो भी बात हुई उसमें मैंने बिलकुल भी हिस्सा नहीं लिया था|कारन साफ़ था, मैं किसी का भी पक्षपात नहीं करना चाहता था| मैं चाहता था की भौजी अपना मुद्दा स्वयं सामने रखें और अपनी दलील भी स्वयं दें| इससे उनमें आत्मविश्वास बढ़ेगा! दोपहर के भोजन के बाद मुझे और भौजी को साथ बैठने का कुछ समय मिला, हम भौजी के घर में बैठे थे;
मैं: I hope you’re not angry on me!
भौजी: नहीं तो...आपको किसने कहा मैं आपसे खफा हूँ?
मैं: मुझे लगा शायद आपने मेरी बात का बुरा मान लिया है|
भौजी: आपने जो कहा वो बिलकुल सही कहा था, इसमें बुरा मैंने वाली बात तो थी ही नहीं|
मैं: तो मेरे पास बैठो!
भौजी उठ के मेरे पास बैठ गईं|और मेरे कुछ कहे बिना ही उन्होंने मुझे Kiss किया| पर ये बहुत छोटा सा Kiss था!
मैं: इतना छोटा?
भौजी: ये आपकी Good Morning Kiss थी| सुबह से Pending थी ना! (और भौजी मुस्कुरा दीं)
शाम होने से पहले ही मैं तैयार हो के बैठ गया| मैंने आज "शर्ट" पहनी थी और नीचे पेंट, काले जूते जो पोलिश से चमक रहे थे| बस एक टाई की कमी थी तो पक्का लगता की मैं इंटरव्यू देने जा रहा हूँ|
भौजी: वाओ! You’re looking Dashing!
मैं: Thanks !!! कहते हैं ना “First Impression is the Last Impression”|
भौजी: मेरा हाथ मांगने के लिए आप कुछ लेट नहीं हो गए? ही..ही..ही...
मैं: Very Funny !!! अब आप भी ढंग के कपडे पहनना|
भौजी: हाँ भई... एबीएन आप Dashing लग रहे हो तो मुझे तो ब्यूटीफुल लगना ही पड़ेगा ना! अच्छा ये बताओ कौन सी साडी पहनू?
मैं: इसे मेरे लिए सरप्राइज ही रखो बस जो भी हो मेरी शर्ट से मैचिंग हो!
भौजी: ठीक है, आप बहार जाओ मैं तैयार हो के आती हूँ|
मैं: बहार जाऊं? मेरे सामने तैयार होने में कोई हर्ज़ है?
भौजी: नहीं तो... मुझे क्या... आपने तो मुझे देखा ही है|
मैं: I was Kidding !!! मैं बहार जा रहा हूँ!
और भौजी हंसने लगीं.....
अब आगे....
मैं बहार आके नेहा के साथ खेल रहा था और मुझे इस तर सजा धजा देख रसिका भाभी की आह निकल ही गई;
रसिका भाभी: हाय! नजर न लग जाए आप को मेरी! जबरदस्त लग रहे हो!
मैं: किसी और की तो नहीं पर हाँ आपकी नजर जर्रूर लग जाएगी|If you don’t mind mean asking….. ओह... अगर आपको बुरा ना लगे तो मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ?
रसिका भाभी: हुकुम करो मालिक!
मैं: प्लीज ... दुबारा मुझे ये मत कहना! खेर... उस दिन सब जानते हुए आप ने वो बात हमारे सामने इसीलिए दोहराई थी ना क्योंकि आप हमें ब्लैकमेल करना चाहतीं थीं... है ना?
रसिका भाभी: नहीं तो... वो तो मैं....
मैं: आप रहने दो... मैं जानता हूँ आपका उद्देश्य क्या था? अब साफ़-साफ़ बता क्यों नहीं देती की क्या चाहती थीं आप?
रसिका भाभी: आपको
मैं: इतने सब के बाद भी आप का मन मुझसे नहीं हटा?
रसिका भाभी: क्या करें.... अपनी भौजी की प्यास तो आप बुझा देते हो.... पर मेरा क्या? मैंने सोचा था की दीदी डर जाएँगी और मना नहीं करेंगी! शायद मैं उन्हें मना भी लेती उसके लिए... (रसिका भाभी ने बात आधी छोड़ दी)
मैं: किसके लिए?
रसिका भाभी: आप, मैं और दीदी एक साथ चुदाई करते!
मैं: OH FUCK !!! You gotta be kidding me !!! (मैंने गुस्से से झल्लाते हुए कहा|)
रसिका भाभी: क..क......क्या....क्या हुआ?
मैं: यकीन नहीं आता! Fuck…… Man….. You’re…..आपको कोई ..... मैं आपसे बात ही नहीं करना चाहता| इतना मैल भरा है आपके मन में!!! छी!!!
रसिका भाभी: मानु जी... प्लीज.... ये बात दीदी को मत बताना....आप तो कुछ ही दिन में चले जायेंगे.... और यहाँ दीदी के आलावा मेरा और है कौन जो ध्यान रखे .... प्लीज...मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ...पाँव पड़ती हूँ|
मैं आगे कुछ नहीं बोला.... और नेहा को गोद में लेके दूर आज्ञा| मुझे तो अब उनसे घिन्न आने लगी थी!!! छी!!!
नेहा: पापा जी...क्या हुआ?
मैं: कुछ नहीं बेटा...आप जाके खेलो और हाँ कपडे गंदे मत करना|
नेहा गोद से उतरी और वरुण के साथ खेलने चली गई| मैं हाथ बंधे खड़ा था और इतने में मुझे पिताजी की आवाज आई;
पिताजी: अरे वाह भई! आज तो सज-धज के जा रहे हो...वो भी अपनी भौजी के मायके?
मैं: (मैंने पिताजी की बात उन्हीं पे डाल दी|) पिताजी आपसे ही सीखा है की कहीं जाओ तो ऐसे कपडे पहनो की देखने वाला कहे की वाह!
पिताजी: शाबाश बेटे! समधीजी को हमारा प्रणाम कहना और रात वहां मत रुकना!
मैंने हाँ में सर हिलाया और इतने में पिताजी को खेतों में कोई जाना-पहचाना दिखा और उसे आवाज लगते हुए वो खेतों में चले गए|
भौजी जब तैयार होक बहार निकलीं तो उन्हें देखते ही मैं रसिका भाभी की सारी बात भूल गया|लाल रंग की शिफॉन की साडी ...उसपे काले रंग का डिज़ाइनर बॉर्डर... और काले रंग का ब्लाउज वाओ!! बिलकुल इस फोटो जैसा| बस इसमें ब्लाउज डिज़ाइनर है और फूल स्लीव का है पर उनका पलाइन था और आधी स्लीव का था|
उन्हें देखते ही दिल की धड़कनें थम गईं और मैं मुंह खोले उन्हें देखता रहा|बाल खुले हुए थे और सर पे पल्लू था|
भौजी: ऐसे क्या देख रहे हो?
मैं: You’re looking faboulous!
भौजी: Awww… Thanks!!!
तभी वहाँ बड़की अम्मा आ गईं और उन्हें बता के हम चलने को हुए;
मैं: नेहा...नेहा ....कहाँ हो बेटा?
नेहा भागती हुई आई और उसके कपडे गंदे हो गए थे|
भौजी उसे देखते ही गुस्सा हो गईं|
भौजी: ये लड़की ना... मना किया था न तुझे....
मैं: (भौजी की बात काटते हुए) कोई बात नहीं...आओ बेटा… मैं आपको तैयार करता हूँ|
भौजी: लाइए ... मैं तैयार कर देती हूँ|
मैं: रहने दो... आपकी साडी की क्रीज़ खराब हो जाएगी| वैसे भी आप नेहा पे भड़के हुए हो खामखा डाँट दोगे!
मैं नेहा को अंदर ले जाके तैयार कर के ले आया और हम भौजी के मायके के लिए निकल पड़े| रास्ते में हम बातें कर रहे थे;
मैं: यार प्लीज ये घूँघट हटा दो!
भौजी ने बिना कुछ कहे घूँघट हैट दिया और अब उनके खुले बाल मुझ पे जादू कर रहे थे| उन्हें इस तरह देख मुझे बीती रात वाला समय याद आने लगा|
भौजी: क्या हुआ? क्या देख रहे हो?
मैं: कुछ नहीं आपको इस तरह देख के मुझे कल रात की याद आ गई|
भौजी मेरी बात समझ गईं और उन्होंने मुझे प्यार से दाहिनी बाजू पे मुक्का मारा|
मैं: oww !!!
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