Nangi Sex Kahani एक अनोखा बंधन
02-20-2019, 05:42 PM,
#27
RE: Nangi Sex Kahani एक अनोखा बंधन
22

अब आगे....

उस एक पल के लिए मेरे ऊपर वासना बेकाबू हो गई.. मैं सब दर्द भूल गया था| मैं बेतहाशा भौजी के होंटों को चूसता रहा... भौजी इसका विरोध बिलकुल नहीं कर रही थी... धीरे-धीरे वो भी मेरा सहयोग करने लॉगिन| उन्होंने अपना मुख हल्का सा खोला... बिना मौका गंवाए मैंने उनके मुख में अपनी जीभ प्रवेश करा दी! जब उन्होंने अपनी जीभ से जवाबी हमला किया तो मैंने उनकी जीभ को अपने दातों टेल दबा दिया और रसपान करने लगा| मैं काबू से बहार होगया था... मेरे हाथ अब फिसलते हुए भौजी के कंधो तक आगये थे.. मैंने झुक के भौजी के दायें स्तन को अपने होठों की गिरफ्त में ले लिए| अपने अंदर भड़की वासना के कारन मैंने बिना सोचे समझे भौजी के स्तन को काट लिया! दर्द इतना तीव्र था की एक पल के लिए तो भौजी कसमसा के रह गयीं.. परन्तु उन्होंने मुझे अपने से दूर नहीं किया... बल्कि अपनी ओर खींचने के लिए मेरे सर को अपने स्तन पे दबा दिया| मैं उनके स्तन को किसी शिशु की भाँती पीने लगा और अब मेरा हाथ उनके बाएं स्तन का मर्दन करने लगा था| उनका बयां निप्पल मेरी उँगलियों के बीच था और मैं उसे भी रह-रह के निचोड़ने लगा था.. जब मैं ऐसा करता तो भौजी की सिसकारी छूट रही थी....

"स्स्स्स्स्स्स्स्स्स ... अम्म्म्म ... हन्ंणणन् "

मैं भौजी के सिस्कारियों से उत्तेजित हो रहा था और उनके दायें निप्पल को दाँतों से दबाने लगा| मैं नहीं जानता था की मैं अनजाने में भौजी को पीड़ा दे रहा हूँ| जब मेरा मन उनके दायें स्तन से भर गया तब मैंने उनके बाएं स्तन को अपने मुख की चपेट में ले लिया| अब मैं उस स्तन का भी स्तनपान करने लगा और दायें स्तन का मर्दन अपने हाथों से करता रहा| कभी चूसता ... कभी काटता ... कभी निप्पल को निचोड़ देता| जब मेरा मन भर गया तब मैंने भौजी के स्तनों की हालत देखी| दोनों स्तन लाल हो चुके थे... और भौजी के मुख पे आंसूं की कुछ बूँदें छलक आईं थी| परन्तु उन्होंने मुझसे इसकी जरा भी शिकायत नहीं की.. वो चाहती तो मुझे रोक सकती थीं.. या बता सकती थीं की मानु मुझे दर्द हो रहा है| परन्तु उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.... मैं कुछ क्षण तक उन्हें देखता रहा ... निहारता रहा.... सोचने लगा की क्या एच में वो मुझे इतना प्यार करती हैं?

मैं: भौजी आपको दर्द हो रहा था न?

भौजी: नहीं तो... तुम मुझे प्यार कर रहे थे, मार थोड़े ही रहे थे जो दर्द होता| पर तुमने ऐसा क्यों पूछा??

मैं: आप झूठ बोल रही हो... आपके स्तन पे बने ये लाल निशान कुछ और ही कहानी बता रहे हैं|

भौजी: ये तो तुम्हारे प्यार की निशानी है... जब तुम नहीं होगे तब ये मुझे टुंगरे साथ बिठाये हर लम्हे को याद दिलाएंगे|

इतना कह के भौजी निचे घुटनों के बल बैठीं और मेरी पेंट खोल दी| मेरा लंड बहार निकला और उसे पहले तो चूमा| फिर अपनी जीभ के बीच वाले भाग से एक बार चाटा....

"स्स्स्स... अंह्ह्ह" मेरी सिसकारी छूटी|

अब उन्होंने अपना मुख पूरा खोला और जीभ बहार निकली और जितना हो सकता था मेरे लंड को अपने मुख में भर लिया| मेरा लंड उनकी जीभ और तालु के बीच में रगड़ा जा रहा था... इतना मज़ा आ रहा था की मैं अपने पंजों के बल खड़ा हो गया| शरीर का हर रोंगटे खड़ा हो चूका था| भाभी ने धीरे-धीरे लंड को मुख में भरे अपनी गर्दन को आएगे पीछे करना शुरू किया| ऐसा लगा जैसे भौजी आज मेरा सारा रास पी जाएँगी!!! मैं अब किसी भी समय छूटने वाला था... मैंने भौजी को बीच में ही रोक दिया| भौजी को खड़ा किया... बिना उनकी साडी उतारे उनकी बायीं टांग मैंने अपने हाथ में ले ली और भौजी ने अपने हाथ से मेरे लंड को सही दिशा दिखाई| जैसे ही मुझे दिशा का ज्ञात हुआ मैंने एक जोरदार धक्का मारा... धक्के की तीव्रता इतनी तेज थी की हमारा बैलेंस बिगड़ा और मैं और भौजी दिव्वार से जा टिके| अब भौजी की नंगी पीठ दिवार से लगी थी और सामने से उनके स्तन मेरी छाती में धंसे हुए थे| भौजी बड़ी जोर से छटपटाई.. मैं भी हैरान था की आखिर ऐसा कौन सा तगड़ा जोर लगा दिया मैंने की भौजी छटपटा गईं,

मैं: आप ठीक तो हो ना?

भौजी अपने आप को संभालते हुए बोलीं : "हाँ"

मैं: तो आप एक डैम से छटपटाने क्यों लगीं?

भौजी: वो बस ऐसे ही.. तुम प्लीज मत रुको!!!

मैंने सोचा शायद मैंने वासना के आवेश में आके कुछ ज्यादा ही जोर लगा दिया होगा| मैंने अपनी गति धीरे-धीरे राखी... हर झटके से भौजी के स्तन हिल जाते और भौजी की करहाने की आवाज आने लगती:

"स्स्स्स....अंंंंंंं ... मानु......अह्ह्ह्हह्ह"

उनके दोनों हाथ मेरे सर के बालों में फिर रहे थे... और मुझे बड़ा अच्छा महसूस हो रहा था| वासना बड़ी जोर-शोर से हिलोरे मार रही थी और भौजी भी अलगःभाग चरम सीमा तक पहुँच गयी थीं| उनकी आँखें बंद थीं और वो बस सिस्कारियां लिए जा रही थी....

"आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह,ssssssssssssssssssss स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स "

अब मैं कोई और पोजीशन इख्तियार करना चाहता था तो मैंने अपना लंड बहार खींच लिया ... भौजी को पलटा और नीचे झुकाया जिससे वो घोड़ी के सामान झुक गयीं, मैंने अपना लंड पीछे से उनकी योनि में डाल दिया, और फिर से धक्के लगाना शुरू कर दिया| भौजी चार्म सीमा पर पहुँच गई और स्खलित हो गईं| उनका रास बहता हुआ बहार आया और मेरे लंड को पूरी तरह भिगो दिया| गर्शन काम हो चूका था और मैं अब भी झटके दिए जा रहा था|

भौजी की पीठ चाँद की रौशनी में चमक रही थी और मेरा मन किया की मैं उसे एक बार चुम लूँ| मैंने भौजी की पीठ से बाल हटाया और जो मैंने देखा उससे मैं सन्न रह गया| भौजी की पीठ बेल्ट की मार से बने दो निशान थे... ये देखते ही मेरी आँखों में खून उत्तर आया और मैं छिटक के भौजी से दूर हो गया| अब मुझे आभास हुआ की जब मैंने पहली बार झटका मारा था तो भौजी क्यों छटपटाई थीं| उनकी जख्मी नंगी पीठ दिवार से रगड़ गई थी जिससे उन्हें बहुत दर्द हुआ होगा| इधर भौजी को एहसास हुआ की मैं अचनका रुक क्यों गया तो वो पीछे मूड के मुझे देखने लगीं|

भौजी: क्या हुआ मानु?

मैं: आपकी पीठ पे वो निशान... आज सुबह के हैं ना?

भौजी: हाँ मानु... तुम्हारे आने से पहले उन्होंने मुझे...

मैं: और आपने मुझे ये बात बताना जर्रुरी नहीं समझा?

भौजी: नहीं मानु... ये घाव तो बहुत थोड़े हैं| तुमने तो मुझपे अपने आप को कुर्बान कर दिया था|

मैं अंदर कमरे में गया और भौजी की पथ पे लगाने के लिए मलहम ले आया|

भौजी: ये क्या कर रहे हो?

मैं: आपकी पीठ पे दवाई लगा रहा हूँ|

भौजी: पर तुम तो मुझे प्यार कर रहे थे, और तुम तो अभी झड़......

मैं: वो सब बाद में, पहले आपकी पीठ में दवाई लगाना जरुरी है| मेरी वजह से आपका जखम और उभर गया है|

मैंने भौजी को खींच के उनकी चारपाई पर पेट के बल लेटाया और उनका घाव साफ़ कर के उसपे मलहम लगाया| भौजी ने बड़ी कोशिश की कि मैं पहले सम्भोग पूरा करूँ पर मेरा मन उनकी दशा देख के फैट गया था| इतना दुःख तो मुझे तब भी नहीं हुआ था जब मैंने उन्हें बुखार से तपते हुए देखा था| अब मुझे समझ आ रहा था कि भौजी क्यों चाहती थी कि मैं उन्हें भगा के ले जाऊँ| इस समय भौजी को सच में बहुत दर्द हो रहा था ... और मैं बेवकूफ उन्हें और दर्द देने की सोच रहा था| दवाई लगाने के बाद मैं उन्हें पंखा करने लगा ताकि ठंडी हवा से उनके घाव को कुछ आराम मिले| मन ही मन मेरे अंदर गुस्सा भी उबलने लगा था और मैंने एक फैसला किया|

मैं: मैंने एक फैला किया है|

भौजी: क्या? स्स्स्स्स

मैं: कल मैं आपको और नेहा को भगा ले जाऊँगा|

भौजी: नहीं मानु.. तुम अभी गुस्से में हो| हम कल बात करते हैं|

मैं: नहीं कल ऑफर होने से पहले जब सभी घरवाले खेत में काम करने निकल जायेंगे तब हम तीनों यहाँ से भागेंगे|

भौजी: मानु, तुम्हें मेरी कसम .. ऐसी बात मत करो|

मैंने झल्लाते हुए कहा: "तो आपको यहाँ मरने के लिए छोड़ दूँ?"

बस इतना कहते हुए मैं उठा और अपनी चारपाई पे जाके पेट के बल लेट गया| अब भौजी ने मुझे अपनी कसम दी थी इसलिए मैं अभी तो चुप हो गया पर दिमाग में भौजी को भगाने का प्लान बना चूका था|

सुबह हुई, मैं फटा-फ़ट उठा... शायद पीठ के घाव कुछ भर गए थे, क्योंकि दर्द कुछ कम था| बहार आया तो बड़के दादा और बड़की अम्मा (बड़े चाचा और चाची) चाय पी रहे थे| उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया:

बड़के दादा: आओ मुन्ना... बैठो| कैसी तबियत है? घाव कुछ भरे लगते हैं.... दर्द कम हुआ? नहीं तो चलो डॉक्टर के ले चलें|

मैं: नहीं दादा... अब दर्द कम है|

बड़की अम्मा: लो चाय पियो|

मैं: नहीं अम्मा अभी मुंह नहीं धोया, पूजा भी नहीं की|

बड़के दादा: मुन्ना, हमें कल शाम को अजय ने बताया ...जो कुछ हुआ उसके लिए हम बहुत शर्मिंदा हैं|

मैं: नहीं दादा... ऐसा मत कहिये| मैं भौजी को दवाई देने जा रहा था जब मुझे चीखने-चिल्लाने की आवाज आई| मैं दौड़ा-दौड़ा वहां पहुँचा... आगे जो हुआ वो आपको पता ही है|

बड़के दादा: तुम ये बात छुपाने को क्यों कह रहे थे... गलती चन्दर की है| सजा तो उसे मिलेगी ही... चाहे वो सजा मेरा छोटा भाई दे या मैं| हम तुम्हारे पिताजी को सब सच बताएँगे...

मैं: जैसा आपको ठीक लगे| मैं तो बस यही चाहता था की इस बात पे ज्यादा बवाल न हो| वैसे अम्मा आपने भौजी का हाल तो पूछा ही नहीं?

बड़की अम्मा: क्यों? उसे क्या हुआ? चोट तो तुम्हें लगी थी|

मैं: दरअसल अम्मा, मेरे पहुँचने से पहले भैया ने भौजी पे हाथ उठा दिया था| उनकी पीठ पे भी बेल्ट के दो जख्म बने हैं|

बड़की अम्मा: हाय राम... बहु तुमने हमें क्यों नहीं बताया?

भौजी: नहीं अम्मा.... ज्यादा दर्द नहीं था|

मैं: तो आप रात में चीखे क्यों था? अम्मा भौजी करवट लेके लेटी थी, जैसे ही ये सीढ़ी लेटी एकदम से चीख पड़ीं और उठ के बैठ गईं|

बड़की अम्मा: चल बहु अंदर चल, मैं मलहम लगा दूँ|

मैं भी वहां से उठा बड़े घर की और चल दिया| समय था की मैं अपने बनाये प्लान को अंजाम दूँ... मैंने जल्दी-जल्दी अपने दो-चार कपडे पैक किये| अगला काम था पैसे का जुगाड़ करना, मेरे पास पर्स में करीब दो सौ रूपए थे| उस समय ATM कार्ड तो था नहीं.. हाँ परन्तु पिताजी के पास MULTI CITY चेक की किताब थी और मुझे पिताजी के दस्तखत करने की नक़ल बड़े अच्छे से आता था| मैंने किताब से एक चेक फायदा और उसमें एक लाख रुपये की राशि भर दी| जल्दी से नह धो के तैयार हुआ, पूजा की और भगवान से दुआ मांगी की मुझे मानसिक शक्ति देना की मैं अपनी नई जिम्मेदारी निभा सकूँ| जब मैं भौजी के पास पहुँचा तो अजय भैया खेत जाने के लिए निकलने वाले थे:

अजय भैया: मानु भैया, चाचा का फ़ोन आया था वे चार बजे तक आएंगे|

मैं: अच्छा.. और चन्दर भैया?

अजय भैया: उनका पता नहीं.. मैंने मां को फ़ोन किया था| उन्होंने बताया की वो वहीँ हैं और अभी तक सो रहे हैं.. मैंने उन्हें कल हुए हादसे के बारे में भी बताया| उन्हें भी जानके बहुत अफ़सोस हुआ....

मैं: भौजी चाय दे दो|

भैया हंसिया ले के खेत की ओर निकल गए| अब घर में केवल मैं, नेहा ओर भौजी ही थे|

मैं: चलो जल्दी से तैयार हो जाओ?

भौजी: क्यों?

मैं: भूल गए रात को मैंने क्या कहा था?

भौजी मेरा हाथ पकड़ के मुझे अपने घर की ओर खींचती हुई ले गई| मुझे चारपाई पे बैठाया ओर बोलीं:

"मानु तुम्हें क्या हो गया है? क्यों तुम ऐसी बातें बोल रहे हो? तुम भी जानते हो की नई जिंदगी शुरू करना इतना आसान नहीं होता? हम कहाँ रहेंगे? क्या खाएंगे? और कहाँ जायेंगे? नेहा की परवरिश का क्या? है तुम्हारे पास इन बातों का जवाब?"

मैं: भौजी मैंने सब सोच लिया है| हम यहाँ से सीधा दिल्ली जायेंगे, वहां मेरा एक भाई जैसा दोस्त है, वो हमारा कुछ दिनों के रहने का इन्तेजाम कर देगा| उसके मामा जी जयपुर में रहते हैं, वही मेरी नौकरी भी लगवा देंगे| आप, मैं और नेहा जयपुर में ही रहेंगे|

भौजी: और इसके लिए कुछ पैसे भी तो चाहिए होंगे? वो कहाँ से लाओगे... मेरे पास तो कुछ जेवर ही हैं जो मेरे माँ-बापू ने दिए थे|

मैं: उनकी जर्रूरत नहीं पड़ेगी... मेरे पास लाख रूपए का चेक है, जिसे हम भारत के किसी भी बैंक से कॅश करा सकते हैं| इतने पैसों से हमारा गुजारा हो जायेगा... धीरे-धीरे मैं कमाने लगूँगा ओर फिर सब कुछ ठीक हो जायेगा|

भौजी: और ये पैसे आये कहाँ से तुम्हारे पास?

मैं: पिताजी के बैंक से! पर आप चिंता मत करो मैं ये पैसे उन्हें लौटा दूँगा|

भौजी: मुझे तुम्हारी बात पे भरोसा है, पर मेरी एक बात का जवाब दो: जब हम यहाँ से भाग जायेंगे तो तुम्हारे माँ-पिताजी का क्या होगा? वो किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे ... हमारी कितनी बदनामी होगी| अगर मैं ये मान भी लूँ की तुम्हें इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता तो मुझे एक बात बताओ, हम जहाँ भी रहेंगे वहां लोग तो होंगे ही| हम जंगल में तो रहने नहीं जा रहे, तुम्हारी उम्र सोलह्-सत्रह साल होगी और मेरी चौबीस साल| तुम जमाने से क्या कहोगे? ये सच तो तुम छुपा नहीं सकते? और इसका असर नेहा की जिंदगी पे भी पड़ेगा| क्या तुम यही चाहते हो? अगर हाँ तो मैं तुम्हारे साथ चलने के लिए अभी तैयार हूँ|

इतना कह के भौजी ने जल्दी-जल्दी अपने कपडे सूटकेस में फेंकने शुरू कर दिए|

मैं: नहीं... पर मैं आपको इस नर्क में अकेला भी तो नहीं छोड़ सकता| आज तो मैं था तो मैंने आपको बचा इया... कल जब मैं नहीं रहूँगा तब? तब आपकी रक्षा कौन करेगा?

भौजी: मानु मुझे हमारे प्यार पे पूरा भरोसा है... और भगवान पर भी| वही मेरी और नेहा की रक्षा करेगा|

अब बहंस करने का कोई फायदा नहीं था.... भौजी की बातों में सच्चाई थी| हमारे जैसे देश में जहाँ लोग पति-पत्नी के बीच के प्यार को नहीं बल्कि उनकी उम्र, कद, काठी इत्यादि को ज्यादा मानता देते हैं ऐसे देश में हमारे प्यार के लिए कोई जगह नहीं थी| मैं गुम-सुम सा बैठा रहा.. और भौजी दूसरी चारपाई पर बैठी मुझे देख रही थी|
जब मैं उठने को हुआ तो भौजी मेरे पास आइन और मुझे गले लगा लिया| वो खुद को रोने से नहीं रोक पाईं.. मैंने उन्हें चुप कराया:

मैं: अब आप चुप हो जाओ हम कहीं नहीं जा रहे! ये लो...

ये कहते हुए मैंने चेक फाड़ डाला और बात घुमा दी ...

मैं: कल जो आप ने मलहम लगाया था न उससे काफी आराम मिला| थोड़ा और लगा दो ....

भौजी ने पहले मुझे मलहम लगाया उसके बाद मैंने भौजी को मलहम लगाया| हाथ-मुँह धो के हम बाहर आ गए| भौजी खाना बना रही थी और मैं पास की चारपाई पर लेटा उन्हें निहार रहा था| अब तो मुझे भौजी और नेहा की और ज्यादा चिंता होने लगी थी.... मेरी अनुपस्थिति में भैया दोनों का क्या हाल करेंगे ये सोच के ही डर लगता था|

भौजी: क्या सोच रहे हो मानु?

मैं: कुछ नहीं|

भौजी: रात का अधूरा काम कब करोगे?

मैं: अभी मन नहीं कर रहा|

भौजी: तुम तो मन मार लेते हो, पर मेरे मन का क्या? वो तो तब ही खुश होता है जब तुम खुश रहते हो|

मैं: भौजी मैं....

इससे पहले की मैं और कुछ कहता पिताजी ने आके मुझे डरा दिया| भौजी हींहोने घूँघट हटा रखा था, पिताजी को देखते ही डेढ़ हाथ का घूँघट काड लिया|
Reply


Messages In This Thread
RE: Nangi Sex Kahani एक अनोखा बंधन - by sexstories - 02-20-2019, 05:42 PM

Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,465,827 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 540,454 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,217,879 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 920,935 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,632,890 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,064,177 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,922,703 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,963,416 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 3,995,640 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 281,520 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 7 Guest(s)