RE: Hindi Kamuk Kahani बरसन लगी बदरिया
अपनी चूत सिकोड़कर मैंने उसे लंड अंदर डालने से रोका और ताना मारा- “मन तो करता है मिल जाये… अरे मैं तो चुदवाऊँगी ही पर…” अचानक बिजली जोर से कौंधी और मैं एक चीख के साथ उससे चिपक गयी। मौका देखकर राजीव ने एक बार में अपना लंड जड़ तक मेरी चूत में उतार दिया। बाहर लगातार गरज के साथ वर्षा हो रही थी और हम उसी लय में चुदाई कर रहे थे। हम ऐसे मदहोश हुए कि समय का कोई ध्यान हमें नहीं रहा। मैं भी राजीव के हर धक्के के जवाब में उतने ही जोर से नीचे से अपने चूतड़ उछालती थी। बहुत देर चोद-चोदकर आखिर हम एक साथ स्खलित हुए।
बिजली भी चली गयी थी और घना अंधेरा छा गया था। हम एक दूसरे की बाहों में लिपटे रहे। बिजली की कौंध में हमारे आपस में लिपटे नग्न तन क्षणभर को दिखाई देते और फिर गायब हो जाते। मेरे पति ने धीरे-धीरे मेरे कान को अपने दाँतों से कतरना शुरू कर दिया। बादलों की गरज अब बंद हो गयी थी और रिमझिम पानी बरस रहा था इसलिए हमने कमरे की सब खिड़कियां खोल दी थीं। रस की बौछार. हमें बार-बार भिगा जातीं। पानी की बूँदों से मेरे फिर से उत्तेजित निपल गीले हो गये थे और एक बूँद निपल के छोर पर आकर थम गयी थी। मेरा
पति उसका लोभ न पचा पाया और उसने वो बूंद जीभ से चाट ली । धीरे-धीरे नीचे की ओर बढ़ता हुआ वह मेरे गोरे पेट पर जमी नन्हीं बूँदों को चाटने लगा।
वहां से मेरी कामना की घाटी तक पहुँचने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई। अपने होंठों से मेरी स्वादिष्ट रसीली चूत को खोलते हुए उसकी जीभ मेरी चूत में घुसकर उसे चाटने लगी। मैं असहनीय सुख से अधमरी सी हो गयी थी।
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