RE: Hindi Kamuk Kahani बरसन लगी बदरिया
[i]अब वह बुरी तरह उत्तेजित था और मुझसे और करने की याचना कर रहा था। आखिर मैं कौन होती थी, अपने ननद के भाई को भूखा रखने वाली ? इसलिए मैंने उसे जोर से चूसना शुरू कर दिया। वह अपने चूतड़ उचका-उचका कर और मजा लेने की कोशिस कर रहा था। कुछ देर जोर से चूसने के बाद मैंने उसके लंड को मुँह से निकाला और अपने निचले मुँह के होंठों से उसे छेड़ने लगी। मैंने उसके हाथ अपने हाथ में पकड़े हुए थे और मेरी मस्त 36डीडी का जोबन उसकी छाती पर रगड़ रही थी।
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बाहर कुछ देर पहले की बूंदा-बांदी अब घनघोर वर्षा में परवर्तित हो गयी थी। खिड़की पर बूँदों के गिरने की आवाज के साथ-साथ मैं अपनी चूत उसके तन्नाये लंड पर घिस रही थी। अब वह मुझसे याचना करते हुए कह रहा था- “प्लीज़, टेक इट, मेरा लंड ले लो, ओह, ओह…”
मैंने एक धीमे धक्के के साथ बस उसके लंड का छोर अपनी चूत में ले लिया और फिर रुक गयी- “ओके, मैं अभी खूब जम के चुदाई कराऊँगी पर पहले एक बात इमानदारी से बताओ…” मुझे मालूम था कि लंड का छोर चूत में फँसा हो तो इस हालत में कोई पुरुष झूठ नहीं बोल सकता।
“हाँ पूछो…” बेचारा राजीव विवश होकर बोला।
“जब तुमने मेरी ननद का जोबन देखा तो तुम्हारा खड़ा हुआ था कि नहीं?” मैंने पूछा।
“किसी का भी हो जायेगा, एक किशोरी का खिलता जोबन देखकर…” वह बोला।
“नहीं मैं तुम्हारा पूछ रही हूँ, सच सच बताओ मीता का देखकर तुम्हारा खड़ा हो गया था कि नहीं?”
“हाँ हो गया था एकदम हो गया था…” उसने स्वीकार किया “पर प्लीज़ चोदो ना…”
मैंने अपनी पतली कमर से धक्का दिया और उसका सुपाड़ा अपनी चूत में लेकर फिर रुक गयी। चूत को सिकोड़कर उसे पकड़ते हुए मैंने अपनी पूछताछ जारी रखी- “तो तुमको लगता है कि वह मस्त माल हो गयी है चोदने लायक…”
“हाँ लेकिन अभी तो तुम मुझे चोदो…”
उसके इस बात को स्वीकारने के बाद मैंने जोर से धक्का लगाया और उसक लंड गप से मेरी गीली चूत में समा गया। मतवाले मौसम के साथ-साथ मीता के बारे में की हुई मेरी छेड़-छाड़ के कारण उसका लंड लोहे के राड जैसा खड़ा हो गया था। मेरी म्यान में घुसकर उसे चौड़ा करता हुआ अंदर से मेरी कोमल नलिका को वह जोर से घिस रहा था। अब मैं भी न रुक सकी और उछल-उछलकर उसे चोदने लगी। मेरी कसी मस्त चुचियों को वह मसल कुचल रहा था। मैं उसके कंधे पकड़कर ऊपर से धक्के लगा रही थी और उसके मतवाले लंड को अपनी चूत में निगल कर चोद रही थी।
उसके लंड को मेरी चूत अपनी माँस पेशियों को सिकोड़कर कसकर पकड़ लेती और कभी मैं उसे अपनी चूत से करीब-करीब पूरा निकाल देती। सिर्फ़ सुपाड़ा अंदर रह जाता। उसे कुछ देर तंग करने के बाद मैं उसकी पीठ अपने लंबे नाखूनों से खरोंच कर फिर उसका लंड पूरा अंदर ले लेती।
एक हवा के झोंके के साथ खिड़की खुल गयी और वर्षा की फुहार. अंदर आकर मेरी ज़ुल्फो से खेलने लगी। ठंडी हवा ने मेरी पीठ को सहलाया और हवा के एक और झोंके ने वर्षा की बूँदों से मेरे स्तनों के उभार को रस में
भिगो दिया। मेरे पति ने मुझे कसकर बाहों में लेकर मेरे स्तन अपनी छाती पर भींच लिए। मेरे कान में फुसफुसा कर वह बोला- “बहुत मजा आ रहा है…”
उसे छेड़ने का एक भी मौका मैं हाथ से नहीं जाने देती थी। बोली - “कल जब मीता को चोदोगे ना तो इससे भी ज़्यादा मजा आयेगा…”
[i]दिखावे का गुस्सा करते हुए वह मुझपर झपटा और मुझे मेरी पीठ के बल नीचे पटक दिया। पर ऐसा करने में उसका लंड मेरी चूत से बाहर आ गया। उसने मेरे पैर मोड़कर उन्हें मेरे सिर के पास लाकर मेरी गठरी बना दी और अपना लंड मेरे क्लिट पर रगड़ने लगा- “मुझे बहनचोद बनाने चली थी, चलो पहले तुम तो चुदाओ फिर अपनी ननद की बात करना…”[/i]
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