RE: Nangi Sex Kahani अय्याशी का अंजाम
मतलब गोली अपना असर शुरू करने लगी थी.. अब रश्मि का दिमाग़ उसके काबू में नहीं था.. उसके जिस्म में वही बेचैनी शुरू हो गई थी।
जय- अगर तुम्हारी यही मर्ज़ी है.. तो चलो आ जाओ.. तुम्हारी भी एंट्री करवा देते हैं।
विजय- भाई ये क्या बात हुई.. अब आप यहाँ भी रश्मि को लेकर जाओगे?
जय- अरे इसमें क्या बुराई है.. और भी तो लड़कियां आएँगी ना यहाँ.. और वैसे भी जब रश्मि ने खुद फार्म पर गेम के लिए ‘हाँ’ कह दी है.. तो ये तो उसके सामने छोटी सी बात है।
विजय- वो भी आपकी वजह से ही सब हुआ है.. मगर इसका अंजाम बहुत बुरा होगा.. ये खेल परिवार की इज़्ज़त से बढ़कर नहीं है।
जय- अरे यार लगता है.. तुझे चढ़ गई है.. तो बहुत जज्बाती हो रहा है.. जस्ट चिल यार.. अब चलो..
रश्मि और जय के समझाने पर विजय मान गया.. तीनों साथ में अन्दर गए.. अपनी एंट्री करवाई और आ गए।
रंगीला ने पहले ही अपनी और बाकी दोस्तों की एंट्री करवा दी थी।
वहाँ से निकल कर वो घर की तरफ़ जाने लगे। रास्ते में रंगीला को उसके घर छोड़ दिया और आगे निकल गए।
दोस्तो, ये अपने घर पहुँचे.. तब तक रंगीला के बारे में कुछ जान लो..
शुरू से आप बस रंगीला का नाम सुन रहे हो.. मगर इसके घर में अभी तक हमने कोई चर्चा नहीं की.. तो आज हम सब जानकारी कर लेते हैं।
रंगीला एक अच्छे परिवार से है.. मगर ये यहाँ दिल्ली का नहीं है.. इसका पूरा परिवार पंजाब में है। ये स्टडी के लिए दिल्ली आया था.. उसके बाद यहीं का होकर रह गया। इसने यहाँ अलग-अलग एरिया में बहुत से कमरे और फ्लैट्स किराए पर लिए हुए हैं। इसकी एक बहुत खास वजह है.. जो अभी नहीं बता सकती हूँ। वो आपको आगे पता चल जाएगी। मगर इस बात का पता इसके किसी दोस्त को नहीं है.. सब यही समझते हैं कि ये यहाँ अपने पापा के काम के लिए रहता है। उनका भी प्रॉपर्टी का धन्धा है। जिस घर के पास जय ने इसको छोड़ा है.. यही इसका घर है.. जहाँ कुछ नौकर हैं बस.. इसके अलावा ये यहाँ अकेला ही रहता है।
चलो अब ये बात यहीं ख़त्म करो.. आगे सब समझ जाओगे।
वो तीनों घर पहुँच गए और अपने-अपने कमरों में चले गए।
रश्मि कमरे में गई और पूरे कपड़े निकाल कर फेंक दिए.. तब जाकर उसको सुकून आया। मगर जब उसने देखा कि कमरे में तो एसी है ही नहीं.. तो उसके होंठों पर एक मुस्कान आ गई। उसने अपने बैग से हेयर रिमूवर लिया और वो बाथरूम में चली गई। वहाँ जाकर अपने हाथ पैर के साथ चूत पर भी क्रीम लगा ली। वैसे कुछ दिन पहले ही उसने बाल साफ किए थे.. मगर पता नहीं आज उसके मन में क्या बात थी कि वो बड़े आराम से बाल साफ करने लगी और बड़बड़ाने लगी।
रश्मि- भाई आपने तो मुझे पागल बना दिया है.. आज तो मैं आपके लंड को देख कर ही रहूँगी।
रश्मि ने चूत की सफ़ाई की.. उसके बाद नहाने में मस्त हो गई।
उधर वो दोनों भी अपने कपड़े चेंज करके सोने की तैयारी में लग गए।
कुछ देर बाद विजय को कुछ याद आया तो वो कमरे से निकला और रश्मि के कमरे की तरफ़ चला गया।
दरवाजे पर दस्तक करके विजय ने रश्मि को आवाज़ दी।
उस वक्त रश्मि बाथरूम से बाहर निकली ही थी, उसने सिर्फ़ तौलिया लपेटा हुआ था।
रश्मि- कौन है?
विजय- मैं हूँ रश्मि.. मुझे तुमसे एक बात कहनी थी।
रश्मि- दरवाजा खुला है भाई.. आ जाओ।
विजय जब अन्दर गया तो वो पिंक तौलिया में रश्मि के गोरे जिस्म को बस देखता ही रह गया। वो बहुत प्यारी और सेक्सी लग रही थी.. मगर विजय ने जल्दी से अपनी नजरें उसके जिस्म से हटा लीं।
विजय- अरे कपड़े तो पहन लेतीं.. ऐसे तौलिये में क्यों खड़ी हो?
रश्मि- अरे अभी तो नहा कर निकली हूँ.. इतने में आप आ गए।
विजय- अरे तो मुझे बोल देतीं.. मैं बाहर वेट कर लेता।
रश्मि- अब जाने भी दो भाई.. जो कहना है.. कहो.. ऐसे बहस से क्या होगा.. ऐसे ही टाइम खराब करेंगे क्या?
विजय- अच्छा सुन.. तू बड़े पापा को आज की बात के बारे में मत बताना और आज के बाद जो भी हम करेंगे.. जहाँ भी जाएँगे.. वो सब हमारे बीच ही रखना.. नहीं तुम जानती हो ना.. क्या हो सकता है?
रश्मि- हा हा हा भाई.. आप भी ना बहुत भोले हो.. ऐसी बातें बताई जाती है क्या.. और वैसे भी अब हम फ्रेण्ड हैं.. तो ये राज हमारे बीच ही रहेगा।
विजय बार-बार रश्मि के जिस्म को देख रहा था.. मगर उसकी हिम्मत नहीं हो पाई कि वो खुल कर कुछ देखे या ऐसा हो सकता है कि उसके अन्दर का भाई उसे ये सब करने से रोक रहा हो..
विजय- ओह्ह.. थैंक्स.. तुमने तो मेरी टेंशन ख़त्म कर दी.. पता नहीं मैं क्या क्या सोच रहा था.. ओके अब सो जाओ गुड नाईट।
रश्मि- ओके भाई गुड नाईट..
विजय के वहाँ से जाने के बाद रश्मि मुस्कुराने लगी, वो बुदबुदाई- भाई आप भी बहुत सीधे हो ये बातें तो कुछ भी नहीं.. अब आगे-आगे देखो.. क्या होता है.. और वैसे भी आपका तो पता नहीं.. मगर मेरी नाइट जरूर आज गुड होने वाली है।
रश्मि के दिमाग़ में वासना का जन्म हो गया था.. वो कुछ सोच कर मुस्कुरा रही थी। विजय के जाने के बाद उसने अपने बाल पोंछे और सिर्फ़ एक शॉर्ट नाइटी पहन ली.. उसके अन्दर उसने जानबूझ कर कुछ नहीं पहना और धीरे से अपने कमरे से निकल कर जय के कमरे के पास चली गई।
पहले उसने सोचा कि दस्तक दूँ.. मगर बाद में सीधे अन्दर चली गई।
तब तक जय ने लाइट ऑफ कर दी थी और सिर्फ़ बरमूडा पहने बिस्तर पर लेटा हुआ था।
दरवाजा खुलने से वो सीधा हुआ..
जय- कौन है वहाँ..?
रश्मि- भाई मैं हूँ और कौन होगा?
जय- अरे रश्मि तुम.. रूको मैं लाइट जलाता हूँ।
रश्मि- नहीं नहीं.. भाई.. रहने दो..
जय कुछ कहता.. तब तक रश्मि बिस्तर पर आकर बैठ गई थी।
जय- क्या हुआ.. क्या तुम्हें नींद नहीं आ रही है?
रश्मि- कैसे आएगी.. कमरे में एसी कहाँ है।
जय- क्या..? उसने शाम को लाने का कहा था.. लाया नहीं वो..? अभी उसकी खबर लेता हूँ.. ऐसा कैसे किया उसने?
रश्मि- अरे जाने दो भाई.. कोई प्राब्लम होगी.. तभी नहीं आया.. मैं आपके साथ सो जाऊँगी।
जय- तुझे यहाँ भी नींद कहाँ आएगी.. कल रात में भी तू यहाँ से 5 मिनट में चली गई थी।
रश्मि- नहीं आज नहीं जाऊँगी.. कल तो एसी था.. हाँ कम ठंडा कर रहा था.. मगर था तो.. आज तो है ही नहीं.. तो जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता और वैसे भी आज मुझे गर्मी कुछ ज़्यादा महसूस हो रही है।
जय- अच्छा कोई बात नहीं.. कल मैं उसकी खबर लेता हूँ।
रश्मि- अरे जाने दो भाई.. वैसे आज आपने एकदम अंधेरा क्यों किया हुआ है.. नाइट बल्ब भी नहीं जलाया?
जय- बस ऐसे ही.. लाइट से नींद नहीं आ रही थी.. तो मैंने बन्द कर दी।
रश्मि- ओके.. अच्छा भाई वो फार्म पर किस तरह का खेल होता है? आपने मुझे बताया ही नहीं?
जय- ओह्ह.. कुछ ख़ास नहीं.. अब तुमने ‘हाँ’ कह दी है.. तो तुम्हें वहाँ जाकर पता चल ही जाएगा ना..
रश्मि- अरे क्या भाई.. आज बता दोगे तो क्या बिगड़ जाएगा.. प्लीज़ प्लीज़.. बताओ ना..
जय- नहीं रश्मि.. वो बात सुनकर तुम मुझसे नफ़रत करने लगोगी।
रश्मि- ऐसी क्या बात है भाई.. जो मुझे आपसे नफ़रत करने पर मजबूर कर दे.. अब तो आपको बतानी ही पड़ेगी।
जय- सॉरी रश्मि.. मैं साजन की बातों में फँस गया था.. इसलिए इस गेम के लिए ‘हाँ’ कह दी.. मगर तुम घबराओ मत.. हम ही जीतेंगे..
रश्मि- भाई पहेली मत बुझाओ.. सीधे-सीधे बोलो ना.. क्या बात है?
जय- ये दरअसल त..त..तुमने ‘स्ट्रीप पोकर’ का नाम सुना है ना.. बस कुछ-कुछ वैसा ही है।
स्ट्रीप पोकर का नाम सुनकर रश्मि की उत्तेजना और बढ़ गई.. मगर वो झूठमूट का नाटक करने लगी।
रश्मि- ओह्ह.. ओह माय गॉड.. भाई वहाँ सब कपड़े निकालेंगे क्या?
जय- नहीं सब नहीं.. बस तुम और साजन की बहन कोमल..
रश्मि- क्या.. सिर्फ़ हम दोनों.. और बाकी सब नहीं.. ऐसा क्यों..? मुझे जरा ठीक से समझाओ भाई।
जय ने पूरी बात रश्मि को विस्तार से बताई.. मगर चुदाई वाली बात नहीं बताई। वो जानता था कि ऐसी गंदी बात रश्मि बर्दाश्त नहीं कर पाएगी।
रश्मि- नहीं नहीं भाई.. मैं वहाँ नहीं जाऊँगी.. ऐसे सबके सामने नंगा होना छी:.. छी:.. आपने मेरे बारे में ये सब सोच भी कैसे लिया?
रश्मि की ‘ना’ सुनकर जय की गाण्ड फट गई। उसको लगा कि अब उसका खेल ख़त्म हो गया है.. रश्मि तो गुस्सा हो गई।
जय- अरे सॉरी रश्मि… मगर त..त..तुम मेरी बात तो सुनो.. ऐसा कुछ नहीं होगा.. मैं एक भी राउंड नहीं हारूंगा प्लीज़ तुम.. ना मत कहो।
रश्मि अंधेरे का फायदा उठा कर जय के एकदम करीब आ गई और अपना सर जय के सीने पर रख दिया।
रश्मि- मैं जानती हूँ भाई.. आप नहीं हारोगे.. मगर ऐसे गेम का क्या भरोसा अगर आप हार गए.. तो सब मेरे जिस्म को देखेंगे.. नहीं नहीं..
रश्मि कुछ इस तरह जय से लिपटी हुई थी कि उसका सर सीने पर और नंगी टांगें जय की जाँघ पर थीं।
जय- अरे कुछ नहीं होगा.. और वैसे भी तू ही तो कहती है.. तुम एक मॉर्डन लड़की हो और मेरे सामने कैसे ब्रा-पैन्टी में आ गई थीं। बस ऐसा समझो एक राउंड हार भी गया.. तो ज़्यादा से ज़्यादा सब तुम्हें ब्रा और पैन्टी में देख लेंगे.. प्लीज़ यार ना मत कहो.. अब ये हम दोनों की इज़्ज़त का सवाल है।
रश्मि अब जय के सीने पर हाथ घुमाते हुए बोली- भाई, आपके सामने तो मैं बिना कपड़ों के भी आ जाऊँ.. तो घर की बात घर में रहेगी.. मगर ऐसे सबके सामने आना.. मुझे तो सोच कर ही बहुत शर्म आ रही है..
जय- अच्छा मेरे सामने बिना कपड़ों के आएगी.. तब शर्म नहीं आएगी?
जय अब वासना के जाल में फँस रहा था। रश्मि का स्पर्श.. उसका हाथ घुमाना.. उसको अच्छा लग रहा था, उसके लंड में अकड़न शुरू हो गई थी। तभी तो उसके मुँह से ऐसी बात निकल पड़ी।
रश्मि तो वैसे भी अपने होश में नहीं थी, जय की बात सीधे उसकी चूत पर लगी यानि उसकी चूत ये सोच कर गीली हो गई कि जय के सामने जब वो नंगी होगी.. तो क्या होगा?
रश्मि- आपके सामने तो अभी नंगी हो जाऊँ.. बस एक बार बोल के तो देखो..
जय- रश्मि सच बताओ.. आजकल तुम्हें क्या हो गया है? ऐसी बातें क्यों करने लगी हो तुम? मैं तुम्हारा भाई हूँ मगर तुम मुझसे ऐसे चिपकी हुई हो.. जैसे मैं तुम्हारा ब्वॉयफ्रेण्ड होऊँ.. ये सब क्या चल रहा है?
रश्मि- भाई आप लड़के भी तो हो ना.. और ऐसे हैण्डसम लड़के के लिए तो लड़कियां लाइन लगा के खड़ी रहती हैं और मेरी किस्मत तो अच्छी है.. जो सीधे आप मिल गए भाई.. सच्ची आप मुझे बहुत अच्छे लगते हो..
जय- सच में.. तुम्हें इतना अच्छा लगता हूँ क्या?
रश्मि- हाँ भाई सच्ची मेरे दिल की धड़कनें तो आपके बारे में सोच कर ही बढ़ जाती हैं।
जय- चल पगली.. कुछ भी बोलती है..
रश्मि ने जय का हाथ अपने सीने पर रख कर दबा दिया और बड़े प्यार से कहा आप खुद देख लो।
नाइटी के अन्दर उसने कुछ नहीं पहना था। उसके मस्त मम्मों और जय के हाथों के बीच बस पतला सा नाइटी का कपड़ा था। इस अहसास से ही जय की धड़कनें बढ़ गईं.. वो हाथ हटाना चाहता था.. मगर रश्मि ने उसके हाथ को अपने हाथ से दबाया था।
रश्मि- देखो भाई.. कैसे मेरी धड़कनें तेज चल रही हैं।
जय- हाँ ये तो बहुत तेज है.. अब अपना हाथ हटाओ।
रश्मि- रहने दो ना भाई.. मुझे अच्छा लग रहा है।
रश्मि अब मस्ती के मूड में आ गई थी और जय का भी ईमान कुछ-कुछ बिगड़ गया था।
जय- अच्छा रश्मि रहने देता हूँ.. मगर एक बात तो बता.. वहाँ हॉस्टल में तुम कुछ करती थीं क्या.. जो इतनी फास्ट हो गई हो?
रश्मि- आपके कहने का क्या मतलब है भाई.. मेरी समझ के बाहर है?
जय अब धीरे-धीरे रश्मि के मम्मों को उंगली से सहलाने लगा था। उसको ऐसा करने से मज़ा आ रहा था।
जय- कुछ नहीं जाने दे.. तू नहीं समझेगी.. वैसे तुम आजकल बहुत सेक्सी हो गई हो..
रश्मि ने अपना हाथ धीरे से हटा लिया था। अब जय उसके मम्मों से आराम से खेल रहा था।
रश्मि- अच्छा ये बात है.. सेक्सी हरकतें आप कर रहे हो.. और सेक्सी मुझे बता रहे हो।
जय समझ गया और जल्दी से उसने अपना हाथ मम्मों से हटा दिया।
रश्मि- अरे रहने दो ना भाई.. मुझे अच्छा लग रहा था.. मैं तो बस मजाक कर रही थी.. आप तो नाराज़ हो गए?
जय- देखो रश्मि.. ये गलत है.. हम भाई-बहन हैं.. जैसा तुम सोच रही हो वैसा नहीं हो सकता।
रश्मि- क्या गलत है भाई.. और वैसे भी मैंने अब तक कुछ नहीं सोचा.. हाँ इतना जरूर है कि हम एक-दूसरे की जरूरत को पूरा कर सकते हैं.. इसमें कुछ गलत नहीं है।
जय- रश्मि मानता हूँ तुम बड़ी हो गई हो.. तुम्हारे जिस्म की जरूरतें हैं मगर मैं ही क्यों?
रश्मि- भाई आप तो जानते ही हो.. मेरा कोई ब्वॉयफ्रेण्ड नहीं है और इतनी जल्दी कोई बनेगा भी नहीं.. वैसे भी हम आपस में एक-दूसरे को समझ सकते हैं.. मैं किसी और पर भरोसा नहीं कर सकती। प्लीज़ आप मान जाओ ना..
इतना कहकर रश्मि एकदम से जय के सीने पर आ गई। उसके मम्मे अब जय के सीने में धँस रहे थे.. उसकी गर्म साँसें जय की साँसों से मिल रही थी।
अब जय इस सेक्स की हूर के प्रकोप से कहाँ तक अपने आपको बचा सकता था।
वैसे तो वो पक्का चोदूमल था.. मगर वो कहावत है ना.. डायन भी एक घर छोड़ती है। अब यह चुदासी हो रही रश्मि तो उसकी अपनी सग़ी बहन थी.. वो कैसे अपनी बहन चोद सकता था, मगर होनी को कौन टाल सकता है और वो तब जब रश्मि जैसी सेक्स बम्ब खुद चलकर कहे कि आओ अपनी बहन चोद दो… मुझे फोड़ दो.. एकदम नामुमकिन सी बात है।
जय का जिस्म भी अब गर्म होने लगा था, रश्मि की साँसों की महक उसको अच्छी लग रही थी, उसका मन तो बहुत किया कि अभी उसके होंठों का पूरा रस पी जाए.. मगर थोड़ा सी हिचक अब भी उसके मन में थी।
रश्मि- भाई.. अब क्या सोच रहे हो.. एक लड़की आपके इतने करीब है.. आपका मन नहीं करता.. उसको कुछ करने का.. किस करने का?
रश्मि अब पूरी तरह से जय के ऊपर चढ़ गई थी। उसकी नंगी चूत बरमूडे में तने जय के लंड से टच हो रही थी। जिसका अहसास जय को भी हो रहा था।
अब जय की सहन करने बर्दाश्त दम तोड़ गई थी.. उसने रश्मि की पीठ पर हाथ रखे और सहलाने लगा.. उसके थिरकते होंठों पर धीरे से अपने होंठ लगा दिए।
रश्मि तो जैसे बरसों की प्यासी थी। उसने फ़ौरन उसके होंठों को मुँह में लिया और चूसने लगी। अब जय भी कहाँ पीछे रहने वाला था.. वो भी शुरू हो गया अब दोनों की चूमाचाटी शुरू हो गई।
लगभग 5 मिनट तक दोनों एक-दूसरे के होंठों का रस पीते रहे।
अब कमरे का माहौल गर्म हो गया था।
जय ने रश्मि को अपने ऊपर से नीचे उतारा और खुद उसके ऊपर आ गया। अब उसका लौड़ा बरमूडा में तना हुआ था और रश्मि की चूत से सटा हुआ था।
जय- ओह्ह.. रश्मि.. ये तूने क्या कर दिया.. अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा.. अब मैं तुम्हें खा जाऊँगा।
रश्मि- तो रोका किसने है.. मेरे भाई.. खा जाओ आज अपनी बहन को.. आह.. बना लो मुझे आपकी महबूबा..
जय- ऐसे नहीं रश्मि.. रूको मुझे लाइट ऑन करने दो.. तुम्हारे जिस्म को कपड़ों में देख कर ही मैं सोचता रहता था कि मेरी बहन इस दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की है.. आज अपने हाथों से तेरे एक-एक कपड़े को उतार कर.. मैं तेरे जिस्म का दीदार करना चाहता हूँ.. तेरे जिस्म को अपने होंठों से चूमना चाहता हूँ।
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