RE: Nangi Sex Kahani अय्याशी का अंजाम
रणविजय खन्ना उनको सुनाते रहे.. वो बस ‘जी हाँ.. जी हाँ..’ करते रहे, घर में दोनों शेर चूहे बन गए..
अभी इनकी यह बात चल ही रही थी कि प्रीति वहाँ आ गई.. जिसे देख कर रश्मि ने मुँह बना लिया और वहाँ से चली गई।
सब जानते हैं इनकी नहीं बनती.. तो कोई कुछ नहीं बोला।
उसके पीछे काम्या भी चली गई।
प्रीति गुस्से में टेबल पर आकर बैठ गई और रणविजय को घूरने लगी।
उधर कमरे में जाकर रश्मि बिस्तर पर बैठ गई.. उसकी माँ पीछे-पीछे कमरे में आ गई।
काम्या- बेटा ऐसा नहीं करते.. ऐसे खाने पर से उठना ठीक नहीं..
रश्मि- मॉम आप जानती हो.. मैं उसकी शक्ल भी देखना पसन्द नहीं करती.. तो क्यों वो मेरे सामने आती है?
काम्या- बेटी भूल जाओ पुरानी बातों को.. मैं भूल गई तो तुम क्यों उस घिनौनी बात को दिल से लगाए बैठी हो?
रश्मि- नहीं मॉम.. मैं नहीं भूल सकती और उस चुड़ैल को देखो तो.. कैसे तैयार होकर घूमती है.. ना जाने कहाँ-कहाँ मुँह मारती फिरती है।
काम्या ने रश्मि को समझाया- ऐसा नहीं बोलते और वो ये सब इसलिए पहनती है.. क्योंकि काम में तुम्हारे पापा की बराबर की हिस्सेदार है। अब बड़ी-बड़ी मीटिंग्स में जाना.. लोगों से मिलना होता है.. तो थोड़ा सज-संवर कर रहना ही चाहिए ना..
रश्मि जानती थी कि उसकी माँ बस उसको बहला रही है.. बाकी वो खुद अन्दर से टूटी हुई थी। मगर रश्मि ने ज़्यादा ज़िद या बहस नहीं की और अपनी माँ को वहाँ से भेज दिया।
खाने के दौरान रणविजय ने प्रीति को साथ चलने को कहा और वो मान गई।
किसी ने कुछ नहीं कहा.. सब जानते हैं कि अक्सर काम के सिलसिले में दोनों बाहर जाते रहते हैं।
खाने के बाद कोई खास बात नहीं हुई सब अपने कमरों में चले गए।
शाम को दोनों रंगीला से मिलने गए..
रंगीला- अरे यार कहाँ हो तुम दोनों.. कब से इन्तजार कर रहा हूँ।
जय ने सुबह की सारी बात रंगीला को बताई तो वो खामोश होकर बैठ गया और कुछ सोचने लगा।
विजय- अरे यार क्या हुआ.. अब क्या करें.. कुछ आइडिया दे?
रंगीला- अब क्या आइडिया दूँ.. सारा गेम पलट गया.. तू ऐसा कर जय, साजन को कुछ पैसे देकर उसका मुँह बन्द कर दे.. और कह दे तेरी बहन नहीं मान रही है..
जय- नहीं ऐसा नहीं हो सकता.. जय खन्ना ने कभी किसी से हार नहीं मानी है..
विजय- भाई तो अब आप क्या करोगे? गुड्डी को ले जाओगे क्या वहाँ?
जय- नहीं विजय.. कुछ और सोचना होगा.. गुड्डी को नहीं ले जा सकते..
रंगीला- उसके जाए बिना साजन मानेगा नहीं.. एक आइडिया तो है.. मगर रिस्की है थोड़ा..
जय- क्या है बता ना यार?
रंगीला- देखो बिना गुड्डी को ले जाए वो मानेगा नहीं.. मगर उसको ले जाना तुम चाहते नहीं.. क्योंकि उस गेम में हर एक गेम के साथ एक कपड़ा निकालना पड़ता है.. सही ना..
विजय- हाँ यार यही तो बात है..
रंगीला- जय तू अच्छा खिलाड़ी है… यार अगर तू हारे ही नहीं.. तो क्या दिक्कत है.. गुड्डी को ले जाने में?
विजय- नहीं नहीं.. कभी नहीं.. अगर भाई हार गया तो?
रंगीला- अरे यार सब जानते है.. जय लकी है.. कभी नहीं हारता।
जय- हाँ विजय.. बात तो सही है.. मैं हारूँगा ही नहीं.. तो गुड्डी को कुछ नहीं होगा और साजन की बहन को चोदकर हम अच्छा सबक़ सिखा देंगे.. उस कुत्ते को..
विजय- ठीक है.. माना आप फाइनल गेम जीत जाओगे.. मगर एक भी राउंड हारे तो एक कपड़ा निकालना होगा और हमारी गुड्डी सबके सामने ऐसे… नहीं नहीं.. कुछ और सोचो..
रंगीला- इसकी फिकर तुम मत करो.. देखो लड़की के जिस्म पर 4 कपड़े होंगे.. दो बाहर और दो अन्दर.. मेरे पास ऐसी तरकीब है.. जय एक नहीं अगर 2 राउंड भी हार जाए.. तो भी हमारी गुड्डी का किसी को कुछ नहीं दिखेगा।
विजय- सच ऐसा हो सकता है?
रंगीला ने दोनों को अपना आइडिया सुनाया.. तो दोनों खुश हो गए।
जय- बस अब खेल ख़त्म.. जिस बात का डर था.. वो टेन्शन दूर हो गई। अब 2 चान्स हैं मेरे पास.. मगर देख लेना मैं एक भी नहीं हारूँगा..
विजय- ये सब तो ठीक है भाई.. मगर गुड्डी वहाँ आएगी कैसे.. और इस गेम के लिए मानेगी कैसे?
जय- तू इसकी फिकर मत कर.. मैं गुड्डी को कैसे भी मना लूँगा..
विजय- बस फिर तो कोई टेन्शन ही नहीं है.. मगर ये ज़िमेदारी आपकी है.. मुझे ना कहना.. गुड्डी को मनाने के लिए.. ज़ुबान आपने दी है.. तो आप ही कुछ करोगे.. ओके..
जय- अरे हाँ यार.. मगर कभी जरूरत हो तो हाँ में हाँ मिला देना..
रंगीला- ये सही कहा तुमने.. अब यहाँ से जाओ.. दिन कम हैं.. अपनी बहन को किसी तरह मनाओ..
जय- यार तेरा दिमाग़ तो बहुत तेज़ चलता है.. तू ही कोई आइडिया बता ना..
रंगीला- मुझे पता था.. तू ये जरूर बोलेगा.. अब सुन गुड्डी को बाहर घुमाने ले जा.. उसका भाई नहीं.. दोस्त बन तू और अपने क्लब में भी लेकर आ.. वहाँ साजन से मिलवा.. मैं ऐसा चक्कर चला दूँगा कि गुड्डी खुद ये गेम खेलने को कहेगी।
विजय- क्या बोल रहे हो रंगीला.. गुड्डी को क्लब में लाएं.. उस साजन से मिलवाएं और गुड्डी क्यों कहेगी गेम के लिए.. मेरी समझ के बाहर है सब..
रंगीला- तुम दोनों कुछ नहीं समझते.. मैं साजन को कहूँगा कि गुड्डी मानेगी नहीं.. अब तू हमारी मदद कर उसको मनाने में.. बस वो हमारा साथ देगा.. तो काम बन जाएगा और गुड्डी मान जाएगी..
जय- यार तू पहेलियाँ मत बुझा.. तेरा आइडिया बता.. ये होगा कैसे?
रंगीला ने विस्तार से दोनों को समझाया तो दोनों के चेहरे ख़ुशी से खिल गए और जय ने रंगीला को गले से लगा लिया।
जय- मान गया यार तेरे दिमाग़ को.. क्या दूर की कौड़ी निकाली है..
विजय- यार ये आइडिया तेरे दिमाग़ में आया कैसे.. गुड्डी तो मान जाएगी.. अब देखना है साला साजन अपनी बहन को कैसे मनाता है?
रंगीला- अब तुम दोनों जैसे परेशान हो गुड्डी को मनाने में… साला साजन भी तो परेशान होगा ना.. वो भी कुछ ना कुछ जुगाड़ लगा लेगा।
विजय- कहीं वो भी यही आइडिया ना अपना ले.. तुम उसको बताओगे तो?
जय- अपनाता है तो ठीक है.. हमें क्या बस दोनों को राज़ी होनी चाहिए। उसके बाद वहाँ जीत तो हमारी ही होगी ना.. हा हा हा हा..
विजय- चलो यार अभी का हो गया.. अभी हमारा घर पर होना जरूरी है..
जय- हाँ सही है यार.. पापा के जाने के टाइम उनके सामने रहेंगे.. तो ठीक रहेगा.. और वैसे गुड्डी को भी गेम के लिए पटाना है।
रंगीला- ओके तुम जाओ.. मगर मेरी बात का ख्याल रखना.. गुड्डी को दोस्त बनाओ.. उसके करीब जाओ और दोनों साथ में नहीं रहना.. जय बस तुम उसको पटाओ.. दोनों साथ रहोगे तो उसको अजीब लगेगा और काम बिगड़ जाएगा।
दोनों वहाँ से घर चले गए.. रणविजय जाने के लिए रेडी हो रहे थे। ये दोनों पापा के कमरे में उनसे कोई बात कर रहे थे और रश्मि हॉल में अकेली बैठी हुई थी।
तभी प्रीति वहाँ आ गई और रश्मि के सामने आकर बैठ गई। प्रीति को देख कर रश्मि जाने लगी।
प्रीति- रूको गुड्डी.. आख़िर कब तक तुम मुझसे दूर रहोगी.. एक बार तुम मेरी बात तो सुन लो..
रश्मि- अपना मुँह बन्द रखो और मेरा नाम रश्मि है समझी.. तुम्हारे मुँह से ये गुड्डी शब्द अच्छा नहीं लगता।
प्रीति- अच्छा ठीक है.. मगर मेरी बात तो सुन लो.. तुम जो समझ रही हो वैसा कुछ नहीं है..
रश्मि- बस करो.. नहीं मैं कुछ कर बैठूंगी.. अपनी बकवास बन्द रखो और जाओ यहाँ से..
प्रीति- रश्मि मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ.. तुम कभी मेरी बात ही नहीं सुनती..
रश्मि- तुम नहीं जाओगी.. मुझे ही जाना होगा… यहाँ से नहीं तुम्हारी मनहूस शक्ल देखते रहना पड़ेगा।
रश्मि गुस्से में वहाँ से अपने कमरे में चली गई और कुछ देर बाद रणविजय और प्रीति वहाँ से निकल गए। हाँ जाने के पहले रणविजय गुड्डी से मिलकर गया और उसका मूड खराब देख कर कुछ ज़्यादा नहीं कहा।
उनके जाने के बाद विजय ने जय को इशारा किया और वो सीधा रश्मि के कमरे के पास गया।
दरवाजे पर उसने दस्तक दी तो रश्मि ने कहा- दरवाजा खुला है आ जाओ..
जय- अरे गुड्डी क्या हो गया.. इतनी गुस्सा क्यों हो तुम?
रश्मि- कुछ नहीं भाई.. बस ऐसे ही मूड थोड़ा खराब है..
जय- अरे कितने टाइम बाद आई हो.. चलो आज कहीं बाहर घूमने चलते हैं मज़ा आएगा..
रश्मि- नहीं भाई.. आज मन नहीं है.. कल जाएँगे.. आज रहने दो..
जय- अरे चल ना.. तू कभी मेरे साथ बाहर नहीं गई ना.. तो तुझे पता नहीं बहुत मज़ा आता है..
रश्मि- ओके ठीक है.. लेकिन जाना कहाँ है.. यह तो बताओ आप..?
जय- मूवी देखने चलते हैं।
रश्मि- नहीं मूवी का मूड नहीं है.. भाई घर में ही कुछ एन्जॉय करते है ना..
जय- ये तो और भी अच्छा आइडिया है बोल क्या करें.. कोई गेम खेलें?
रश्मि कुछ कहती.. तभी दरवाजे पर विजय उसको दिखाई दिया.. उसके हाथ में तीन कोल्ड ड्रिंक्स की बोतल थीं।
रश्मि ने कहा- वहाँ क्यों खड़े हो.. यहाँ हमारे पास आ जाओ।
जय- वाह.. यह काम अच्छा किया तूने.. ला पिला.. मेरा कब से गला सूख सा गया था।
विजय ने दोनों को बोतल दीं.. जिसमें स्ट्रा लगा हुआ था और खुद भी पीने लगा। अब जय की नज़र रश्मि पर थी कि वो क्या कहेगी..
मगर विजय बोला- मैंने सब सुन लिया.. तुम दोनों कोई गेम खेलने की बात कर रहे थे।
रश्मि- हाँ भाई.. एक बड़ा मजेदार गेम है.. वही खेलेंगे..
जय- कौन सा गेम.. मेरी प्यारी गुड्डी.. बता तो हमें…
रश्मि- भाई वहाँ हॉस्टल में अक्सर हम ये गेम खेलते हैं.. बड़ा मज़ा आता है और आपको भी वो सब पसन्द है। जाओ अपने कमरे से कार्ड लेकर आ जाओ.. आज हम कार्ड गेम खेलेंगे और मज़ा करेंगे।
कार्ड का नाम सुनकर दोनों की गाण्ड फट गई… रश्मि को इस गेम के बारे में कैसे पता.. कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं हो गई।
जय- क्या बोल रही है तू.. कार्ड का कौन सा गेम है और मेरे पास कहाँ कार्ड-वार्ड हैं..
रश्मि- अरे भाई झूठ मत बोलो.. मुझे आपके सब राज पता हैं.. आपके कमरे में कार्ड हैं और ये बड़ा मजेदार गेम होता है। आप कार्ड तो लाओ.. मैं सब समझा दूँगी..
जय- मेरे कमरे में कार्ड हैं.. ये तुझे किसने कहा?
रश्मि- ये भी बता दूँगी.. पहले आप कमरे में चलो.. वहीं जाकर सब बता भी दूँगी और वहीं हम खेलेंगे भी.. यहाँ का एसी सही से काम नहीं कर रहा है।
रश्मि आगे-आगे चलने लगी तो पीछे जय ने विजय से बात की- ये क्या मामला है.. गुड्डी को कैसे पता लगा इस सब के बारे में?
विजय- मुझे क्या पता.. अब चलो वहीं जाकर पता लगेगा.. अब ये क्या धमाका करने वाली है।
जय- हाँ चलो.. ये सही रहेगा.. वहाँ जाकर ही देखते हैं.. मगर जब तक गुड्डी खुद से कुछ ना कहे.. हम कुछ नहीं बोलेंगे..
विजय- हाँ भाई सही है.. अब चलो..
दोस्तो, ये कमरे तक पहुँच जाएँ तो वहाँ का नया ट्विस्ट आपके सामने आए.. उसके पहले ज़रा पीछे जाकर कुछ पुराने राज पर से परदा उठा देती हूँ.. ताकि आपकी उलझन कुछ कम हो जाए।
शाम को रश्मि से मिलने के बाद जब रणविजय गाड़ी में बैठा तो प्रीति को घूरने लगा।
प्रीति- क्या हुआ.. आप मुझे ऐसे क्यों देख रहे हो?
रणविजय- तुमने रश्मि से क्या कह दिया.. वो कितना गुस्सा है.. मुझसे भी ठीक से बात नहीं की उसने?
प्रीति- मैंने क्या कहा.. बस उसको समझाने की कोशिश की.. मगर वो बात सुनने को तैयार ही नहीं है।
रणविजय- क्या समझाना चाहती हो तुम उसे? हाँ क्या बताओगी तुम उसको?
प्रीति- सब कुछ बता दूँगी.. जब मेरा कोई कसूर ही नहीं.. तो क्यों मैं उसके तीखे शब्द सुनूँ.. हाँ अब मुझसे उसकी नाराज़गी देखी नहीं जाती.. दीदी तो सब जानती हैं.. मगर फिर भी उसको कुछ नहीं बताती.. अब मुझसे ये सब देखा नहीं जाता है।
रणविजय- अपनी बकवास बन्द करो.. ये जो ऐशो आराम की जिंदगी गुजार रही है ना.. सब ख़त्म हो जाएगा.. समझी..
प्रीति- ये तेवर अपने पास रखो.. अब मैं पहले वाली प्रीति नहीं हूँ.. जो सब कुछ चुपचाप सह लूँगी.. सारी दुनिया को बता दूँगी कि रणविजय खन्ना की औकात क्या है.. समझे..!
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