RE: Nangi Sex Kahani अय्याशी का अंजाम
जय- ओके मैं कुछ ज़्यादा बोल गया था.. तू साजन अपनी बहन को मेरी बहन से मिला कर बड़ी ग़लती कर दी तूने.. अब देख मैं क्या करता हूँ।
साजन- हाँ जानता हूँ… तू पैसे के दम पर मुझे मरवा देगा या मेरी बहन को उठा लेगा.. मगर इसमें तेरी जीत नहीं हार होगी.. अगर दम है तो खेल में मुझे जीत कर दिखा.. मैं कसम ख़ाता हूँ कि मेरी बहन को तेरे सामने लाकर खड़ा कर दूँगा.. मगर अगर तू हार गया तो तेरी बहन मेरी होगी.. बोल है मर्द तो कर मुकाबला.. नहीं तो दोबारा ऐसी बात मुँह से मत निकालना..
जय गुस्से में पूरी बोतल एक सांस में पी गया।
विजय- भाई ये आपको फंसा रहा है आप कुछ मत बोलो.. मैं इस साले को अभी सीधा करता हूँ।
जय- नहीं विजय नहीं.. अगर ऐसा है तो ऐसा ही सही.. इसका गुरूर मैं तोड़ कर ही रहूँगा.. मुझे हराने की हिम्मत किसी में नहीं.. अब तो ये खेल सिर्फ़ हम दोनों के बीच में होगा।
साजन- हाँ ठीक है.. हम दोनों ही खेलेंगे अब तो फैसला हो ही जाए।
रंगीला- चुप रहो दोनों.. जय मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है.. चलो मेरे साथ.. विजय तुम भी आओ मेरे साथ..
रंगीला ज़बरदस्ती दोनों को साथ ले गया इधर साजन बियर का घूँट लेकर मुस्कुराने लगा।
आनंद- बॉस ये क्या हो गया.. हमने तो सोचा था कि हम जय को इस बात के लिए रेडी करेंगे.. मगर साला वो तो खुद शुरू हो गया।
सुंदर- लेकिन ये रंगीला काम बिगाड़ देगा साला.. बॉस आपको ऐसे गुस्सा नहीं होना चाहिए था।
साजन- अबे चुप… साले फट्टू.. अगर मैं गुस्सा नहीं होता.. तो उनको शक हो जाता.. अब देख खेल का असली मज़ा।
उधर दूसरे कमरे में विजय गुस्सा हो रहा था।
विजय- भाई आप पागल हो गए हो क्या..? उस दो कौड़ी की लड़की के लिए हमारी बहन को दांव पर लगा रहे हो?
जय- नहीं विजय.. मैं इतना पागल नहीं हूँ.. जो बहन को यहाँ लाऊँगा.. मैं बस उसके साथ गेम खेलूँगा और जीत भी मेरी होगी.. उसके बाद उसकी बहन को उसके सामने चोदूँगा.. तब जाकर मेरा गुस्सा ठंडा होगा।
रंगीला- पागल हो तुम.. अगर ग़लती से वो जीत गया.. तो क्या करोगे?
जय- ना मुमकिन है ये.. मुझे वो नहीं हरा सकता..
विजय- भाई पत्तों का गेम है.. सब लक पर चलता है..
जय- ठीक है अगर मैं हार भी गया तो क्या.. साले का मुँह पैसों से बन्द कर दूँगा.. अपनी बहन थोड़े ही उस कुत्ते को दूँगा..
रंगीला- जय, वो कोई बच्चा नहीं है.. जो मान जाएगा.. मैंने कल विजय को कहा था कि इस बार वो कोई गेम खेलेगा.. और देखो उसने गेम में तुम्हें फँसा लिया। अरे कोमल का यहाँ आना कोई इत्तफ़ाक़ नहीं है.. वो प्लान करके उसको यहाँ लाया है.. तुम मेरी बात सुनो.. सब समझ जाओगे..
विजय- क्या बात कर रहे हो.. ये बात रात को क्यों नहीं बताई?
रंगीला- रात को मुझे खुद नहीं पता था कि इसका ये प्लान है.. अब सुनो रात को मैं बुलबुल के पास था.. वहाँ इसको देख कर शक हुआ.. तो मैंने छुप कर इसका पीछा किया। इसने बुलबुल को बुक किया.. फिर फ़ोन पर किसी से बात की कि काम हो गया.. अब कल देखना असली तमाशा.. उसके बाद ये सलीम गंजा से मिला और हंसों को जमा करने और पार्टी में पाउडर लाने का काम उसको दिया.. तभी मुझे शक हुआ कि कहीं कुछ गड़बड़ है और मैंने विजय को फ़ोन करके बता दिया।
जय- नहीं नहीं.. उन सब बातों का इस बात से कोई लेना-देना नहीं.. वो क्यों अपनी बहन को यहाँ लाएगा.. ये सब इत्तफाक ही है और शुरूआत मैंने की.. उसने नहीं.. तो ये बात मानने वाली नहीं है।
विजय- चलो मान लिया.. कि ये बात अलग है.. मगर आप आगे उसकी ऐसी कोई बात ना मान लेना.. बस ये गेम किसी तरह क्लोज़ करो.. बहन यहाँ नहीं आएगी.. ओके.. अगर वो आपके रूल ना माने.. तो आप उसको मना कर देना।
जय- मानेगा कैसे नहीं.. साले को मानना पड़ेगा.. अब चलो..
कुछ देर बाद सब उसी जगह बैठे थे। अब साजन कुछ शान्त हो गया था.. उसके हाथ में बोतल थी और बियर के एक घूँट के साथ उसने बात शुरू की।
साजन- क्यों जय.. क्या सोचा.. गेम खेलना है.. या हार मान ली?
जय- तेरे जैसे कुत्ते से मैं हार जाऊँ.. यह हो नहीं सकता.. अब सुन, यह गेम आज ही हम दोनों के बीच खेला जाएगा, 7 राउंड होंगे.. जो 4 जीत गया वो विनर.. उसके बाद जो होना है वही होगा.. तू समझ गया ना?
साजन- वाह वाह.. क्या चाल चली है भाई.. आज तक तो लड़कियाँ साथ लेकर खेलते थे.. अब यह रूल चेंज क्यों? अगर गेम खेलना है तो उसी तरह खेलो.. एक तरफ़ मेरी बहन होगी दूसरी तरफ तेरी.. उसके बाद खेल शुरू होगा.. हाँ अगर तुझे पास में ये पब्लिक नहीं चाहिए तो मुझे कोई हर्ज नहीं.. मगर खेल ऐसे ही खेलेंगे।
साजन की बात से विजय को बड़ा गुस्सा आ रहा था.. मगर रंगीला ने उसके हाथ को दबा कर उसको चुप रहने का इशारा किया।
जय- नहीं ऐसा नहीं हो सकता.. वो मेरी बहन है.. ऐसे कैसे इस गेम के लिए उसको तैयार करूँ?
साजन- यही बात तेरे मुँह से सुनना था.. अरे तू हार गया.. तो बाद में कैसे तैयार करेगा.. देख तेरे दिल में कुछ धोखा देने की बात है.. तो उसको निकाल दे.. गेम होगा तो पुराने रूल से ही होगा.. वरना मैं समझूँगा तेरे में दम नहीं.. कि तू मुझसे मुकाबला करे!
जय को बहुत ज़्यादा गुस्सा आ गया, उसने बियर की आधी बोतल एक सांस में गटक ली।
जय- चुप कुत्ते.. अब मेरी सुन गेम होगा और पुराने तरीके से ही होगा.. अब हम दोनों नहीं.. ये चारों भी हारने वाली लड़की को चोदेंगे.. बोल है तेरे को मंजूर?
विजय और रंगीला तो बस एक-दूसरे को देखने लगे कि यह जय ने क्या कह दिया.. वो कुछ बोलते इसके पहले साजन ने ‘हाँ’ कह दी।
साजन- ठीक है.. ऐसा ही सही अब बात ज़ुबान की है.. तो मैं पीछे नहीं हटूँगा। किसी भी तरह मेरी बहन को मना लूँगा, बोल कब लाना है.. समय तू ही बता दे.. बाद में यह ना कहना कि तेरी बहन नहीं मान रही थी.. हा हा हा हा.. जरा सोच समझ कर बताना।
जय- नहीं.. मैंने जो बोल दिया वो बोल दिया.. अब पीछे हटने का सवाल ही नहीं पैदा होता।
विजय- रूको.. तुम दोनों पागल हो गए हो.. मुझे यह बात मंजूर नहीं.. मेरी बहन इस गंदे खेल का हिस्सा नहीं बनेगी.. बस..
जय- क्या बकवास कर रहा है.. मैंने बोल दिया ना और वो सिर्फ़ तेरी बहन नहीं.. मेरी भी है.. तू डर मत.. हम जीतेंगे और इसकी बहन को इसके सामने नंगा करेंगे।
साजन- वो तो समय ही बताएगा.. कौन किसको नंगा करता है.. बोल गेम कब शुरू होगा?
जय- देख बहन को मना कर लाना आसान काम नहीं है.. कुछ दिन तो लग ही जाएँगे.. समय हम बाद में तय कर लेंगे.. ओके..
साजन- ठीक है.. मगर बस 10 दिन का समय होगा.. उस दौरान तू अपनी बहन को पटा कर लाएगा.. नहीं तो तू हार जाएगा.. ओके..
जय- ठीक है साले.. मगर तू भी याद रखना.. अगर तू ना पटा पाया.. तो क्या होगा..
साजन- मेरी फिकर मत कर.. मुझे पता है.. मुझे किस तरह पटाना है।
रंगीला और विजय बस बेबस से अपने आप को कोस रहे थे कि जय ने यह क्या कर डाला.. देर शाम तक वो सब वहीं बैठे बकवास करते रहे।
रंगीला- अरे यार शाम होने को आई है.. मीटिंग तो ओवर हो गई.. अब क्या इरादा है?
जय- इरादा तो बहुत कुछ है.. मगर आज मूड दूसरा हो गया.. तुम लोग जाओ.. हम सुबह आ जाएँगे..
साजन- ठीक है यार.. अब जाने में ही भलाई है.. वरना जय कहीं अपनी बात से मुकर ना जाए।
जय- कुत्ते.. ये किसी ऐरे-गैरे की ज़ुबान नहीं.. जय खन्ना की ज़ुबान है तू अपना संभाल..
आनंद- तुम हमारे साथ आ जाओ साजन.. रंगीला तो अपनी कार से जाएगा।
रंगीला- हाँ तुम निकल जाओ.. मैं बाद में आता हूँ ओके..
वो तीनों वहाँ से निकल गए और रंगीला और विजय गेट के बाहर तक उनको छोड़ने आए।
काफ़ी देर तक रंगीला और विजय बाहर खड़े बातें करते रहे.. उसके बाद अन्दर आ गए।
जय- विजय मेरे भाई.. यहाँ आओ.. यार मुझसे ऐसे नाराज़ मत हो।
विजय- भाई ये आपने क्या कर दिया.. आप उस साजन की बातों में आ गए.. अब क्या होगा? हमारी बहन को आप यहा इस गंदे गेम का हिस्सा बनाओगे? अरे वो कितनी स्वीट है.. मासूम है!
जय- चल हट.. तू मुझे पागल समझता है क्या.. उस कुत्ते को मैंने अपने जाल में फँसा लिया है। वो कौन सा हमारी बहन को जानता है.. हम किसी और को बहन बना कर लाएँगे।
विजय- ओह्ह वाउ.. भाई मान गया आपके दिमाग़ को.. आप तो बहुत माइंडेड हो.. अब उस कुत्ते की बहन को सबके सामने नंगा करेंगे।
रंगीला- यार सच्ची जय.. तेरे दिमाग़ को मान गया.. साले शैतान को भी पीछे छोड़ दिया। वैसे बहन का रोल देगा किसे?
विजय- भाई रानी कैसी रहेगी.. वो उमर में भी छोटी है और माल भी मस्त है.. साजन तो उसको देखते ही लट्टू हो जाएगा..
जय- नहीं यार रानी गाँव की गोरी है.. साला कुत्ता.. उसको तुरंत पकड़ लेगा। अब उसको ये तो पता है ना हमारी बहन गुड्डी कॉलेज में है और रानी ठहरी अनपढ़… सारा गेम खराब हो जाएगा।
विजय- तो अब क्या करेंगे भाई.. किसको गुड्डी की जगह लेकर आएँगे?
जय- इसकी फिकर ना कर.. दिल्ली जाकर किसी ना किसी को ढूँढ ही लेंगे.. आज रानी को ठीक से चोद कर कल निकल जाएँगे.. ठीक है ना..
रंगीला- यार ये रानी कौन है?
विजय- अरे एक कच्ची कली है यार.. आज ही उसका मुहूरत किया है.. साली बड़ा मज़ा देती है।
जय- उसकी चूत इतनी टाइट है क्या बताऊँ.. साला लंड अन्दर जाते ही ऐसा महसूस करता है कि किसी भट्टी में फँस गया हो।
रंगीला- अरे यार मेरा तो सुनकर ही ये हाल हो गया.. कहाँ है वो.. रूप की रानी.. काम की देवी?
जय- अरे नहीं यार रंगीला.. वो ऐसी लड़की नहीं है.. बड़ी मुश्किल हम दोनों से चुदी है। अब तेरे बारे में बात करूँगा तो गड़बड़ हो जाएगी।
रंगीला- अरे क्या मेरे यार.. मुझे इतना गिरा हुआ समझा है क्या.. जो तेरे माल पर हाथ साफ करूँगा.. बस दिखा दे एक बार.. पता तो लगे ये कामदेवी कैसी है?
जय- ठीक है रुक.. अभी दिखाता हूँ मेरी सोने की चिड़िया को..
इतना कहकर जय कमरे में गया उस वक़्त रानी नहा कर कपड़े पहन रही थी।
जय- हाय मेरी जान बहुत सोई रे तू.. अब नहा कर एकदम मस्त लग रही है। आज पूरी रात मज़ा लेंगे हम दोनों.. क्यों क्या बोलती है..?
रानी- आप भी ना ऐसे ही चले आते हो.. कपड़े तो पहने दो मुझे और आज कुछ नहीं होगा.. मेरी तबीयत ठीक नहीं है जी..
जय- अरे मेरी भोली रानी.. मेरे सामने नंगी हो चुकी है.. अब कैसी शर्म? पहन लिए ना अब कपड़े और शुरू में थोड़ा दर्द होता है.. उसके बाद बड़ा मज़ा आता है।
रानी- नहीं बाबूजी.. विजय जी ने बहुत ज़ोर से किया.. मुझे नीचे बहुत दर्द हो रहा है।
जय- अच्छा जाने दे.. ये बात बाद में कर लेंगे.. मेरा एक दोस्त आया है.. चल तुझे उससे मिलवाता हूँ.. प्यार से बात करना.. हाँ.. वो मेरा खास दोस्त है.. कहीं वो नाराज़ ना हो जाए..
रानी- नहीं नहीं बाबूजी.. मैं कोई वेश्या नहीं हूँ.. जो आप सबके सामने मुझे भेज रहे हो.. मैंने आपको अपना माना.. आपके कहने पर आपके भाई को भी मैंने बर्दाश्त किया.. मगर अब और नहीं बस..
रानी के बोलने का तरीका उसकी आँखों में गुस्सा देख कर एक बार तो जय भी घबरा गया।
जय- अरे पगली.. तू गलत समझ रही है.. मैंने कब कहा तुझे ऐसस? तू बस उससे मिल ले.. वो कुछ ऐसा-वैसा नहीं करेगा.. ठीक है ना..
रानी- ठीक है बाबूजी.. आप जाओ.. मैं अभी आती हूँ।
जय बाहर आ गया और रंगीला को कहा- साली गुस्सा हो गई.. अब आ रही है.. देख लेना यार कुछ कहना मत.. नहीं तो साली रात को चुदवाएगी नहीं..
रंगीला- अरे गाँव की होकर साली के इतने नखरे.. चल आने तो दे.. मैं भी देखूँ.. कौन है ये रानी मस्तानी?
रानी ने लाइट ब्लू सलवार सूट पहना हुआ था.. उसके बाल खुले थे.. जिसमें वो अप्सरा जैसी लग रही थी। जैसे ही रानी और रंगीला की नजरें मिलीं.. दोनों ही एक-दूसरे में खो गए.. रानी धीरे-धीरे रंगीला के पास आकर खड़ी हो गई।
रानी- नमस्ते बाबूजी..
रंगीला कुछ नहीं बोला.. बस रानी को घूरता रहा।
जय- अरे कहाँ खो गया रंगीला.. ये है रानी.. देख लो..
रंगीला- अह.. ह.. हाँ अच्छी है.. मुझे ऐसा क्यों लगता है.. कि मैंने तुम्हें पहले भी कहीं देखा है..
रानी- क्या बाबूजी.. आप भी कैसा मजाक करते हो.. मैं अपने गाँव से कभी बाहर ही नहीं निकली.. आपने कहाँ देख लिया मुझे?
रंगीला- ना ना शहर में नहीं.. मैंने गाँव में ही देखा है तुझे.. यार कहाँ देखा है ये समझ नहीं आ रहा.. लेकिन देखा है मैंने!
विजय- अरे क्या रंगीला भाई.. ये गाँव की गोरी है.. आप शहर के नुस्खे ना आजमाओ.. हा हा हा.. ये नहीं पटने वाली..
जय भी हँसने लगा और रानी भी हँसती हुई वापस अन्दर चली गई, मगर रंगीला वैसे ही खड़ा बस सोचता रहा।
लो दोस्तो, अब ये क्या हो रहा है.. ये गुड्डी कौन है.. इसकी एंट्री भी जल्दी होगी और ये रंगीला को रानी के बारे में क्या याद आ गया। अब ये सब तो पता लग ही जाएगा.. सोचते रहो और आगे कहानी का आनन्द लेते रहो।
विजय और जय अब भी हंस रहे थे मगर रंगीला चुपचाप खड़ा हुआ बस उस कमरे की ओर देख रहा था.. जिसमें रानी गई थी..
विजय- अरे रंगीला क्या हुआ.. बहुत पसन्द आ गई क्या.. बोलो.. तब तो आज रात यहीं रुक जाओ.. तुमको भी इसका रस पिलवा देंगे.. हा हा हा हा..
जय- अरे नहीं रे.. वो नहीं मानेगी साली.. आज के लिए तो मेरे को ही मना कर रही है।
विजय- उस अनपढ़ गंवार को मनाना कौन सा मुश्किल है भाई?
रंगीला- चुप रहो यार.. दोनों मेरी बात को मजाक में मत लो.. ये रानी को मैं जानता हूँ.. कुछ तो है साला.. याद नहीं आ रहा.. मगर देख लेना मैं बता दूँगा.. इसको मैं जानता हूँ। अब तुम ही चोदो इसको.. मुझे एक काम है.. अभी मेरा जाना जरूरी है।
जय- ठीक है जाओ.. और याद आ जाए तो मुझे भी बता देना.. कि रानी कौन है.. हा हा हा..
रंगीला के जाने के बाद विजय अपने कमरे में चला गया और जय नौकरों को कुछ खाना बनाने को बोल कर रानी के पास चला गया।
रानी- जय बाबू.. ये आपके दोस्त क्या बोल रहे थे.. इन्होंने मुझे कहाँ देखा है?
जय- अरे तेरी जवानी देख कर उसका मन बहक गया था.. बस ऐसे ही बोल रहा था.. वैसे तू है बड़ी क़यामत.. यार आज पूरी रात मेरे साथ बिता ले.. मैं तेरी लाइफ बना दूँगा..
रानी- नहीं नहीं बाबूजी.. सच्ची आज मेरी ‘वो’ बहुत दर्द कर रही है.. कल कर लेना.. आज नहीं..
जय- अरे ‘वो’ क्या दर्द कर रही है.. साफ-साफ बोल ना.. उसको चूत कहते हैं और मेरे हथियार को लौड़ा बोला कर..
रानी- छी: बाबूजी.. आप बड़े बेशर्म हो.. मुझसे नहीं बोला जाएगा..
जय- अरे मेरी जान.. नाम लेगी तो ज़्यादा मज़ा आएगा.. चल यहाँ मेरे पास बैठ और बता..
जय ने रानी को अपने से चिपका कर बैठा लिया और उसके मम्मों को हल्के से दबा कर उसको पूछा।
जय- तेरे इन चूचों में भी दर्द है क्या.. मेरी जान?
रानी- हाँ बाबूजी.. थोड़ा इनमें भी है.. आह्ह.. दबाओ मत.. दुःखता है।
जय ने ज़ोर से दबाते हुआ कहा- इनका नाम बोल.. नहीं ऐसे ही दबाता रहूँगा और दर्द करता रहूँगा।
रानी- आह्ह.. बाबूजी.. उफ़फ्फ़.. मेरे चूचे मत दबाओ ना.. आहह..
जय- यह हुई ना बात.. अब तू अपने हर अंग का नाम बताएगी.. तभी मुझे सुकून मिलेगा.. ठीक है..
रानी- आह्ह.. बाबूजी.. आप तो ससस्स बेशर्म हो.. मुझे भी ऐसा ही बना दोगे.. आह्ह.. अब आप मानोगे नहीं.. ओह.. मेरे चूचों पर रहम करो.. और आह्ह.. मेरी चूत को सहलाओ.. आह्ह.. आपके मोटे लौड़े ने मेरी चूत को सुजा कर रख दिया है आह..
जय- ओह.. मार डाला रे.. मेरी रानी.. ये हुई ना बात.. अब लगा कि तू मेरी रानी है। चल मुझे दिखा तेरी चूत.. मैं उसको अपनी जीभ से चाट कर आराम दिए देता हूँ।
रानी- अभी नहीं.. रात को दिखाऊँगी.. अभी मुझे जोरों की भूख लगी है.. कुछ खाने के बाद आप देख लेना.. ठीक है..
जय- अरे मेरी जान.. मैं हूँ ना.. मुझे खाले.. इससे ज़्यादा अच्छा खाना तुझे कहाँ मिलेगा.. हा हा हा..
रानी- नहीं बाबूजी.. मुझे माँस खाना पसन्द नहीं.. मैं तो सब्जी ही खाऊँगी.. अब आप जाओ.. रात को आ जाना.. मुझे भी रसोई में जाने दो..
जय मस्ती के मूड में था.. मगर रानी जल्दी से वहाँ से निकल कर रसोई में चली गई और जय कुछ ना कर सका।
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