RE: non veg story झूठी शादी और सच्ची हवस
बाजी ने पूछा-“कुछ अंदर तो नहीं डाला ना?”
मैंने कहा-“वो तो जब आपकी उमर पे पहुँचूंगी तब की बात होगी। आप तो अली भाई से ही शादी करोगी ना? अन डाक्युमेन्टेड तो हो चुकी है। डाक्युमेन्टेड कब करवाओगी? मैं तो वैसे ही आजकल कबाब में हड्डी बनी हुई हूँ…”
बाजी हँस पड़ी और कहा-“तू कबाब में हड्डी नहीं बल्की पूरा कबाब है। डोंट वरी, गुजारा हो जायेगा हमारा…”
मैंने बाजी से कहा-“मैं तो वैसे भी घोड़े बेचकर सोती हूँ और अली भाई को भी पता है कि मैं सब जानती हूँ। इसलिए आप लोग अगर ईज़ी महसूस करें तो अपनी लाइफ जारी रखें…”
बाजी ने कहा-“ओके मेरी अम्मा, अब अपने बेड पे जा और सो जा अगर नींद आ रही है तो…”
मैं जागना चाहती थी लेकिन ना चाहते हुए भी मेरी आँख लग गई। रात के तकरीबन ढाई बजे मुझे महसूस हुआ कि कोई मेरे बालों में उंगलियाँ फेर रहा है। मैं एक झटके से मुड़ी तो बाजी को अपने सिरहाने खड़ा पाया और अली भाई उनके बेड पे बैठे हुए थे। अली भाई ने मुझसे उन लड़कों के बारे में कुछ डर्टेल पूछी और फिर कहा-“फिकर ना करो, वो कुछ लोगों की ड्यूटी लगा देंगे जो पहले उन लड़कों को ट्रेस करेंगे कि वो हैं कौन और उसके बाद उनका इलाज सोचेंगे…”
बाजी ने मुझसे कहा-“पहले उन लड़कों का पता लग जाने दो, और तुम फिकर ना करो, अभी कुछ दिन तुम्हें कॉलेज जाने की कोई ज़रूरत नहीं, तबीयत बेहतर हो जाये तो फिर जाना…”
मैंने बाजी को नाइटी में देखकर बात जल्दी खतम करने की कोशिश की, मुझे अंदाज़ा हो गया था कि बाजी अब मेरी मौजूदगी में ईज़ी महसूस करने लगी हैं। मेरे जेहन पे अभी नींद का नशा सवार था, लेकिन मैं कुछ देर छुप के जागना चाहती थी। रूम की लाइट आफ हो गई, बाजी और अली भाई सोफा पे बैठकर फुसफुसाकर बातें करने लगे।
मैं उनको देख नहीं सकती थी क्योंकी बाजी का बेड तो मेरे बेड के बराबर में है, कुछ फासले पर लगा था लेकिन सोफा पैरों की तरफ पड़ा था और उसके साथ कंप्यूटर टेबल। मैं जानती थी कि उनकी नज़र यकीनन मुझ पर होंगी इसलिए देखने की कोशिश करके मैं उन्हें परेशान नहीं करना चाहती थी। मुझे कुछ देर में नींद के झोंके आना शुरू हो गये लेकिन मैं जबरदस्ती का जाग रही थी। कुछ देर के लिये शायद मेरी आँख लग गई थी लेकिन दिमाग अलर्ट होने की वजह से जब आँख खुली तो बाजी का बेड अभी तक खाली था और मुझे अलमारी के पीछे से कुछ सरगोशियाँ और मूव्मेंट महसूस हो रही थी।
मैं बहुत चाहते हुए भी उठकर देखने की हिम्मत ना कर पाई। कुछ लम्हों बाद मैंने बाजी की अलमारी और फिर दराज खुलने की आवाज़ सुनी। जो उन दोनों की लोकेशन थी वहाँ वो लोग जो भी कर रहे थे यकीनन खड़े होकर ही कर रहे थे, क्योंकी बैठने और लेटने की कोई जगह नहीं थी। मेरा जेहन कह रहा था कि बाजी या तो लंड चूस रही होंगी या फिर अलमारी की साइड पर दीवार की तरफ चेहरा करके खड़ी होंगी और अली भाई जो भी कर रहे थे वो पीछे से कर रहे होंगे।
में फुसफुसाकर होने वाली बातें ज्यादा अच्छी तरह नहीं सुन पाती थी इसलिए उस रात भी मैं बाजी के कुछ अल्फ़ाज़ ही समझ पाई थी जब उन्होंने कहा-“अयाया ज़रा आराम से। इधर से पकड़, बहुत नीचे जा रहा है…” मेरी जिज्ञासा बढ़ रही थी लेकिन मैं अपने बिस्तर पर हिल तक नहीं सकती थी कि कहीं वो लोग डिस्टर्ब होकर रुक ना जायें।
तकरीबन 5 मिनट तक अजीब-अजीब आवाज़ें सुनाई दीं और उसके बाद बाजी बिल्कुल नंगी अपने बेड की तरफ आईं, उन्होंने हीटर आफ किया क्योंकी कमरा गर्मी से तप रहा था और वो उसी हालत में अपने लिहाफ़ में घुस गईं। मैंने फौरन अपना मुँह छुपा लिया। कुछ लम्हों बाद मुझे महसूस हुआ कि अली भाई भी उनके साथ लिहाफ़ में घुस गये थे।
जैसा कि मैं पहले कह चुकी हूँ कि इस कहानी में मैंने ऐसा कुछ नहीं लिखना जिसकी मैं आइ विटनेस नहीं हूँ। मैंने अपने अंदा जे और कल्पना की बुनियाद पर कोई बात नहीं करनी। ये मेरी उमर का वो दौर था जिसके बारे में कहते हैं कि सूली पर भी नींद आ जाती है। इसीलिये कुछ लम्हों में दोबारा मेरी आँख लग गई।
सुबह जब उठी तो बाजी का रूम ऐसा मंज़र पेश कर रहा था जैसे यहाँ कुछ हुआ ही नहीं। शायद यही वजह थी कि मैं जब अपने रूम में रहती थी तब घर में किसी को भी भनक नहीं पड़ी थी कि बाजी के रूम में रात भर क्या होता रहता है।
इश्क़ के सबूत मिटाने में बला की महारत थी बाजी में।
मैं आज भी कॉलेज नहीं गई थी। दोस्तों के फोन आते रहे और मैंने यही कहा कि कल जरूर आऊँगी कॉलेज। बाजी दिन के दो बजे तक सोती रहीं। सोचा बाजी जब जागेंगी तो उनके साथ कुछ फ्रैंक होने की कोशिश करूँगी। लेकिन जागते ही उनको एहसास हुआ कि वो ओफिस से बहुत लेट हो चुकी हैं इसलिए शावर लेकर जब वो ओफिस के लिये निकलने लगीं।
तो मैंने पूछा-“बाजी मैं कल कॉलेज जाऊँ या नहीं?”
बाजी ने कहा-“वो रात में बता देंगी और अगर वो लेट हुईं तो मुझे टेक्स्ट या काल कर देंगी…”
मैंने बाजी को जाते-जाते इतना जरूर कहा कि वो काफी फ्रेश और खुश लग रही हैं। बाजी ने काफी हैरत से मेरी तरफ देखा और फिर मुश्कुराते हुए मेरे गाल पर चुटकी भर के ओफिस के लिये निकल गईं।
मैंने बाजी की इस एड ओफिस टाइमिंग्स और मीटिग्स की वजह जानने की कभी कोशिश नहीं की, ना ही मुझे ज़रूरत थी। मेरी सोच का दायरा खुद मेरे गिर्द ही घूमता था। सर्दी की शामों में अंधेरा छाते ही मैं बोरियत का शिकार होना शुरू हो गई। जेहन में ताजासूस्स, खादशात और ख्वाहिशत एक साथ गर्दिश करते हुए एक दूसरे से गड्डमड्ड हो रहे थे।
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