RE: non veg story झूठी शादी और सच्ची हवस
मैंने हर किश्म का सेक्सी सामान उठा लिया, 5 तो मैंने थांग्ज लीं, वो भी ब्रांडेड। बाजी ने ब्रा फिटिंग रूम में लेजाकर मुझसे कहा की साइज़ ट्राई कर लो। मैंने आदत के अनुसार बगैर शरमाये कपड़े उतार दिए और एक-एक चीज़ पहनकर बाजी के सामने पोज़ बनाकर खड़ी हो जाती कि कैसी लग रही हूँ? अपने साइज़ का थोंग मैंने पहली दफा पहना था, इसलिए मैं घूम-घूमकर बाजी को दिखाती रही और फिर अपने चूचे हिला करके बाजी से पूछा-कैसी लग रही हूँ?
तो बाजी ने कहा के एकदम सुपर स्टार मॉडल। वहाँ मुझे पैंटीस की अलग-अलग किस्मों का पता चला। जब बाजी ने मेनेज़र से कहा-“हमें सारा सामान बिना वी॰पी॰एन॰ चाहिए…”
मैंने बाजी से पूछा-“ये बिना वी॰पी॰एन॰ क्या होता है?
जिस पर बाजी ने बताया-“बिना पवजिबल पैंटी लाइन…” यानी ये पैंटीस पहनकर कपड़ों के नीचे पैंटी की शेप नज़र नहीं आती और वो बॉडी का हिस्सा बन जाती हैं…” बाजी को अपने साइज़ का अनुभव था इसलिए उन्होंने सिर्फ़ ब्रा ट्राई की।
ये सब शॉपिंग करके हम लोग फ्रंट पोर्शन की तरफ आए, जहाँ बाजी ने मेरे लिये कुछ पैंटस और शर्टस खरीदी और फिर हम लोग काउंटर पे चले गये। मैं सोच रही थी कि अब बाजी एक-एक चीज़ की कीमत पर झगड़ा करेंगी मेरी तरह। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, काउंटर पे उन्हें बिल मिला और बाजी ने पर्स में से पैसे निकालकर दे दिए।
मैं इतने ढेर सारे बैग्जस उठाने के लिये तैयार थी। लेकिन बाजी ने कहा-“तुम छोड़ो, ये लोग खुद कार में रखवा देंगे। उस शाप से निकलकर हम साथ वाली शाप में घुसे जहाँ मेकप का समान था। मुझे मेकप में कुछ ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी, क्योंकी मैं जानती थी कि लाइट मेकप में भी मैं बहुत प्यारी लगती हूँ। मैंने वहाँ बाजी से पूछा-बिल कितना बना था?
बाजी ने मेरे इस सवाल को टाल दिया। मेरे बार-बार पूछने पर वो बोलीं-“83000 रुपये (एटी थ्री थाउजेड रुपये)…”
मैं तो ये सुनकर जैसे बेहोश होते-होते रह गई। मेकप शाप में बाजी ने क्या शॉपिंग की मुझे कुछ समझ नहीं लगी क्योंकी मेरे जेहन में तो 83000 का फिगर घूम रहा था। फिर मैंने अपने जासूसी दिमाग की महारत दिखाते हुए बाजी से पूछा-कार में जो आदमी बैठा है वो कौन है?
बाजी ने कहा-“ओफिस का एंप्लायी है और इस वक़्त सिर्फ़ उनका ड्राइवर, जबकि ये कार ओफिस की है…”
मैंने दिल ही दिल में शुकर अदा किया कि मैंने गलती से उस ड्राइवर को ओफिसर का प्रोटोकोल तो नहीं दे दिया। मेकप शाप से निकलकर मैं बाजी को दोबारा उसी शाप में ले गई जहाँ से अंडरगारमेंट्स लिये थे और बाजी से कहा-“मुझे अच्छा सा हाथबग भी ले दें…”
जो हाथबग मुझे पसंद आया उसकी कीमत 16000 थी जो, बाजी ने बखूशी ले दिया। मैं घर आकर बेचैनी से सुबह होने के इंतजार करने लगी कि कब कॉलेज जाऊँगी और दोस्तों को अपनी नई आउटफिट बता पाऊँगी। रात इसी वजह से पहली दफा मुझे नींद नहीं आ रही थी, बार-बार आँख खुल जाती और बाजी को कंप्यूटर पर कुछ करते हुए पाती। लाइफ स्टॅंडर्ड के साथ-साथ मेरे ख्वाब भी बदल रहे थे, और अब मैं ख्वाबों में खुद को लेविश ड्रेस पहने छोटे-छोटे ग़रीब लोगों के बाजार में घूमता हुआ देखती।
आधी रात को जब मेरी दोबारा आँख खुली तो मैंने बाजी से पूछा-“अगर हम लोग इतनी अच्छी चीज़ें खरीद सकते हैं तो फिर हम इस घर को पूरा नया क्यों नहीं बना लेते या फिर ये फटीचर मोहल्ला छोड़ क्यों नहीं देते?”
बाजी मुश्कुरा के बोली-“ये घर बहुत पुराना और सिर्फ़ 2½ मरला का है। इतनी तंग गली में घर तोड़कर दोबारा बनाना बहुत मुश्किल है, बस कुछ ही साल सबर करो और फिर हम लोग एक बड़े से नये घर में शिफ्ट हो जायेंगे और मैं वो घर सिर्फ़ तुम्हारे और छोटे भाई के नाम पे खरीदूंगी…”
ये सुनकर दोबारा आँख लगते ही मेरे ख्वाबों का स्टॅंडर्ड बहुत हाई हो गया और अब मैं खुद को बड़े-बड़े बंगलोस में स्वीमिंग करते हुए और बिकनी में घूमते हुए देखने लगी।
सुबह उठते ही मैंने शावर लिया और लाल जाली वाली थोंग और उसी के साथ की जाली वाली ब्रा पहनकर नई ड्रेसिंग की और कॉलेज के लिये तैयार हो गई। जिस रूम में मेरी आँख खुलती थी और जिन गलियों और सड़कों से गुजर के मैं कॉलेज पहुँचती थी, वहाँ मेरे लिये अस्साब के साए अहिस्ता-अहिस्ता गहरे होते जा रहे थे। लेकिन मैं इस हकीकत से बेगाना अपनी ही धुन में चलती रहती। मैं नहीं जानती थी कि कुछ अरसा बाद मैं सिर्फ़ डरावने ख्वाब ही देखा करूँगी।
मेरे कॉलेज के रास्ते में मेरे साथ-साथ कई कहानियाँ चल रही थीं। मुझे हमेशा से रास्ते में बहुत ज्यादा तंग किया जाता रहा और लड़के बहुत गंदी-गंदी आवाज़ें कसते, यहाँ तक कि वो अपने ज़हरीले अल्फ़ाज़ में मेरे जिश्म का पूरा नक़्शा खींचकर अपनी राह लेते और फिर दोबारा मेरे इंतजार में खड़े हो जाते। सोनी टीवी के शो क्राइम पेट्रोल में अक्सर सुनती थी कि जुर्म हमेशा दस्तक देता है। लेकिन मुझे उस वक़्त ऐसी कोई दस्तक सुनाई नहीं दे रही थी।
उस रोज भी सबसे सेक्सी पैंटी और ब्रा पहनकर जब मैं कॉलेज में घुसी तो ऐसा सोच रही थी कि हर लड़की को जैसे खुद ही पता चल जायेगा कि आज मैंने कपड़ों के नीचे क्या पहन रखा है? लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। पहली दो क्लासेस लेने के बाद जब मैं कँटीन में अपने ग्रुप के साथ इकट्ठी हुई तो मैंने उन्हें अपनी शॉपिंग की पूरी कहानी सुनाई। मेरी उत्तेजना देखकर मेरी दोस्त भी उत्तेजित हो गईं और हम लोगों ने डिसाइड किया कि ऊपर खाली रूम में जायेंगे, जहाँ मैं उन्हें अपना सामान दिखाऊँगी।
हम लोग चोरों की तरह नज़रें बचाकर ऊपर लैबोरेटरी की तरफ चले गये। अंदर घुसते ही निशी ने दरवाजे की कुण्डी लगाई और मुझसे बोली-“जल्दी से दिखाओ…”
मैंने बिल्कुल बेशर्मो की तरह अपनी शलवार उतार दी और शर्ट ऊपर करके उनकी तरफ पीठ करके खड़ी हो गई।
मेरी दोस्त हैरत में डूब गईं-“वावु, सुपर क्लास यार, कहाँ से मिली इतनी हाट पैंटी?”
मैंने जवाब दिए बगैर फौरन अपनी शर्ट सामने से उठाकर उनको ब्रा दिखाना शुरू कर दिया घूम-घूमकर। मेरे सब दोस्त तो ये सब देखकर जैसे भौचक्का हो गईं। मेरी एक फ्रेंड मेरे करीब आई और उसने मेरी गान्ड पे हाथ फेरते हुए चूतड़ के अंदर से पैंटी की वो पतली सी लाइन निकाली और उंगली मुँह से गीली करके मेरी गान्ड के अंदर फेरी।
मैंने उससे पूछा-इस पैंटी के साथ कैसा लग रहा है?
तो वो वाली-“कमीनी, तेरी पैंटी बदली है लेकिन गान्ड तो वोही है ना…”
मैंने कहा-“अच्छा छोड़, ज़रा उंगली दे, मैं भी देखूं कि इस पैंटी के साथ उंगली लेने का कैसा मज़ा आता है?”
उसने हँसते-हँसते उंगली दोबारा गीली की और मेरी गान्ड के सुराख में घुसा दी।
मैंने कहा-“वावओ… इस पैंटी के साथ तो उंगली का एक अलग स्वाद है…”
मेरी फ्रेंड दूसरी उंगली मेरी चूत में घुसाने लगी तो मैं फौरन बोली-“ओ गस्ती रांड़, चूत के अंदर उंगली ना डालना, गुलाब की पंखुड़ियों जैसी नाज़ुक है, कहीं तेरी उंगली से डिस्चार्ज ना हो जाये?”
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