RE: non veg story झूठी शादी और सच्ची हवस
बाजी के रूम का दरवाजा खुला हुआ था और मैं नंग-धड़ंग रूम में घूम रही थी, क्योंकी अब मुझे नंगा रहने या घूमने में शरम नहीं आती थी। मैं बाजी की उलझन को समझ ना सकी।
बाजी ने फौरन जाकर अपने रूम का दरवाजे लाक किया और मेरे साथ आकर बेड पे बैठ गई। वो मुझसे अंडरगारमेंट्स का पूछने लगीं, लेकिन उनकी नज़र मेरी चुचियों, गर्दन, और टाँगों पर थी। मैं खुश हुई कि सिर्फ़ दोस्तों को ही नहीं, बल्की मेरी बॉडी बाजी को भी आकर्षित कर रही है। जिसका मतलब है कि मुझमें कोई ऐसी बात है। मैं नहीं समझ पाई कि बाजी तरीके-तरीके से मेरे जिश्म का जायज़ा ले रही हैं क्योंकी कहीं कोई लव बाइटस तो नहीं हैं।
कुछ सोचकर उन्होंने मेरी चुचियों के निप्पल्स को हाथों में लिया और निपल के सर्कल पे जो डॉट्स होते हैं उनको देखने लगीं। मेरे निप्पल्स चूंकी लाइट गुलाबी थे, इसलिए उन पे जो भी था वो साफ-साफ नज़र आ रहा था। बाजी मेरे जिश्म का एक्स-रे करने के बाद उठीं और कहा-“कि वो एक दो दिन में ऐसा सब कुछ मेरे साइज़ का ले आयेंगी, अलग-अलग रंगों और स्टाइल में…”
मैंने वो चूतड़ के अंदर घुसने वाली पतली लाइन वाली पैंटी (थोंग) की खास तौर से फरमाइस की तो बाजी हँस दीं और बोला सब मिल जायेगा।
मेरे लिये चूंकी दो दिन का मतलब दो दिन ही होता है इसलिए दूसरा दिन होते ही मैंने कॉलेज से बाजी को एस॰एम॰एस॰ कर दिया कि शाम में मेरी चीज़ें जल्दी ले आइयेगा।
कुछ देर बाद बाजी का जवाब आया और वो बोली-“अगर मैं कॉलेज से निकल सकती हूँ तो वो आधे घंटे में मुझे कॉलेज से पिक करने आ रही हैं…”
मैंने खुशी-खुशी ‘हाँ’ कर दिया। मेरे लिये उस वक़्त क्लास से ज्यादा इंपाटेंट वो अंडरगारमेंट्स थे।
तकरीबन 40 मिनट के बाद बाजी की काल आई कि वो कॉलेज के गेट पर मेरा इंतजार कर रही हैं। मैं जब गेट पर गई तो वहां कोई नहीं था। इधर-उधर देखने लगी तो बाजी एक लाल किश्म की कार से उतरीं और मुझे इशारे से बुला लिया। लाल कलर की उस बड़ी कार को देखकर तो जैसे मेरे होश उड़ गये। मेरी उस वक़्त बहुत ख्वाहिश थी कि मेरी कॉलेज दोस्त मुझे उस कार में बैठते हुए देख लें और उन्हें भी मेरे स्टेंडर्स का कुछ अंदाज़ा हो।
बाजी कार में पिछली सीट पर बैठी थीं, लेकिन मैं जानबूझ कर सामने सीट पे जाकर बैठ गई। कार चल पड़ी तो मैं इधर-उधर देखने लगी कि कोई कॉलेज की फ्रेंड नज़र आए तो मैं उसे देखकर हाथ हिला दूँ। दोस्तों की तो दूर की बात, गेट वाले काका की नज़र भी मुझ पे नहीं पड़ी। कुछ देर बाद मेरी ड्राइवर पे नज़र पड़ी तो ये वोही आदमी था, जो बाजी के ओफिस में साथ वाले केबिन में फोन पे किसी से बातें कर रहा था। मैं कंफ्यूज थी कि कि उसे ओफिसर समझूं या महज सहकर्मी?
मैंने बाजी से पूछा-“हम कहाँ जा रहे हैं?”
तो बाजी ने कहा-“पहले बैंक और फिर तुम्हें तुम्हारी चीज़ें लेकर देनी हैं…”
जब हम बैंक पहुँचते तो बाजी कार से निकल गईं और मैं बगैर किसी इन्विटेशन के उनके पीछे चल पड़ी। बाजी कैश काउंटर पे जाने की बजाय एक और डेस्क पे गईं और फिर बैंक मुलाजिम उन्हें अंदर एक रूम में ले गया। मैं भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ी, अंदर जाकर पता चला कि वहाँ बहुत सारे लॉकर्स हैं। बाजी एक लाकर को खोलने लगीं तो मैं उनके पीछे खड़ी हो गई ताकी ये देख सकूँ कि लाकर में है क्या?
मुझे कुछ फाइल्स, कुछ ज्यूलरी के डब्बे और काफी सारे पीले लिफाफे नज़र आए। बाजी ने उनमें से एक लिफाफा उठाया और लाकर बन्द करके मेरे साथ बैंक से निकल गईं। हम लोग कार में बैठे और मुझे उम्मीद थी कि अगले चन्द मिनट में हम बाजार में होंगे। लेकिन कार कुछ देर बाद हाइवे पर फ़डराटे भरने लगी। मैंने बाजी से पूछा-हम कहाँ जा रहे हैं?
तो बाजी बोली-“तेरी शॉपिंग के लिये बाबा…”
तकरीबन एक घंटे के सफर के बाद हम लोग एक पोश किश्म की मार्केट में घुसे। मैं वहाँ पहले कभी नहीं गई थी। बाजी जिस शाप में घुसीं, मैं तो अपने पूरे साल की पाकेट मनी से सेविंग करके भी उस शाप से खरीदारी की कल्पना भी नहीं कर सकती थी। शाप में घुसते ही जैसे हमें लाल कालीन वेलकम हुआ। काउंटर पे खड़ा शाप असिस्टेंट फौरन बाजी की तरफ आया और उन्हें कहा कि वो मेनेज़र को बुलाकर लाता है। दो मिनट में ही मेनेज़र बाजी के सामने हाथ बाँधे खड़ा था।
बाजी ने उसे इंग्लिश में कुछ चीज़ों का बताया तो वो हम दोनों को शाप के बैक पोर्शन में ले गया जहाँ वो सारा सामान मौजूद था जिसकी मुझे ख्वाहिश थी। बाजी मेरे और अपने लिये अंडरगारमेंट्स ढूँढ़ती रहीं। मेरी नज़र पहले प्राइस टैग पे जाती थी। लेकिन बाजी ने कहा-“जो लेना है वो ले लो, प्राइस का वो डील कर लेंगी…”
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