RE: Indian Sex Story बदसूरत
चाचाजी:- मन में...थोड़ी देर के बाद पिला दूंगा...अब थोड़ी बाते करते है। वो बाते करने लगे लेकिन उसने पपन हाथ नहीं हटाया था। सुहानी को भी उनका छूना अच्छा लग रहा था। उनके हाथ का गरम स्पर्श अपनी नंगी कमर पे पा कर सुहानी की चूत चुलबुलाने लगी थी।
पहली बार कोई मर्द उसे इसतरह छु रहा था। चाचाजी का तो बुरा हाल था...एक तो शराब का नशा और ऊपर से सुहानी के इतने करीब होने से उसके जिस्म की खुशबु उसे पागल कर रही थी। वो अब थोडा अपना हाथ टॉप के थोडा अंदर सरकाया...और अपना पूरा पंजा उसकी कमर को पकड़ लिया। सुहानी के मुह से हलकी सी आह्ह निकल गयी।
चाचाजी:- क्या हुआ??
सुहानी के होठो पे एक शर्मीली मुस्कान आ गयी...
सुहानी:- कुछ नहीं...
चाचाजी समझ गए की लड़की गरम हो रही है...फिर भी वो जल्दबाजी नहीं करना चाहते थे। वो हल्का हल्का अपने हाथ का दबाव उसकी कोमल कमर पे डालने लगे और सहलाने लगे। वो उसे और गरम करना चाहते थे।
चाचाजी:- कितना अच्छा मौसम है...
सुहानी:- हा...बस अब कुछ दिन...फिर तो समर शुरू हो जाएगा...
चाचाजी:- हा...विंटर का सीजन मुझे बहोत पपसंद है...बहोत मजा आता है...
सुहानी:- मतलब?? कैसा मजा?
चाचाजी:- वो..वो..तुम नहीं समझोगी....तुम्हारी शादी नहीं हुई है ना...पूनम से पूछ लेना...
सुहानी समझ गयी की चाचाजी क्या कहना चाह रहे है।
सुहानी:- इसका शादी से क्या कनेक्शन??
चाचाजी:- हा वो भी है...शादी जरुरी नहीं है....चाचाजी उसकी आँखों में देखते हुए बोले तो सुहानी शर्म से पानी पानी हो गयी...
सुहानी:- हा जिसकी शादी नहीं होती वो विंटर का मजा नहीं लेते क्या?? सुहानी जानबुज ककए बोला।
चाचाजी:-हा बिलकुल लेते है...और लेना भी चाहिए...चाचाजी उसकी कमर को सहलाते हुए अपना हाथ उसकी गांड की और बढ़ाते हुए बोले।
सुहानी अब बहोत गरम हो चुकी थी।
सुहानी:- मन में...उफ्फ्फ अंकल तो मेरी आग को बहोत ही भड़का रहे है...बहोत मजा आ रहा है उम्म्म्म्म्म्म्म
चाचाजी ने अब अपना हाथ उसाकि गांड पे रख दिया था।
सुहानी की चूत अब गीली होने लगी थी। वो चाचाजी के हाथो के स्पर्श का मजा लेने लगी। तभी चकहजी थोडा साइड से मुड़े और अपना खड़ा लंड सुहानी की जांघो पे सटा के खड़े हो गए और अपना हाथ गांड पे रखा हुआ था और वो सुहानी के चेहरा देखने लगे और अपनी बची हुई शराब पिने लगे।
सुहानी की हाइट उनसे थोड़ी जादा थी जिसकी वजह से उनका लंड उसकी जांघो पे रगड़ रहा था। लंड के स्पर्श से सुहानी के पुरे शारीर में कपकपी सी दौड़ गयी। वो सिहर उठी। उसकी चूत पानी से लबलबा गयी।
तभी चाचाजी का ध्यान बालकनी में पड़े एक चमकते हुए टुकड़े पे गयी। वह की लाइट थोड़ी धीमी थी इस वजह से ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था।
चाचाजी:- वो क्या है वहा?? तुम्हारा कुछ गिर गया है क्या??
सुहानी ने देखा फिर खिड़ की एअर रिंग्स चेक्क की और गले की चैन सब ठीक था।
सुहानी:- नहीं तो...तबी सुहानी के दिमाग में कुछ आया और *वो टर्न होक निचे झुक गयी जिसके वजह से *उसकी गांड चाचाजी के आखो के सामने आ गयी।
पजामे में कासी हुई उसकी गांड देख चाचाजी का लंड और भी जादा तन गया उन्होंने बिना देर किये अपना लंड उसकी गांड से सटा दिया और वो भी थोडा झुक के देखने का नाटक करने लगे। सुहानी भी यही चाहती थी। वो उनका पजामे के पतले कपडे में से उनका ताना हुआ लंड अपनी गांड के फाको के बिच महसूस कर रही थी। अगर पैंट ना होती तो लंड सीधा उसकी गांड में घुस गया होता।
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