bahan sex kahani भैया का ख़याल मैं रखूँगी
02-02-2019, 12:59 AM,
RE: bahan sex kahani भैया का ख़याल मैं रखूँगी
आशना की मखमली बाहें जैसे ही वीरेंदर के मर्दाना शरीर के इर्द गिर्द लिपटी तो दोनो के बदन मे उत्तेजना अपने उफान पर आ गयी.वीरेंदर ने अपने घुटनों पर झुके झुके ही अपने शरीर के अगले भाग को आशना के शरीर से मिला दिया और एक राहत की सांस ली. आशना के जिस्म का मखमली कोमल एहसास वीरेंदर के दहकते बदन मे सुकून की मीठी लहर दौड़ा गया. आशना ने भी मदहोशी में वीरेंदर को अपने से सटा लिया और उसकी बालों से भरी नंगी पीठ पर अपने कोमल हाथ फिराने लगी. 

आशना के हाथ फेरने की तड़प से वीरेंदर समझ गया कि आशना भी मिलन के लिए तड़प रही है. 

वीरेंदर ने आशना के होंठो को चूम कर उसके कान में कहा: गुड़िया ज़रा थोड़ी देर के लिए पलटो ना. 

आशना ने वीरेंदर की बात का मतलब समझ कर बिना कुछ बोले अपने शरीर को धनुष की तरह बिस्तर से उठा लिया. वीरेंदर, आशना का इशारा समझ गया. 

आशना: लीजिए वीर, आपकी गुड़िया आपके प्रेम सुख के लिए तड़प रही है. 

आशना की आवाज़ में आई कंपकपाहट को देख कर वीरेंदर भी समझ गया कि जिसका उन्हे बेसब्री से इंतज़ार था वो गाड़ी आ गयी है. वीरेंदर ने अपने हाथ पीछे लेजाकर आशना की ब्रा की हुक्स से उलझा दिए लेकिन इस बंधन तो खोलने का हुनर वीरेंदर में कहाँ था. वीरेंदर ने दो तीन बार कोशिश की लेकिन असमर्थ रहा. 

वीरेंदर: लगता है कि आज सब कुछ फाड़ना ही पड़ेगा. 

आशना ने शरमा कर वीरेंदर की तरफ देखा और बोली: आप मर्द लोग तो प्यार की भाषा समझ ही नहीं सकते. 

वीरेंदर: इस मुकाम पर आकर कोई सबर करे भी तो कैसे करे. मेरे पास मेरे सपनो की परी बाहें फैलाए मेरे आगोश मे है और मैं उसके नाज़ुक अंगों की एक झलक के लिए तड़प रहा हूँ. 

आशना, वीरेंदर की बात सुनकर मुस्कुरा दी. 

आशना: चलिए मैं आपकी मदद किए देती हूँ, आख़िर मिलन के लिए तड़प तो मैं भी रही हूँ. 

यह कहकर आशना ने वीरेंदर को अपने से थोड़ा उपर उठने का इशारा किया. वीरेंदर ने अपने शरीर का भार अपनी हथेलियों और अपने घुटनों पर रखा तो आशना ने बड़ी नज़ाकत से अपने जिस्म को पलटा. आशना को पलटता देख वीरेंदर के लिंग ने एक आह भरी. आशना के विशाल मांसल नितंबों के बीच फसि एक छोटी सी पैंटी अपने छोटा होने पर शर्मिंदा हो रही थी और उसकी जाँघो के दोनो ओर बँधी रेशम की डोरियाँ ऐसे लहरा रही थी जैसे वीरेंदर को निमंत्रण दे रही हो कि आओ और हमे बंधन से मुक्त करके सारे बंधनों से मुक्त हो जाओ. 

आशना पलट कर पेट के बल लेट गयी लेकिन इस बार उनसे अपनी जांघे कस कर मिला रखी थी जिस कारण वीरेंदर ने अपनी टाँगें उठाकर आशना की थाइस के इर्द गिर्द कर दी. वीरेंदर ने बड़ी होशियारी से अपने शरीर का वज़न अपने घुटनों पर रखा और अपने शरीर के अगले भाग को झुका कर कोहनियों के बल हो गया. आशना की संपूर्ण नग्न पीठ पर ब्रा की एक पतली सी स्ट्रीप थी और उस स्ट्रीप में छुपि हुक्स उसे चॅलेंज कर रही थी. वीरेंदर ने आशना के कान के पास अपना चहरा लेजाकर कहा: खोल दूं या फाड़ दूं????

आशना: आअहह, जो मन में है कर लीजिए, आपकी गुड़िया तो बस आपके मिलन के लिए बेकरार है. आपकी यह दासी आपकी हर अदा की दीवानी है वीर. 

वीरेंदर ने अपनी उंगलियाँ ब्रा की पट्टी में फँसाई और अंगूठे की मदद से एक झटके में दोनो हुक्स खोल कर पट्टी को छोड़ दिया. पट्टी को छोड़ते ही ब्रा के सिरे एक दूसरे से ऐसे दूर जा गिरे जैसे वो कब से छूटना चाह रहे हो लेकिन किसी ने उन्हे जकड रखा हो. ब्रा खुलने के एहसास से ही आशना का बदन सिहर उठा. आज ज़िंदगी में पहली बार उसकी आँखो के सिवा कोई उसके वक्षों का पूर्ण दीदार करने वाला था. आशना के मन में एक संतुष्टि थी कि जिस राजकुमार की उसने कल्पना की थी उस से भी कहीं बढ़कर आज उसका वीर उसके साथ है.

आशना ने धीरे से हरकत करके अपने कंधे से ब्रा स्ट्रॅप्स को हटाया और बाकी का काम वीरेंदर ने ब्रा को एक ओर उछाल कर पूरा कर दिया. आशना ने शरम के मारे अपने हाथ अपने चेहरे के आस पास कर लिए थे. वीरेंदर ने मौके का फ़ायदा उठाते हुए आशना की बगल में अपने हाथ पहुँचा दिए और जैसे ही उसके हाथों में आशना के सख़्त मखमली उभार का कुछ हिस्सा स्पर्शित हुआ, आशना और वीरेंदर दोनो की साँसें तेज़ चलने लगी. आशना ने कोई विरोध नहीं किया लेकिन रह रह कर उसके बदन में तरंगे उठने लगी. 

आशना के समर्पित भाव को देख कर वीरेंदर के मन में खुशी का संचार हुआ और उसने आशना की बाज़ू को पकड़ कर उसे फिर से पीठ के बल करना चाहा. आशना ने झट से अपने हाथ अपनी बगल में लेजाकर बिस्तर पर रखी गुलाब की पन्खुडियो को मुट्ठी में भर लिया और इस से पहले कि वीरेंदर उसे पलट पाता उसने झट से अपने हाथों को अपने वक्षों पर रख दिया. वीरेंदर के सामने जो नज़ारा था उसे देख कर वीरेंदर की उत्तेजना में और बढ़ोतरी हुई. 

आशना की कलाईयों को पकड़ कर उसने धीरे से उन्हे एक दूसरे से दूर कर दिया और उसके सामने लाल गुलाब की नाज़ुक पन्खुडियो से आधे ढके हुए आशना के वक्ष निर्वस्त्र अवस्था में थे. आशना ने झट से अपनी हथेली अपनी पलकों पर रख दी हालाँकि उसकी आँखें मस्ती में पहले से ही बंद थी मगर उस वक्त उसे शायद यही सबसे उचित लगा. हाथों को अपनी आँखो तक पहुँचाने में आशना को जितना वक्त लगा उतने वक्त के लिए आशना के दूध से भरे कलश ऐसे थिरके कि उनमे हो रही हलचल काफ़ी देर तक उन गुम्बदो पर दिखाई दी.

अब दोनो में से कोई भी बोल नहीं रहा था. दोनो ही जानते थे कि अब बातों से छेड़खानी का वक्त ख़तम हो चुका है. अब तो नज़ाकत भरी हरकतों से एक दूसरे को प्यार जताना है. वीरेंदर ने अपना चेहरा आशना के उभारों के पास लेजाकर होंठों को गोल करके हल्के से फूँक मारी तो गुलाब की हल्की फुल्की पंखुड़ियों ने आशना के वक्षों को ढकने से इनकार करते हुए उसके प्रेमी के लिए दृश्य को मन मोहक बना डाला.

आशना के एकदम गोल और कड़े उभार गुलबीपन लिए हुए छोटे छोटे पिंक निपल के साथ सर उठा कर किसी भी तरह की प्रतिक्रिया का डट कर सामना करने के लिए तैयार दिख रहे थे. वीरेंदर ने बारी बारी से दोनो निपल्स को चूमा तो आशना के हाथ वीरेंदर की पीठ पर रैंगने लगे. वीरेंदर ने अपनी जीभ निकाल कर दोनो निपल्स को चाटा तो आशना तड़प उठी.

आशना ने वीरेंदर को अपने साथ भींच लिया जिस कारण वीरेंदर का शरीर आशना के शरीर से जा मिला. वीरेंदर का लिंग आशना की योनि से लगता होता हुआ उसकी नाभि के उपर के हिस्से को छू रहा था जबकि वीरेंदर की मर्दाना छाती आशना के उभारों को कुचल रही थी.दोनो के नंगे सीने मिलते ही उन्हे स्वर्गिक सुख की अनुभूति हुई. दोनो के दिल की धड़कनें एक दूसरे से टकरा कर अपनी अपनी बेकरारी ज़ाहिर कर रही थी. 

आशना का चेहरा वीरेंदर के कंधे से चिपका हुआ था. वीरेंदर ने मदहोशी में आशना के कान में कहा: आशना, अब बर्दाश्त नहीं होता, बना लूँ ना तुम्हे अपना.

आशना ने भी काँपति आवाज़ में जवाब देते हुए कहा: मैं तो कब से आप को अपना मान चुकी हूँ वीर, आओ और अपनी गुड़िया पर अपने प्यार की मुन्हर लगा दो. इस से पहले कि मैं तड़प तड़प कर मर जाउ वीर, मुझे अपने आगोश में ले लो और मेरे अरमान अपने अरमानों के साथ जोड़ कर मुझे जन्नत में ले चलो. 

वीरेंदर ने अपने हाथ आशना की कमर पर रखे और उसे प्यार से सहलाने लगा. आशना का सारा जिस्म झंझणा उठा. वीरेंदर के बलशाली शरीर के नीचे वो कमसिन कली मचलने लगी. वीरेंदर ने धीरे धीरे अपने हाथ आशना की कमर से नीचे खिसकाये और जैसे ही उसके हाथ में आख़िरी बंधन की उलझन आई उसने सिरे से पकड़ कर उलझन को पलक झपकते ही सुलझा लिया. 
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