RE: Hindi Sex Kahaniya पहली फुहार
रवी ने जब अबकी चूसना शुरू किया तो वह इतनी तेजी से चूस रहा था कि मैं जल्द ही फिर कगार पे पहुँच गई, अब उसकी उंगलियां भी मुझे तंग करने में शामिल थीं, कभी वह मेरी निपल को पुल करतीं कभी क्लिट को और जब वह मेरी क्लिट को चूसता तो वह चूत में घुसकर चूत मंथन करतीं।
अबकी जब मैं झड़ने के निकट पहुँची तो उसने शरारत से मेरी ओर देखा।
और मैं चिल्ला उठी- “नहीं, प्लीज़, अबकी मत रुकना तुम जिस तरह जब कहोगे मैं तुम चुदवाऊँगी… प्लीज…”
रवी मेरी क्लिट चूस रहा था, उसने कस के पूरी ताकत से मेरी क्लिट को चूमा और उसे हल्के से दांत से काट लिया। मेरे पूरे शरीर में लहर सी उठने लगी और उसी समय रवी ने मेरी दोनों जांघों को फैलाकर पूरी ताकत से अपना लण्ड मेरी चूत में पेल दिया और कमर पकड़कर पूरे जोर से ऐसे धक्के लगाये कि 3-4 धक्कों में ही उसका पूरा लण्ड मेरी चूत में था।
जैसे ही मेरी चूत को रगड़ता उसका लण्ड मेरी चूत में धंसा, मैं झड़ने लगी… और मैं झड़ती रही… झड़ती रही…
लेकिन वह रुका नहीं। उसके शरारती होंठ मेरे निपल को चूम चूस रहे थे।
मैं थोड़ी देर निढाल पड़ी रही पर, उसके होंठ, उंगलियां और सबसे बढ़कर मेरे चूत के अंत तक घुसा उसका मोटा लण्ड, थोड़ी ही देर में मैं फिर उसका साथ दे रही थी।
अब उसने मेरी लम्बी गोरी टांगें उठाके अपने कंधे पे रख रखीं थीं। दोनों हाथों से मेरे भरे-भरे जोबन पकड़ के वह धक्के लगा रहा था।
बाहर फिर सावन की झड़ी चालू हो गयी थी और उसकी फुहारें हम दोनों के बदन पर भी पड़ रहीं थीं। मेरी चौड़ी चांदी की पाजेब के घुंघरू उसके हर धक्के के साथ बज रहे थे और जब मैंने उसकी ओर देखा तो मेरे पैरों का महावर भी उसके माथे को लग गया था।
कभी वह कस के मेरे जोबन दबाता, कभी मेरे निपल खींच देता, उसके होंठ मेरे होंठों का रस पी रहे थे। कई बार वह मुझे कगार पे ले आया और फिर वह रुक जाता और फिर थोड़ी देर में दुबारा पूरी जोश से चोदना चालू कर देता… बहुत देर तक…
मैं मस्ती से पागल हो रही थी- “हां रवी… प्लीज मुझे झड़ने दो ना… रुको नहीं… नहीं… हां करते रहो… हां… पूरे जोर से हां…”
अबकी रवी नहीं रुका और पूरे जोर से धक्के लगाता रहा।
जब मैंने झड़ना शुरू किया तो उसके लण्ड का बेस मेरी क्लिट को कस के रगड़ रहा था। मेरी आँखें बंद हो गयी थी, मेरी चूत कस-कस के बार-बार रवी के लण्ड को भींच सिकोड़ रही थी। और रवी भी मेरे साथ-साथ झड़ने लगा। बहुत देर तक उसके लण्ड से बहते वीर्य को मैं अपने अंदर महसूस कर रही थी।
जब मेरी आँख खुली तो चन्दा और सुनील मेरे सामने खड़े थे। सुनील ने मुश्कुराकर मुझसे पूछा- “क्यों मजा आया मेरे यार से चुदवाने का…”
मैं क्या बोलती, बस मुश्कुराकर रह गयी।
चन्दा ने हँसकर कहा- “हम लोगों ने बहुत कुछ सुना और थोड़ा देखा भी कि रानी जी कैसे मस्त होकर चुदवा रहीं थीं…”
मैं बड़ी मुश्किल से उठकर खड़ी हुई और चन्दा से बोली- “क्यों चलें…” पर तब तक मैंने देखा की चन्दा ने मेरी चोली, घाघरा और साया उठाकर अपने कब्जे में कर रखा है।
सुनील ने मुझे पीछे से पकड़ लिया और बोला- “कहां चली, अभी मेरा नंबर तो बाकी है…”
चन्दा मेरे कपड़े दिखाती बोली- “नहीं नहीं… अगर ये ऐसे ही जाना चाहें तो जाय, कहो तो सांकल खोल दूं…”
मैं समझ गयी थी की बिना चुदवाये कोई बचत नहीं है। और सुनील का फिर से उत्थित होता लण्ड देखकर मेरा मन भी बेकाबू होने लगा था। सुनील ने मुझे पकड़ के अपनी गोद में बिठा लिया और अपना लण्ड मेरे गोरे मेंहदी लगे हाथों में दे दिया।
मैं अपने आप उसे आगे पीछे करने लगी।
सामने रवी ने चन्दा को अपनी गोद में बिठा लिया था और एक हाथ से उसकी चूची दबा रहा था और दूसरा, उसकी चूत में उंगली कर रहा था।
जल्द ही सुनील का लण्ड फुफ्कार मारने लगा था और मेरी मुट्ठी से बाहर हो रहा था।
पर मेरे कोमल किशोर हाथों को उसके मोटे कड़े लोहे की तरह सख्त लण्ड का स्पर्श इतना अच्छा लग रहा था कि उसी से मेरे चूचुक खड़े हो रहे थे।
सुनील मेरी फैली हुई जांघों के बीच आ आया और मेरी दोनों सख्त चूचियां पकड़ के उसने दो-तीन धक्कों में आधा से ज्यादा लण्ड मेरी कसी चूत में पेल दिया।
रवी की चुदाई के बाद मेरी चूत अच्छी तरह गीली थी पर सुनील का लण्ड इतना मोटा था की मेरी चीख निकल गयी। पर उसकी परवाह किये बगैर सुनील ने पूरी ताकत से धक्के लगाना जारी रखा।
मैं तड़प रही थी, चिल्ला रही थी, मिट्टी पर, पुवाल पर अपने किशोर चूतड़ काटक रही थी, पर जब तक उसका मोटा मूसल ऐसा लण्ड, जड़ तक मेरी चूत में नहीं घुस गया, वह पेलता रहा… चोदता रहा…
मैंने चन्दा की ओर मुड़कर देखा, वह मेरे पास ही बैठी थी और रवी उसकी जांघें फैलाकर उसकी चूत चूम चाट रहा था। मेरी ओर देखकर चन्दा मुश्कुरा दी।
सुनील ने मेरे भरे-भरे गोरे-गोरे गाल अपने मुँह में भर लिया था और उन्हें कस के चूस रहा था, अचानक उसने खूब कस के मेरा गाल काट लिया और मैं चीख पड़ी।
थोड़ी देर तक वहां चुभलाने के बाद उसने फिर वहीं कसकर काट लिया और अबकी उसके दांत देर तक वहीं गड़े रहे, भले ही मैं चीखती रही। आज मेरी चूचियों की भी शामत थी।
सुनील अपने दोनों हाथों से उन्हें खूब कस के मसल रगड़ रहा था और चूची पकड़ के ही पूरी ताकत से धक्के मार मारकर मुझे चोद रहा था। वह लण्ड सुपाड़े तक बाहर निकालता और फिर पूरी ताकत से पूरा लण्ड एक बार में अंदर तक ढकेल देता। उसका लण्ड मेरी क्लिट को भी अच्छी तरह रगड़ रहा था।
दर्द से मेरी जांघें और चूत फटी जा रही थी पर उसकी इस धकापेल चुदाई से थोड़ी देर में मैं भी नशे से पागल हो गयी और चूतड़ उठा-उठा के उसका साथ देने लगी। सुनील के होंठ अब मेरी चूची कस के चूस रहे थे, उसने चूची का उपरी भाग मुंह में दबा लिया और देर तक चूसने के बाद कस के काट लिया।
मैं चीख भी नहीं पायी क्योंकी चन्दा ने अपने होंठों के बीच मेरे होंठ दबा लिये थे और वह भी उन्हें कस के चूस रही थी। सुनील उसी जगह पर थोड़ी देर और चुभलाता, चूसता और फिर कस के काट लेता।
चन्दा ने भी मौके का फायदा उठा के मेरे होंठ चूसते हुये काट लिये और हँस के बोली- “अरे, चुदाई का कुछ तो निशान रहना चाहिये…”
सुनील ने मेरे दोनों जोबन को कस-कस के ऊपर के हिस्से को अपने दांत के निशान बना दिये थे।
अब तक मेरी टांगें फैली हुईं थीं पर अब सुनील ने मुझे मोड़कर लगभग दुहरा कर दिया और मेरे पैर भी सटा दिये जिससे मेरी चूत अब एकदम कसी-कसी हो गयी। और जब उसने लण्ड थोड़ा बाहर निकालकर चोदा तो मेरी तो जान ही निकल गई।
पर चन्दा को इसमें भी मजा आ रहा था। वह हँस के बोली-
“हाँ… सुनील ऐसे ही खूब कस के चोदो की इसका सारा छिनारपन निकल जाय, तीन दिन तक चल न पाये…”
पर लण्ड इतना रगड़-रगड़ के जा रहा था की मैं जल्द ही झड़ गयी।
चन्दा ने मेरी एक चूची पकड़ ली और कस के सहलाते, दबाते बोली-
“अरी, ये एक बार मेरे साथ झड़ चुका है अबकी बहुत टाइम लेगा…”
सुनील मेरे चूतड़ पकड़ के लगातार धक्के लगा रहा था। रवि दूसरी ओर से मेरी चूची पकड़ के दबा मसल रहा था। मेरे होश लगभग गायब थे, मुझे पता नहीं की मैं कितनी बार झड़ी पर बहुत देर तक चोदने के बाद सुनील झड़ा।
मैं बड़ी देर तक वैसे ही लेटी रही। थोड़ी देर में चन्दा और रवी ने सहारा देकर मुझे उठाया। जब मैंने गर्दन झुका कर देखा तो मेरे दोनों जोबनों के उपरी हिस्से में खूब साफ निशान थे, और वैसे तो पूरी चूची पर रगड़, खरोंच और काटने के निशान थे।
सुनील ने मुझसे कहा- “यार तुम्हें पाकर मैं होश खो बैठता हूं, तुम चीज ही ऐसी हो…”
मैं मुश्कुराके बोली- “चलो चलो ज्यादा मक्खन लगाने की जरूरत नहीं है…” और मैं चन्दा के साथ घर के लिये चल दी।
रास्ते में चन्दा ने बात छेड़ी-
“आज जो तुम्हारी कस के चुदाई हुई, वह तुम्हारे भाई रवीन्द्र के लिये बहुत जरूरी थी…”
मैं ठीक से चल नहीं पा रही थी। मैं बनावटी गुस्से में बोली-
“बेचारे मेरे भाई रवीन्द्र को क्यों घसीटती हो इसमें…”
चन्दा ने मेरे गाल पे चिकोटी काट कर कहा-
“इसलिये मेरी प्यारी बिन्नो कि रवीन्द्र का, सुनील बल्की अब तक मैंने जितने भी देखे हैं सबसे बहुत लंबा और मोटा है, इसलिये अब कम से कम वह अपना सुपाड़ा तो घुसा सकेगा, अपनी प्यारी बहना की चूत में…”
मेरी आँखों के सामने रवीन्द्र की तस्वीर घूम रही थी, पर मैंने चन्दा को छेड़ते हुए कहा-
“अगर ऐसी बात है तो तू ही क्यों नहीं चुदवा लेती रवीन्द्र से…”
“अरे यार, मैं तो अपनी चूत हाथ पे लेके घूम रही हूँ, पर उसको तो अपनी इस प्यारी बहना को ही चोदना है ना, साल्ला… बहनचोद…” चन्दा हँस के बोली।
“हे गाली क्यों देती है, मेरे प्यारे भाई को…” मैं उसे घूर के बोली।
चन्दा ने मुश्कुराकर कहा-
“अपनी इस प्यारी प्यारी बहना को तो वह बिना चोदे मानेगा नहीं और अब इस बहना की चूत में भी इतनी खुजली मच रही होगी की वह भी अपने भैय्या से बिना चुदवाये रहेगी नहीं।
तो बहनचोद वह हुआ की नहीं और उसकी इस बहन को गांव के मेरे सारे भाई बिना चोदे तो जाने नहीं देंगे, और जिसकी बहन यहां चुदेगी वह साला हुआ की नहीं…”
बात तो उसकी सही थी पर मेरे मन में बार-बार रवीन्द्र की शक्ल घूम रही थी। मुझसे नहीं रहा आया और मैंने चन्दा से पूछ ही लिया-
“लेकिन मेरी समझ में ये नहीं आता कि… वह इत्ता शर्मीला है… मैं शुरूआत कैसे करूं…”
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