RE: Hindi Sex Kahaniya पहली फुहार
चौथी फुहार
भीड़ अब और बढ़ गयी थी और गली बहुत संकरी हो गयी थी। अबकी सामने से एक लड़के ने मेरी चोली पर हाथ डाला और जब तक मैं सम्हलती, उसने मेरे दो बटन खोलकर अंदर हाथ डालकर मेरी चूची पकड़ ली थी। पीछे से किसी के मोटे खड़े लण्ड का दबाव मैं साफ-साफ अपने गोरे-गोरे, किशोर चूतड़ों के बीच महसूस कर रही थी। वह अपने हाथों से मेरी दोनों दरारों को अलग करने की कोशिश कर रहा था और मैंने पैंटी तो पहनी नहीं थी, इसलिये उसके हाथ का स्पर्श सीधे-सीधे, मेरी कुंवारी गाण्ड पर महसूस हो रहा था। तभी एक हाथ मैंने सीधे अपनी जांघों के बीच महसूस किया और उसने मेरी चूत को साड़ी के ऊपर से ही रगड़ना शुरू कर दिया था।
चूची दबाने के साथ उसने अब मेरे खड़े चूचुकों को भी खींचना शुरू कर दिया था। मैं भी अब मस्ती से दिवानी हो रही थी।
चन्दा की हालत भी वही हो रही थी। उस छोटे से रास्ते को पार करने में हम लोगों को 20-25 मिनट लग गये होंगे और मैंने कम से कम 10-12 लोगों को खुलकर अपना जोबन दान दिया होगा।
बाहर निकलकर मैं अपनी चोली के हुक बंद कर रही थी कि चन्दा ने आ के कहा- “क्यों मजा आया हार्न दबवाने में…”
बेशरमी से मैंने कहा- “बहुत…”
गन्ने के खेत में
पर तब तक मैंने देखा की गीता, पास के गन्ने के खेत में जा रही है। मैंने पूछा- “अरे… ये गीता कहां जा रही है…”
चन्दा ने आँख मारकर, अंगूठे और उंगली के बीच छेद बनाकर एक उंगली को अंदर-बाहर करते हुए इशारे से बताया चुदाई करवाने। और मुझे दिखाया की उसके पीछे रवी भी जा रहा है।
“पर तुम कहां रुकी हो, तुम्हारा कोई यार तुम्हारा इंतेजार नहीं कर रहा क्या…” चन्दा को मैंने छेड़ा।
“अरे लेकिन तुम्हें कोई उठा ले जायेगा तो मैं ही बदनाम होऊँगी…” चन्दा ने हँसते हुए मेरे गुलाबी गालों पर चिकोटी काटी।
“अरे नहीं… फिर तुम्हें खुश रखूंगी तो मेरा भी तो नंबर लगा जायेगा। जाओ, मैं यही रहूंगी…” मैं बोली।
“अरे तुम्हारा नंबर तो तुम जब चाहो तब लग जाये, और तुम न भी चाहो तो भी बिना तुम्हारा नंबर लगवाये बिना मैं रहने वाली नहीं, वरना तुम कहोगी कि कैसी सहेली है अकेले-अकेले मजा लेती है…” और यह कह के वह भी गन्ने के खेत में धंस गयी।
मैंने देखा की सुनील भी एक पगडंडी से उसके पीछे-पीछे चला गया।
गन्ने के खेत में सरसराहट सी हो रही थी।
मैं अपने को रोक नहीं पायी और जिस रास्ते से सुनिल गया था, पीछे-पीछे, मैं भी चल दी।
एक जगह थोड़ी सी जगह थी और वहां से बैठकर साफ़-साफ़ दिख रहा था।
चन्दा को सुनील ने अपनी गोद में बैठा रखा था और चोली के ऊपर से ही उसके जोबन दबा रहा था। चन्दा खुद ही जमीन पर लेट गयी और अपनी साड़ी और पेटीपेट को उठाकर कमर तक कर लिया। मुझे पहली बार लगा की साडी पहनना कित्ता फायदेमंद है।
उसने अपनी दोनों टांगें फैला लीं और कहने लगी- “हे जल्दी करो, वो बाहर खड़ी होगी…”
सुनील ने भी अपने कपड़े उतार दिये। उफ… कित्ता गठा मस्कुलर बदन था, और जब उसने अपना… वाउ… खूब लंबा मोटा और एकदम कड़ा लण्ड… मेरा तो मन कर रहा था कि बस एक बार हाथ में ले लूं।
सुनील ने उसकी चोली खोल दी और सीधे, फैली हुई टांगों के बीच आ गया।
उसके लण्ड का चूत पर स्पर्श होते ही चन्दा सिहर गयी और बोली- “आज कुछ ज्यादा ही जोश में दिख रहे हो क्या मेरी सहेली की याद आ रही है…”
“और क्या… जब से उसे देखा है मेरी यही हालत है, एक बार दिलवा दो ना प्लीज…” सुनील अपने दोनों हाथों से चन्दा के मम्मे जमकर मसल रहा था।
चन्दा जिस तरह सिसकारी भर रही थी, उसके चेहरे पे खुशी झलक रही थी, उससे साफ लग रहा था की उसे कितना मजा आ रहा था। मेरा भी मन करने लगा कि अगर चन्दा की जगह मैं होती तो…
सुनील अपना मोटा लण्ड चन्दा की बुर पर ऊपर से ही रगड़ रहा था और चन्दा मस्ती से पागल हो रही थी- “हे डालो ना… आग लगी है क्यों तड़पा रहे हो…”
सुनील ने उसके एक निपल को हाथों से खींचते हुए कहा-
“पहले वादा करो… अपनी सहेली की दिलवाओगी…”
चन्दा तो जोश से पागल हो रही थी और मुझे भी लगा रहा था कि कितना अच्छा लगता होगा। वह चूतड़ उठाती हुई बोली-
“हां, हां… दिलवा दूंगी, चुदवा दूंगी उसको भी, पर मेरी चूत तो चोदो, नशे में पागल हुई जा रही हूं…”
सुनील ने उसकी दोनों टांगों को उठाकर अपने कंधे पर रखा और उसकी कमर पकड़कर एक धक्के में अपना आधा लण्ड उसकी चूत में ठेल दिया। मैं अपनी आँख पर यकीन नहीं कर पा रही थी, इतनी कसी चूत और एक झटके में सिसकी लिये बिना, लण्ड घोंट गयी।
अब एक हाथ से सुनील उसकी चूची मसल रहा था, और दूसरे से उसकी कमर कसकर पकड़े था।
थोड़ी देर में ही, चन्दा फिर सिसकियां लेने लगी-
“रुक क्यों गये… डालो ना प्लीज… चोदो ना… उहुह… उह्ह्ह…”
सुनील ने एक बार फिर दोनों हाथ से कमर पकड़कर अपना लण्ड, सुपाड़े तक निकाल लिया और फिर एक धक्के में ही लगभग जड़ तक घुसेड़ दिया। अब लगा रहा था कि चन्दा को कुछ लग रहा था।
चन्दा- “उफ… उह फट गयी… लग रहा है, प्लीज, थोड़ा धीरे से एक मिनट रुक… हां हां ऐसे ही बस पेलते रहो हां, हां डालो, चोद दो मेरी चूत… चोद दो…”
चन्दा और सुनील दोनों ही पूरे जोश में थे। सुनील का मोटा लण्ड किसी पिस्टन की तरह तेजी से चन्दा की चूत के अंदर-बाहर हो रहा था।
चन्दा की मस्ती देखकर तो मेरा मन यही कह रहा था कि काश… उसकी जगह मैं होती और मेरी चूत में सुनील का ये मूसल जैसा लण्ड घुस रहा होता… थोड़ी देर में सुनील ने चन्दा की टांगें फिर से जमीन पर कर दीं और वह उसके ऊपर लेट गया, उसका एक हाथ, चन्दा के चूचुक मसल रहा था और दूसरा उसकी जांघों के बीच, शायद उसकी क्लिट मसल रहा था।
चन्दा का एक चूचुक भी सुनील के मुँह में था।
अब तो चन्दा नशे में पागल होकर अपने चूतड़ पटक रही थी। उसने फिर दोनों टांगों को उसके पीठ पर फंसा लिया। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि चुदाई में इत्ता मजा आता होगा, अब मैं महसूस कर रही थी कि मैं क्या मिस कर रही थी।
सटासट, सटासट… सुनील का मोटा लण्ड… उसकी चूत में अंदर-बाहर… चन्दा का शरीर जिस तरह से कांप रहा था उससे साफ था कि वो झड़ रही है।
पर सुनील रुका नहीं, जब वह झड़ गई तब सुनील ने थोड़ी देर तक रुक-रुक कर फिर से उसके चूचुक चूसने, गाल पर चुम्मी लेना, कसकर मम्मों को मसलना रगड़ना शुरू कर दिया और चन्दा ने फिर सिसकियां भरना शुरू कर दिया।
एक बार फिर सुनील ने उसकी टांगों को मोड़कर उसके चूतड़ों को पकड़ के जमके खूब कस के धक्के लगाने शुरू कर दिये। क्या मर्द था… क्या ताकत… चन्दा एक बार और झड़ गयी।
तब कहीं 20-25 मिनट के बाद वह झड़ा और देर तक झड़ता रहा। वीर्य निकलकर बहुत देर तक चन्दा के चूतड़ों पर बहता रहा। अब उसने अपना लण्ड बाहर निकाला तब भी वह आधा खड़ा था।
मैं मंत्रमुग्ध सी देख रही थी, तभी मुझे लगा कि अब चन्दा थोड़ी देर में बाहर आ जायेगी, इसलिये, दबे पांव मैं गन्ने के खेत से बाहर आकर इस तरह खड़ी हो गई जैसे उसके इंतेजार में बोर हो रही हूं।
चन्दा को देखकर उसके नितंबों पर लगी मिट्टी झाड़ती मैं बोली- “क्यों ले आयी मजा…”
“हां, तू चाहे तो तू भी ले ले, तेरा तो नाम सुनकर उसका खड़ा हो जाता है…” चन्दा हँसकर बोली।
“ना, बाबा ना, अभी नहीं…”
“ठीक है, बाद में ही सही पर ये चिड़िया अब बहुत देर तक चारा खाये बिना नहीं रहेगी…” साड़ी के ऊपर से मेरी चूत को कसके रगड़ती हुई वो बोली, और मुझे हाथ पकड़के मेले की ओर खींचकर, लेकर चल दी।
मेले में गीता के साथ पूरबी, कजरी और बाकी लड़कीयां फिर मिल गयीं।
चन्दा ने आँखों के इशारे से पूछा तो गीता ने उंगली से दो का इशारा किया। मैं समझ गयी कि रवी से ये दो बार चुदा के आ रही है।
पूरे मेले में खिलखिलाती तितलियों की तरह हम लोग उड़ते फिर रहे थे।
हम लोगों ने गोलगप्पे खाये, झूले पर झूले, हम लोगों का झुंड जिधर जाता, पूरे मेले का ध्यान उधर मुड़ जाता और फिर जैसे मिठाई के साथ-साथ मक्खियां आ जाती हैं, हमारे पीछे-पीछे, लड़कों की टोली भी पहुँच जाती।
और दुकानदार भी कम शरारती नहीं थे, कोई चूड़ी पहनाने के बहाने जोबन छू लेता तो कोई कलाई पकड़ लेता। और लड़कीयों को भी इसमें मजा मिल रहा था, क्योंकी इसी बहाने उन्हें खूब छूट जो मिल रही थी।
थोड़ी देर में मैं भी एक्सपर्ट हो गई। दुकानदार के सामने मैं ऐसे झुक जाती कि उसे न सिर्फ चोली के अंदर मेरे जोबन का नजारा मिल जाता बल्की वह मेरे चूचुक तक साफ-साफ देख लेता।
उसका ध्यान जब उधर होता तो मेरी सहेलियां उसका कुछ सामान तो पार ही कर लेतीं, और मुझे जो वो छूट देता वो अलग।
हम ऐसे ही मस्ती में घूम रहे थे।
पूरबी ने गाया-
अरे मैं तो बनिया यार फँसा लूंगी,
अरे जब वो बनिया चवन्नी मांगे,
अरे जब वो बनिया चवन्नी मांगे, मैं तो जोबना खोल दिखा दूंगी।
अरे मैं तो बनिया यार फँसा लूंगी, दूध जलेबी खा लूंगी
अरे जब वो बनिया रुपैया मांगे,
अरे जब वो बनिया रुपैया मांगे, मैं तो लहंगा खोल दिखा दूंगी।
गुदने वाली के पास भी हम लोग गये और मैंने भी अपनी ठुड्डी पे तिल गुदवाया।
तभी मैंने देखा कि बगल की दुकान पे दो बड़े खूबसूरत लड़के बैठें हैं, खूब गोरे, लंबे, ताकतवर, कसरती, गठे बदन के, उनकी बातों में मेरा नाम सुन के मेरा ध्यान ओर उनकी ओर लग गया।
“अरे तुमने देखा है, उस शहरी माल को, क्या मस्त चीज है…” एक ने कहा।
“अरे मैं, आज तो सारा मेला उसी को देख रहा है, उसकी लम्बी मोटी चूतड़ तक लटकती चोटी, जब चलती है तो कैसे मस्त, कड़े कड़े, मोटे कसमसाते चूतड़, मेरा तो मन करता है, कि उसके दोनों चूतड़ों को पकड़कर उसकी गाण्ड मार लूं… एक बार में अपना लण्ड उसकी गाण्ड में पेल दूं…” दूसरा बोला।
“अरे मुझे तो बस… क्या, गुलाबी गाल हैं उसके भरे-भरे, बस एक चुम्मा दे दे यार, मन तो करता है कि कचाक से उसके गाल काट लूं…” पहला बोला।
दूसरा बोला- “और चूची… ऐसी मस्त रसीली कड़ी-कड़ी चूचियां तो यार पहली बार देखीं, जब चोली के अंदर से इत्ती रसीली लगती हैं तो… बस एक बार चोदने को मिल जाय…”
शायद किसी और दिन मैं किसी को अपने बारे में ऐसी बातें बोलती सुनती तो बहुत गुस्सा लगता, पर आज ये सबसे बड़ी तारीफ लग रही थी… और ये सुनके मैं एकदम मस्त हो गयी।
पूरे मेले में हम लोगों की टोली ने धमाल मचा रखा था।
जो जो चीजे मैंने कभी देखी भी नहीं थी , सिर्फ पढ़ी थीं ,सुनी थीं वो सब , और सब से बढ़ के फुल टाइम मस्ती ,
जितना मैं चंदा से खुली थी , अब उतना ही गीता , पूरबी ,कजरी और गाँव की बाकी लड़कियों से भी ,
गीता ने पूरा किस्सा सुनाया मुझे चटखारे लेकर कैसे रवी ने उसके साथ , एक नहीं दो बार ,
पूरबी ने भी पूरे डिटेल में गन्ने के खेत के मजे के बारे में बताया।
और भीड़ भी इतनी की कहाँ कौन क्या कर रहा है , कोई देख नहीं सकता था ,सब अपने अपने में मगन थे।
टोलियां बन बिगड़ रही थीं , कभी किसी के साथ कोई किसी दूकान पे तो कोई किसी के साथ , और थोड़ी देर में फिर हम मिल जाते , आसमान में बनते बिगड़ते रंगीले बादलों के साथ।
हाँ ,जिधर हम जाते , लड़कों की टोली भी पीछे पीछे , और एक से एक कमेंट ,और उस से भी ज्यादा तीखे शोख जवाब भी मिलते , गीता और कजरी की ओर से और अब , मेरी भी जुबान खुल गयी थी , गाने से लेकर खुल के मजाक करने में।
मैं और चंदा मेले में घूम रहे थे की पीछे से सुनील कुछ इशारा कर के ,चंदा को बुलाया।
" बस पांच मिनट में आ रही हूँ , कुछ जरूरी काम है " वो मुझसे बोली , लेकिन मैं तो सुनील के इशारे को देख ही चुकी थी। हँसते हुए मैंने छेड़ा ,
" अरे जाओ न , और वैसे भी यहाँ आस पास कोई गन्ने का खेत तो है नहीं जो तुझे ज्यादा टाइम लगे। "
जोर से एक हाथ मेरी पीठ पे पड़ा और खिलखिलाती चंदा ने बोला , " बहुत देर नहीं है , जल्द ही तुझे भी गन्ने के खेत में लिटाउंगी , सटासट सटासट लेगी न अंदर तो, और वैसे भी गन्ने के खेत के अलावा भी यहाँ आस पास बहुत जगहे हैं मजा लेंने की , कित्ता भी चीखो,बोलो कुछ पता नहीं चलने वाला। "
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